
संस्कारों के अंतर
– अजेय जुगरान
अनाहिता एक संवेदनशील, बुद्धिमान,पढ़ी-लिखी और देश – विदेश अच्छी तरह से घूम चुकी तैराक थी। वह अच्छे परिवार में पैदा हुई मुंबई की एक महानगरीय लड़की थी। उसके स्वभाव में धीरज और करुणा का आधिक्य था। वह पालतू पशु – पक्षियों की बात समझ लेती और कहीं भी – किसी भी आहत जीव या पौधे की पीड़ा सुन विचलित हो जाती थी। संजेश विरोधाभासों में लिपटा एक भारी भरकम पहलवान था। उसे व्यायाम से प्यार था लेकिन तला – मीठा खाने-पीने का अतिशय शौक था। उसके बात – बात में भड़क हिंसात्मक होने के चलते वह लोगों को खिलाने – पिलाने के बाद भी निष्ठावान मित्रों के लिए तरसता था। वह दिखने और अपरिचितों से व्यवहार में पक्का माँ का दुलारा लेकिन वास्तव में पंजाब की छावनियों में पला बढ़ा एक सैन्य अधिकारी का बिगड़ा बेटा था। कुछ वर्षों से अना और संजू अपने – अपने खेलों में अपने राज्यों का राष्ट्रीय और भारत का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
भरे यौवन में विभिन्न खेल आयोजनों के दौरान मिल दोनों को परस्पर आकर्षण का अनुभव हुआ जो हर बार उनके कुछ समय लिए अलग हो जाने से और बढ़ा। हर अगली भेंट में संजू अना को पूरी तरह जीतने के लिए विभिन्न विनीत – गंभीर ढंग अपनाता जिसमें वो अना की उससे विवाह करने से मना करने की स्थिति में स्वयं को मिटा देने की बात भी करता। फिर जब अना ने संजू को पारिवारिक संस्कारों के अंतरों के बारे में कुछ और सोचने को कहा तो एक दिन संजू अचानक चंडीगढ़ से मुंबई आ धमका और उसने अच्छे व्यवहार की एक अत्यंत सुंदर पारी खेल अना को लुभा लिया। उन्होंने विवाह करने में देरी नहीं की हालाँकि अना के पिता अशोक ने अन्यथा चाहा। उनका मानना था कि उसकी राजकुमारी अना अपनी बड़ी बहन के हाल ही के एक बुरे अनुभव पर प्रतिक्रिया कर रही थी और इसलिए वे चाहते थे कि वह विवाह का निर्णय लेने में कम से कम एक वर्ष तो प्रतीक्षा करे।
अशोक एक मृदुभाषी कलाकार और शालीन घुड़सवार थे। अपनी युवावस्था में उन्होंने महालक्ष्मी रेसकोर्स में बाबर और जॉर्ज जैसे घोड़ों पर कुछ दौड़ें जीती थीं। अना को वे अपनी साँस और धड़कन से अधिक प्रेम करते थे। वे कभी सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी प्रिय अना को एक अखाड़े की उपज से प्यार हो जाएगा। उधर अना के अनुसार सजीला – बलिष्ठ संजू कठिनाइयाँ उठाने को तैयार था, अपनी प्रेयसी के लिए किसी से भी लड़ भिड़ सकता था, और किसी भी दलदल से निकलने और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने व्यक्तित्व के खुरदुरेपन का उपयोग कर सकता था। कुल मिलाकर अना को लगा कि संजू वह सब कुछ था जो उसके पिता नहीं थे। वो कहते हैं न कि प्रेम अंधा होता है सो इस तुलना में अना भूल गई कि घनघोर वर्षा हो चाहे झंझावात उसके पिता अपनी लंबे समय से बीमार पत्नी, सुषमा, और उनके तीन बच्चों के प्रति सेवा समर्पण में सदा अटूट – अडोल रहे। वे अपने परिवार के लिए एक सौम्य संग्राहक – प्रदाता – चालक – रसोइया – नर्स और चौकीदार बने रहे। उन्होंने जीवन में सौहार्द बनाए रखने के लिए अपने कपटी व्यावसायिक साथी की कुटिलता भी क्षमा कर दी। उन्होंने उन सभी के लिए अविरल कोमल संघर्ष किया जिन्हें वे प्यार करते थे। जीवन में उन्होंने केवल एक ही चीज़ को चोट पहुँचाई, वो थीं पतली धातु की चादरें, जिनपर वे बहुत ही सुंदर और जटिल धार्मिक प्रतीक और अन्य चित्र बड़ी सुंदर मीनाकारी कर उकेरते थे।
