फीजी में पत्रकारिता
फीजी में पत्रकारिता
फीजी में मिश्रित भाषा से “फीजी-बात” का जन्म हुआ। ‘फीजी बात’ उनके विचारों के आदान-प्रदान का सरल माध्यम थी। आज यही ‘फीजी बात’ फीजी हिंदी है। अपनी गिरटमिटिया अवधि पूरी होने के बाद भी जब वे अपने देश भारत लौटने में असफल रहे तब वे फीजी में ही अपना देश बनाने, भारतीय संस्कृति को जुटाने और उसे समृद्ध करने में लग गए।
वर्ष 2016 की जनगणना के अनुसार फीजी की जनसंख्या लगभग नौ लाख है, जिसमें लगभग 56.8 प्रतिशत नागरिक फीजी मूल के तथा लगभग 37.5 प्रतिशत भारतीय मूल के हैं। शेष यूरोपियन, चीनी और अन्य मूल के हैं। विश्व में भारत के अलावा फीजी एक मात्र ऐसा देश है, जहाँ के संविधान में हिंदी को फीजियन और अँग्रेजी के साथ राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।
हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभिक चरण
फीजी द्वीप की अपनी यात्रा के दौरान हिंदी पत्रकारिता के 100 से अधिक के इतिहास को खंगालना किसी रोचक दास्तान से कम नहीं रहा। सन् 1913 में डॉ. मणिलाल ने भारतीयों को संगठित करने के लिए “द सेटलर” पत्र प्रकाशन अँग्रेजी में प्रारंभ किया था, किंतु उन्हें शीघ्र ही यह अनुभव हो गया कि देश के कोने-कोने में बसे हुए भारतीयों तक संदेश पहुँचाने के लिए अंग्रेजी उतनी कारगर नहीं हो सकती जितनी उनकी अपनी भाषा हिंदी। इसीलिए उन्हें ‘द सेटलर’ को अँग्रेजी संस्करण के साथ ही हिंदी में भी साइक्लोस्टाइल रूप में निकालना प्रारंभ कर दिया। ‘द सेटलर’ पत्र का यह हिंदी संस्करण फीजी में पत्रकारिता का शुरुआती कदम था। धीरे-धीरे इस पत्र की लोकप्रियता बढ़ने लगी और वह समस्त भारतीयों को समाचार के माध्यम से संगठित करने लगा।इस पत्र के हिंदी संस्करण के संपादन का दायित्व सँभाला पं. शिवराम शर्मा ने। हिंद के प्रति बढ़ती हुई रुचि तथा हिंदी में समाचार जानने और पढ़ने की लालसा ने कई भारतीयों को हिंदी पत्र निकालने के लिए प्रेरित किया।
19वीं सदी के दूसरे दशक में कई हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की शुरुआत हुई। इन पत्रों में फीजी समाचार, भारत पुत्र, वृद्धि तथा वृद्धियों लोकप्रिय हुए, किंतु फीजी समाचार के अतिरिक्त कोई अन्य पत्र अधिक समय तक नहीं चल सका।
फीजी समाचार
फीजी समाचार का प्रकाशन इंडियन प्रिंटिंग तथा पब्लिशिंग कंपनी द्वारा 1923 में शुरू हुआ। इसके प्रधान संपादक और मालिक श्री सूर्यमुनि दयाल बिदेसी तथा प्रधान संपादक बाबू रामसिंह रहे। श्री बिदेसी की गणना फीजी के प्रतिष्ठित भारतीयों में की जाती थी। वे अँग्रेजी, हिंदी तथा काई बीती भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। अनेक बार विश्व भ्रमण कर उन्होंने व्यापक अनुभव अर्जित किया था। भारतीयों के मध्य जन जागृति लाने तथा उन्हें संगठित करने के लिए उन्होंने विशिष्ट भूमिका निभाई। फीजी समाचार को आर्थिक कठिनाई से बचाए रखने तथा प्रगति में सदैव सहायक रहे।
फीजी समाचार का चार जुलाई, 1936 तथा 18 जुलाई, 1936 का अंक फीजी के राष्ट्रीय अभिलेखागार से तथा 19 दिसंबर, 1968 का अंक ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन से प्राप्त हुआ। चार जुलाई, 1936 के अंक के मुख पृष्ठ पर अँग्रेजी में The Fiji Samachar तथा हिंदी में ‘फीजी समाचार’ प्रकाशित हुआ था और उसी के नीचे अँग्रेजी में छपा था- The Weekly Organ of the Fiji Indians. फीजी समाचार-प्रत्येक शनिवार हिंदी एवं अँग्रेजी में प्रकाशित होता था। चार जुलाई के अंक के प्रथम पृष्ठ पर ही क्राउन एंड लि. का विज्ञापन हिंदी में प्रकाशित हुआ है। पत्र में भारत के समाचार-पत्रों के संदर्भ से निम्नानुसार संक्षिप्त आलेख प्रकाशित हुए-
