
– नूपुर अशोक, ऑस्ट्रेलिया
विदेश में पतझड़
हरीतिमा में लिपटे वृक्ष
महसूसते हैं बदलती हुई हवाओं को
समझने लगते हैं कि
उनका समय गुज़र चुका है
मन का उच्छ्वास
धूमिल कर देता है उन्हें
भूरे पड़ जाते हैं पत्ते
जूझते अन्तर्द्वन्द्व से
पा लेते हैं अपने उत्तर
उल्लसित हो उठते लालिमा से भर
हो जाते प्रस्तुत उत्तर जीवन के लिए
कर देते निस्तार अपना सर्वस्व
उठाकर अपनी निर्वसन बाँहे
हो जाते हैं एकाकार
असीम शून्याकार में।
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