प्रेम और समय

डॉ महादेव एस कोलूर

एक बार की बात है, एक द्वीप था जहाँ सभी भावनाएँ रहती थीं – खुशी, दुख, ज्ञान, ईर्ष्या और बाकी सभी, जिसमें प्रेम भी शामिल था। एक दिन भावनाओं को यह बताया गया कि द्वीप डूबने वाला है, इसलिए सभी ने अपने अपने नाव बनाईं और चल पड़े,सिवाय प्रेम के।

प्रेम ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो रुका था। प्रेम आखिरी संभव क्षण तक टिकना चाहता था। जब द्वीप लगभग डूब गया, तो प्रेम ने मदद माँगने का फैसला किया।

अमीरी एक भव्य नाव में प्रेम के पास से गुजर रही थी। प्रेम ने कहा, “अमीरी, जी क्या तुम मुझे अपने साथ ले जा सकती हो?” अमीरी ने जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं ले जा सकती। मेरी नाव में बहुत सारा सोना और चाँदी है। यहाँ तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।”

प्रेम ने घमंड से पूछने का फैसला किया जो एक खूबसूरत नाव में वहाँ से गुजर रही थी। “घमंड जी, कृपया मेरी मदद करें!” “मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकती, प्रेम! तुम पूरी तरह से भीग चुके हो और मेरी नाव को नुकसान पहुँच सकता है।”, घमंड ने जवाब दिया।

दुख करीब था इसलिए प्रेम ने पूछा, “दुख, मुझे अपने साथ चलने दो।” “ओह… प्रेम, मैं इतना दुखी हूँ कि मुझे अकेले रहने की ज़रूरत है!”

खुशी प्रेम के पास से भी गुज़री, लेकिन वह इतनी खुश थी कि उसने प्रेम के पुकारने की आवाज़ भी नहीं सुनी।

अचानक, एक आवाज़ आई, “आओ, प्रेम, मैं तुम्हें ले चलूँगा।” यह एक बुज़ुर्ग था। इतना धन्य और अति प्रसन्न, प्रेम बुज़ुर्ग से पूछना भी भूल गया कि वे कहाँ जा रहे हैं। जब वे सूखी ज़मीन पर पहुँचे, तो बुज़ुर्ग अपने रास्ते चले गए। बुज़ुर्ग के साथ बीती को महसूस करने के पश्चात प्रेम ने ज्ञान से मदद के लिए पूछा, ज्ञान ने उत्तर दिया कि जो “बुजुर्ग आपकी मदद की” “यह समय था, प्रेम फिर से पूछा “समय?” ज्ञान ने कहा ‘हां’, प्रेम ने पूछा “लेकिन समय ने मेरी मदद क्यों की?”

ज्ञान ने गहरी बुद्धि से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “क्योंकि केवल समय ही यह समझने में सक्षम है कि प्रेम कितना मूल्यवान है।”

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