कोरिया में हांगुल डे पर ‘हांगुल रन’

डॉ. संजय कुमार (सेजोंग सिटी, कोरिया से)

9 अक्टूबर को हांगुल डे के अवसर पर मैंने कोरिया के सेजोंग शहर में आयोजित ‘हांगुल रन’ में भाग लिया। कोरिया में हर साल 9 अक्टूबर को मनाया जाने वाला हांगुल दिवस महान राजा सेजोंग द्वारा निर्मित कोरियाई लिपि ‘हांगुल’ की स्मृति और कोरिया के भाषाई व सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।

मेरे लिए हांगुल केवल भाषा की ध्वनियों को व्यक्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि शैक्षणिक और सामाजिक मुक्ति का दर्शन है। हांगुल का निर्माण इस उद्देश्य से हुआ कि हर व्यक्ति, चाहे वह धनी हो या गरीब, पढ़ और लिख सके और ज्ञान के द्वार सभी के लिए खुलें। 15वीं सदी के कोरिया में हांगुल का आविष्कार केवल एक नई लिपि का निर्माण नहीं, बल्कि सामाजिक समानता और बौद्धिक स्वतंत्रता का प्रतीक था।

मैंने पहले हांजा, कांजी और हानमुन भी सीखा है। ये सभी अपनी-अपनी तर्क और अवधारणाएँ लिए होते हैं। लेकिन हांगुल में हर अक्षर की अपनी विशिष्टता और संतुलन होता है। हांगुल को देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने लिपि नहीं, योगासनों का निर्माण किया हो; संतुलित, सीधा, और लचीला। इस प्रणाली को सेजोंग महान और उनके विद्वानों ने वैज्ञानिक और दार्शनिक सिद्धांतों के आधार पर ‘हुनमिनजंगउम’ के रूप में तैयार किया।

जब मैंने जापानी, चीनी और कोरियाई लिपियों का अध्ययन किया, तब मैंने जाना कि लिपि केवल लिखने का साधन नहीं, बल्कि सोचने का ढांचा होती है। हांगुल ने लोगों को पढ़ने-लिखने की स्वतंत्रता ही नहीं दी, बल्कि बौद्धिक संवाद और तार्किक सोच के लिए एक मंच भी उपलब्ध कराया। यह भाषा का लोकतंत्रीकरण आंदोलन है, जिसमें हर स्वर और व्यंजन को समान अधिकार प्राप्त हुआ।

हुनमिनजंगउम, आमखुल, आमहुन की ऐतिहासिक यात्रा से उत्पन्न हांगुल केवल एक लिपि नहीं, बल्कि सेजोंग महान का स्टार्टअप आइडिया और समाज सुधार आंदोलन है। आज भी दुनिया इसे ‘यूज़र-फ्रेंडली इनोवेशन’ के रूप में मान्यता देती है। हांगुल मूल, व्याकरण और ध्वनिविज्ञान का संयोजन है, और इसके माध्यम से लोगों को साक्षरता और स्वतंत्र विचार की शक्ति मिली।

हांगुल के साथ मेरा संबंध 2006 में शुरू हुआ। तब से अब तक, 2009 में विश्व भाषण प्रतियोगिता में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय शिक्षा संस्थान पुरस्कार, 2010 में गांगनाम विश्वविद्यालय के कुलपति पुरस्कार, उसी वर्ष कोरिया राष्ट्रीय भाषा संस्थान अध्यक्ष पुरस्कार, और 2011 में ‘उरि माल ग्यरुगि’ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान आदि इस तरह के पचास से अधिक संबंधित प्रमाणपत्र मिल चुका है। वर्तमान में, मैं इन पुरस्कारों को दीवार पर नहीं, ‘स्वयं प्रशंसा नियंत्रण अभियान’ के तहत सुरक्षित रूप से अलमारी में रखता हूँ। हांगुल के माध्यम से मैंने अकादमिक शोध पत्र भी लिखा और अपनी बौद्धिक यात्रा को समृद्ध किया।

पत्रकारिता में आने के बाद, हांगुल मेरे लिए दर्शन से क्रांति तक का पुल बन गया। मेरी समझ से हांगुल लिपि के माध्यम से कोरिया में भाषा की नौकरशाही टूटी और समरस-साक्षर समाज निरंतर  विकसित होता चला गया और आज भी वह यात्रा जारी है।  

लिपि केवल ध्वनियों का संकेत नहीं होती, बल्कि यह स्पष्ट शब्द का निर्माण कर विचारों को आकार देती है और भाषा को समृद्ध बनाती है। खासकर हांगुल जैसी लिपि, जिसे मैं ‘लोक लिपि’ मानता हूँ, सामान्य जनता के लिए सहज और लोकतांत्रिक रूप से सुलभ है।

मेरे लिए हांगुल केवल एक लिपि नहीं, यह जीवित बौद्धिक आंदोलन और ऐतिहासिक यात्रा है। और ‘हांगुल रन’ उसी आंदोलन की दौड़ है।

कल मैंने सेजोंग सिटी की सड़कों पर कदम रखा। लक्ष्य जीतना नहीं, बल्कि थकने के बावजूद साथ चलना, साथ दौड़ना और मुस्कुराना था। क्योंकि खुशी विजय में नहीं, यात्रा में है, यह मेरा बेहद निजी मत है ।

दौड़ में भाग लेने वाले प्रतिभागी विविध थे, स्पोर्ट्स गियर में सज्जित धावक, अपने बच्चों के साथ माता-पिता, और 5 किलोमीटर को सिर्फ दूरी नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध का प्रतीक मानने वाले प्रेमी। 10,000 से अधिक लोगों ने सेजोंग महान के अद्भुत उपहार ‘हांगुल’ का जश्न मनाया। यह केवल लिपि का सम्मान नहीं, बल्कि मानव की बौद्धिक मुक्ति और ऐतिहासिक उपलब्धि का उत्सव था। भाषा को सत्ता से मुक्त कर जनता को अर्थ की चाबी देने का यह क्षण था।

समाज के विभिन्न वर्गों का एक साथ होना यह दिखाता है कि साझा संस्कृति वर्ग, उम्र या स्थिति से परे एकता का सौंदर्य रचती है। यही ‘सामुदायिक भावना’ की दार्शनिक गहराई है।

मैंने भी 5 किलोमीटर दौड़कर और चलते हुए पूरा किया, ऐसा लगा जैसे मैं भाषा नहीं, जीवन और बौद्धिक इतिहास के व्याकरण में एक नया अध्याय जोड़ रहा हूँ। सेजोंग सिटी के मेयर और कई अधिकारी भी शामिल हुए, जबकि कोरियाई वायुसेना के FA-50 जेट्स ने आकाश में करतब दिखाकर धावकों का अभिवादन किया।

मेरे दृष्टिकोण से ‘हांगुल रन’ केवल दौड़ नहीं थी। यह संस्कृति, व्यायाम, दर्शन, ऐतिहासिक जागरूकता और आकाशीय प्रतीकवाद का अद्भुत संगम थी।

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