
दसरथ चला वापस गाँव
– श्रध्दा दास, फीजी
पात्र – दसरथ – गणेश का पिता
गणेश – दसरथ का बेटा
भागीरथ – दसरथ का छोटा भाई
रामचरण – दसरथ का दोस्त
रमैया – दसरथ का दोस्त
(यह नाटक वर्ष 2020 से 2021 ऐसे दो वर्षों के बीच हुई घटनाओं के आधार पर लिखी एक कल्पित रचना है। दसरथ सेंगांगा गाँव का एक किसान है। उसका बेटा गणेश जब छोटा था, तब उसकी माँ गुजर गई। दसरथ ने खुद उसे पाला। जब गणेश कक्षा आठ की पढ़ाई पूरी कर चुका तब गणेश की आगे की पढ़ाई अच्छी जगह हो ये सोचकर दसरथ उसे सुवा लेकर आया। सुवा में गाजी रोड पर दो कमरे वाला एक फ्लेट खरीदा। गणेश को एम् जी एम् कॉलेज में दाखिला दिलाया। दसरथ खुद नोविटेल हॉटल, लामी में गार्डनींग तथा पेंटिग करने का काम करने लगा। उधर सेंगांगा में दसरथ के पास दस एकड़ जमीन है, जिसे अभी उसका भाई भागीरथ देखभाल कर रहा है।)
दृश्य – एक
(रंगमंच पर एक कमरे में एक सोफा तथा दो कुर्सियाँ रखी हुई हैं। दसरथ सोफा में बैठकर एक साप्ताहिक हिन्दी पेपर पढ़ रहा है। रविवार का दिन है तथा सुबह के दस बजे हैं। कमरे में रेडियो धीमी आवाज में बज रहा है। उसी कमरे में खिड़की के पास एक टेबल कुर्सी पर गणेश बैठकर पढ़ रहा है। 2020 का वर्ष है तथा अभी गणेश फॉर्म 6 का विद्यार्थी है। गणेश मानक हिन्दी बोलता है। )
दसरथ – गणेश बेटा तुमार फाईनल एग्जाम कब होई?
गणेश – नवम्बर महीने में पिताजी।
दसरथ – आजकल हम्में अपने गाँव की बड़ी याद आवे है। जब तुमार एग्जाम हो जाई तब हम गाँव चले कोई।
गणेश – जी पिताजी।
(उसी समय दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है। दसरथ दरवाजे पर अपने पड़ोसी दोस्त रामचरण को देखता है।)
दसरथ – राम राम! भैया रामचरण।
रामचरण – राम राम! दसरथ भाई। तुम कुछ खबर सुना?
दसरथ – कैसन खबर?
रामचरण – खबर ई है कि चीन देस में कोरोना नामक एक जानलेवा बीमारी सुरु होया है।
दसरथ – अच्छा!!! नहीं ई बात हम नहीं सुना। तुम्में कैसे पता चला?
रामचरण – अमेरिका से हमार भाई फोन करिस रहा। वो बताईस कि यात्रियों के साथ, ई बीमारी सब देश में फैले है। एक आदमी को दूसरे आदमी से दूर रहना है, ई बात बताईस।
दसरथ – (चिंता में) तब तो फीजी भर में भी अब सब के होसियार होय के पड़ी।
रामचरण – हाँ सच्चे बोला तुम। (कुछ देर में रामचरण चला जाता है।)
*(निम्न सूचना नेपथ्य से पढ़ी जाय। रंगमंच पर प्रकाश धीमा किया जाय)*
(कुछ महीने के बाद फीजी में यह खबर है कि कोविड 19 बीमारी जो एक कोरोना वायरस है, फैलने की खबर आई। सरकार की तरफ से चेतावनी दी गई कि मुँह पर मास्क लगा कर ही घर के बाहर जाए या तो घर में ही सुरक्षित रहे। लॉक-डाऊन में धीरे–धीरे सब काम बंद होने लगे, पाठशालाएँ बंद हो गईं। सब होटल बंद हो जाने से पूरा टूरिजम (पर्यटन) व्यापार ठप्प हो गया।)
*(दसरथ तथा गणेश रंगमंच पर ही बैठे हैं। प्रकाश तेज हो)*
दसरथ – (खबर सुनकर) ई कोरोना बीमारी आये से हमार नोकरी छूट गई। तुमार चाचा भागीरथ, गाँव से कुछ पैसा भेजे है और कुछ सरकार भी देवे है तो उसी से गुजारा चले है।
गणेश – पिताजी मैंने सुना है कि बड़ा-बड़ा देश में वैक्सिन बनाने का काम हो रहा है। वैक्सिन लगाने से ये बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकेगा।