विवाह के कुछ माह बाद, एक सुबह जब अना संजू को चाय देने पहुंची तो संजू को प्याली पकड़ाते हुए चाय की कुछ बूँदें पलंग पर गिर पड़ीं। इसपर संजू ने अना का हाथ इतनी क्रूरता से मरोड़ा कि उसे कई सप्ताह तक दर्द होता रहा। जाने क्यूँ अपने कौन से दोष का दंड समझ उसने संजू का ये दुर्व्यवहार सहा। उसे पता ही नहीं था कि संजू की मौखिक, मानसिक और शारीरिक आक्रामकता बढ़ उसकी सहनशीलता की सीमा को हर दिन चुनौती देगी। संजू के बड़े शरीर की मोटी परतें चुटकी में जल भड़कतीं यदि उसकी किसी अनर्गल बात पर अना ध्यान न देती या कोई और उसे ठीक करने के लिए अना के सामने कुछ कहता। इस तरह की प्रत्येक घटना के बाद, अना को लगा कि उसके पिता तो उस जंगली के पूर्ण विपरीत थे जिससे उसने विवाह किया। लेकिन पिता के विनम्र परामर्श विरुद्ध संजू से अतिशीघ्र विवाह करने के अपराधबोध ने उसे उन्हें फोन कर उनके मार्गदर्शन या उनसे सुरक्षा की गुहार नहीं करने दी। इस बीच उसने चार्ल्स बुकोव्स्की की कविता ‘ए स्माइल टू रिमेंबर’ पढ़ी, तो उसे लगा वह उसमें वर्णित सुनहरी मछली है। फिर अपनी जन्मगत करुणा में उसने सोचा कि एक पीड़ित व्यक्ति ही ने तो अपनी पत्नी और अपने बेटे को पीड़ा दी और उसे एक विचित्र तरह से उस हिंसक दोषी पर भी दया आई।
बात की बात में अना के संजू से विवाह पर अपनी निराशा को दबा, उसके पिता ने उसे आए दिन फोन किए और संदेश भेजे, लेकिन अना ने बातचीत को सरल रखा और बीच – बीच में अपने पति और उसके परिवार संग अपने वैवाहिक जीवन की काल्पनिक सुखद बातें भी बताईं। इसपर भी अपनी बेटी के शब्दों के उतार – चढ़ाव से आश्वस्त नहीं होने पर, उसके पिता ने उससे चंडीगढ़ आ मिलने का प्रस्ताव दिया और जब उसने उस प्रस्ताव को दो – तीन बार टाल दिया, तो उन्होंने उसे अपने पति के साथ मुंबई आने के लिए हवाई टिकट के पैसे भी भेजे।
संजू के साथ भावनाओं के सूखते, अना ने पालतू पशुओं, पक्षियों, कीड़ों और तितलियों में प्यार की खोज की। उसने अपने घर के एक छज्जे और आधी छत को अपनी रुचि अनुसार एक पशु – पक्षी नर्सरी में बदल दिया। फिर उसे पता चला की वो पेट से थी तो इस आशा से कि बच्चा पैदा करने से उसका जीवन सुधर जाएगा, उसने सब कष्ट सह अपने विवाह की दूसरी वर्षगाँठ से ठीक पहले जुड़वा बेटी – बेटे को जन्म दिया। लेकिन संतान का आशीर्वाद भी संजू को कोमल – दयालु नहीं बना पाया। वो अब अपने बच्चों की आवश्यकताओं को छोड़ अना से उसकी मनमानी पर अधिक ध्यान देने की मांग करने लगा। उसने अपने पौष्टिक आहार व्यवसाय में भी अना को बिन वेतन मैनेजर का काम सौंपा और स्वयं अपनी महिला मित्रों के साथ इधर – उधर रहने लगा।
