गुड़िया नहीं

अब कोई औरत

समझें सब

नहीं खिलौना

न ही कठपुतली

आज की नारी

सारे आदेश

नहीं मानेगी अब

जान लो तुम

जागी है नारी

पढ़ेगी अब बेटी

नया जमाना

खुद को बचा

आगे बढ़ेगी अब

हर बिटिया

सजूँगी अब

सिर्फ़ अपने लिये

मेरा फैसला

मेरे सपने

नहीं तोड़ सकता

ज़माना अब

मेरी उम्मीदें

छू रही आसमान

बदला समय

औरत हूँ तो

समझें कमज़ोर

कुंठित सोच

जीना है सीखा

बदले हैं दस्तूर

जान लें सब

अब नहीं है

मर्दों की ये दुनिया

बदलो रस्में

आँखें खोल लो

हे भारतीय नारी

नहीं बेचारी

नहीं अबला

अब बनी सबला

समझें सब

हो गया ब्याह

ना समझ है उम्र

बालिका वधू

पढ़ाई बंद

खेल कूद रूके

ससुराल में

नादान बड़ी

जाने न रीति कोई

रोज़ पिटाई

बिटिया पढ़े

उम्र हो सयानी

तभी हो ब्याह

बच्चे नादान

माँ बाप की गलती

रीति रिवाज

साथ जन्मों का

टूट जाये क्षण में

आज का सच

तन की भूख

निगल रही रिश्ते

कड़ुवा सच

पैसा खनके

परिवार बिखरे

सच्ची है बात

दुरियाँ बढ़ें

तेरा मेरा हो शुरू

बढ़े तलाक

सब्र समाप्त

करते मुक़ाबला

आज के युवा

गिरते आंसू

पिघलता आकाश

सूनी अँखियाँ

मन उदास

आशा धूमिल हुई

अंधेरे घिरे

बिखरी स्त्री

ज़ंजीरें समाज की

लुटा जीवन

बदलो सब

खोलो ज़ंजीरें अब

नवयुग है

युग बदले

रस्में वो ही पुरानी

घुटन बढ़ी

-रमा पूर्णिमा शर्मा

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