हम लखनौवा है : दोस्ती नहीं यारी निभाते है

डॉ शिप्रा शिल्पी, कोलोन, जर्मनी

क्या फर्क पड़ता कोई आपको क्या समझता है, दोस्त वही जो आपको समझने की समझ रखता है। उस हर दोस्त के लिए जो दोस्ती को परखते नहीं किसी कसौटी पर बस विश्वास करते है आंख मूंदकर।

हम लखनौवा हैं
दोस्ती नहीं यारी निभाते हैं।
गर दोस्त कहे हमसे,
गमजादा है डिस्टर्ब न करना।
तबियत नासाज है,
देखो बानो तंग न करना।
हम उसी वक्त उसका फोन घनघनाते हैं।
गर वो मोहतरमा फोन न उठाए,
सारे काम धाम छोड़ छाड़ ,
हम उनके घर की घंटी बजाते हैं।
हम लखनौवा हैं
दोस्ती नहीं यारी निभाते हैं।

माना नाजुकी अंदाज है,
पर दोस्ती में नजाकत नही दिखाते हैं।
सीधे धावा बोलकर,
दोस्त को भीचकर सीने से लगाते हैं।
जनाब वो दोस्त है हमारी,
अकेले थोड़ी न सहने देंगे,
क्या हुआ जो परेशा है वो अभी,
अकेले थोड़ी न रोने देंगे।
उसे भाए न भाए जबरन साथ निभाते हैं।
हम लखनौवा हैं
जबरन अपनी याद दिलाते हैं।

लखनउवा होना भी एक अदा है।
दोस्त लखनऊवा मिले समझो दुआ है।
जो नहीं समझे,
वो इस खालिस प्यार को आंक लेते हैं।
इबादत में झुकते हैं हम ए दोस्त,
वो गिरा हुआ मान लेते हैं।
वो क्या जाने दोस्ती क्या है,
वो आह करे हम जान दे दें।
ये लखनउवा दिल है जनाब,
प्यार का मारा
दोस्तों पर जान देते हैं।

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