डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया

हिसाब

चलो करते हैं हिसाब,
वो छोटी-छोटी ख़ुशियों का,
तुमसे की हुई बातों में लिपटी हुई ज़िंदगी का।
ये फ़ासले, ये दूरियाँ,
ये बेवजह रूठना,
गुज़ार देना वक्त,
सिर्फ़ ये तय करने में
कि कौन, किसके लिए कितना काबिल है…
कभी-कभी यूँ ही छोड़ देना मुझे तनहा,
चल देना हो के बेपरवाह,
वक्त को मेरे खाते में जमा कराए बिना ही,
करना हिसाब गुज़रे हुए लम्हों का,
कह देना,
“लो, हो गया बराबर हिसाब!”
चलो,
अब सिखाऊँ मैं तुम्हें असली गिनती —
जोड़ो (+) वो अनगिनत ख़्वाबों को,
गुणा (×) करो उन जज़्बातों को,
वो साथ बिताए चंद हसीन लम्हे —
उन्हें करो अनंत (∞),
और
घटा (−) दो इन दूरियों को।
अब देखो ज़रा,
कितने सारे पल
अब भी उधार हैं तुम पर।

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