
केटी कोटी -गुलामी का अतीत

– डॉ ऋतु शर्मा (नंनन पांडे), नीदरलैंड
आज हम जिस यूरोप को बहुत ही सम्मानित व आधुनिकीकरण के लिए जानते हैं उस यूरोप का एक दूसरा पक्ष भी है जिसे हमने कभी जानने की कोशिश नहीं की है। स्वतंत्रता सभी के लिए महत्वपूर्ण है फिर चाहे वह पिंजरे का पँछी हो या बेड़ियों में जकड़ा मनुष्य। किसी भी देश का इतिहास उस देश के निवासियों के लिए एक पहचान होता है। क्योंकि आप विश्व में कहीं भी जाते हैं तो सबसे पहले लोग आपके रंग रूप को देखने के बाद आपसे पूछते हैं “ आप किस देश से आएँ है? “ यदि आपका देश उपलब्धियों से भरा है तो आप गर्व से अपने राज्य देश का नाम बताते हैं। यदि आपके देश की जड़ें ग़ुलामी के लहूँ से सींची गई हो और उसका प्रभाव आज भी आपके देश, व समुदाय की पहचान बन जाए तो यह बहुत कष्टकर होता है। ऐसा ही कुछ इतिहास है डच शासकों द्वारा क्रय और विक्रय किये गये बहुसंख्यक अफ़्रीकी समुदाय के लोगों का। जिनके सूरीनाम , नीदरलैंड व अन्य देशों में दासों को ख़रीदने व बेचने में डच शासकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
केटी कोटी सूरीनामी अफ्रीकी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ”-केटी-ज़ंजीर बंधन – कोटी = काटना, तोड़ना होता है।
सत्रहवीं शताब्दी में नीदरलैंड व्यापार में विश्व में सबसे सर्वोच्च स्थान पर था। यह समय नीदरलैंडका स्वर्ण युग भी कहलाता है।इस समय में दास प्रथा पूरे विश्व में फैल चुकी थी। नीदरलैंड अन्यवस्तुओं के व्यापार के साथ साथ दासों के व्यापार के लिए भी प्रथम श्रेणी में गिना जा रहा था।नीदरलैंड एशियाई व अफ्रीकी देशों से स्वस्थ व बलशाली पुरूषों,महिलाओं व बच्चों कोवेस्टइंडीज़ से ख़रीदता और अमरीकी देशों को बेचता था। इन दासों की एक जगह से दूसरी जगह तक जाने की यात्रा बहुत लंबी व कष्टदायक होती थी।कभी कभी इतनी लंबी यात्रा में हर दस व्यक्तियों में से दो तीन व्यक्ति मृत्यु का ग्रास भी बन जाते थे। जब वह एक बार वह दक्षिण अमेरिका पहुँच जाते तो उन्हें,गन्ने,कपास,धान या फिर बड़ी बड़ी कंपनियों के मालिकों याधनाढ्य लोगों को बेच दिए जाते थे। उस समय में वेस्टइंडीज़ कंपनी व पूर्वीइंडीज़ कंपनी ने गुलामों व दासों को नीदरलैंड को बेच करबहुत सारा धन प्राप्त कर लिया था। नीदरलैंड ने उस समय लगभग 600,000 आदमी, औरतें व बच्चों को दास के रूप में बेचा।
सूरीनाम,गयाना, बौनेरो, कयूरोसाव, इंडोनेशिया, सेंट मार्टिन आदि देश उस समय नीदरलैंड के कालोनी देश थे।
