
इसमें अनीता वर्मा- दिल्ली; डॉ. जयशंकर यादव– कर्नाटक; डॉ. मंजु गुप्ता- दिल्ली; ज्योति प्रकाश “जोजी”- ब्रिटेन; कात्यायनी- दिल्ली; आशा बर्मन- कनाडा; विनोद पाराशर- दिल्ली; विवेक रंजन श्रीवास्तव- मध्य प्रदेश; डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे- नीदरलैंड; लीला तिवानी- नई दिल्ली; अंजू घरभरन- मॉरीशस; आनन्द नारायण- दिल्ली; रीना दुग्गल- दिल्ली; स्वरांगी साने- महाराष्ट्र, डॉ. सुनीता श्रीवास्तव- मध्य प्रदेश; आकांक्षा पाहूजा- दिल्ली; श्रीनिवासन- आंध्रप्रदेश; डॉ. महादेव एस कोलूर- कर्नाटक, ज्योत्स्ना पाहूजा– दिल्ली, डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’- उत्तर प्रदेश की रचनाएं शामिल हैं।
योग विशेषांक
संपादकीय
अनीता वर्मा

ओम से उत्पन्न होकर ओम के प्रभाव तक
योग एक प्रक्रिया है। यह दुनिया के साथ सामंजस्य बनाने का तरीका है। योग वह तरीका है जिसमें हम स्वयं प्रतिभागी है, स्वयं भाग लेते हैं और स्वयं से ही जुड़ते हैं। वास्तव में योग एक संज्ञा नहीं बल्कि एक क्रिया है। या फिर क्रियाएँ, स्थितियाँ या अनुभव हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि नृत्य, या फिर संगीत । इसमें हम स्वयं के साथ जुड़ते हुए अभ्यास करते हैं। कभी मन नर्तन करता है तो कभी तन संगीतमय हो कर स्वस्थ होता जाता है।
भारतीय मन में, क्रियाएँ वे तरीके हैं जिनसे हम सोचते हैं, चलते हैं और बोलते हैं। किसी चीज़ पर अपना ध्यान केंद्रित करके, हम उससे जुड़ते हैं। हम योग के ज़रिए स्वयं से व अन्तर्मन से जुड़ते हैं।
और यह संबंध सिर्फ़ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक भी है।
योग का अभ्यास करते समय मैं स्वयं से पूछती हूँ कि मेरे शरीर में यह कैसा महसूस होता है? मेरे मन में क्या विचार या भावनाएँ हैं? मैं इसके साथ कैसे काम कर सकता हूँ? शीर्ष एथलीट आपके शारीरिक अस्तित्व को आपकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति से जोड़ने के महत्व के बारे में जानते हैं। वे इसे मानसिक खेल कहते हैं।
आज सोग अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। विदेश में पढ़ाते हुए भी मुझे ऐसा अनुभव हुआ है कि योग का महत्व अब पूरे विश्व को समझ आ गया है । मेरी ये कविता उन्हीं क्षणों में लिखी गई है जब मन और तन दोनों के भीतर चल रहे द्वंद्व को योग के माध्यम से साधा।
हमें सुनना होगा भीतर के कोलाहल को
समेटना होगा उसे अपनी आत्म शक्ति से
स्वयं से जुड़ने के लिए ज़रूरी है
जुड़ना उस ध्वनि से
जो गुंजन करती है
हम सबके भीतर
हर समय हर क्षण
क्षमता रहती है विकास की अभ्यास की
वियोग से योग की अवस्था तक
कठिन नहीं है पहुँचना और जुड़ना
हर सुबह सुनो साँसों की लय ताल को
आवाज़ दो अपने भीतर के विश्वास को
यह कहते हुए
अहं केवलं अहमेव अस्मि
मम सदृशः कोऽपि नास्ति
मैं सिर्फ़ मैं हूँ सिर्फ़ मैं ही तो
ओम से उत्पन्न होकर ओम के प्रभाव तक
डॉ. जयशंकर यादव,कर्नाटक

