
डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया
हम फिर मिलेंगे…
सुनिए ना,
कोशिश अब भी करती हूँ,
आपका हाथ थामने की,
दिल की गहराइयों में
अब भी बसा है कहीं आपका वजूद।
बिस्तर की सिलवटों में ढूंढती हूँ
आपका स्पर्श,
मैं वो प्यार थामे चलती हूँ,
जो हमने जिया था।
आपके गानों की गूंज,
“फूलों के रंग से, दिल की क़लम…”
अब भी कमरे की ख़ामोशी में
धीमे-धीमे गुनगुनाती है।
मोगरे की महक के संग
आपकी यादें साथ चलती हैं,
उस ख़ाली जाम में,
भरी हैं कितनी कहानियाँ।
आप मेरे साथ ही हो,
मखनसिंग की बातों में,
और गुड़ियारानी की सर्जनशैली में,
आप ही तो हो।
मैं उस प्यार को थामे रखूँगी,
जिसे सिर्फ़ हम दोनों जानते थे।
आपकी शरारतों की कमी
हर दिन खलती है,
तब उन यादों से
हौसला पाती हूँ…
“जिंजिता मेरी शेरनी — हम फिर मिलेंगे…”
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