
ऑपरेशन अंग्रेज़ी
– नूपुर अशोक
“नारायण- नारायण” – कहते हुए नारद मुनि ने प्रवेश किया – “प्रभुगण किस चिंता से त्रस्त हैं?”
- आज 1947 ईसवी का पंद्रह अगस्त है। मर्त्यलोक में भारतवर्ष नामक देश ने आज स्वतन्त्रता संग्राम में विजय प्राप्त कर ली है। जिस तरह एकजुट हो कर इन्होंने यह विजय प्राप्त की है, अगर इनकी एकता इसी तरह बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब ये हम देवताओं से भी शक्तिशाली हो जाएंगे। कोई मार्ग बताएं मुनिवर।
- मार्ग अत्यंत सरल है प्रभु! इस बार फिर सरस्वती माता का सहयोग अपेक्षित है।
- सरस्वती माता का? वे अस्त्र-शस्त्र विहीन, वे इस शक्ति के सामने क्या कर सकेंगी?
- प्रभुगण आप शायद भूल रहे हैं कि उनके पास दो सबसे शक्तिशाली अस्त्र हैं – विचार और वाणी!
नारद जी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा – “याद कीजिए त्रेतायुग में जब लंकापति की शक्ति बढ़ती जा रही थी तो उसका दमन करने के लिए हमने सरस्वती माता का ही उपयोग किया था जिन्होंने मंथरा के विचार और वाणी को भ्रमित कर के रामचन्द्र को हमारे निर्धारित पथ पर भिजवा दिया था। इस बार भी इसी तरह की योजना बनानी होगी और ‘”ऑपरेशन अंग्रेज़ी” लॉन्च करना पड़ेगा।”
- परंतु मुनिवर, उन दिनों तो राजतंत्र था। उस समय तो राज्य के उत्तराधिकारी के संबंध में संशय उत्पन्न करके ही उनका अभीष्ट सिद्ध हो गया था, किन्तु इस स्वतंत्र प्रजातन्त्र में क्या किया जा सकता है?
- स्वतंत्र! जब तंत्र ‘स्व’ का है तो संशय भी ‘स्व’ पर ही किया जाएगा।
- ‘स्व’ पर? लेकिन कोई भला अपने आप पर संशय कैसे कर सकता है ?
- यही तो भ्रम की महिमा है प्रभु! उनके मन में यह भ्रम उत्पन्न किया जाएगा कि जो उनका अपना है वह हीन है, तुच्छ है, जो पराया है वही महान है।
- लेकिन इनलोगों ने तो अभी-अभी पराए लोगों को अपने देश से बाहर निकाल कर ‘स्व’तंत्रता प्राप्त की है।
- उन्होने परदेशी लोगों का केवल शरीर बाहर निकाला है, हम उनकी आत्मा को इसी भारतवर्ष में रखेंगे।
- अर्थात ?
- अर्थात उनके विचार, व्यवहार, संस्कार सब यहीं रहेंगे। इन अदृश्य शक्तियों को कोई देख नहीं पाएगा और इनके जाल में बद्ध होकर ये भारतवासी अपनी मूल शक्तियों को भूल शक्तिहीन हो जाएंगे।
- क्या यह संभव है?
- शत-प्रतिशत संभव है। इसी के लिए हमें सरस्वती देवी की सहायता चाहिए। उन्हें भारतवर्ष में आंग्ल भाषा की पताका फहरानी होगी।
- परंतु भारतवर्ष ने तो अभी-अभी अपना राष्ट्रध्वज फहराया है। वे किसी और की पताका क्यों स्वीकार करेंगे ?
- यही तो भ्रम का चमत्कार है। उन्हें हर विदेशी वस्तु अपने से बेहतर प्रतीत होगी। मैं आपको उनके भविष्य का एक प्रोजेक्शन दिखाता हूँ। उसे देखकर आपको मेरी योजना पर विश्वास हो जाएगा।
नारद मुनि ने अपने कमंडल के जल में एक मेढक को डालकर उसे बुझी हुई हवन अग्नि पर रख दिया और प्रोजेक्शन शुरू किया— भारतवर्ष के सभी पुरुष अपनी वेषभूषा त्याग चुके थे। अमीर-गरीब सभी ने विदेशी शर्ट-पैंट-कोट-टाई पहनी हुई थी।
– इतनी गरम जलवायु में इन लोगों ने कोट-टाई क्यों पहन रखे हैं? क्या इन्हें कष्ट नहीं हो रहा?
- हो रहा है प्रभु, लेकिन महानता का भ्रम जो है।
प्रोजेक्शन आगे बढ़ा। भारतवर्ष के घरों से आँगन-आसन गायब थे। भूमि से कोई संपर्क न रह सके इसके लिए हर कक्ष में टांगों वाली कुरसियां, मेज और पलंग मौजूद थे। यहाँ तक कि शौचालय में भी।
नारद जी ने ऑडियो ऑन किया ताकि वहाँ की बातचीत सुन सकें। बताया कि वहाँ जन्मदिन की तैयारी हो रही है। लेकिन देवताओं को कोई भी परिचित वस्तु दिखी नहीं।
नारद जी मुस्कराए – भगवन, व्यर्थ चेष्टा न करें। आप जिस पूजा-आरती-मंगलकामना को ढूँढ रहे हैं, वे यहाँ नहीं मिलेंगी। यहाँ आपको विदेशी केक मिलेगा। मोमबत्तियाँ फूंकी जाएंगी, अङ्ग्रेज़ी में बधाई गान गाया जाएगा।
- परंतु शुभ दिन तो दीप जलाना चाहिए, बुझाते क्यों हैं?
- प्रभु, ‘क्यों’ कोई नहीं पूछता, बस विदेशी परम्पराओं की नकल करते हैं।
- मुनिवर, आपने इतना विराट परिवर्तन कैसे किया इस देश में?
- बस भाषा बदल कर! बताया था ना आपको- “ऑपरेशन अंग्रेज़ी”।
- बस भाषा?
- जी, हमने बस इनके मन में अंग्रेज़ी भाषा का मोह उत्पन्न किया फिर उससे जुड़ी हर चीज़ ये अपनाते चले गए और अपनी हर चीज़ छोड़ते चले गए। अब इनकी वेशभूषा, आचार, व्यवहार, विचार-संस्कार सब अंग्रेज़ी प्रभाव से आच्छादित है।
नारद जी ने भारतवर्ष के सत्तर साल बाद का फ्यूचर प्रोजेक्शन दिखाया। लोग “30 दिनों में अंग्रेज़ी सीखें” के बोर्ड के सामने लाइन लगाए खड़े थे। अब न उन्हें सही हिंदी आती थी, न ही पूरी अंग्रेज़ी और न ही उनके अंदर कोई आत्मविश्वास बचा था।
“ऑपरेशन अंग्रेज़ी” कामयाब हो चुका था।
देवताओं के मुखमंडल से चिंता का भाव तिरोहित हो चुका था। अब इस देश के शक्तिशाली हो जाने की कोई आशंका नहीं थी।
प्रोजेक्शन बंद हुआ। नारद जी ने अपना कमंडल उठाया। मेढक की निष्प्राण देह उसके जल में तैर रही थी। बुझी हुई हवन अग्नि ने धीरे-धीरे जल के तापमान को कब प्राणघातक बना दिया था, कमंडल में तैर रहे मेढक को खुद भी भान नहीं हुआ था।
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