जीवन चक्र
भावना कुँअर
बात उन दिनों की है जब रूपा ने तीसरे बेटे को जन्म दिया। दो बेटे पहले से ही थे। दो अबॉर्शन तो पहले ही उसके ससुराल पक्ष के लोग उसके करा चुके थे वहाँ दोनों लड़कियाँ जो थी। वह हर बार बहुत रोई गिड़गिड़ाई पर किसी ने उसकी एक नहीं सुनी और दो जिंदगियाँ इस संसार में आने से वंचित रह गईं। रूपा के चेहरे पर मिलेजुले भाव थे ,अपनी खोई उन दोनों संतानों का दुःख और एक नन्हीं सी जान को गोद में लेने का सुख। यही जिंदगी है जो सुख दुःख की नाव में सवार रहने पर मज़बूर करती है।
जैसे तैसे दिन कट रहे थे। किसी तरह वह अपने आपको ससुराल वालों के हिसाब से ढालकर ही जीवन जी रही थी। इतनी छोटी सोच के लोगों के साथ बस अपने संस्कारों के कारण ही निभा रही थी। वरना तो कब का अलग होकर अपनी स्वतंत्र जिंदगी अपने बच्चों के साथ बिता सकती थी। अपने घर की मान-मर्यादा को समझते हुए उसने अनेकों अत्याचारों को सहते हुए भी उन लोगों के साथ रहना ही स्वीकार किया। उन लोगों को बदलना तो उसके वश की बात नहीं थी। ऐसा नहीं था कि वो मज़बूर थी। वह बहुत पढ़ी लिखी, समझदार, सभ्य, सुशील और बहुत सुंदर महिला थी।
अचानक एक दिन एक भूचाल रूपा की जिंदगी को लील गया जब उसे इस बात का पता चला कि उसके पति के कई महिलाओं के साथ संबंध हैं, पर इतना सहना भी कहाँ की आज़ादी है कि जब एक महिला पुरूष से सिर्फ बात करने पर गलत मान ली जाती है और एक पुरूष शादी के बाद भी चाहे कितनी ही महिलाओं के साथ संबंध बनाए तो वह अक्षम्य है। चरित्र का मापदंड़ महिलाओं के लिए अलग और पुरूषों के लिए अलग क्यों? रूपा के साथ भी ऐसा ही हुआ। पाँच बच्चों की माँ बनी रूपा का पति विशाल अब एक नहीं जाने कितनी महिलाओं के सम्पर्क में था। जब ये बात रूपा ने समाज के सामने रखी तो उसकी ही अवहेलना की गई उसे ही दोषी माना गया। जब भी वो किसी से ये बात बताती उसको कहा जाता- “आदमी है कहीं भी मुँह मारे चलता है बस औरत को ये सब नहीं करना चाहिए, तुम समझदार हो बात को समझो अपना घर मत बिगाड़ो और विशाल को माफ कर दो।”
रूपा रात-दिन बहुत सोचती पर उसके मन में विशाल के प्रति हर बार घृणा ही पैदा होती। अपने आपको लाख बार समझाया पर घृणा के आगे वह जीत नहीं पाई और विवश होकर उसने विशाल से तलाक ले लिया।
अब रूपा समाज से, परिवार से तिरस्कृत थी। परिवार से इसलिए कि लड़की होकर तुमने आगे बढ़कर तलाक क्यों दिया और समाज…. बस समाज की तो पूछिए ही मत, समाज तो बार-बार यही कहता रहा- ” कौन सा इतनी बड़ी बात है जिसके लिए तलाक लिया जाए,” खैर रूपा ने अब अकेले जीना सीख लिया था।अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर बड़ा और नेक इंसान बनाना हर माँ बाप का सपना होता है रूपा ने भी यही सपना देखा तो क्या गलत किया? रात-दिन मेहनत करती और अपने बच्चों के लिए ही अपने जीने का मकसद तय कर लिया।
धीरे-धीरे समय बीत रहा था। मिलने जुलने वाले लोगों से विशाल की खोज़ खबर मिलती रहती थी जो अपनी जिंदगी बहुत मजे के साथ जी रहा था। इतना ही नहीं अब वह शादीशुदा था और फिर से पिता भी बन चुका था। वह अलग रहकर जीवन-यापन तो कर रही थी किन्तु यह समाज और उसके बच्चों को पिता की खलती कमी ने उसको आखिरकार एक अहम निर्णय लेने पर मज़बूर कर ही दिया।
सरल, सौम्य, सभ्य और सुंदर रूपा के लिए यूँ तो कई ऑफर आए पर रूपा को जम नहीं रहा थे। वह अपने बच्चों को छोड़ना नहीं चाहती थी। फिर एक दिन ऐसा ऑफर आया कि रूपा भी प्रभावित हुए बिना ना रह पाई और उसने रूपक से विवाह के लिए हाँ कर दी और वो दोनों अपने उन तीनों बच्चों के साथ प्यार से रहने लगे। रूपा और रूपक अब रात-दिन एक करके अपने बच्चों के लिए सपने सजाने लगे। बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे। रूपा और रूपक ने रात-दिन मेहनत करके अपने बच्चों को विदेश पढ़ने के लिए भेज दिया। पढ़ाई ख़त्म होने के बाद बच्चों को वापस आने को कहा तो कोई भी बेटा वापस आने को तैयार नहीं हुआ। रूपा का रो-रोकर बुरा हाल था पिता रूपक कुछ कहते नहीं थे पर अन्दर-अन्दर घुटते रहते थे। रूपा बहुत बीमार पड़ गई लेकिन उससे मिलने तीनों बेटों में से कोई नहीं आया। यहाँ तक कि उनके फोन आने भी बन्द हो गए। रात-दिन रूपक उसको समझाता और उसका बहुत ख़्याल रखता। रूपक के प्यार और उसकी तपस्या से रूपा अब पूरे एक साल बाद बिस्तर से उठी। बाहर से तो वह स्वस्थ दिखती पर अन्दर की घुटन को वह किसी को भाँपने नहीं देती।
रूपक ने उसे उसके अपने छूटे हुए कामों की याद दिलाई और वापस अपने पैशन में लौट जाने को कहा। अब रूपा ने भी धीरे-धीरे अपने आपको पूरी तरह काम में झोंक दिया और समय भी पंख लगाकर उड़ चला पूरे पाँच साल हो गए ना ही किसी बच्चे का फोन आया और ना ही कोई उनसे मिलने आया। रूपा काम करती रही और एक दिन उसकी मेहनत रंग लाई उसको विदेश से बुलावा आया और उसके काम के कारण से एवॉर्ड से दिया गया। देश-विदेश के अखबारों में यह खबर खूब चर्चा में रही और फिर एक के बाद एक एवॉर्ड रूपा को मिलते रहे जिसका सिलसिला काफी समय तक जारी रहा।विदेश से उसके लिए बड़ी पोजीशन के लिए ऑफर भी आया उसने रूपक के कहने पर उसको स्वीकार कर लिया। कुछ साल बीत गए रूपा के सिर पर माँ सरस्वती के हाथ के साथ-साथ अब माँ लक्ष्मी की खूब कृपा थी। उसे रॉयलिटी भी मिल रही थी। अब दोनों ने अपनी उम्र के जरूरतमंद लोगों की मदद करना भी शुरू कर दिया और कई समाज सेवी संस्थाओं से भी जुड़ गए। अपनी ज़िदगी को अब वो अपने हिसाब से जीने लगे या यूँ कहो की अब अपने लिये, एक दूसरे के लिए और जरूरतमंद लोगों के लिए जीने लगे। परन्तु उनकी समस्या अभी ख़त्म नहीं हुई जो बच्चे माँ के सालों बीमार पड़ने पर भी वापिस उसको देखने नहीं आए, ना ही कभी फोन पर उसके हाल- चाल पूछे, वही बच्चे अब अपना हक जताकर वापस उनके पास आना चाहते थे।अब दोनों ही रूपा और रूपक असंजस की स्थिति में थे और एक-दूसरे को कुछ कहे बिना बस एक दूजे की सूनी आँखों में सूखे सपने से देखते रह गए थे।
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