
– डॉ शशि दूकन, मॉरीशस
एहसास
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें करती हूँ
ये ज़िंदगी एक रहस्यमयी पहेली है
जिन माता पिता ने जन्म दिया मुझे
धन्य है उनके दिए संस्कारों का
जो आज मुझे आईने से रूबरू कराते हैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें———
२
कहते है, बचपन अल्हड़ होता है
मॉं के उन प्यारे हाथों के स्पर्श की
कमी आज तलक महसूस करती हूँ
तब अपने आप को शून्य में पाती हूँ
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें———-
३
वो सीखें,वो मुहावरे,वो कहावतें जो
घर में बड़ों को बातों-२ पर मिलतीं थी
हम छोटों के कानों में सीसे की तरह
आज भी दिलों दिमाग़ में घुली पाती हूँ
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें———-/
४
कहते थे पिता जी हमेशा सुबह उठा करो
नींद को अपने ऊपर कभी न हावी होने दो
आज जब ज़िम्मेदारियों से मुक्त हुए हैं तो
चाहते हुए भी नींद आँखों से कोसों दूर है
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें————-
५
फ़िल्मों में वक़्त के पहियों को घूमते देखा था
ज़िन्दगी भी उसी तरह जल्दी गुज़र जाती है
कभी ये न सोचा था ,आज जब स्वयं से इस
दहलीज़ पर खड़े हैं तब ये एहसास कर पाए हैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें—————
६
बहुत कुछ करना है,दिल में सपने संजोए हैं
वक़्त कितनी जल्दी रेत की तरह फिसल गया
विचार जब आता है,दिल में एक ख़लिश सी
लिए न जाने कई सपने ऑंखों में झूल जातें हैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें————-
७
किया जो ,सब बड़ों के आशीर्वाद से
उस ईश्वर की असीम अनंत कृपा से
सोचतीं हूँ कभी-कभी कैसे उरृणी हो
पाउगीं अपनों के अनमोल सहयोगों से
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें————-
८
कहते है जीवन चलने का ही नाम है
शुरू करो कहीं से,तो कारवाँ बन जातें है
ज़रूरत है ख़ुद के हिम्मत और हौसलों की
राहें बनाते-बनाते मंज़िलें मिल जाती हैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें—————
९
जीवन का सफ़र कितने अनुभव दे जाता है
कुछ खट्टे कुछ मीठे स्वाद चखने पड़ते हैं
कुछ साथी राहों में ऐसे भी मिल जाते है
जो आपके सफ़र को सार्थक बना जातें हैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें——————
१०
एक बार को सोचती हूँ कैसे उन अपनों का
कुछ अज़ीज़ रिश्तों का जो मेरे सच्चे होकर
मेरा साथ निभाते रहे,मुझे इस मुक़ाम तक
पहुँचाते रहे,पल-पल राहें नई दिखाते रहे
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें—————-
९९
कभी सपने में थी तमन्ना जिन ख़्याबों की
एहसास वो पल-पल दिल में जगा जातें है
आभार दिल की गहराइयों से उन सबका जो
जो मुझे अपने होने का गर्व महसूस कराते हैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें——————
१२
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें करतीं हूँ
और बातें करतीं ही चली जाती हूँ
शब्द ,जो थमने का नाम ही नहीं लेते
न जाने किस-किस का धन्यवाद करूँ मैं
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें ——————
१३
कैसे आभार प्रकट करूँ मैं उन सबका जो मुझे
प्रतिपल कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं
जो मुझे मेरे अस्तित्व से रूबरू कराते हैं
कर जोड़ सहृदय से नमन सभी को ,बस
कभी-कभी मैं ख़ुद से यूँही बातें कर लेती हूँ
कभी-कभी मैं ख़ुद से बातें——-
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वैश्विक परिवार का तहेदिल से धन्यवाद जिन्होंने हमें ये मंच प्रदान किया है इस सराहनीय कार्य के लिये आपको हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई
धन्यवाद 🙏