देश-विदेश के युवा रचनाकार

      सृष्टि में सृजन अद्भुत है। सृजन के क्षणों में मनुष्य अर्धसमाधि की अवस्था में होता है। कविता सृजन हेतु विचार कौंधते हैं और स्वतः फूट पड़ते हैं। युवा रचनाकारों की रचनाधर्मिता को बढ़ावा देने हेतु  वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में 6 जुलाई 2025 को  ‘देश विदेश के कुछ युवा कवियों, पर आभासी कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध आलोचक एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो॰ जितेंद्र श्रीवास्तव द्वारा की गई। इस अवसर पर यूक्रेन से डॉ॰ यूरी बोत्विंकिन विशेष अतिथि थे। चार देशी और चार विदेशी युवा कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस कार्यक्रम में देश -विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, कवि, तकनीकीविद, योग साधक, प्राध्यापक,अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा-संस्कृति प्रेमी आदि जुड़े थे।

      आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो॰ ओम प्रकाश द्वारा स्वागत किया गया। तत्पश्चात युवा साहित्य एवं कला अध्येता श्री विशाल पाण्डेय ने सधे शब्दों में संचालन संभाला। अपनी प्रारम्भिक प्रस्ताविकी में कवि एवं वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने हर्ष प्रकट करते हुए कहा कि बदलते समय के साथ देशी -विदेशी रचनाकारों की रचना और शिल्प को समझना श्रेयस्कर होगा। उन्होने अपनी रचना  “लोग सो रहे हैं या साजिशें कर रहे हैं तथा ‘भटका हुआ भविष्य’ सुनाकर जागृति लाई और निज भाषा की अहमियत बताई। आस्ट्रेलिया से जुड़े श्री मृणाल शर्मा ने ‘स्त्री पुरुष के बीच संवाद’ पर गहरी पैठ कराई और चंद्रभागा के माध्यम से सृजन का अहसास कराया। ब्रिटेन की प्रसिद्ध युवा कवयित्री सुश्री ऋचा जैन ने  ‘ स्वभाव’ शीर्षक से रचना सुनाकर झकझोर दिया और आत्मलोचन हेतु प्रेरित किया। युवा रचनाकार चित्रा पँवार ने ‘नीड़’ और ‘प्रेमिका गणित’ शीर्षक से कवितायें सुनाकर मानवीय सम्बन्धों की गहराई का भान कराया। श्री अभिषेक तिवारी ने ‘माहिया मेरे सुन’ नामक कविता सुनाते हुए कहा कि जो दिल दुखा तो क्या किए , कोई किताब हाथ में लिए पड़े रहे।

       नीदरलैंड से जुड़ीं डॉ॰ ऋतु पाण्डेय ने ‘उर्मिला’ शीर्षक से कविता सुनाकर वनवास की व्यथा कथा और उर्मिला विरह पर कहा कि उसने प्रतीक्षा की किन्तु हारी नहीं। जर्मनी से डॉ॰ शिप्रा शिल्पी सक्सेना ने अपनी गेयता से रसधार बहाते हुए मंत्र मुग्ध किया  – ‘देने वाले जब भी देना, दिल में अच्छाई देना। श्री आदित्य नाथ तिवारी ने ‘सूखे पत्ते’ शीर्षक कविता में संदेश दिया कि सूखे हैं हम किन्तु मुरझाए नहीं हैं। उन्होने ‘रंगमंच की स्त्रियाँ’ नामक कविता में आजकल के पात्रों की बेहिचक कलात्मकता को उजागर किया। आजमगढ़ से जुड़ीं अनुष्का पाण्डेय ने मन को नदी से जोड़ते हुए काशी ,गाजीपुर और बलिया की गंगाजी की हरिद्वार वाली से अलग स्वरूप बताया। अमेरिका से जुड़े श्री अनूप भार्गव ने रचनाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज युवा रचनाकारों से अनेक सकारात्मक संभावनाएं जगीं हैं। कवयित्री डॉ॰ अनीता वर्मा ने आज की शाम को मुखर-स्वर एवं ताजगी भरी बताया और कविता में परतों को आवश्यक करार दिया तथा अपनी कविता में धारा,विचारधारा और नदी का रूपक गढ़ते हुए जीवन दर्शन का एहसास कराया।

    विशिष्ट अतिथि के रूप में यूक्रेन के कीव विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो॰ यूरी बोत्विंकिन ने मातृभाषा और कविता की महत्ता पर प्रकाश डाला और ‘कच्ची चिट्ठी’ ‘जन्म दिन’ शीर्षक से अपनी शुरुआती रचना सुनाई। उन्होने अपनी दार्शनिक कविता में कहा कि नश्वर जीवन का कोई अर्थ नहीं है। हमें सुख के प्रति निर्भाव रहना चाहिए। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रसिद्ध आलोचक एवं कवि प्रो॰ जितेंद्र श्रीवास्तव ने सभी कवियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि कविता में अपने होने का बोध और सांस्कृतिक चेतना आवश्यक है। आजकल देशी- विदेशी बहुपठित युवा रचनाकार अपनी जड़ों से जुड़ते हुए समिश्र भाव में लेखन को धार दे रहे हैं तथा कविता के घनत्व को सशक्त कर रहे हैं। पढे जाने से कविता अपेक्षाकृत अधिक खुलती है। उन्होने मोबाइल से दूरियों और हठों पर आधारित अपनी रचना “अबकी मिलना तो’ सुनाई और कहा कि बतियाना जरूरी है अन्यथा हम अबोले की तरह होकर मृत्यु की छाया के वशीभूत होने लगते हैं।      

      

     यह कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका का निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और पूर्व राजनयिक सुनीता पाहुजा द्वारा किया गया। अंत में  दिल्ली से युवा कवयित्री डॉ॰सुअंबदा कुमारी के आत्मीय धन्यवाद ज्ञापन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ।  यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव

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