अग्रवाल अंग्रेजी गलत क्यों लिखते हैं?

डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम 

शीर्षक पढ़ते ही अग्रवाल साहब नाराज़ हो गए, बल्कि कहूँगा कि कुपित हो गए।  बोले —  जानते हो,  हम अग्रवालों के बच्चे सभी प्रतियोगिताओं में टॉप किया करते हैं.. तो क्या गलत अंग्रेजी लिखकर करते हैं?

मैं मुस्कुराया। बोला — नहीं, मैं आपको बिल्कुल चुनौती नहीं दे रहा। आप एक कृपा करेंगे। एक बार अग्रवाल शब्द अंग्रेजी में लिखेंगे।

उन्होंने लिखा — Agarwal.

मैंने उन्हें घूर कर देखा।   वे डरे।

अब उन्होंने एक g और बढ़ा दिया — Aggarwal 

मैं फिर भी घूरता रहा तो उन्होंने उलटा- पलटी कर दी। लिख दिया — Aggrawal.

मैंने घूरना नहीं छोड़ा तो वे मुझे घूरने लगे।

बोले — अब तो मान जाइए!

मैंने कहा — जरूर मानूँगा। अगर आप aggrawal में से एक g हटा दें तो जरूर मान जाऊंँगा। अग्रवाल की ठीक वर्तनी है — agrwal

उन्होंने सिर खुजाया। बोले — बात तो शायद आप ठीक कह रहे हैं। पर इतनी बड़ी गलती हो कैसे रही है?

मैंने सहसा पूछ लिया — आप क्रय-विक्रय करते हैं।

बोले — यही काम है हमारा।

— अच्छा, यह बताइए — क्र में किस- किस ध्वनि का संगम है?

बोले — क और र का।

— इसमें एक पूरा है, दूसरा अधूरा।

— उत्साह से बोले — जी हाँ, अंधे को भी दीखता है — क पूरा है, मुटल्ला है। र पैरों में है। अधूरा है।

मैं बोला — ठीक कह रहे हैं! अंधे को ही दीखता है कि क्र में क पूरा है।

बोले — क्या गलत कह रहा हूँ मैं? क्या र पूरा है?

मैंने प्रतिप्रश्न किया — लिखिए ग्राम। इसे रोमन में लिखिए।

उन्होंने हिचकते हुए लिखा — gram.

मैंने पूछा — अपने garm क्यों नहीं लिखा?

बोले — भाईसाहब! वह कैसे लिखता?

मैंने कहा — जैसे agarwal में g के बाद a लिखा।

बोले — पर वहाँ तो ग पूरा और र आधा है।

मैंने कहा — तो यहाँ अचानक ग अधूरा हो गया? और र पूरा हो गया।

— बात तो आप ठीक कह रहे हैं! यह चक़्कर क्या है, समझ नहीं आया।

— बस आप यहीं भटक रहे हैं ।

एक सूत्र समझ लें ! — जब भी हिंदी में कोई व्यंजन एक-दूसरे के ऊपर नीचे होगा, वहाँ ऊपर वाला व्यंजन स्वर-रहित अर्थात अधूरा (कामचलाऊ भाषा में) होगा और नीचे वाला पूरा अर्थात स्वर-सहित होगा।

— ओ! यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। न ही गुरु जी ने समझाया।

मैंने कहा — हिंदी का यह निश्चित नियम है। इसमें कोई अपवाद भी नहीं है।

— धन्यवाद! धन्यवाद!

उन्होंने धन्यवादों की झड़ी लगा दी।

मैंने भी उन्हें झुककर धन्यवाद दिया।

वे बोले — अरे सर! आप क्यों धन्यवाद कह रहे हैं। आपने तो मेरी आँखें खोल दीं। आपका तो मैं उपकार कभी नहीं भूल सकता!

मुस्करा कर मैंने कहा — अग्रवाल जी! मुझे ऐसे भी कई ज्ञानी मित्र मिले हैं, जिन्होंने मेरे इस कथन और विवेचन को सरासर गलत, भ्रामक, भटकाऊ और अनर्गल कहा है । कई लोगों ने मेरा उपहास भी उड़ाया है । बोले — आप बेकार की हाँक रहे हैं। अगर हम आपके कुतर्कों का उत्तर नहीं दे पा रहे तो यह न समझना, हम गलत हैं। हैं तो हम ही ठीक।

मैंने मुस्करा कर और हाथ जोड़कर कहा — इसलिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करें। आपने मेरा तिरस्कार नहीं किया। तेरा तुझको अर्पित कहकर यह कथन वापस नहीं लौटाया!

आप अग्रवाल लोग आगे बढ़कर सत्य को स्वीकार करते हैं,  सीखने में अग्र हैं, तभी तो अग्रवाल हैं।

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