1. लंडन में फीजी डेपुटेशन-श्री वेंकटेश्वर समाचार
2. 56 साल का उपवास-आर्य मित्र
3. स्वराज्य की आवश्यकता-प्रताप
इन आलेखों के प्रकाशन से स्पष्ट होता है कि भारत के प्रमुख समाचार-पत्र भी फीजी पहुँचते थे। इस अंक में ही “शिक्षा विभाग की रिपोर्ट” शीर्षक से फीजी की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट के अंत में पृष्ठ 10 पर कुछ लघु विज्ञापन भी प्रकाशित हुए हैं-
1. राइस मिल बिक्री को
2. गंजेस जलयान (स्टीमर) कलकत्ते से डिसेंबर के प्रथम सप्ताह में फीजी के लिए खुलेगा।
शांतिदूत
शांतिदूत समाचार की शुरुआती दास्ताँ काफी रोचक है। फीजी टाइम्स एंड हेरल्ड नामक ब्रिटिश संस्थान द्वारा अँग्रेजी समाचार-पत्र ‘फीजी टाइम्स’ प्रकाशित हो रहा था। इसी समय विश्वयुद्ध के बादल भी मंडरा रहे थे। इटली की सेना युद्ध में उत्तर चुकी थी। ‘फीजी टाइम्स’ के जनरल मैनेजर श्री बाकर के मन में यह विचार आया कि स्थानीय लोगों को मित्र राष्ट्रों के पक्ष में विश्वयुद्ध से जोड़ने के लिए क्यों न हिंदी में अखबार निकाला जाए। इसी विचार से 11 मई, 1935 को साप्ताहिक अखबार ‘शांतिदूत’ की शुरुआत हुई। इस पत्र के संपादक का कार्यभार सँभाला श्री गुरुदयाल शर्मा ने, जो पेसिफिक प्रेस से हिंदी पत्रकारिता का अनुभव प्राप्त कर चुके थे। अपने पहले संपादकीय में श्री गुरुदयाल शर्मा ने पत्र की नीतियों को स्पष्ट करते हुए लिखा था :
‘शांतिदूत का यह प्रथम अंक हम आपकी सेवा में उपस्थित करते हुए हर्ष मना रहे हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि इस पत्र के द्वारा फीजी प्रवासी भारतीयों को समस्त संसार की वह खबर मिलती रहेगी जिससे हिंदी भाषा भाषी जनता अनभिज्ञ रहती थी। इस पत्र के स्वामी भारत, इंग्लैंड, चीन, जर्मनी, जापान इत्यादि भूमंडल का समाचार बेतार के तार द्वारा अर्थात केबल के जरिए से मँगा रहे हैं।
श्री विनोद के संपादन में ‘शांतिदूत’ को नए आयाम प्राप्त हुए। उन्होंने नए लेखक -मंडल का निर्माण किया। राष्ट्रीय और अंतरर्राष्ट्रीय संस्थानों पर निर्भीक होकर प्रभावपूर्ण संपादकीय लिखे। सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि फीजी में विकसित नई विदेशी भाषा शैली ‘फीजी हिंदी’ के महत्व को समझा तथा स्थानीय लेखकों को उस भाषा में लिखने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी ‘थोरा हमरो भी तो सुनो’ स्तंभ प्रति सप्ताह लिखा।
सन् 1987 में फीजी में हई राजनैतिक उथल-पुथल से भारतीयों की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा। जिस देश को भारतवंशियों ने अपनी निष्ठा और समर्पण से विश्व के एक प्रतिष्ठित देश के रूप में ला खड़ा किया था, उसी देश में उन्हें जीवन और सम्मान खंडित होता दिखाई देने लगा। अनेक भारतीय फीजी छोड़कर अन्य देशों को कूच कर गए। ‘शांतिदूत’ के लोकप्रिय संपादक श्री विनोद जी भी त्याग पत्र देकर न्यूजीलैंड चले गए। इतनी विपरीत स्थितियों में भी ‘शांतिदूत’ का प्रकाशन जारी रहा। ‘शांतिदूत’ का दीपावली विशेषांक प्रत्येक वर्ष अत्यंत समृद्ध एवं विशिष्ट होता है। इस विशेषांक में आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के लेखकों की रचनाओं का भी समावेश होता है। 125 से अधिक पृष्ठों में दीपावली के साथ ही भारतीय संस्कृति, त्योहारों और परंपराओं पर विशेष लेख होते हैं। मुझे 2016 में अपनी यात्रा के दौरान ‘शांतिदूत’ के कार्यालय जाने का अवसर भी मिला। मैंने देखा कि शांतिदूत के शुभारंभ अंक से लेकर उस समय तक के सभी अंकों की वर्षवार फाइल वहाँ बहुत व्यवस्थित रूप रखी हुई थी। वर्ष 2000 से श्रीमती नीलम ने ‘शांतिदूत’ के संपादन का दायित्व सँभाला। वह स्वतंत्र पत्रकार के रूप में ‘शांतिदूत’ से कई वर्षों से जुड़ी रही थीं।
