हिंदी विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय श्रीनगर में 9 जून 2025 को साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान से “शिक्षा, साहित्य और संस्कृति” शीर्षक से दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो. नीलोफर खान साहिब ने की, जिन्होंने हिंदी विभाग की निरंतर अकादमिक पहल और ऐसे समृद्ध मंचों पर बड़ी संख्या में छात्रों को आकर्षित करने के लिए सराहना की। उन्होंने हाल ही में विश्वविद्यालय को NAAC A++ मिलने के बाद पहला कार्यक्रम आयोजित करने के लिए विभाग को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हिंदी विभाग नियमित रूप पर सेमिनार, सम्मेलन आयोजित करता रहता है, जिससे अकादमिक और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा मिलता है। कला, भाषा और साहित्य संकाय के अध्यक्ष प्रो. एजाज़ मोहम्मद शेख Aejaz Muhammad Sheikh ने भी सभा को संबोधित किया और शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के बीच गहरे अंतर्संबंध पर बात की। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रुबी जुत्शी जी ने स्वागत भाषण दिया तथा गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिभागियों का हार्दिक अभिनन्दन किया। उन्होंने सम्मेलन के शीर्षक के महत्व पर प्रकाश डाला तथा शैक्षणिक और सांस्कृतिक संवाद के प्रति विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन के सचिव डॉ. संजय कुमार ने बीज भाषण प्रस्तुत किया, जिसमें प्रगतिशील और समावेशी समाज के निर्माण में शिक्षा, साहित्य और संस्कृति की स्थायी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया। उनकी अंतर्दृष्टि ने इस बात पर बहुमूल्य दृष्टिकोण प्रदान किया कि साहित्य और संस्कृति किस प्रकार शैक्षणिक परिदृश्य में योगदान दे सकते हैं।

प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. राजेश श्रीवास्तव ने भी शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के महत्व पर अपने विचार साझा किए तथा शैक्षणिक संस्थानों को सांस्कृतिक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।

साहित्य संचय शोध संवाद फाउंडेशन की उप सचिव डॉ. सुमन रानी ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया तथा कार्यक्रम को सफल बनाने में योगदान देने वाले सभी गणमान्य व्यक्तियों, प्रतिभागियों और आयोजक सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया।

सम्मेलन की कार्यवाही सुचारू रूप से संचालित हुई, जिसमें डॉ. मुदासिर अहमद भट और डॉ. शाजिया बशीर ने कार्यक्रम का संचालन किया, जिससे कार्यक्रम में गरिमा और निरंतरता बनी रही। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कैलेंडर में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने साहित्यिक और सांस्कृतिक विद्वता को बढ़ावा देने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

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