दसरथ – गणेश बेटा वो सब के तो टाईम लगी। पर अब हम्में ई बात समझ में आये है कि शहर में नोकरी है, तो पैसा है और नोकरी नहीं तो भूखे मरो। गाँव की जमीन में गन्ने के साथ-साथ तरकारी, भाजी, कसेरा डालो आदि बोय लो तो कुछ तो खाय के प्रबंध होय जाय है।
गणेश – सच है पिताजी। हमारी टीचर ने बताया था कि अगर इस देश में हमको आत्मनिर्भर बनना है तो, पर्यटन व्यापार के साथ-साथ खेती करने पर भी बराबरी का जोर देना चाहिए।
दसरथ – सच्चे तो बताया तुम्हार टीचरजी ने।
गणेश – चीनी के व्यापार को मजबूती से बढ़ाना बहुत जरूरी है। यहाँ के लोकल फ्रूट तथा तरकारियों को परदेस में अधिक मात्रा में भेजने का व्यापार भी मजबूत होना जरूरी है।
दृश्य – 2
(वर्ष 2021 का नवम्बर महीने का एक दिन दसरथ अपने बैठकी में बैठ कर कुछ सोच रहा है। लोकडाऊन खतम हुआ है। मास्क अब एकदम जरुरी नहीं है, पर कोई लगाना चाहे तो लगा सकता है। रामचरण का प्रवेश होता है। सब एक दूसरे से दूर खड़े होकर बातें करते हैं।)
रामचरण – (मुँह पर मास्क लगाकर आया है।) दसरथ भाई कैसे हो? वैक्सिन लगवाय लिया कि नहीं?
दसरथ – ठीक हूँ। हाँ हम दोनो ने लगवाय लिया। गणेश के फॉर्म 7 का रिजल्ट निकले के वेट करता है।
रामचरण – हम ई बात सुना कि उसके बाद तुम मंगता वापस गाँव जाय?
दसरथ – हाँ! गाँव जाय के बहुत दिन होय गए। बड़ी याद आवे हैं। (आश्चर्य करते हुए)) पर ई बात बताओ, ई तुम्मे कौन बताईस?
रामचरण – सब जगह हल्ला है कि तुमार नोकरी छूट गए तब तुम गाँव जाता।
दसरथ – हाँ, शहर की नोकरी बहुत कर ली, अब थोड़ा धरती माता की भी सेवा कर लेई।
रामचरण – अच्छा ! हम मंगता बोले कि जब तुम गाँव जायेगा तब ई घर हम्में देके जाना। हम अच्छा से देखगा।
(दसरथ कुछ बोलने के पहले ही उसका दूसरा मित्र रमैया वहाँ आता है।)
रमैया – (मास्क लगा है।) नमस्कारम् ! दसरथ भैया।
जसरथ – नमस्कारम् अन्ना! कैसे हो?
रमैया – ठीक है। हम सुना है कि तुम गाँव जाता?
दसरथ – हाँ अन्ना सोचता तो है! (खुश होकर) गाँव में हमार दूर तक फैला हरा भरा खेत, बैलों की जोड़ी, पेड़ की छैंय्या, बगल में बैठा कुत्ता टोनी सब बड़ा याद आए हैं। खुले आसमान में चिड़िया और हवाई जहाज का उड़ना कितना सुंदर लगे है। साफ सुथरी बहती हवा। घर के पिछवाड़े में बकड़ी, गाय और बैलों की जोड़ी खड़ा रहे। बतख, मुर्गी पूरा आंगन घूमा करे हैं। सुबह की मुर्गे की बांग के साथ उठना अच्छा लगे है।
रमैया – हमने तो कभी गाँव नहीं देखा, एक दिन जाके देखेगा। (कुछ सोचकर) अच्छा हम मंगता जाने कि तुम जब गाँव जाएगा तो ई घर के कौंची करेगा?
दसरथ – अभी कुछ सोचा नहीं।
रमैया – ई घर तुम हम्में देके जाना। हमार लड़का के सरकारी नोकरी है। परिवार बड़ा है, घर छोटा पड़े हैं।
दसरथ – (कुछ बुझी आवाज में) जब जाएगा तब सोचेगा। अभी हम नहीं जनता कौंची करेगा। (दोनो दोस्त चले जाते हैं।)
दृश्य – 3
(दो महीने के बाद, एक दिन गणेश बाहर से हाथ में कुछ चिठ्ठी लेकर आता है।)
गणेश – पिताजी आपके नाम लैंड्स डिपार्टमेंट से एक चिठ्ठी आई है।
दसरथ – वो तो अंग्रेजी में होई। तुम पढ़ो देखी।
गणेश – (चिठ्ठी पढ़ता है।) इसमें लिखा है कि सेंगांगा गाँव में आपकी जो जमीन है, उसे आपको आपके भाई भागीरथ के नाम पर करने के विषय में लिखा है।
दसरथ – (आश्चर्य से) हमार भाई भागीरथ ! याने तुम्हारा चाचा?