‘शांतिदूत’ के माध्यम से हजारों लोगों ने हिंदी सीखी। इसमें हिंदी विद्यार्थियों के लिए दो पृष्ठ विशेष रूप से आरक्षित होते हैं, जिनमें स्कूलों के पाठ्यक्रमों से जुड़े विषयों पर क्रमवार प्रस्तुति होती है। रचनात्मक साहित्य को भी शांतिदूत में पर्याप्त स्थान मिलता है। कहानी, कविता, व्यंग्य आदि निरंतर प्रकाशित होते रहते हैं। शांतिदूत में बालीवुड फिल्मों तथा कलाकारों आदि के बारे में भी विस्तार से समाचार दिए जाते हैं। प्रत्येक अंक में फिल्मों की समीक्षा, फिल्मी कलाकारों के कहानी-किस्से छपते हैं। ‘शांतिदूत’ के शुरुआती वर्ष 1935 के अंकों में भी भारतीय फिल्मों के विज्ञापन दिखाई देते हैं, जिससे स्पष्ट है कि फीजी में रहने वाले भारतीयों के लिए वर्षों से मनोरंजन का प्रमुख साधन बॉलीवुड ही है। दिनाँक 11 मई, 2020 को शांतिदूत के प्रकाशन के 85 वर्ष पूर्ण हुए, किंतु उसके कुछ माह बाद ही यह सूचना मिली कि ‘शांतिदूत’ का प्रकाशन अब बंद हो गया है। फीजी से हिंदी पत्रकारिता के स्तंभ का इस तरह ढह जाना किसी सदमे से कम नहीं माना जा सकता।
‘शांतिदूत’ समाचार-पत्र की शुरुआत के पश्चात् चौथे दशक में फीजी में अनेक मासिक तथा साप्ताहिक पत्रों का प्रकाशन हुआ। अखिल फीजी कृषक महासंघ ने ‘दीनबंधु’, श्री ज्ञानीदास ने ‘ज्ञान’, पं. बी.डी. लक्ष्मण ने ‘किसान’, आर्य पुस्तकालय ने ‘पुस्तकालय’, श्री रामखेलावन ने ‘प्रकाश’ पत्रों का प्रकाशन किया। इसी दौरान ‘जंजाल’, ‘सनातन प्रकाश’ तथा ‘मजदूर’ आदि पत्र भी प्रकाशित हुए, किंतु वे बहुत अल्प समय में ही बंद हो गए। फीजी में हिंदी के प्रचार-प्रसार के सशक्त हस्ताक्षर श्री काशीराम कुमुद ने ‘प्रवासिनी’ पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। उसमें स्थानीय कवियों की रचनाओं को स्थान देकर कुमुदजी ने अनेक लेखकों को प्रोत्साहित किया था। ‘प्रवासिनी’ पत्रिका अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका थी।
द इंडियन टाइम्स
सन् 1945 में ‘द इंडियन टाइम्स’ का प्रकाशन फीजी की राजधानी सुवा से हुआ। आवरण के अतिरिक्त इसमें 25 पृष्ठ होते थे। देखने में यह पत्रिका की तरह लगता था, किंतु वास्तव में यह समाचार-पत्र ही था। इसका पंजीयन भी समाचार-पत्र के रूप में हुआ था। हिंदी-अँग्रेजी में प्रकाशित इस समाचार-पत्र के संपादक श्री रामसिंह रहे। उनका संपादकीय पृष्ठ चार पर छपता रहा किंतु कुछ अंक ऐसे भी देखने में आए, जिनमें संपादकीय लेख नहीं था। प्रायः इस समाचार-पत्र के संपादकीय समसामयिक समस्याओं पर आधारित होते थे। जैसे किसानों के हित पर आधारित संपादकीय का उदाहरण प्रस्तुत है-‘कृषकों अथवा किसानों को हम जोर देकर कह सकते हैं कि आप लोग भूल में मत पड़ो। चाहे कोई भी क्यों न हो, जो तुम्हारा अनहित करता हो उसका साथ त्याग दो। इस द्वीप में हम सब स्वतंत्र हैं। चाहे धनी हो या गरीब, किसी के दबाव का भय नहीं। अपने हित की बातों को सुनो और मनन करो। तभी तुम्हाराऔर तुम्हारे भविष्य का कल्याण है। व्यर्थ का समय नष्ट करने और आँख मूंद कर दल-बंदी से अपनी हानि है। दूसरे लोग तुम पर रोते नहीं किंतु हँसते हैं। आओ किसानो, अभी से चेत लो, अभी भी समय है।’
इस पत्र में समाचार, लेख, विनोद वाटिका, महिला पृष्ठ, साहित्य स्तंभ के साथ ही अँग्रेजी खंड भी प्रकाशित होता था। समाचारों के अंतर्गत फीजी के अतिरिक्त भारत तथा अन्य देशों के समाचार भी इसमें प्रकाशित होते रहे। पत्र में मौलिक चिंतनपरक लेखों को भी प्रकाशित किया जाता था। कहानियों के अतिरिक्त इस समाचार-पत्र में कभी-कभी कविताएँ भी छपती थी। ये कविताएँ आवरण पृष्ठ पर भी प्रकाशित हुई। इस समाचार-पत्र का प्रकाशन कुछ वर्ष ही हो पाया।
