अविचल रहना साधे मन को
(वामा छन्द)
मन व्यग्र बड़ा रातों जगता।
सब उथल-पुथल जीवन लगता।
प्रतिकूल परिस्थिति क्षुब्ध करे।
चिंता विपदा के रंग भरे।
तब हार नहीं मन मार नहीं।
मन हार करे स्वीकार नहीं।
साहस भर ले रह अडिग खड़ा।
निर्भीक नयन में स्वप्न जड़ा।
क्यों रात अँधेरी से डरता?
नव भानु उजाला है भरता।
अविचल रहना साधे मन को।
संभाल धुरी पर रख पग को।
यह चक्र समय का जब चलता।
सब को ठगता सब को छलता।
पर जीत उसी के नाम लिखी।
धनु मीन टिकी बस आंख दिखी।
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-अनु बाफना
