खूब दौड़ने, पढ़ने और मीठा खाने वाली एक जापानी लड़की का अनोखा सपना

वेदप्रकाश सिंह, (ओसाका विश्वविद्यालय, जापान)

हिंदी पढ़ाते हुए कई बार विद्यार्थियों को सौ-दो सौ शब्दों में अपना सपना लिखने के लिए भी कहता हूँ। कई बार बड़ी मजेदार बातें वे लिखते हैं। प्राय: जापानी विद्यार्थी बहुत कम बोलते हैं। लेकिन लिखते हुए वे अपने मन की बातें प्रकट करने से नहीं चूकते हैं। हो सकता हो मेरी बात गलत हो। ऐसा सिर्फ मुझे ही लगता हो। लेकिन फिर भी जापान के विद्यार्थियों के बारे में इस बातचीत से आप भी कुछ ज़रूर जान पाएँगे।

इन दिनों जापान की जनसंख्या दिनों दिन कम होती जा रही है। बूढ़े लोगों की संख्या बहुत है। कम ही युवा लोग शादियाँ कर रहे हैं। सरकार इस मामले में चिंतित नजर आ रही है। यह बात पूरे देश के लिए विचारणीय है। ऐसे में जब कक्षा में अनके विद्यार्थियों ने अपने सपने के बारे में लिखते हुए शादी कर बच्चे पैदा कर खुशहाल जीवन जीने का सपना व्यक्त किया तो अच्छा लगा।

इन सपनों में एक सपना सबसे ज्यादा उल्लेखनीय है। जिस समय यह लिख रहा हूँ, उस समय मिज़ुकी कोजिमा जी दूसरी कक्षा की विद्यार्थी हैं। यानी वे दो साल से हिंदी पढ़ रही हैं। अपनी कक्षा के अन्य विद्यार्थियों की तुलना में उनकी हिंदी काफी सुधरी हुई है। लेखनी बहुत छोटी लेकिन बहुत सुन्दर है। दौड़ने की शौक़ीन मिज़ुकी जी हँसमुख हैं। उनके आकार को देखकर नहीं जान सकते कि एक महीने में ये कितना दौड़ती होंगी। जापान भर में दौड़ने की प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहती हैं।

अब उनके सपने के बारे में बात करते हैं। उनके कई सपने हैं। जो सपना मुझे सबसे रोचक लगा वह यह कि वे शादी करके पाँच बच्चों की माँ बनना चाहती हैं। उन सभी बच्चों के साथ दौड़ना चाहती हैं। अपने पति और बच्चों के साथ भारत जाना चाहती हैं। अपने बच्चों को हिंदी सिखाना चाहती हैं। और फिर बच्चों के साथ भारत में रहकर कुछ काम करना चाहती हैं।

एक साथ इतनी अच्छी बातें पढ़कर मन खुश हो गया। पहली ख़ुशी तो इस बात की कि जापान को परिवार व्यवस्था और बच्चों की बड़ी जरूरत है। ऐसे लोग कम हो रहे हैं जो शादी कर परिवार बसाएँ और बच्चे पैदा कर जापान की घटती जनसँख्या को बढ़ाएं। बहुत कम ही जापानी लोगों से व्यक्तिगत परिचय हुआ है। लेकिन उनमें से अनेक अकेले अविवाहित हैं। यहाँ एक या दो से अधिक बच्चे किसी के नहीं दिखते हैं। तीन या उससे अधिक बच्चों वाले परिवार के बारे कुछ लोग बताते ज़रूर हैं। इसलिए मिज़ुकी जी का सपना जापान के लिए भी शुभ है। भारत या तीसरी दुनिया के लोग यहाँ आबादी बढ़ने या पालन-पोषण में आने वाली समस्याओं की बात सोच सकते हैं। लेकिन जापान जैसे विकसित और अमीरी-गरीबी में कम फर्क वाले देश में यह बहुत आसान होगा। बच्चों के पालन-पोषण और हर नागरिक को मिलने वाली सुविधाओं के आधार पर यह बात कही जा सकती है। मेरा खुद का अनुभव भी बेहद सकारात्मक है। और फिर उन्होंने बच्चों को हिंदी सिखाने की बात कही यह मेरे जैसे हिंदी के अध्यापक के लिए सुखद है।

जापानी लडकियाँ देखने में जितनी सुंदर होती हैं, शरीर से ही उतनी ही मजबूत भी होती हैं। कोई न कोई खेल या मेहनत का काम वे रोज ज़रूर करती हैं। वे कोमल देखने में ही लगती हैं। लेकिन जब आप उनके दैनिक काम के बारे में जानेंगे तो हैरत में पड़ जाएँगे।

यही हाल मिज़ुकी जी का भी है। वे देखने में इतनी नाजुक सी हैं, लेकिन उन्होंने अपने एक महीने की दौड़ का जो लेखा-जोखा एक बार लिखकर दिया, उतना तो मैं अपनी अब तक की उम्र में भी नहीं दौड़ा हूँ। वे यूनिवर्सिटी के एक परिसर से दूसरे परिसर में चलने वाली बस से रोज बड़े मैदान में जाती हैं। वहाँ खूब दौड़ने का अभ्यास बिना नागा करती हैं। जब कोई बड़ी प्रतियोगिता होती है तो एक छोटी सी पर्ची में अपनी अर्जी लिखकर छुट्टी माँगती हैं। उस पर्ची में छोटे-छोटे सुन्दर अक्षरों में किसी स्थान पर होने वाली सैकड़ों मीटर या कई किलीमीटर की दौड़ में हिस्सा लेने की इच्छा लिखी होती है।

*****

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »