
भारत से नये स्वप्न लिये कनाडा पहुँची, एक आधुनिक स्त्री की यात्रा
इंद्रा वर्मा, कनाडा
कनाडा आने के कुछ ही दिन बाद यह समझ में आने लगा कि जो भी अपने पिछले जीवन के अनुभव रहे, उनमें कुछ और, बहुत कुछ और मिला कर आगे बढ़ना होगा तभी अपना देश, अपना परिवार छोड़ देने का कुछ परिणाम, कुछ लाभ मिल सकता है। या यूँ कहें कि अपना देश छोड़ने का दुख कुछ कम हो सकता है।क्या है वह कुछ और ? इधर उधर देखा, कुछ जाना, समझा।
कनाडा में equality आंदोलन ज़ोरों पर था, स्त्रियों को वोट देने के अधिकार, आर्थिक अधिकार, तथा अन्य सामाजिक बदलाव आ रहे थे। एक पत्रिका Chaitelaine नाम से निकल चुकी थी जिसका झुकाव feminism की ओर था तथा स्त्रियों की भिन्न प्रकार की चुनौतियों आदि को उसमें स्थान दिया जाता था। इसी कारण पढ़ने वालों में स्त्रियों की संख्या बहुत अधिक थी, जागरूकता बढ़ रही थी। स्त्रियों को बड़े तथा प्रभावशाली काम करने के अवसर मिल रहे थे । unions बन गईं थीं तथा स्त्रियां अपने अधिकारों की माँग कर रही थीं। शिक्षा के ऊपर बहुत ध्यान दिया जा रहा था ।
इस माहौल में आकर बहुधा यह विचार आना स्वाभाविक ही था कि कहाँ से आकर कहाँ गिरे, अब कहाँ जायें ?
फिर कमर कस के तैयार होने के सिवा कोई रास्ता नहीं दिखा । भारत में एक वर्ष कॉलेज में पढ़ाया था, वह काम आ गया!
पता चला कि स्कूलों में केवल पश्चिमी पहनावा ही पहन सकते हैं, अब? खैर इन्टर व्यू में तो साड़ी ही पहनी और वहाँ ४-५ गोरे महानुभाव अधिकतर भारत, तथा मेरे यहाँ के अनुभवों की बात करते रहे और नौकरी मिल गई ।
पहनावे की दुविधा बनी रही परंतु उसे अहम ना बनाकर शिक्षा के माध्यम से दूसरा ही मोड़ देने का प्रयास जारी रहा।
अर्थात् अन्य शिक्षकों तथा विद्यार्थियों को अपने भारत वासी होने का अर्थ यदा कदा बताती रही ! इस प्रयास का लाभ यह रहा कि अन्य स्कूलों में मुझे बुलाया गया अपने देश की भाषा व विशेषतायें बताने के लिये ।इन अवसरों का मैंने भरपूर लाभ उठाया और अपने महान देश के गुण गाये।
इस स्थान पर पहुँच कर जीवन में और बहुत सी बातें होने लगीं । द्रष्टि का विस्तार कुछ बढ़ा, साथ साथ यह इच्छा हुई कि यहाँ यानी उत्तरी अमेरिका की सभ्यता से भी कुछ सीखना चाहिये। स्कूल कबच्चों के साथ संबंध तो बना ही रहेगा।
शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये सरकार से आर्थिक सहायता भी मिल रही थी! मुझे आर्थिक तो नहीं परंतु हर सप्ताह university में पढ़ने के लिये छुट्टी की सुविधा दी गई, जिससे मुझे आने जाने तथा पढ़ाई करने के लिये समय मिलता रहा और मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकी। मेरी तरह देश में अनेक स्त्रियों ने इस सरकारी नियम का लाभ लिया, तथा अपने अपने क्षेत्र में उन्नति की।
शिक्षा का लाभ प्रत्येक पीढ़ी तथा सारे समाज को मिलता है। हम सब देख रहे हैं कि आज की बेटियों के काम अद्भुत हैं, जैसा कभी सोचना भी कठिन था, वही काम हर क्षेत्र में हमारी बेटियां बहुयें कर रही हैं। मेरी अपनी पोतियाँ मेडिकल, इन्जीनियरिंग, आदि में तो काम कर ही रही हैं, साथ ही विज्ञान, मनोविज्ञान ,इतिहास आदि में हो रहे नये नये अनुसंधान, भविष्य में आ सकने वाली समस्याओं को दूरदर्शिता से सुलझाने के उपाय निकाल सकें, इस प्रयास में भी लगीं हैं।