जागृति
फीजी के नांदी केंद्र से हिंदी साप्ताहिक ‘जागृति’ का प्रकाशन 26 जनवरी, 1950 को हुआ। इस पत्र का प्रथम तथा कुछ अन्य अंक फीजी के राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त हुए। यह पत्र फीजी के पश्चिमी जिलों के किसानों के मध्य बहुत लोकप्रिय था। ‘जागृति’ की लोकप्रियता तो इतनी बढ़ गई थी कि साप्ताहिक और फिर त्रि-साप्ताहिक प्रकाशित होने लगा था। इस पत्र के प्रथम अंक (26 जनवरी, 1950) के प्रथम पृष्ठ पर मुख्य समाचार के रूप में लंदन चीनी कॉफ्रेंस भंग होने का समाचार-प्रमुखता से प्रकाशित किया है। उपनिवेश के देशों में चीनी की खरीद दरों में असहमति के कारण भी कॉफ्रेंस को स्थगित करने का प्रस्ताव लाया गया। इसी अंक के किसानों संबंधी समाचार निम्नानुसार प्रकाशित हुआ-
श्री स्वामी रूद्रानंद ने किसानों की ओर से माँगें पेश की लंदन की खबर है-श्री स्वामी रूद्रानंद जी ने फीजी के किसानों की ओर से औपनिवेशिक विभाग के सम्मुख माँगे पेश की हैं। साथ-साथ किसानी की और भारतीयों की अवस्था पर विस्तार से प्रकाश डाला है-
1. फीजी के किसानों की अवस्था कींस लैंड के किसानों के समान ही होनी चाहिए।
2. प्रिफेरेशल सर्टिफिकेट का पूरा लाभ किसानों को ही मिलना चाहिए।
3. चीनी के दाम और ‘एंपायर प्रिफरेंसस बोनस’ का 60 प्रतिशत किसानों को मिलना चाहिए।
4. जमीन के विषय में किसानों को विश्वास होना चाहिए कि जमीन उन्हें मिलेगी।
सन् 1961 में जागृति के संपादन का दायित्व 20 वर्ष की छोटी अवस्था में ही पं. राघवानंद शर्मा को सौंप दिया गया। साहित्यिक रूचि तथा योग्यता के धनी राघवानंद जी ने इस पत्र का कुशल संपादन किया। पत्र की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के बावजूद उन्होंने 1975 तक इसका प्रकाशन जारी रखा।
1953 ई. में ‘आवाज’ साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन भी अल्पावधि के लिए हुआ। ‘झंकार’ पत्र का प्रकाशन श्री ज्ञानीदास के संपादन में हुआ। इस पत्र में संक्षिप्त समाचार, फिल्मी गाने, कविताएँ आदि होती थीं। आर्थिक साधनों की कमी के कारण यह पत्र 1958 में बंद हो गया। इसके पूर्व श्री ज्ञानीदास ने ‘तारा’ मासिक पत्र का प्रकाशन भी किया था, जो उनकी ही प्रेस में छपा करता था।
जय फीजी और फीजी संदेश
फीजी के प्रतिभाशाली कवि एवं विद्वान लेखक श्री कमला प्रसाद मिश्र के संपादन में 1958 ई में ‘जय फीजी’ हिंदी साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह पत्र फीजी में अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इसका मुद्रण हिंदी और अँग्रेजी में लौटोका स्थित युनिवर्सल प्रिंटिंग प्रेस में फोटो सैट विधि से होता था। जय फीजी के माध्यम से मिश्र जी ने हिंदी भाषा और साहित्य की ज्योति जलाए रखने का गुरुतर कार्य किया। आपके पत्र में हिंदी प्रेमी युवकों की रचनाओं को विशेष स्थान मिला। पत्र के समापन अंक तक तत्कालीन राजनीति, समाज और शिक्षा पर अनेक प्रकार की महत्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित होती रही, जो मिश्र जी के गहन अध्यवसाय और लगन का प्रमाण थी। श्री मिश्र लगभग 35 वर्ष तक फीजी की हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय रहे। उन्हें फीजी में हिंदी सेवा और हिंदी पत्रकारिता में योगदान के आधार पर भारत सरकार ने विदेशी हिंदी सेवा सम्मान से सम्मानित किया।
