
आधुनिक गिरमिटिया
डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे, नीदरलैंड
कल कारला को एक सामाजिक कार्यक्रम का हिस्सा बनने का अवसर मिला। क्योंकि कार्यक्रम भारतीय था इसलिए कारला ने भारतीय परिधान पहना था। जब वह कार्यक्रम में पहुँची तो वहाँ रामायण की चौपाई का पाठ चल रहा था। कारला भी वही एक कुर्सी पर रामायण लेकर पढ़ने लगी। जब रामायण पाठ समाप्त हो गया तो कार्यक्रम के आयोजकों ने सभी को भंडारे के लिए आमंत्रित किया। भंडारे में कुछ औरतें कारला के पास आई उन्होंने कारला को कहा आपने बहुत सुंदर ढंग से रामायण काम पाठ किया। कारला ने जैसे ही अपनी टूटी फूटी हिंदी में बोलना चाहा तो उनमें से एक महिला ने उससे कहा “तुम इंडियन नहीं हो” कारला ने कहा “नहीं मैं इंडियन नहीं हूँ मेरे आजा भारत से आए थे मैं भारतीय हूँ।” उसका यह जबाब सुन कर पहली महिला ने दूसरी महिला को समझाते हुए कहा “अरे यह इण्डियन नहीं है यह वह लोग हैं जो सौ साल पहले यहाँ गिरमिट पर मज़दूर लाए गए थे।” दूसरी महिला ने कारला की ओर ऊपर से नीचे देखते हुए कहा “अच्छा यह यह मज़दूर है जो कॉन्ट्रैक्ट पर यहाँ गए थे। कूली कहते हैं शायद इन्हें। उसके शब्दों से लग रहा था जैसे यह बात सुनकर उसे कारला कोई निम्न वर्ग वाली महिला लगी जिससे बात करने से उसका स्तर कम हो रहा हो।
कारला ने बिना झिझक उस महिला से पूछा “आप भारत से यहाँ कैसे आए?” उस महिला ने बजे ही गर्व के साथ अपनी भृकुटी ऊँची करते हुए कहा। “मेरे बेटे को यहाँ एक कंपनी में नौकरी मिली है। तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर इसलिए हम भी उसके साथ यहीं आ गए हैं।” कारला ने पूछा “अच्छा आपका बेटा यहाँ तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर आया है। क्या वह वापिस भारत जाएगा? उस महिला ने कहा यह तो अभी पता नहीं। अगर कॉन्ट्रैक्ट बढ़ गया तो शायद यहीं रह जाएगा।”
कारला ने बहुत ही शान्त स्वर में कहा” अरे फिर तो आप भी हमारी तरह गिरमिटिया ही कहलाओगे। अंतर सिर्फ इतना रहेगा कि हमारे पूर्वजों को डेढ़ सो साल पहले यहाँ धोखे से काम करने के लाया गया था और आपका बेटा आधुनिक गिरमिटिया बनकर अपनी मर्जी से यहाँ काम करने आया है।
इससे पहले वह दोनों महिला कारला को कुछ कहती, कारला ने कहा, “मुझे लगा था आप भारतीय हो और भारत के लोगों का सम्मान करते हो पर आप इंडिया वाले हो अंग्रेज़ों की तरह लोगों में फर्क करते हो।”