गणेश- जी हाँ पिताजी। चाचा ने लैंड्स डिपार्टमेंट में एक अर्जी लिखी थी कि बड़े भाई दसरथ की सारी जमीन का सारा काम काज वो खुद देखता है। बड़े भाई सुवा में रहता है इसलिए ये जमीन भागीरथ के नाम पर की जानी चाहिए।
दसरथ – (दुखी हो जाता है।) हम कभी सोचा नहीं था कि भागीरथ हमार आँख में धूल झोकी और ऐसन काम करी! (कठोरता से) अब हम्मे गाँव जाये के पड़ी।
(उसी समय भागीरथ का रंगमंच पर रोते हुए प्रवेश होता है।)
भागीरथ – (रोता है।) भैया हम लोगन के जमीन को बचाई लो।
दसरथ – (गुस्से में बोलता है।) अब कौंची होय गए? तुम तो हमार जमीन अपन नाम पर करे की अर्जी लैंड्स डिपार्टमेंट में दी है !!
भागीरथ – (आश्चर्य के भाव) हम नहीं जनता ई बात! पहिले हमार बात सुनो! (गुस्से में) हम तुम्में कितना फोन करा तुम काहे उठाता नहीं रहा? तब हम ही तुम्में मिले आय़ा।
दसरथ – (संदेह से) हमार फोन में कुछ होई गए जनाय। तुम्मे कौंची भया?
भागीरथ – वो मतंगाली हमार पीछे पड़ा है कि हम लोगन की सब जमीन हम उसे दे देई। हम बताया उसे कि 50बरिस की लीस अभी बाकी है। वो हमार बात माने के तैयार नहीं।
दसरथ – तुम पहले हम्में ई बात बताओ कि लैंड्स डिपार्टमेंट में तुम काहे अर्जी लिखा कि हम लोगोन की सब जमीन हम तुमार नाम कर देई?
(चिठ्ठी भागीरथ के हाथ में देता है।)
भागीरथ – (चेहरे पर आश्चर्य तथा दुख के भाव) नहीं!!! (सोचते हुए) भैया! हमने तो ऐसा कुछ नहीं करा। हम तो कभी ऐसे सोचे भी नहीं सकता, तों करेगा कैसे?
दसरथ – (गुस्से में) तब ई चिठ्ठी वहाँ पहुँची कैसे?
भागीरथ – हमने कोई अर्जी नहीं लिखी। (सर खुजलाते हुए खूब सोचता है।) अब हम्में याद आये हैं कि हमारे गांव का सरदार नेमीचंद हम्में अपन घरे खाने पे बुलाइस रहा। खूब नंगोना फिर दारु पिलाइस। (सोचता है) थोड़ा याद आवे कि हमार अंगुठे में कुछ ब्लू कलर लगाय के एक कागज पर प्रिंट करिस, फिर हमार नाम लिखिस। हरदम हम्में बोले कि बड़ा भैया सुवा में है तब हम दोनों मिलकर जमीन कमाय कोई।
दसरथ – (आग बबुला होते हुए) अच्छा तो ई बात है। चालाक और बदमाश सरदार की ई सब करामत है। वो तो दोस्त होकर आस्तीन का साँप निकला। लगे हैं, हमार जमीन हड़पे मांगे है।
भागीरथ – हम्में लगे हैं कि मतंगाली को भी सरदार भड़काईस है।
दसरथ – (गुस्से में) हमार जमीन की 50साल की लीस बाकी है। कोई हमार जमीन हमसे छीन नहीं सकीत है।
भागीरथ – (संभलकर) बड़ा ही चालाक है सरदार! और वो मतंगाली लोगन जमीन तो हड़प लेवे हैं, फिर जमीन पर कुछ काम नहीं करे, बस सब झाड़ी उगाकर जमीन का अपमान करे हैं।
दसरथ – अब हम पक्का सोच लिया, हम गाँव जायेगा और खेत में काम करेगा।
भागीरथ – भैया तुम गाँव चलेगा तो ई घर कौन देखी?
दसरथ – (खुशी से) कोई चिंता नहीं, अपना गणेश फॉर्म 7 अच्छे मार्क से पास होईस है। अब यूनिवर्सिटी ऑफ साऊथ पेसिफिक में आगे की पढ़ाई करी। वो होसियार होय गये है, ई घर में वो रही और देख लेई। बस हम अब गांव चले कोई।
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