कुछ और वर्ष कट बीते, संजू के समग्र दुर्व्यवहार के एक अत्यंत बुरे सप्ताह के बाद, अना ने अंततः अपने बचपन की सहेली शर्मिला को वह डायरी पढ़ने दी, जो उसने स्वयं को हल्का कर जीवित रहने के लिए लिखी थी। उसके शरीर पर और घर के अंदर दिखते कुछ साक्ष्य चिन्ह डायरी में लिखी बातों की पुष्टि करते थे। उस गर्मी के दिन भी अना गले तक बंद बटन और लंबी बाँह वाली कुर्ती के ऊपर एक शॉल मौसम की परवाह किए बिन अपने सिर से कंधों तक लपेटे हुई थी। स्त्री का दुख स्त्री ही समझ सकती है; शर्मिला की आंखों में आंसू आ गए और उसने अना को गले लगा रोते – रोते उसे अपनी सास से बात करने को कहा।
भाग्यवश, गूगल पर यह खोज कि कोरोना संक्रमण के दीर्घकालिक दुष्प्रभाव हो सकते हैं और यह अनुभव करने के बाद कि उनमें से अधिकांश उन्हें थे, अना के सास – ससुर पटियाला से चंडीगढ़ मेडिकल जांच के लिए आए तो अना ने शर्मिला की बात का पालन किया। घबराई सास संजू के साथ बात करने के लिए मान गई और साथ ही उन्होंने अना को उसके ससुर के हाथों अपने और संजेश के अतीत के कष्टों का संक्षिप्त परिचय दिया। फिर उन्होंने साहस कर संध्या भ्रमण में सार्वजनिक उद्यान के दूसरे चक्र में संजू से बात की और उसे अपनी सौगंध खिला अना को मारना – पीटना बंद करने को कहा।
संजू संध्या भ्रमण से बहुत भड़का हुआ लौटा और उसने अना को साफ – सूखा तौलिया ढूंढ लाने के बहाने स्नानघर के द्वार पर बुलाया। जैसे ही अना ने उसे तौलिया पकड़ाने के लिए हाथ बढ़ाया वो निरीह उस हाथ और फिर बालों से अंदर खींच ली गई और उस भीमकाय पहलवान के हाथों नियमहीन कुश्ती के दांव – दांव पिटी। इस क्रूरता में वो स्वयं फिसला और अपने दाहिने हाथ पर नल से चोट लगा सुअर की तरह घुरघुर कराहने लगा। अवसर मिलते ही अना सिसकती हुई अपने सुंदर बालों के गुच्छे हाथ में पकड़े यातना कक्ष से बच निकली तो बाहर खड़े सहमे बच्चे उसे देख – पकड़ रोने – बिलखने लगे। अना ने उन्हें चुप कराने का प्रयास किया लेकिन हल्ला सुन वहाँ पहुँचे दादा-दादी को उन्होंने अपने अबोध शब्दों से सारी बात बता ही दी। इस सबके बीच भी अना ने हाथ से संकेत कर सास – ससुर का ध्यान चोटिल संजू की ओर करने का प्रयत्न किया लेकिन तब तक वो स्नानघर को भीतर से बंद कर उसके सामान पर अपना क्रोध निकालने लगा था। इधर बहू को ऐसा लहुलुहान देख सास उसे गले लगा फूट-फूट कर रोने लगी और उसने अपने पति से भगवान के नाम पर कुछ करने की विनती की।
वो सेवानिवृत्त कर्नल अपने पोते-पोती के सामने बड़े लज्जित हुए। अपने किए पापों के बारे में ग्लानि से ग्रसित और आधुनिक दिखने की इच्छा रखते हुए, उन्होंने संजू को बुलाया और डाँटकर सुझाव दिया कि वो अना के साथ उनकी मनोवैज्ञानिक भतीजी के साथ संयुक्त परामर्श के लिए जाए। उन्होंने इस भतीजी की ऑस्ट्रेलिया में किसी निम्न श्रेणी के विश्वविद्यालय में शिक्षा को वित्तपोषित किया था।
