कैनेडा और अमेरिका की ठंडी हवा में मीठी-मीठी ख़ुमारी है। प्राणवायु के साथ लोगों को मेरुआना और गाँजे के धुएँ का लुत्फ़ मुफ़्त मिलता है। यहाँ भारत जैसा भेदभाव नहीं है कि नशीले पदार्थ खाना-पीना हो तो युवा फिल्म स्टारों के फॉर्म हाउस में गुपचुप पहुँचो। यहाँ की उदार और सहिष्णु सरकारों ने गाँजे-भाँग की प्रजातियों कैनबस और मेरुआना के सेवन को वैध बना रखा है। लोग खुले आम पॉट पीते हैं, ऑइल लेते हैं, बीज ले जाते हैं और मस्त रहते हैं। प्रजा को नशेड़ी बना कर रखो तो सरकार का निठल्लापन छुप जाता है। कैनबस और मेरुआना अब कैनेडियन व अमरीकी संस्कृति के आधुनिक संस्कार हैं।
जब से हमारी सरकार को मालूम हुआ था कि भारत में महादेव और बड़े-बड़े ऋषि -मुनि दिन की रौशनी में खुले-आम गाँजा-भाँग-चरस पीते-पीते रातों-रात स्वर्ग पहुँच गये तो वह भी गँजेड़ी हो गई। उसने सोचा अपनी प्रजा को ख़ुशहाल बनाने और भीषण ठंड में सीधे स्वर्ग पहुँचाने का सीधा-सरल उपाय है उनको मेरुआना की चीज़ें खाने-पीने देना। सब नशा करो और ख़ुश रहो। सरकार काम-धंधे नहीं दिला सके तो क्या, नशे में मगन रहने का हक़ तो दे ही सकती है। तीन ग्राम जेब में रखो और धड़ल्ले से घूमो-फिरो। तीस ग्राम घर में रखो, पार्टी करो और जी लो अपनी ज़िंदगी। मनोरंजन के लिए नशा करना आपका अधिकार है। यहाँ नारकोटिक्स विभाग वाले इतने फालतू नहीं है कि मीडिया को सनसनीखेज ‘माल’ देने के लिये अभिनेत्रियों से पूछताछ करते रहें।
मुझे मालूम है कि आपने कैनबस और मेरुआना अभी चखा नहीं होगा। यह हम अधेड़ों-बुजुर्गों का नशा नहीं है, यह नई पीढ़ी का नशा है। इसमें सरूर वही गाँजे-भाँग वाला रहता है। नशेड़ी को सब याद रहता है कब चैट-चाट की। नशे में किस के साथ कहाँ-कहाँ, क्या-क्या गुल खिलाये। बस आदमी का नर्वस सिस्टम, रेवेन्यू कैनेडा की बजाय ‘कैनबस कल्चर स्टोर’ के हाथों में चला जाता है। आपको जो तरंग चढ़ जाती है वह कुछ देर हावी रहती है। आप हँसने लगते हैं तो बेवज़ह बुक्का फाड़ कर हँसते हैं, जैसे कि आप हँसी के हाइवे 401 पर दौड़ रहे हों। यदि आप कैनबस पीते-पीते उदासी के मोड में घुस गए तो हो सकता है आप जोर-जोर से रोने लगें, आपको उधार देने वाली क्रेडिट कार्ड कंपनियों को गालियाँ देने लग जाएँ। आप अपनी फियान्से के साथ हैं तो तय मानिये आज आपका मन उछल कर बाहर आ जाएगा। कुछ पक्का होगा – या तो टाई अप होगा या ब्रेक अप। पत्नी के साथ हों तो भूल कर भी कैनबस का सेवन नहीं करें, यह धरती पर आपका आखिरी दिन भी हो सकता है।
