
जर्मनी से डॉ शिप्रा शिल्पी सक्सेना (अंतरराष्ट्रीय प्रवासी संयोजक, लेखक गांव) का लेखक गांव में अविस्मरणीय अनुभव
कुछ पल, कुछ स्थल और व्यक्तित्व अविस्मरणीय होते है।
ये वो पल है, ये वो मन होते है, जिनकी पावनता आपको अकलुषित बना देती है।
ऐसा ही पल था माननीय Dr.Ramesh Pokhriyal Nishank सर द्वारा लेखक गांव आने का स्नेहिल निमंत्रण मिलना। अत्यंत आत्मीयता से रवि और हमसे कहना बिना लेखक गांव आए और हमसे मिले बिना जाना नहीं है बिल्कुल वापस। ये अधिकार पूर्ण प्रेम ,स्नेह ,आदर, मान ,सम्मान से आप्लावित कर देने की कला ईश्वरीय व्यक्तित्वों में होती है। जो हम सबके निशंक सर में है।
आज के आपाधापी वाले युग में जब लोग अपनी व्यस्तताओं को अपनी ढाल बनाकर अपने वचन से विमुख हो जाते है, ऐसे में मेरी पुस्तक के लोकार्पण पर सुबह देहरादून से विशेष रूप से आदरणीय निशंक सर का दिल्ली आना, पूरा समय कार्यक्रम में रहना और फिर वापस देहरादून चले जाना, अपने व्यस्ततम समय में भी समय निकालना उनके लिए जो उन्हें अपना समझते है, ये बात उन्हें मात्र विशिष्ट ही नहीं बनाती है वरन उनके व्यक्तित्व को कालजई भी बनाती है। उनका अकूत स्नेह और आशीर्वाद मिलना मेरा सौभाग्य है।
माननीय निशंक सर और हम सबका लेखक गाँव :
उत्तराखंड की सुरम्य हिमालय की वादियों में स्थित पिनानी ग्राम जहां से आदरणीय निशंक सर की जीवन-यात्रा प्रारंभ हुई । उनका बचपन सरलता, शांत स्वभाव और जिजीविषा का साक्षी रहा है। संस्कृत साहित्य के प्रेमी, महान कवि एवं रचनाकार निशंक सर ने अपने लेखकीय जीवन को गांव की मिट्टी, संस्कृति और आध्यात्म से सींचा।
“ग्राम्य जीवनम् अमृतम् अस्ति।
पथ्थराणि च स्नेहेन सिक्तानि।
विपश्यति स्वप्नकथा मातृभूमिः।
सर्वं धारयति धैर्येण पर्वतः॥”
उनका मानना है गांव का जीवन अमृत के समान है। यहाँ की पथरीली भूमि स्नेह से भीगी हुई है। हमारी मातृभूमि अपने स्वप्न और विकास की कथा को धैर्य से देखती और सहती है।
लेखक गांव को मात्र उसका प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं सुंदर बनाता वरन यहां से जुड़े हर व्यक्ति का सुंदर, पावन , निश्चल मन उसे और भी सात्विक बनाता है। कहते है जीव, जंतु, मनुष्य ही नहीं मिट्टी और दीवारें भी बोलती है, लेखक गांव का कण कण सृजन एवं सकारात्मकता का गीत गाता है।
पहला पग रखते ही आप स्वयं को किसी भव्य देवालय में प्रवेश करता अनुभव करेंगे । स्वत: ही स्वार्थ , छल , कपट सब धूल धूसरित हो जायेंगे। न अहम, न वहम, बस रह जाएगा तो कुछ नया, कुछ पावन, कुछ सार्थक करने की लगन। नक्षत्र वाटिका के वाचाल नन्हे पौधे जो आतुर है अपने गुणों को आपसे साझा करने के लिए, लहलहाते वृक्ष, प्राण दायिनी संजीवनी वाटिका, वृहद विशाल दस लाख से भी अधिक पुस्तकों को नहीं अनगिनत विचारों को संजोए नालंदा पुस्तकालय और लेखक गांव के उद्देश्य , उससे सम्बद्ध लोगों का पथ प्रशस्त करती माननीय पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय निशंक सर के आदर्श अटल बिहारी बाजपेई जी की प्रतिमा , धन्य हो जाते है हम लेखक गांव की पावन भूमि को नमन करते हुए।
सच तो ये है ये जादू है आदरणीय निशंक सर के व्यक्तित्व का , लेखक गांव का।



