आत्मिक आनंद का उत्सव : जन्माष्टमी

डॉ शिप्रा शिल्पी सक्सेना, कोलोन, जर्मनी

जन्माष्टमी मात्र एक धार्मिक उत्सव के रूप में ही नहीं वरन अधिकांशतः एक आत्मिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उसका मुख्य कारण है कान्हा से आत्मिक प्रेम। “कान्हा”  देव रूप से कहीं अधिक अपने बाल रूप में हमारे हृदय में वास करते है। बाल सखा कान्हा हो या माखन चोर कन्हाई हर रूप में मोहते है जैसे अपने ही बालक हो। इस बात को वो लोग अधिक गहराई से समझ सकते जिनके घरों में लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है, उनके बाल रूप की सेवा की जाती है।

प्रभु श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मात्र भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी धूम धाम से मनाया जाता है। हमारा परिवार लड्डू गोपाल का उपासक है, ऐसे में जन्माष्टमी  का पर्व बहुत उत्साह, विधि विधान एवं ललक के साथ मनाया जाता है।  रात्रि में व्रत से शुरू हुआ पर्व, सुबह सुबह घर को पंजीरी की भीनी भीनी खुशबू से भर देता है। लड्डुओं की लालच में रसोईघर के आस पास गोल गोल मंडराती घरवालों की आँखें, पंच मेवों से बनी कत्लियों के थाल, गोंद और सोंठ की बर्फी, पंचामृत, तरह तरह के पकवान, तुलसी की पावनता( जिसे यहां बेसिल कहते है), फूलों के बंदनवार से सजे मंदिर के द्वार, चावल हल्दी के आटे की चौक, भजन एवं सोहर के मधुर स्वर कान्हा के स्वागत में मन को आनंद से सराबोर कर देते है।

यूं तो घर पर हम ये त्यौहार पूरे रीति रिवाज के साथ मनाते है, किंतु ये देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि जर्मनी में अनेक स्थानों पर जन्माष्टमी पूरी श्रद्धा से मनाई जाती है। विशेषकर इस्कॉन मंदिर में।

कोलोन ! जिस शहर में मै रहती हूं वहां जन्माष्टमी से पूर्व शहर के मुख्य बाजार Neumarkt में आपको  विदेशी युवक युवतियां भारतीय परिधान में, माथे पर चंदन का टीका लगाए, ढोल , झांझ , मंजीरा बजाते हुए हरे रामा हरे कृष्णा गाते बजाते दिखने लगेगे। इन्हें सुनकर ऐसा लगता है जैसे आप मथुरा वृंदावन में आ गए हों। सारा वातावरण उस क्षण कृष्णमय हो जाता है। इस्कॉन के साथ ही सार्वजनिक रूप से जन्माष्टमी अनेक व्यक्तिगत सांस्कृतिक स्थाओं एवं मंदिरों में भी मनाई जाती है।

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी जर्मनी के कई शहरों में जन्माष्टमी पर्व धूमधाम से मनाया गया। जिसमें फ्रैंकफर्ट, म्यूनिख, हैम्बर्ग, बर्लिन, कोलोन, हागर, एसेन के ISKCON मंदिरो में, हरिओम मंदिर, कोलोन में एवं जगन्नाथ मठ बर्लिन  में  विशेष पूजा, भक्तिगीत, प्रसाद एवं अभिषेक के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों  का आयोजन किया गया।

Abentheuer (Goloka-Dhama) इस्कॉन का ऐतिहासिक केंद्र, जन्माष्टमी के अवसर पर यहां  दार्शनिक संगोष्ठी, सुमधुर कीर्तन, कथा तथा भक्तजनो मिलन का आयोजन किया जाता है।  Heidenrod (Bhakti Marga) को मानने वाले इसके अनुयायी भजन, कीर्तन, रात्रि जागरण एवं विशेष प्रसाद के साथ आध्यात्मिक स्तर पर उत्सव का संयोजन करते है।

आपको जानकर अच्छा लगेगा इन मंदिरों में भी भारत की ही तरह रात्रि के 12 बजे पारंपरिक पूजाविधि  का निर्वाह करते हुए खीरे से प्रभु का जन्म करवाया जाता हैं। शुभ-मुहूर्त पर दूध, दही, गंगाजल, शहद एवं जल से लड्डू गोपाल का अभिषेक किया जाता है। कान्हा को नए वस्त्र पहनाकर, तिलक लगाकर, मोरमुकुट से सजाकर, भोग प्रसाद लगाया जाता है और फिर वही प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है।  घरों एवं मंदिरों में श्रीकृष्ण-जन्म की कथा से जुड़ी झाकियों का भी प्रदर्शन भी किया जाता है साथ ही कान्हा की बाल लीलाओं को बच्चों से साझा भी किया जाता है।

बच्चों, युवाओं और कलाकारों द्वारा कृष्ण लीला, प्रहसन व विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी जाती हैं। जिसमें शास्त्रीय-लोक नृत्य, गीत, नाटक आदि शामिल हैं।

यूं तो सार्वजनिक रूप से दही हांडी रस्म को करना जर्मनी में स्वीकृत नहीं है किंतु कृष्ण की बाल लीलाओं को याद करते हुए प्रतीकात्मक रूप से  ‘दही हांडी’ का आयोजन किया जाता है। 

भारतीय समुदाय स्थानीय जर्मन मित्रों के साथ मंदिरों, कम्युनिटी सेंटर्स या सार्वजनिक स्थानों पर एकत्र होकर पर्व को मिलजुलकर मनाते हैं। इस्कॉन (कोलोन) द्वारा  गीता का पाठ हो या घर पर मिलजुल कर भजन कीर्तन करते हम भारतीय परिवार उद्देश्य सिर्फ एक, कान्हा के प्रति प्रेम, भक्ति एवं श्रद्धा भाव को समर्पित करना है।

यद्यपि भारत में जन्माष्टमी के अवसर पर जो रौनक होती है, वो रौनक यहां है देखने को नहीं मिलती। किंतु जर्मनी में जन्माष्टमी, शुद्ध आध्यात्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक एकता और सामुदायिक स्नेह का अद्भुत संगम है। भारतीय परंपराओं की जीवंतता जर्मनी के मंदिरों, समुदाय केंद्रों और सार्वजनिक स्थलों पर गूँजती है – जहाँ भारतीयों के साथ स्थानीय निवासी भी इस पर्व में भाग लेते हैं और भारतीय संस्कृति के विविध रंगों को अनुभव करते है और झूम कर बोलते है “हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की।”

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