पहले परामर्श से पहले ही संजू ने अपने माता-पिता को पटियाला वापस भेज दिया। जैसे ही वे गए, उसने अपनी चचेरी बहन को लुट्टू डॉक्टर बुला उससे मिलने से मना कर दिया। हार कर अना को उससे अकेले ही मिलना पड़ा। उस महिला की नामपट्टी पर कई उपाधियाँ, और उसके स्वागत और परामर्श कक्ष की दीवारों पर कई प्रसिद्ध लोगों के साथ कुछ चित्र लगे थे। उसने अना को अगले चार सप्ताह आमने – सामने वाले महंगे और फिर कुछ हद तक छूट वाले ऑनलाइन सत्रों में बातचीत कर सलाह दी। प्रारंभ से ही, पीड़िता के प्रति सहानुभूति के बजाए, उसने संजू के असभ्य और हिंसक व्यवहार को समझने – समझाने के लिए उन दोनों के लालन – पालन और फलस्वरूप उनके पारिवारिक संस्कारों के अंतर पर ध्यान केंद्रित किया।उसने कहा –
“अना, चंडीगढ़ और मुंबई की संस्कृतियों के अंतर को समझो और स्थिति को और बिगड़ने का मौका न दो। यहाँ बात – बात में माँ – बहन की गालियां प्यार की तरह हैं। काश, तुम एक दमदार पंजाबी लड़की होतीं। पति – पत्नी के बीच थोड़ा धक्का – मुक्का तो यहाँ परिवारों में चलता है।” उसके ऐसे परामर्श ने संजू के दुराचार से निपटने का सारा बोझ उस पर डाल दिया। साथ ही उसने अपने मनोचिकित्सक पति से विचार – विमर्श कर अना के लिए किसी मनोरोग और अनिद्रा के लिए दवा लिखवाई। इन सत्रों के दौरान और तुरंत बाद, वह अपने उपन्यास के एक पात्र के लिए अना का सारा विवरण सावधानी से लिखती। लेकिन इससे पहले कि वह अपना उपन्यास पूरा कर पाती, जब संजू ने अपने पहले से रिकॉर्ड किए गए एक टीवी कार्यक्रम को देखने के बीच कुछ माँगने पर बच्चों को बुरी तरह पीट डाला, तो विवश हो निःसहाय अना ने अपने पिता से बात की और उनके कहने पर पुलिस को फ़ोन किया। इसके बाद चले तलाक और घरेलू हिंसा के मामलों में, संजू ने अपनी चचेरी बहन का एक विशेषज्ञ साक्षी के रूप में यह तर्क देने के लिए उपयोग किया कि अना के शरीर पर चोटों के साक्ष्य – चिन्ह किसी मनोरोग के कारण उसकी स्वयं की लगाई चोटों के निशान हैं। सौभाग्य से, न्यायाधीश ने अपने निजी कक्ष में दोनों बच्चों से बात कर सच का पता लगा लिया।
अपनी बेटी को शीघ्र अति शीघ्र नर्क से उबारने के लिए अशोक द्वारा प्रस्तावित एक अच्छे समझौते के आधार पर, संजू आपसी तलाक के लिए सहमत हो गया। अशोक अना और बच्चों को अपने साथ मुंबई ले गए। उनकी देखभाल में, अना ने जल – जंगल – जीव से जुड़े मुद्दों के प्रति अपने काम को बढ़ाया और समाज और अपने बच्चों के लिए अपने जीवन का पुनर्निर्माण किया। उसने एक बार फिर पतली धातु की चादरों पर चित्र उकेरने के लिए अपने पिता से प्रशिक्षण ले अपने बचपन के सपने को साकार करना शुरू किया। अना के यूँ अपने जीवन को सार्थक बनाने के बीच, उसे एक और वैधानिक लड़ाई लड़ संजू को अपना और बच्चों का पीछा करने से रोकना पड़ा। उधर संजू ने एक पहलवान-व्यवसायी से छोटे – मोटे हफ़्ता वसूली गुंडा बनने में कोई अधिक समय नहीं लगाया। कुछ ही माह बाद उसे अपने विज्ञापन द्वारा एक ऐसी पत्नी भी मिल गई जो अपने पहले पति की अकस्मात् अप्राकृतिक मृत्यु में एक संदिग्ध होते हुए भी उसकी करोड़ों की संपत्ति की एकछत्र स्वामिनी बन गई।संजू के अना को दिए दुःखों के दैवीय प्रतिशोध में इस नई पत्नी में संजू के अंदर पीड़ा बीजों को प्रस्फुटित कर उसे धूल में मिला देने की अपार शक्ति थी।
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