हाँ, पॉट पी कर पुलिस से डरने की ज़रूरत नहीं है, पुलिस की अब भी ट्रेनिंग चल रही है। आप ओवर लिमिट हो कर उनकी पकड़ में आ गए तो वे आपसे उनकी मानवीय शैली में व्यवहार करेंगे और आपका नशा उतार कर छोड़ेंगे। कैनबस पी कर आप कभी न सोचे कि पुलिस भी कैनबस की तरंग में है। पुलिस को ऑन-ड्यूटी कैनबस पीने की मनाही है, उनको वैसे ही अपनी वर्दी का नशा चढ़ा होता है, ऐसे में डबल-डोज़ हो जाये तो हमारे कविगण पुलिस और ‘फूलिश’ की तुक मिला कर पाँच हजार पेज़ों का एक महाछंद लिख सकते हैं। एक महाकाव्य में कितने महाछंद होंगे इसका निर्णय आप मेरुआना पी कर कर सकते हैं।
आपको दिन में तारे देखना हो या रात के उजाले में बिना टिकट पाताल की सैर करना हो, मेरुआना या कैनबस का हल्का-सा डोज़ काफ़ी है। लोग मेरुआना और कैनबस खरीदने में इतने उत्साही होते हैं कि सरकारी ऑनलाइन स्टोरों का माल चौबीस घंटों में ही बिक जाता है, फिर अगली खेप चार-छः दिन बाद आती है। सरकार कुछ न करे, बस कैनबस बेचने के स्टोर जगह-जगह खोल दे तो पूरे देश में अमन चैन हो जाए। रोज़गार तलाशती जनता को मनपसंद नया काम मिल गया है, घर बैठे कैनबस ऑर्डर करो, चार-छः दिन उसके आने का इंतज़ार करो, और कैनबस आ जाए तो फिर लुत्फ़ ही लुत्फ़ है। हर दिन महाशिवरात्रि है, हर दिन होली है। न वायरस का डर है न मास्क की चिंता।
कैनबस की लोकप्रियता देखते हुए मुझे लगता है अब हमारे विवाह समारोहों में ‘बार’ के साथ-साथ ‘ठंडाई’ की गिलास भी वैभव का प्रतीक मानी जाएगी और कैनबसये जब ठुमके लगाना शुरू करेंगे तो डांस फ्लोर सदाबहार हो जाएगा – खई के कैनबस कैनेडा वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला……।
लेक ओंटेरियो पर चिलम लगाए युवा बाबा अभी देखना बाकी है, पर मंदिरों में रौनक बढ़ जाएगी। पुजारी जी हिसाब लगा रहे हैं कि अब युवा पीढ़ी मंदिरों की ओर आसानी से आकृष्ट होगी और यहाँ आ कर ‘चिल’ हो जायेगी। अब यह संकट नहीं रहेगा कि युवा पीढ़ी हमारी संस्कृति से नहीं जुड़ रही।
साहित्यिक गोष्ठियों के आयोजकों की नींद हराम हो गई है, पहले कविता सुनाने के लिए कविवर को दो मिनट मिलते थे तो वे दस मिनट में माइक छोड़ पाते थे। अब कैनबस का शिव प्रसाद ग्रहण कर कवि जी आएँगे तो उन्हें माइक से हटाने के लिए चार हृष्ट-पुष्ट सिक्युरिटी कर्मियों को मंच पर बैठाना पड़ेगा। कुछ प्राचीन लेखक भाँग का गोला गटक कर अंटशंट लिखते थे, अब वैसा लिखना सहज संभव हो जायेगा। पर किसी कवि ने कैनबस का गोला गटक ही लिया और मोक्ष पाने की बजाय मति भ्रम पा गए तो मंच, दंगल का अखाड़ा बन जाएगा।
कुछ भी हो, मैं अपनी और अमरीकी सरकार का मुरीद हूँ। अठारह साल से कम उम्र के युवा वोट नहीं देते हैं इसलिए उन्हें पॉट पीने की मनाही है। जो लोग वोट दे कर सरकार चुनते हैं उन्हें पॉट पीने की छूट है ताकि यदि वे ग़लत सरकार चुन लें तो कैनबस पी कर अपना ग़म मिटा सकें । हे सरकारों, संस्कृति समृद्ध बनने के लिये अपने लोगों को आधुनिक संस्कार दो। युवाओं को काम-धंधा नहीं दिला सको तो बेरोज़गारी भत्ते के साथ मेरुआना और कैनबस पीने की छूट तो दे ही सकते हो।
–धर्मपाल महेंद्र जैन