
इंद्रधनुष
– डॉ स्मिता सिंह
सोना और कीर्ति लक्ष्मी जी की दोनों बेटियाँ उनके जन्मदिन को एक भव्य तरीके से मनाने लिए उत्सुक थीं, बिना उन्हें कुछ बताए। इन दोनों की अधीरता से घर में का करने वाली दीदी को कुछ आभास हुआ था पर बच्चों की ख़ुशी देख वह चुप रहीं। इनकी चपलता देख काम वाली बाई भी खुश दिख रही थी और दिन की शुरुआत से ही बहुत खुश थे सभी। “मम्मी, हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं”, सोना ने लक्ष्मी जी को कार्य स्थल पर फ़ोन कर घर जल्दी बुलाया। क्यों ? कुछ ज़रूरी काम है; यह उन्होंने अधीरता से पूछा लेकिन बस वह जिद्दी थी और आज भी अड़ गई की वह जल्दी पहुंचें।
घर पर पहुँचते ही लक्ष्मी जी को देख वे सभी मुसकुरा रहे थे। क्यों मुसकुरा रहे थे; इस बात से अनजान थीं। जिस में बच्चों की ख़ुशी उसी में माँ की ख़ुशी भी निहित।
शायद यह क्रूर नियति थी जिसने दो दिनों के बाद सिर्फ लक्ष्मी जी की ही हँसी नहीं छीन ली बल्कि भोली बच्चियों की मुस्कुराहट भी ग़ायब हो गई जब वह चौंकाने वाली घटना हुई।
14 अगस्त को, इसी क्रूर दिन ने लक्ष्मी जी के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। दो दिन पहले जन्मदिन था उनका ,जिस दिन बच्चियों ने मनुहार कर उनको ऑफिस से जल्दी आने को कहा था। सोना, उनको बड़ी बेटी ने छोटी बेटी कीर्ति की मदद से बहुत सारे अद्भुत आयोजन की योजना बनाई थी और इतना लक्ष्मी जी भी कह सकती थी जीवन पर्यंत कि यह जन्मदिन वास्तव में अद्भुत था।
ऐसा अपूर्व और सुंदर आयोजन आज से पहले कभी नहीं था क्योंकि अभी तो बेटियाँ थोड़ी समझदार हुईं थीं और पहली बार सरप्राइज प्लान की थी।
दिन की शुरुआत से मुझे विभिन्न रूपों में खुशी और हँसी के साथ उपहार की बौछार की जा रही थी और दिन के अंत में पति देव के सहयोग से कैंडल लाइट डिनर, केक काटने और नृत्य के बाद मुझे लगा कि लक्ष्मीजी सातवें आसमान में थी। पूरी तरह से संतुष्ट, सब परिवार के साथ बेहद खुश।
14 अगस्त 2013 को सूर्यास्त से ठीक पहले, लक्ष्मी जी की हाउस हेल्पर अज़ीरा उनकी सोना बेटी को फर्श से उठाने के लिए मदद मांगने के लिए फ़ोन की और आवाज़ में घबराहट साफ़ थी और यह सुनते ही लक्ष्मी जी और उनके पति पास खड़ी टैक्सी में बैठे और घर की दहलीज़ पर कदम रख दौड़ते पहुंचे, जो बेहोश पाई गई थी। दोनों पति पत्नी को लगा की शायद जन्मदिन की थकान होगी।
फिर सामान्य चल रहा था सब कुछ तभी एक दिन फिर जब सभी काम के बाद वापस आ गए थे घर और तभी अचानक फिर बच्ची के कमरे से दर्दनाक तीखी आवाज़ सुनाई दी। सभी जल्दबाजी में भागे और उन सभी ने जो देखा तब सोना अनियंत्रित थी और शरीर में लगातार कंपन था और तभी साथ बेहोश हो गई।
बुरी नज़र किसने डाली, यह लक्ष्मी जी के मन की पहली प्रतिक्रिया थी। किसी भी तरह, उन्होंने अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश की लेकिन वह एक माँ हूँ और इस स्थिति में अपने बच्चे को देखना असहनीय है। क्या हुआ, वह ज़ोर से चीखी और रोने लगी।
किसी तरह, उन्होंने और उनके पति ने आँसू नियंत्रित किए और एम्बुलेंस बुलाया और सभी एक भी पल बर्बाद किए बिना अस्पताल पहुँचे। जीवन की कठोर परीक्षा और परीक्षण का समय उसके बाद शुरू हुआ। डॉक्टरों ने पुष्टि की कि यह उसके शरीर में हार्मोनल परिवर्तन था और वह ठीक हो जाएगी क्योंकि उसके परीक्षण सामान्य पाए गए थे। सभी औपचारिकताओं के बाद राहत में थे। सब कुछ पहले की तरह सामान्य था। अचानक एक सप्ताह के बाद एक बार फिर हमारे घर पर फिर वही दृश्य था। हे भगवान!
परमेश्वर हमारी परीक्षा क्यों ले रहा है? धन्य परिवार में से एक था लक्ष्मी जिनका छोटा सा परिवार जिनके पास जीवन में सब कुछ था। डॉक्टरों का फैसला विफल रहा कि उसे सिर्फ सामान्य थकान हो रही थी और अधिक परिश्रम के कारण उसे पिछले हफ्ते का तनाव भी। यह 22 अगस्त को एकबारगी फिर से उसके शरीर में ऐंठन और झटका बार-बार आया और फिर लक्ष्मी जी लोग बहुत गंभीर हो गए और विशेषज्ञ डॉक्टरों से संपर्क किया जिन्होंने एक्स-रे, एमआरआई और ईईजी, रक्त परीक्षणों के माध्यम से उसकी जाँच की।
1३ साल की इस छोटी सी उम्र में उन्हें इस तरह की कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। डॉक्टर ने निर्देशों के साथ दवाएँ निर्धारित कीं कि वे उसके पूरी तरह से ठीक होने की गारंटी नहीं देते। यह मेरे लिए असहनीय था इस कम उम्र में कई अकादमिक उपलब्धियों के बावजूद उनकी बेटी विनम्र और बहुत सहज थी मगर विचलित अपनी बीमार हालत से इसलिए लक्ष्मी जी और उनके पति मानिक जी ने उसके चेहरे पर मुस्कान लाने का फैसला किया उसका इलाज ठीक से कराने का फैसला किया।
एक साथ एक बार फिर मुस्कराएंगे ऐसा उन्हें दृढ़ विश्वास था। जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण ने रखना होगा इस कठिन घड़ी में और उस का पालन करने के लिए निर्देशित किया ख़ुद को जो एक सही कदम रहा। डॉक्टर के पास जाना बंद करके लक्ष्मी जी ने खुद को संतुलित कर नौकरी से इस्तीफ़ा दिया। नारी त्याग, दृढ़ता, तप और धैर्य का दूसरा नाम है। आज 7 साल हो गए इनकी बेटी को ठीक हुए। उनका अथक परिश्रम रंग लाया, घर का वातावरण, खान पान सुधार, योग ध्यान, नियमित दिनचर्या से आज सब ठीक है।
लोगों का सहारा नहीं मिला पर उन्होंने खुद की आत्मशक्ति और खुद के विश्वास से सब ठीक कर लिया।
सच कहते हैं सशक्त वही है जो धैर्य से परीक्षा दे जीवन की और बनायें इंद्रधनुष सा सात रंग वाला संसार’ धैर्यवान वही है जो दुख में भी मुस्कराता रहे। दुख में घबराना कायरता है, दुख में संतोष की सांस लेना, धैर्यवान का ही काम है।”
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