
राजरानी
– डॉ स्मिता सिंह
रोज़ सुबह ईश्वर को नमन करते समय यह ख़याल आता की वह क्यों भाग्य विहीन हैं। कोई भी उसे सहारा देनेवाला क्यों नहीं है। रानी नाम उसे उसकी प्यारी माँ ने दिया था बहुत प्यार से। रानी के पिता जी अमृतसार तेल कारख़ाने में काम करते थे और सब मिल कर राज़ी ख़ुशी रहते थे।
रानी दो छोटे भाई बहनों की बड़ी बहन थी। शाम का समय था और वैशाखी थी उस दिन। पिता जी की अच्छी तनख़्वाह से वो सब त्योहार धूम धाम से मनाया करते थे। आज सभी ने त्योहार का जी भर आनंद लिया,खूब खाया पिया, नए कपड़े पहने, मासी, काकी सब के घर हो आए। माँ ने छोटी मौसी को कपड़े भी दिये। मिठाई सभी के घर के लिये हाथ में थी और बहुत फ़क्र था की ईश्वर ने उसका जन्म उस घर में दिया जहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं थी।।
ख़ुशी से दिन बीता और थक कर रात में सारे लोग बस सोने ही वाले थे तभी बहुत ज़ोर से खाँसी की आवाज़ आयी, हसभी भाई बहन दौड़ पड़े पिता जी के पास और हमारी आँखें गति की डरी रह गयी जब देखा सामने बिस्तर के खून की उल्टियाँ।
माँ ने पिता को सहारा देने की कोशिश की और रानी अपने भाई बहन साथ माँ से पूछने लगी की वह क्या करें; किनको आवाज़ दे, डॉक्टर किधर बैठते हैं रानी घबराती हुई पूछी, ताकि पिता जी ठीक हो जाए। शरीर में कोई हरकत होता नहीं देख रानी की माँ राजदीप दहाड़ मार कर रोने लगीं। आवाज़ सुनकर गली मोहल्ले के लोग आ गया आधी रात को भी ……..
हिलाया डुलाया गली के बुजुर्ग चाचा जी ना पर साँसें होतीं तब हरकत होती ना और बस चंद एक मिनट के अंदर पिता जी रोता बिलखता छोड़ गए।
अभी क्रिया कर्म विधान हुआ भी ना था की माँ भी सदमे से आठवें दिन ही चल बसी। अनाथ हो गई रानी और १९ बरस की छोटी आयु में दो नन्हे भाई बहिन की माँ और बाप दोनों बना दिया विधाता ने। ३-४ साल तक कैसे भी बीमा आदि के पैसे से पालती रही भाई बहन को लेकिन अब खाने के लाले पड़ रहे थे और रिश्तेदार भी कन्नी काटने लगे थे।
कुछ दिन तक रिश्तेदार आते रहे,बाद में कोई नहीं। कुछ साल पिता की जमा पूंजी से कैसे भी रानी घर को चलाती रही। भूखे ख़ुद रह गई, खाली पेट सो गई कई बार लेकिन प्यारे भाई बहन को हमेशा ख़ुश रखने की कोशिश की। घर-घर जाकर बर्तन मांजने की नौबत आ गई थी इधर कुछ दिनों से और एक दिन वहीं जिनके यहाँ काम करती थी वहाँ अख़बार पर नज़र पड़ी और उसको एक राह दिखाई दी क्योंकि अख़बार में इश्तहार देखा कि विदेश में अच्छे पैसे मिलते है घर के झाड़ू पोंछा बर्तन करने के … यह तो चार घर में खटती है फिर भी पूरा नहीं पड़ता राशन।
आनन फ़ानन में बिना सोचे समझे फार्म भर कर एजेंट को दे दिया। भाई बहन को कौन रखेगा अभी इस बात को ना सोच उसने कैसे भी ख़ुद को सक्षम बनाने को सोचा।
एजेंट ने तीन महीने की वेतन लेने की बात की और उसका हस्ताक्षर लिया। रानी आ गयी काम करने अपने छोटे भाई बहन को एक रिश्ते की मासी के घर छोड़ कर।
कितनी हिम्मत आ गयी थी रानी में जो महज़ २३ साल की उम्र में सिर्फ १२वीं पास होने के बावजूद भी बहुत बड़े अधिकारी के यह हाउस हेल्पर लग गयी।
एक दिन की बात है जब उसके मालिक ने छोटी सी गलती पर उसे बहुत भला बुरा कहा। माफ़ी माँगने पर भी उसकी कलाई मरोड़ दी।
तभी अचानक ना जाने कहाँ से हिम्मत आ गयी और वह ज़ोर से चिल्लाई और बोला की शिकायत दर्ज कर दूँगी यदि फिर मुझे शारीरिक चोट पहुँचाई।
मालिक का चेहरा देखने लायक था। रानी अब सिर्फ अपने माँ बाप की लड़की ही नहीं रही थी बल्कि छोटे भाई बहन के लिए माँ माफिक सी थी।
३ महीने का वेतन देने के बाद एजेंट को रानी को अपने नए पंख मिल गये और वह आर्थिक रूप से मजबूत होती गयी। साथ में उसने शाम की क्लास लेकर कम्प्यूटर सीखी। ७ साल में कई घर बदले काम के सिलसिले में और पैसों को जोड़ रखा।
दो साल में एक बार भारत जाया करती थी और भाई बहनों का खर्च दे आती थी। बहुत कमजोर थी ७ साल पहले पर अब मजबूत है; दिल से दिमाग़ से काम करके मैंने उसने फ़र्ज़ निभाया और ज़िंदगी को सार्थक बनाया। किसी अपनी मौसी, चाची ने साथ तो नहीं दिया मगर दूर की मुँहबोली मौसी ने भाई बहनों को बहुत प्यार से रखा और रानी भी उसी मौसी को माँ मान कर इज़्ज़त देने लगी। ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ गई।
यदि स्त्री ठान ले कुछ करने का तब ईश्वर भी कृपा बरसा देते हैं। कोई सहारा नहीं रहा लेकिन अचानक एक मुँहबोली मौसी ने अचानक ना जाने कैसे आकर संबल दिया। कहते हैं ना कि औरत लाचारी का नाम नहीं है बल्कि दृढ़ता का भी दूसरा नाम स्त्री है।
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