फीजी संदेश साप्ताहिक का प्रकाशन 1965 में श्री वेणीलार मौरिस के संपादन में हुआ। श्री मौरिस के संपादकीय राष्ट्रीय समस्याओं पर विश्लेषणात्मक और रचनात्मक होते थे। इस पत्र में स्थानीय लेखकों को भी बहुत प्रोत्साहित किया गया। इस पत्र का प्रकाशन लगभग दस वर्ष तक हुआ। फीजी में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रारंभ एवं बंद होने का सिलसिला लगातार चलता रहा। पं. नंदकिशोर ने 1959 में हिंदी साहित्य प्रचारिणी सभा की स्थापना करने के साथ ही ‘किसान मित्र’ साप्ताहिक पत्र का संपादकीय दायित्व भी सँभाला। वे किसानों, मजदूरों, लेखकों तथा कवियों के मध्य बहुत लोकप्रिय हुए। सन् 1974 में सनातन धर्म महासभा के मुख पत्र के रूप में ‘सनातन संदेश’ नामक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस महासभा के महासचिव एवं फीजी हिंदी महापरिषद के प्रधान पं. विवेकानंद शर्मा ‘सनातन संदेश’ के संपादक थे। आप फीजी सरकार में मंत्री भी रह चुके थे। फीजी में हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। सनातन संदेश एक मासिक पत्र था तथा इसका उद्देश्य सनातन धर्म के संदेश को जन-जन तक पहुँचाना था, किंतु यह पत्र कुछ अंक निकलने के बाद बंद हो गया।
फीजी सरकार की हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ
फीजी सरकार की ओर से भी कुछ पत्र-पत्रिकाएँ हिंदी में प्रकाशित की जा रही हैं। सन् 1926 में ‘राजदूत’ तथा द्वितीय विश्व युद्ध के समय ‘विजय’ के अंक भी प्रकाशित हुए। फीजी सरकार के सूचना मंत्रालय ने ‘फीजी वृत्तांत’ के प्रकाशन की शुरुआत अप्रैल 1976 में की। फीजी वृत्तांत के प्रथम प्रकाशित तीन अंक मुझे भाषाविद् एवं भारत के फीजी दूतावास के प्रथम सचिव श्री विमलेशकांति वर्मा से प्राप्त हुए। ‘फीजी वृत्तांत ‘का 16 पृष्ठीय अंक ए4 आकार में प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका का उद्देश्य बताते हुए प्रथम अंक में लिखा गया-
“मासिक पत्रिका ‘फीजी वृत्तांत’ में समाचार ही होंगे। सरकार की भावी योजनाओं, उसकी उपलब्धियों तथा विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों की झलकियों और नवीन जानकारियों का फीजी वृत्तांत एक श्रोत होगा। सरकार की यह तीव्र इच्छा है कि राष्ट्रीय हित में यहाँ और विदेशों में होने वाले विकासों, नई योजनाओं और देश के हित में हो रहे तमाम प्रगतिशील परिवर्तनों की छोटी-सी छोटी जानकारी भी प्रजा को दी जाए। उसकी इस नीति के अंतर्गत तीन भाषाओं में समाचार-पत्र पत्रिकाएँ प्रकाशित किए जा रहे हैं।”
इस अंक में सरकार की ओर से आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों के सचित्र समाचार भी प्रकाशित हुए है। फीजी वृत्तांत के अन्य अंकों में भी इस प्रकार के समाचारों के अलावा संसद समाचार आदि भी प्रकाशित हुए हैं। यह फीजी की जनता को निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता था। फीजी सरकार के सूचना मंत्रालय द्वारा हिंदी में ‘शंख’ समाचार-पत्र का प्रकाशन भी किया गया। इस पत्र का संपादन कई वर्षों तक हिंदी के अनुभवी पत्रकार पं. राघवानंद शर्मा ने किया। उनका हिंदी भाषा पर अच्छा अधिकार रहा-स्पष्ट लेखन और निर्भीकता से लेखन उनके प्रमुख गुण रहे। 20 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने ‘जागृति’ पत्र के संपादन का दायित्व भी सँभाला था। ‘शंख’ के अगस्त 1984 के अंक के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ कि इस समाचार-पत्र में भी ‘फीजी वृत्तांत’ की भांति सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं गतिविधियों का विवरण सचित्र प्रकाशित हुआ है। वर्तमान में ‘शंख’ के स्थान पर फीजी सरकार द्वारा हिंदी-अंग्रेजी में ‘फीजी फोकस’ का भी प्रकाशन किया जा रहा है। अपनी फीजी यात्रा में ‘फीजी फोकस’ का नौ अक्टूबर, 2016 का अंक पढ़ने को मिला। इस 24 पृष्ठीय बहुरंगी पत्र में फीजी सरकार की राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियाँ विस्तार से प्रस्तुत की गई हैं। फीजी सरकार द्वारा इसका प्रकाशन नियमित रूप से किया जा रहा है। शिक्षा मंत्रालय, फीजी द्वारा ‘नव ज्योति’ शीर्षक से चार पृष्ठीय बुलेटिन भी प्रकाशित किया जाता है, जिसमें हिंदी शिक्षण संबंधी गतिविधियों के सचित्र समाचार-प्रकाशित होते हैं।
उदयाचल
हिंदी परिषद, फीजी ने 15 दिसंबर, 1982 को ‘उदयाचल’ साहित्यिक पत्रिका प्रारंभ की। इस महापरिषद की स्थापना 1970 में फीजी में हिंदी भाषा, साहित्य तथा कला एवं संस्कृति की उन्नति में योगदान देने के लिए की गई थी। इस 40 पृष्ठीय पत्रिका में फीजी के सुप्रसिद्ध रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित हुई पत्रिका के संपादक एवं परिषद के अध्यक्ष पं. विवेकानंद शर्मा ने अपने संपादकीय में लिखा था- ‘हिंदी इस मुल्क की समाद्दत भाषा है, लेकिन इसे गौरवांवित/ सिंहासन पर बैठाए रखने के लिए बहुत कुछ करते रहना होगा। इस दिशा में हिंद महापरिषद का एक लघु प्रयास है उदयाचल। इस पत्रिका के उन्नयन के लिए हमें आप हिंदी सेवी जगत के आशीर्वाद और सहयोग की अपेक्षा है।’
इस संपादकीय में ही श्री शर्मा ने फीजी के किसी विशिष्ट हिंदी लेखक एवं साहित्यकार को ‘हिंदी महापरिषद पुरस्कार’ की शुरुआत करने की घोषणा की और 1982 के प्रथम पुरस्कार हेतु फीजी के महान हिंदी कवि पं. कमला प्रसाद मिश्रा का नाम भी घोषित किया।
पत्रिका के इस अंक के शुरुआती 18 पृष्ठों पर भारत के प्रमुख साहित्यकारों प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद, मनोहरश्याम जोशी, विष्णु प्रभाकर, डॉ. विजयेंद्र स्नातक, डॉ. निर्मला जैन, डॉ. धर्मवीर भारती आदि के संदेश प्रकाशित हुए हैं। फीजी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं. कमलाप्रसाद मिश्र का जीवन परिचय तथा उनकी कविताओं का संचयन भी दस पृष्ठों में प्रकाशित किया गया है। श्री मिश्र का लेख, ‘फीजी में हिंदी की वर्तमान स्थिति में कविता का योगदान’ भी प्रकाशित हुआ है। पृष्ठ 33 से 35 तक हिंदी साहित्य के प्रकाश स्तंभ के अंतर्गत अमीर खुसरो से लेकर हरिवंशराय बच्चन तक के कालखंड के 16 प्रमुख कवियों की प्रमुख रचनाओं के अंश प्रकाशित हुए हैं। पं. विवेकानंद शर्मा ने फीजी की लोक कथा ‘हरा तालाब’ भी इस अंक में प्रस्तुत की है। अन्य रचनाओं के साथ ही ‘उदयाचल’ का यह अंक फीजी के हिंदी साहित्य जगत की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही, किंतु ‘उदयाचल’ का, केवल एक अंक ही प्रकाशित हो पाया। हिंदी महापरिषद, फीजी साधनाभाव के कारण इसका प्रकाशन जारी नहीं रख सकी।
साहित्यकार
फीजी हिंदी साहित्य समिति ने जनवरी 1986 में ‘साहित्यकार’ तिमाही पत्रिका प्रारंभ की। सन् 1957 में फीजी कुमार साहित्य परिषद् के नाम से इसकी स्थापना सिंगातोका में की गई थी। तब यह सीमित पैमाने पर विद्यार्थियों में हिंदी का प्रचार करती थी। ‘कुमार’ नाम से हस्तलिखित मासिक पत्रिका निकलती थी, जिसे विद्यार्थियों और नवयुवकों को पढ़ने हेतु भेजा जाता था। 1962 में इसका नाम बदलकर ‘फीजी हिंदी साहित्य परिषद’ रखा गया। सन् 1983 में इसे फीजी
हिंदी साहित्य समिति’ के नाम से पंजीकृत किया गया। समिति प्रति माह एक सूचना-पत्र का प्रकाशन कर निःशुल्क वितरण करती थी। समिति ने निर्णय लिया कि सूचना-पत्र को त्रैमासिक पत्रिका में परिवर्तित कर दिया जाए। फलस्वरूप ‘साहित्यकार’ पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
