
नरेश शांडिल्य
आलोचक
उसने मेरे पसीने को पानी कहा
मैं चुप रहा
उसने मेरे आँसू को पानी कहा
मैं चुप रहा
उसने मेरे ख़ून को पानी कहा
मैं चुप रहा
लेकिन जब उसने
अपनी लार को भी लावा कहा
तो मैं चुप नहीं रहा
अपनी कसी हुई मुट्ठियों
और भिंचे हुए दाँतों के साथ
मैं मुड़ा
मुस्कुराया
और चल दिया आगे
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