जोधपुर और जैसलमेर की सैर

अनीता वर्मा

मुझे हमेशा से लगता रहा है कि मैं ना जाने कितने जन्मों से यायावर हूँ। चलते रहने की इच्छा, निरन्तरता और मेरे साहस को बनाए रखने का बल मुझे घुमक्कड़ी से मिलता है। अबकी बार भी अपनी मित्र मंडली के साथ जोधपुर और जैसलमेर की यात्रा ने जहां मेरे भीतर के लेखक को जन समुदाय व किसी प्रदेश की संस्कृति, रहन- सहन के साथ जोड़ा वहीं मैंने स्वयं के साथ जीने के पलों को भी संजोया।

दिल्ली से जोधपुर तक की रेल यात्रा में बचपन की पूरी-अचार की ख़ुशबू, सहयात्रियों के साथ बातचीत, कई नए अनुभवों की तलाश में हालाँकि नया कुछ भी नहीं मिल सका पर रेल यात्रा में नए सकारात्मक परिवर्तन व परिदृश्य के डिजिटलीकरण का अनुभव सुखद रहा। महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला पुलिस का विशेष ध्यान रखना, सब सुरक्षित साधनों का ऑनलाइन उपलब्ध होना रेल प्रशासन की प्राथमिकता में शामिल है।

जोधपुर के क़िले जहाँ भव्यता व ऊँचाई का प्रदर्शन करते हुए से लगे वहीं विलासिता की कई कहानियाँ इन अट्टालिकाओं के भीतर से झाँकती हुई मिलीं। शक्ति, वैभव, राजघराने और उनके जीवन को जानने की आम जनता की उत्सुकता देखते ही बनती थी।

जोधपुर वर्ष पर्यन्त चमकते सूर्य वाले मौसम के कारण सूर्य नगरी भी कहा जाता है। यहां स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग को घेरे हुए हजारों नीले मकानों के कारण इसे “नीली नगरी” के नाम से भी जाना जाता था। यहां के पुराने शहर का अधिकांश भाग इस दुर्ग को घेरे हुए बसा है, जिसकी प्रहरी दीवार में कई द्वार बने हुए हैं हालांकि पिछले कुछ दशकों में इस दीवार के बाहर भी नगर का वृहत प्रसार हुआ है।

जैसलमेर में थार रेगिस्तान में पर्यटकों की उन्मुक्त हवा की गति सी जीप सफ़ारी, दिन में मन को ताप देती रेतीली ज़मीन और रात को अंधेरे में डूबा भयावह रेगिस्तान मन के मौसम की दो अलग-अलग अवस्थाओं में जीवन का संघर्ष। स्वर्ण नगरी जैसलमेर के सभी घर सुनहरे रंग के और उससे सटे रेगिस्तान की सुनहरी रेत हाथों से समय की तरह फिसलती हुई। रेतीली बंजर ज़मीन पर दूर दूर तक कोई खेती नहीं होती। पर्यटन पर पूरी तरह से निर्भर इस स्थान पर कहीं भी पर्यटकों के लिए विशेष रूप से महिलाओं या वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। रियासतों व किलों के वैभव वाले इस शहर में दो वर्गों के बीच की बढ़ती हुई दूरी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। स्वर्ण नगरी जैसलमेर के राजस्थान के दो राजपूत राज्य, मेवाइ और जैसलमेर अन्य  राज्यों से प्राचीन माने जाते हैं, जहाँ एक ही वंश का लम्बे समय तक शासन रहा है। हालाँकि मेवाड़ के इतिहास की तुलना में जैसलमेर राज्य की ख्याति बहुत कम हुई है, इसका मुख्य कारण यह है कि मुगल-काल में जहाँ मेवाड़ के महाराणाओं की स्वाधीनता बनी रही वहीं जैसलमेर के महारावलों द्वारा अन्य शासक की भाँती मुगलों से मेलजोल कर लिया जो अंत तक चलता रहा। आर्थिक क्षेत्र में भी यह राज्य एक साधारण आय वाला पिछड़ा क्षेत्र रहा जिसके कारण यहाँ के शासक कभी शक्तिशाली सैन्य बल संगठित नहीं कर सके। इन सबके बीच हॉन्टेड विलेज के नाम पर सैलानियों को आकर्षित करता ‘कुलधरा गाँव’, जहाँ का इतिहास वहाँ के स्थानीय लोगों के अनुसार यह है कि रात भर में पालीवाल जाति के लगभग ग्यारह सौ परिवार इसलिए ग़ायब हो गए कि अपनी बेटी को वो किसी क्रूर शासक को सौंपना नहीं चाहते थे। पूरे गाँव में आज भी घरों में सब कुछ वैसे ही रखा हुआ है और अब ये क्षेत्र ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है।

जैसलमेर क़िले के भीतर जाने पर देखा कि क़िले के अंदर अब लगभग चार हज़ार परिवार रहते हैं। मन्दिर में आज भी पूजा होती है। स्थानीय भोजन की बात करें तो दाल बाटी चूरमा, बाजरे की रोटी के अतिरिक्त दाल पकवान, मसाला पापड़ (बड़े आकार के पापड़ पर प्याज टमाटर इत्यादि डालकर बनाया गया) घोटवा लड्डू प्रसिद्ध हैं। इन सब का स्वाद जल्दी से ज़ुबान पर नहीं चढ़ता है। विशेषकर लड्डू में डला हुआ घी व मीठा हम दिल्ली वाले ना तो खा सकते हैं ना हज़म कर सकते हैं।

जैसलमेर में वॉर मेमोरियल जाने पर भारत पाकिस्तान के युद्ध,कारगिल युद्ध के इतिहास, शहीदों की शौर्य गाथा पर बनी फिल्म ने देश के जवानों के प्रति सम्मान की भावना से ओतप्रोत कर दिया।

मन के भीतर दो तरह के भाव लेकर लौटते हुए सोच रहीं हूँ कि अगर दोबारा इस शहर में आना हुआ था फिर पर्यटक की तरह नहीं बल्कि एक लेखकीय दृष्टि के साथ आऊँगी।

इस पूरे ट्रिप में पहले दिन सूर्य नगरी में एक जैसी चमकते रंग की पीली ड्रेस में हम आठ महिलाएँ लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं। हम सभी शिक्षण के क्षेत्र से जुड़े हुए साथी जीवन भर बच्चों को एक जैसी स्कूल यूनिफ़ॉर्म में लेकर जाते हुए स्वयं भी एक जैसे परिधान पहनकर स्वयं को बच्चा समझते रहे। कुछ चित्र आप सबके लिए।

अन्तिम दिन स्पाइस जैट की फ़्लाइट कैसिंल होने पर जब एयर इंडिया की फ्लाइट में आना हुआ तो हम महिलाओं के समूह का एयरपोर्ट पर ग्राउंड स्टाफ़ ने ये कहते हुए विशेष स्वागत किया कि महिलाओं के इस समूह का हम सम्मान करते हैं। इस तरह से यात्रा का सुखद समापन हुआ हालाँकि ये यात्रा अभी जारी रहेगी।

विशेष-दिल्ली से जोधपुर की यात्रा रेल से व वायु मार्ग से की जा सकती है। जैसलमेर की यात्रा सड़क मार्ग से व वापिसी वायुमार्ग से करें तो रेल, व हवाई यात्रा सभी प्रकार के अनुभव मिल सकते हैं।

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