कोई अतिशयोक्ति नहीं है ये , ये अनुभव सिर्फ मेरा नहीं है वरन उस हर लेखक गांव जाने वाले व्यक्ति का है, जो आज कल सुबह शाम फोन, संदेशों एवं मेल द्वारा निरंतर मुझसे लेखक गांव के अनुभव को साझा कर रहे है।
डॉ. निशंक जी ने लेखक गाँव की अवधारणा को साकार करते हुए थानो ग्राम में हिमालय की गोद में साहित्य के मठ की स्थापना की — ‘लेखक गाँव’, जो साहित्यिक साधना, आत्म-साक्षात्कार और संस्कृति के संरक्षण का तीर्थ बन गया है।
“शब्दार्थस्य साधना विलसति हिमगिरौ।
लेखक ग्रामे समृद्धिः संस्कृतः यत्र जायते।
रचनास्वादः शुद्धि: आत्मा च प्रकृतिः,
तत्र एव जीवनः पुष्यति चिन्तनम्॥
हिमालय की छांव में, लेखक ग्राम में शब्दों की साधना और संस्कृति की समृद्धि जन्म लेती है। रचनात्मकता, आत्मा की स्वच्छता और प्रकृति का सत्संग वहीं जीवन को चिंतनशील पुष्ट करता है।
यहां देश-विदेश के साहित्यकार, कवि, चिंतक एकत्र होकर अनुभव साझा करते हैं, हिंदी साहित्य एवं संस्कृति के वैश्विक प्रचार-प्रसार को सँभालते हैं। लेखक गाँव आधुनिक तीर्थ है, जहाँ साहित्य, संस्कृति और संवाद का ताना-बाना बुना जाता है।
“साहित्य तीर्थं हिमवद् वने।
जहां स्वप्ना विकसितं बुद्धिः।
निशंक वन्द्यते तत्र।
हृदयं जनानां स्पन्द्यते।”
हिमालय के वन में स्थित साहित्य का तीर्थ, जहाँ विचार खिलते हैं। वहाँ निशंक सर का सम्मान होता है, और लोगों का हृदय साहित्य-संवाद में धड़कता है। डॉ. निशंक जी का यह समर्पण और सृजन ग्राम आज साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा, शोध और आत्मचिंतन का केन्द्र बना है। लेखकीय भावगांव में पले-बढ़े निशंक जी को ‘पर्वतों की सहिष्णुता, वन की सरलता और शब्दों का मृदुलता’ विरासत में मिली है। उनके कवि-हृदय की संवेदना भारतीय संस्कृति, प्रकृति और मानवता के प्रति गहन प्रेम में अभिव्यक्त होती रही।
“मूलं ग्राम्य संस्कृतिः।
पालयति साहित्यं निशंकः।
स्नेहस्य निर्झरः बन्धनं विहाय।
देशप्रेमं हृदये रचयति॥”




ग्राम्य संस्कृति ही साहित्य की जड़ है। निशंक सर संस्कृति की रक्षा करते हैं, स्नेह के निर्झर से हर बंधन मुक्त कर देशप्रेम को हृदय में रचते हैं।लेखक गाँव केवल एक स्थान नहीं, भावनाओं की भूमि है — रचनात्मकता, साधना, और संस्कृति संरक्षण का संगम है।
लेखक गांव के स्पर्श हिमालय महोत्सव में उपस्थित मेरे हर मित्र ने यही भाव फोन पर , मेल द्वारा और संदेशों द्वारा मुझे प्रेषित किया।
संवेदनाओं के साथ जुड़कर काम के प्रति समर्पण क्या होता है ये सीखना है तो लेखक गांव जाइए। यहां के हर सदस्य की सक्रियता जीवंत जीवन का आभास कराती है। बात अगर निष्ठा और लगन की करें तो निशंक सर की जीवटता प्रणम्य है। ये वो पावन मन है जो लेखक गांव के महत्व को द्विगुणित करते है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की यात्रा को अविस्मरणीय बना देते है।
ये मेरा अनुभव है “ज्यों गूंगे मीठे फल को अंतरंग ही भावे”, भाव विभोर हूं उन क्षणों को याद करके हृदय से पुनः पुनः आदरणीय निशंक सर एवं स्पर्श हिमालय महोत्सव की पूरी टीम को साधुवाद…..
सादर
डॉ शिप्रा शिल्पी 🇩🇪