इस बीच कनाडा में भी शिक्षा के प्रति लोगों की राय बदली। शिक्षा, मानसिक उन्नति व सामाजिक उत्थान में संबंध का महत्व समझ में आने लगा। उच्चतर शिक्षा की ओर रुचि बढ़ने लगी और बड़ी संख्या में लोग ऊँची शिक्षा पाने लगे ।समाज में सुधार तो निश्चित था, हाई स्कूल तक शिक्षा निःशुल्क हो गई ।बच्चों के लिये family allowance का भी नियम था जो प्रतिमास दिया जाता था।
साथ ही कर्मस्थल पर पुरुष स्त्रियों के वेतन में भेद, नौकरी में आगे न बढ़ पाने के कारण असंतोष तथा कुछ अन्य भेदभाव भी बने रहे।
इसी दशक में कनाडा व ओंटारियो में human rights code पारित हुआ , जिसके कारण अनेक वर्ग, क्षेत्र या परिस्थिति में किसी प्रकार का भेद भाव वर्जित माना गया ।जैसे यदि आप के साथ स्त्री होने के कारण, रंग भेद के कारण या जाति भेद तथा और भी कोड में सम्मिलित स्थितियों के कारण भेद भाव होता है तो आप human rights office में शिकायत कर सकते हैं और उसकी पूर्ण रूप से सुनवाई होगी! इस से भी स्त्री वर्ग को एक और माध्यम मिला अपनी आवाज़ उठाने का।
मुझे इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में काम करने का अवसर भी मिला, इस दौरान मैंने इस legislation को समझ कर उसे अनेक अवस्थाओं में कैसे लागू करना है, स्वयं समझा तथा समझाया। तथा अनेक संस्थाओं को शिक्षित करने का अवसर मिला।
१९८०-९० के दशक में emplyment equity नियम पास किया गया जिसके अन्तर्गत मैंने पुलिस विभाग में काम किया और एक अलग ही अनुभव प्राप्त किया!
आधुनिक स्त्री की चुनौतियाँ आज भी कम नहीं हैं, नया समय नई चुनौतियाँ लाता रहेगा । आशा और विश्वास यह है कि अपनी सूझ बूझ तथा सामाजिक रुकावटों से ना डर कर आगे बढ़ते रहने के लिये आधुनिक स्त्री तत्पर रहेगी।
अवकाश प्राप्त करने के बाद मैंने अपने बचपन के प्यार संगीत की ओर रुझान किया, कुछ संस्मरण लिखे, एल्बम बनाये और आज भी कर रही हूँ, जहाँ तक हो सका नई पीढ़ी को कुछ नई कुछ पुरानी आवश्यक बातें बताती रहती हूँ ताकि कुछ यादें, धुंधली ही सही उन्हें इधर उधर पड़ी मिलती रहें।
जो कुछ अनुभव मैंने वर्षों में पाया, उससे यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक स्त्री का मूल स्वभाव केवल अपने लिये आगे बढ़ना नहीं, बल्कि समाज के लिये भी मार्ग प्रशस्त करना है। आधुनिक स्त्री का ethos यह है कि वह परंपरा और आधुनिकता दोनों को जोड़कर एक संतुलन बनाती है। वह शिक्षा, आत्मनिर्भरता और न्याय को अपने जीवन का मूल मानती है। साथ ही, संवेदनशीलता और संबंधों की गरिमा को भी संजोती है। आधुनिक स्त्री अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती है, लेकिन दूसरों को भी अवसर देने और प्रेरित करने में पीछे नहीं रहती। यही दृष्टिकोण उसे न केवल व्यक्तिगत स्तर पर, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी परिवर्तन का वाहक बनाता है। यही आधुनिक स्त्री की सच्ची पहचान है—वह अपने अतीत की स्मृतियों से शक्ति पाती है, वर्तमान की चुनौतियों से जूझती है, और भविष्य के लिए एक नई दिशा गढ़ती है।