साहित्यकार के प्रथम अंक के मुख पृष्ठ पर फीजी द्वीप समूह का मानचित्र तथा भारत के प्रख्यात लेखक प्रेमचंद का चित्र उनके वैचारिक अंश के साथ प्रकाशित किया गया है। मुख पृष्ठ के शीर्ष पर मुद्रित है : ‘साहित्य, संस्कृति और सभ्यता की प्रगति का मुख पत्र’ मानव जीवन के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए फीजी हिंदी साहित्य समिति का विनम्र प्रयास।
इस 20 पृष्ठीय पत्रिका के शुरुआती 4 पृष्ठों में फीजी हिंदी साहित्य समिति के उद्देश्य, कार्य, योजनाएँ आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। ‘भारत के सांस्कृतिक संबंध और हिंदी’ शीर्षक से श्री हीरानंद झा शास्त्री ने व्याख्यायित किया कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता हिंदी में है। समिति के सचिव श्री रामनारायण गोविंद ने ‘फीजी द्वीप में हिंदी दिवस’ शीर्षक से समारोह की रिपोर्ट अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत की है। डॉ. धर्मध्वज त्रिपाठी का लेख ‘प्रेमचंद की मानवीय दृष्टि’ भी प्रकाशित हुआ है। ‘शांतिदूत’ के तत्कालीन संपादक श्री एम.सी. विनोद शर्मा ने अपने आलेख ‘साहित्य सेवा की अभिलाषा’ में आशा व्यक्त की कि यह पत्रिका साहित्य प्रेमियों की तृष्णा बुझाती रहे। इस प्रकार ‘साहित्यकार’ पत्रिका से फीजी की हिंदी पत्रकारिता में महत्वपूर्ण शुरुआत हुई, किंतु ‘साहित्यकार’ का प्रकाशन लंबे अर्से तक नहीं हो सका।
नियमित पत्रिका के रूप में भले ही ‘साहित्यकार’ का प्रकाशन बंद हो गया, किंतु सूचना पत्र और ‘विश्व हिंदी दिवस’ के अवसर पर ‘साहित्यकार’ का प्रकाशन जारी रहा। मुझे जनवरी 1998 के आठ पृष्ठीय सूचना पत्र की प्रति फीजी से प्राप्त हुई, जिसमें फीजी हिंदी साहित्य समिति के विस्तृत परिचय के साथ ही डॉ. नेतराम शर्मा का आलेख ‘हिंदी डिप्लोमा सफल, डिग्री की माँग’ प्रकाशित हुआ है। इसी प्रकार सितंबर 1999 में प्रकाशित 56 पृष्ठीय विशेषांक में भी समिति की विविध गतिविधियों तथा रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
सरताज
सन् 1988 में ‘सरताज’ नामक हिंदी साप्ताहिक का प्रकाशन श्री एस.एस. दास के संपादन में फीजी से शुरू हुआ था। इस पत्र का मूल्य पैंतीस (35) सेंट था। इसे ‘वॉयस् ऑफ पीपल’ नाम दिया गया। पत्र 11.5 × 17″ आकार तथा छह कॉलम में फीजी स्पोटर्स वीक प्रिंटर्स से प्रकाशित होता था। पत्र का मुख्य उद्देश्य जनता की आवाज प्रशासन तक पहुँचाना था। इसमें फीजी, भारत तथा अन्य देशों के भी समाचार छपते थे। संपादकीय के अतिरिक्त ‘डंके की चोट’, ‘एकदम खरी बात’, ‘स्वतंत्र विचार’, ‘जन्मदिन मुबारक’, ‘श्रद्धांजलि’, ‘आधुनिक भारत की झलकें’, ‘बच्चों की दुनिया’, ‘कार्टून कोना’, ‘धर्म और ज्ञान चर्चा’ तथा ‘हिंदी सीखिए’ आदि कई स्थाई स्तंभ भी हैं। पत्र में कविताएँ तथा कहानियाँ भी छपती थीं। संपादकीय के लिए तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को चुना जाता था। कभी-कभी अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर भी मौलिक विचार प्रकट किए जाते थे। ‘सरताज’ का प्रकाशन कुछ वर्षों तक ही हो पाया।
संस्कृति पत्रिका
