मोदी जी के संबोधन के बाद
– राकेश पांडे
वर्तमान शासकों का मैं भी विरोधी रहा हूं।
इसका यह मतलब नहीं कि पाकिस्तान जैसे देश के ‘denial’ पर अपने देश के शासकों से ज्यादा भरोसा करने लगूं।
चूंकि मैं राजनीति में धर्मांधता की दखल का विरोधी रहा हूं।
इसलिए समझता हूं कि चरम धर्मांध पाकिस्तान एक ऐसी ढीठ बीमार मनोविज्ञान का निर्माण करता है, जो लुट जाएगा पिट जाएगा पर अपनी गलती और अपनी हार नहीं स्वीकार करेगा। Denial उसकी चारित्रिक विशेषता होगी। वह उस परिस्थिति से ‘सीखना’ कभी नहीं स्वीकार करेगा जिस परिस्थिति को, उससे narsistic feed लेने वाले या अनैतिक स्वार्थ की डोर में बंधे उसके आका को छोड़कर, किसी दूसरे ने पैदा किया हो।
ऑपरेशन सिंदूर को मैं सफल मानता हूं। इतने अकुंठ और स्पष्ट प्रतिशोध ने भारतीय राष्ट्र-राज्य को अधिक बलशाली बनाया। बावजूद इसके कि इस लड़ाई में कहीं गंभीर चोट हमें भी लगी होगी और कहीं समझौते हमें भी करने पड़े होंगे।
ढीठ पाकिस्तान अपने denial और अपनी झूठ का ‘ड्रामा’ तो खड़ा करेगा ही। मीडिया पर हल्ला, जीत का जश्न यह सब वहां के शासकों द्वारा वहां के समाज पर थोपी बीमार मानसिकता की स्वाभाविक अभिव्यक्तियां उसका ‘drama’ हैं। पाकिस्तान के ‘ड्रामा’ पर ‘रिएक्ट’ करके और उसे महत्व देकर हमें उसकी जाल में नहीं फंसना चाहिए।
भारत के public sphere में कुंठित निंदकों की भी एक पूरी फौज है। यह सच है कि फासीवाद का डर एंजायटि पैदा करता है। पर यह एंजायटि मौजूदा शासकों की हर बात पर आलोचना को जस्टिफाई नहीं करता है।
भारतीय परिदृश्य की निंदक विरादरी जाने-अनजाने आज पाकिस्तान के ‘drama’ को ‘फीड’ कर रही है। घोर प्रतिक्रियावादी और प्रतिगामी आलोचकों की यह फौज वही ‘वेरायटि’ है जिसने इंदिरा गांधी के पाकिस्तान के टुकड़े करने का भी उस समय सिर्फ ‘विरोध के लिए विरोध’ किया होगा, और उनकी सफलता को भी सफलता मानने से इनकार किया होगा। इसी निंदक विरादरी ने मनमोहन सिंह को भी कभी चैन न लेने दिया था। ये विचारधारा/ विचार से प्रेरित कम हैं, बल्कि अपनी ‘तबीयत’ से निंदक ज्यादा हैं।
इन बातों के साथ यह कहना जरूरी है कि भारत को पाकिस्तान जैसी धर्मांधता से बचाए रखना मुझ जैसे व्यक्ति की ज्यादा बड़ी चिंता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता की वैधता मैं भारत के धर्मांधों की ओर ट्रांसफर होते कभी नहीं देखना चाहूंगा।
और हां, मोदी जी ने एकता और सद्भाव की जो बात की वह भी बड़ी अच्छी लगी।
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(साभार – राकेश पांडे की फ़ेसबुक वॉल से)