सूरीनाम में दासों को और ख़ासकर अफ्रीकी समुदाय के लोगों केसाथ बहुत ही दुर्व्यवहार कियाजाता था। समय पर काम पूरा न होने पर उन्हें आग से ज़िंदा जलाने से लेकर उनके अंग भंग व चौराहे पर लटका कर मृत्यु की सजा दी जाती थी। उनके हाथों व पैरों में बहुत मोटी मोटी बेड़ियाँ पहनाई जाती थी ताकी वह भाग न सकें। स्त्रियों को भोग की वस्तु बनना पड़ता था।उन्हें कपड़े न पहनने पर विवश किया जाता था।बच्चों का शारीरिक व मानसिक शोषण किया जाता था। इसीतरह कुछ लोगों का उनके स्वामी या मालिकों द्वारा उनके साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार करने के कारण अपनी जानबचाने के लिए वहाँ से निकल कर घने जंगलों में शरण ले ख़तरनाक जगंली जानवरों के साथ रहनेको मजबूर हो गए थे। धीरे धीरे इस जगंल में उन्होंने अपना एक कबीला बना लिया और दास प्रथाके विरूद्ध आवाज़ उठाई।

Anton de kom अंतोन द कॉम जो सन 22 फ़रवरी 1898 में सूरीनाम की राजधानी पारामॉरिबोमें एक दास अफ़्रीकन परिवार में जन्में पहले अफ़्रीकी दास समुदाय के प्रतिनिधि थे जिसने दासजैसी प्रथा के विरूद्ध आवाज़ उठाई।उनकी माँ को दासों के बाज़ार में बेचा गया था। दासता काजीवन काटते हुए भी अंतोन द कॉम ने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी कर वह नीदरलैंड आ गए।नीदरलैंड आने के बाद उन्होंने दास प्रथा के विरूद्ध समाचारपत्रों में लिखना शुरू किया।उन्होंने दासप्रथा व दासता के जीवन पर “wij Slaven van Suriname “हम सूरीनाम के दास” नाम सेपुस्तक लिखी। उन्होंने डच महिला से विवाह किया और दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्होंने नीदरलैंडकी तरफ़ से जर्मन सेना के विरूद्ध युद्ध में भी सहभागिता निभाई।
1 जूलाई 1863 को नीदरलैंड के समानता के अधिकार Emancipatie के अंतर्गत अफ्रीकीसमुदाय के दास लोग स्वतंत्रत हो गए।इस दिन दास प्रथा का अंत हुआ व ग़ुलामी की बेड़ियाँ हमेशाहमेशा के लिए कट गई। उसी दिन से अब तक सूरीनामी , सूरीनाम, बौनेरो,क्यूबा,कयूरौसाव, सेंटमार्टिन,साबा,आदि देश नीदरलैंड की कॉलोनी थी वहाँ व नीदरलैंड में 1 जुलाई को केटी कोटी कात्यौहार उनके पूर्वजों को श्रद्धांजलि व दास प्रथा समाप्त होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस वर्षइस परंपरा को दो सो साल पूरे होने के अवसर पर नीदरलैंड की सरकार व नीदरलैंड के राज परिवारने दास प्रथा के विरूद्ध लड़ने वाले स्वर्गीय “ऑतोन द कॉम” के परिवार के सदस्यों से उस समयकिए अफ्रीकी समुदाय व अन्य सभी देशों से लाए गए लोगों को दास बना कर उनके साथ किए गएअत्याचारों के लिए माफ़ी भी माँगी है। नीदरलैंड सरकार व नीदरलैंड राज परिवार का यहीं गुण उन्हेंअन्य यूरोपीय देशों के राज परिवार व सरकारों से अलग विश्व में विशेष स्थान बनाता है। इस वर्षनीदरलैंड में यह उत्सव बहुत बड़े स्तर एमस्टर्डम के साथ साथ लगभग हर शहर में मनाया जा रहा है। संग्रहालयों में बड़ी बड़ी प्रदर्शनी लगाई जा रही है। इन प्रदर्शनियों का तात्पर्य यह है की इनकी वर्तमान व भावी पीढ़ी अपने पूर्वजों के बलिदानों को सदा आदर व सम्मान के साथ याद करें। हमें ख़ुशी है कि आज मानव समाज से यहप्रथा हमेशा के लिए समाप्त हो गई है।
डॉ ऋतु शर्मा (नंनन पांडे), नीदरलैंड