फीजी में हिंदी के विद्वान, राजनीतिज्ञ, हिंदी महापरिषद के अध्यक्ष, ‘सनातन संदेश’ तथा ‘उदयाचल’ के पूर्व संपादक डॉ. विवेकानंद शर्मा ने सन् 2001 में त्रैमासिक ‘संस्कृति’ पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। हिंदी भाषा, साहित्य, तथा भारत और फीजी संस्कृति पर केंद्रित यह एक 80 पृष्ठीय संपूर्ण पत्रिका थी। अपनी फीजी यात्रा के दौरान स्व. डॉ. विवेकानंद शर्मा की पुत्री सुश्री वंदना शर्मा ने सन् 2003 से 2005 तक के ‘संस्कृति’ के कुछ अंक उपलब्ध कराए। इन अंकों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि पत्रिका में प्रकाशित रचनाएँ, संपादन और प्रस्तुति उत्कृष्ट कोटि की थी। प्रत्येक अंक के संपादकीय में डॉ. शर्मा फीजी में हिंदी भाषा के उद्भव एवं विकास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए ऐतिहासिक तथ्यों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते थे। कहानी, लघुकथा, कविता के साथ स्वास्थ्य, बच्चों की दुनिया, कॉमिक, मुहावरे, शब्दों का ज्ञान बढ़ाएँ, शब्द खोज, चित्रावली, थोड़ा मुस्करा लो आदि स्तंभों के माध्यम से पत्रिका को अत्यंत पठनीय एवं उपयोगी बना दिया गया था। पत्रिका के प्रारंभिक पृष्ठ संपादक की ओर से यह सूत्र वाक्य भी प्रकाशित होता था- ‘हिंदी के रथ पर आरूढ़ होकर ही हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं जो हमारी यात्रा का आधार है।’
भारतीय त्योहारों के अवसर पर इस पत्रिका के विशेषांक भी प्रकाशित होते थे। जनवरी-मार्च 2015 का अंक ‘होली विशेषांक’ के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसमें नियमित स्तंभों के अलावा होली पर विशेष लेख, होली पर गाए जाने वाले गीत, फिल्मों में होली गीत, आदि का प्रकाशन हुआ। इस पत्रिका में फीजी के अलावा आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत के रचनाकारों की रचनाएँ भी प्रकाशित होती थीं। ‘संस्कृति’ जैसी उत्कृष्ट पत्रिका के प्रकाशन से फीजी की हिंदी पत्रकारिता समृद्ध हुई ‘संस्कृति’ का प्रकाशन भी कुछ वर्षों तक ही हो पाया।
हिंदी रेडियो एवं टेलीविजन
फीजी ब्रॉडकास्टिंग कंपनी द्वारा रेडियो प्रसारण 1935 में शुरू हुआ और उस समय कुछ ही लोगों के पास रेडियो हुआ करते थे। इस समय छह मुख्य रेडियो स्टेशन हैं, जिनमें दो हिंदी के हैं-रेडियो फीजी दो एवं मिर्ची फिल्म। अन्य दो-दो चैनल क्रमशः काई बीती और अँग्रेजी में हैं। इन रेडियो स्टेशनों पर 24 घंटे कार्यक्रम चलते रहते हैं और इंटरनेट के माध्यम से कई देशों में सेवाएँ उपलब्ध हैं। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में रेडियो फीजी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। सर्वाधिक कार्यक्रम हिंदी भाषा में ही होते हैं।
फीजी ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन तीन टेलीविजन चैनलों-FDCTV, FB (2) एवं FBC SHORTS पर निःशुल्क सेवाएँ प्रधान करता है। साथ ही एफ.बी.सी. न्यूज के माध्यम से दैनिक समाचार सेवा भी प्रदान करता है। फीजी रेडियो दो के कार्यक्रमों में प्रसिद्ध हिंदी गीतों के अलावा अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।
फीजी में इन पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से हिंदी पत्रकारिता का एक अनुपम, प्रभावपूर्ण तथा दीर्घकालीन इतिहास निर्मित हुआ। हिंदी को जागृत रखने तथा भारतीयों को एक सूत्र में बाँधे रखने में इन पत्र-पत्रिकाओं का अमूल्य योगदान रहा है। अब यह प्रश्न विचारणीय है कि जिस फीजी में हिंदी के अनेक पत्र-पत्रिकाएँ एक साथ प्रकाशित होते थे, वहाँ आज हिंदी के एक भी स्तरीय समाचार-पत्र का प्रकाशन नहीं हो रहा है। हाल ही में भारत-फीजी मैत्री संघ द्वारा तिमाही ई-पत्रिका की शुरुआत डॉ. इंदु चंद्रा के संपादन में हुई है। फीजी में हिंदी को संवैधानिक भाषा का स्थान प्राप्त है और विद्यालईन शिक्षा जगत में भी हिंदी की स्थिति संतोषजनक है। इन परिस्थितियों में हिंदी में पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की सार्थक पहल अवश्य होनी चाहिए।