योग और विश्व शांति
परिवर्तन सृष्टि नियम है।आज का युग सूचना-प्रौद्योगिकी का युग है। ध्यातव्य है कि आजकल मनुष्य, परिवार, समाज, राष्ट्र और वैश्विक परिप्रेक्ष्य विभिन्न प्रकार के लड़ाई-झगड़ों और युद्धों में व्यस्त है। इस हिंसा की जड़ को आखिर किस तरह खत्म किया जाए। ऐसी स्थिति में योग एक अमूल्य शीत अस्त्र के रूप में संपूर्ण मानवता के लिए वरदान सिद्ध होगा। प्रायः यह देखा गया है कि जो व्यक्ति आंतरिक रूप से असहज होता है वह बाहर भी हिंसक व्यवहार करता है। जब व्यक्ति योग ध्यान का निरंतर अभ्यास करता है तो धीरे-धीरे उसका मन शांत होने लगता है। जैसे-जैसे उसका मन शांत होता है वैसे-वैसे प्रेम से भरता जाता है और उसके व्यवहार में भी परिवर्तन होता है। योग स्व से मिलन और संवाद कराता है और बुद्धि की टकराहट तथा विवाद से बचाता है।
योग में आसन, साष्टांग प्रणाम और भ्रामरी प्राणायाम आदि ओंकार ध्वनि के साथ हैं। हम ध्यान के अभ्यास से अपने आचरण में सुधार कर अहिंसक परिवार और समाज की स्थापना कर सकते हैं। अतएव योग के माध्यम से विश्व शांति भी संभाव्य है। विश्व के लिए योग भारत का दिया हुआ दिव्य वरदान है।
ज्ञातव्य है कि महान भारत राष्ट्र के सत प्रयत्न से 192 देशों का समर्थन मिला और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ की मान्यता दी गई। इसे हम 21 जून 2015 से मना रहे हैं और विश्व भर के लोग बड़े पैमाने पर लाभान्वित हो रहे हैं। इससे जन जागरण भी हुआ है और स्वतः स्फूर्त होकर लोग आगे बढ़ रहे हैं। योग विद्या, प्राचीन काल से चली आ रही है। हमारे वैदिक गुरुकुल में योग को अनिवार्य रूप से सिखाया जाता रहा है। आजकल इसका व्यक्तिगत चलन भी बढ़ा है। औपचारिक रूप से खेलकूद की पुस्तकों में भी योगासन व प्राणायाम को स्थान दिया गया है एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा भी बहुत महत्व दिया जा रहा है।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के अथक प्रयासों एवं कुशल तथा सुयोग्य मार्गनिर्देशन में योग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा अन्य संस्थाओं द्वारा भी मान्यता प्राप्त कर चुका है। इस वर्ष विशेष संयोग है कि यूजीसी नेट, योग की परीक्षा भी 21 जून को ही निर्धारित है।
वर्तमान समय में एलोपैथ दवाओं का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। जहां एक ओर ये दवाएं बीमारी ठीक करती हैं वहीं दूसरी ओर कुप्रभाव भी पैदा कर देती हैं। यदि योग को नियमित रूप से जीवन का अनिवार्य अंग बना लिया जाए तो असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। जैसे-जैसे प्राण शक्ति बढ़ती है वैसे-वैसे बीमारियां सहज ही दूर होने लगती हैं।
आइए, हम 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर पुनः संकल्प लें कि नियमित रूप से योगाभ्यास करेंगे और स्वयं स्वस्थ रहकर अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र को स्वस्थ बनाएंगे और विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करेंगे। सर्वेषाम मंगलम। भवेत् सुखम।
डॉ. मंजु गुप्ता

वशीकरण
मन को साधना / मन को अपने वश में करना
इंद्रिय रूपी अश्वों को नियंत्रित करना
लक्ष्य संधान हेतु, मनचाही दिशा में ले जाना
अपार संयम से ही संभव है
और यही है वशीकरण
दूसरें को वशीकृत करना नहीं
स्वयं को साधना ही है सच्चा वशीकरण
दुनिया को साधना इतना कठिन नहीं
जितना स्वयं अपने मन को साधना
इंद्रियाँ केवल पाँच हैं / और मन असीम, अनंत
दसों दिशाओं में पहुँच है इसकी
भीतर- बाहर, ऊपर- नीचे
इंद्रियों की सीमा है / मन की कोई सीमा नहीं
वह तो है इंद्रियातीत, निस्सीम
मन को साधना ही कहलाता है वशीकरण, योग
योग वह मंत्र है जो कठिन साधना से मिलता है
चंचल मन की लगाम अपने हाथों में थामना
आपना सारथि स्वयं बनना ही है वशीकरण
जब आत्म में स्वयं आविर्भूत होता है परमात्मा
देह, मन और आत्मा का सम्मिलन ही है—योग- साधना /वशीकरण….
ज्योति प्रकाश “जोजी”, ब्रिटेन

योग
मैं बैठा हूँ —
आँखें मूँदकर,
पर देख रहा हूँ बहुत कुछ।
न भीतर शोर है,
न बाहर कोई माँग।
श्वास आती है,
जैसे कोई पुरानी स्मृति लौट आई हो
बिना कहे कुछ,
सिर्फ होकर।
कंधों का भार धीरे-धीरे
कहीं बह गया है,
जैसे समय ने
सिर झुकाकर क्षमा माँगी हो।
मैं सोचता नहीं —
क्योंकि सोच
मुझे कहीं ले जाता है
जहाँ मैं नहीं हूँ।
और योग?
वो वहीं है
जहाँ मैं हूँ,
जैसे कि मैं ही योग हूँ।
यह कोई पलायन नहीं,
न ही कोई सिद्धि की भूख।
यह तो
उस मौन से हाथ मिलाना है
जो हर शब्द के पीछे छुपा बैठा है।
यह जानना है
कि मैं लहर नहीं,
मैं सागर हूँ।
वो लहरें —
क्रोध, लालच, भय, वासना —
आती हैं, जाती हैं,
पर सागर सदा साक्षी है।
योग,
तू कोई क्रिया नहीं,
तू एक दृष्टि है —
जिससे मैं
मैं हो जाता हूँ।
मैं खो जाता है।
कात्यायनी, दिल्ली

योग ध्यान और धर्म
अभी कुछ दिनों बाद अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन विश्व भर में किया जाएगा। जिसका श्रेय हमारे यशस्वी प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को जाता है। इस अवसर पर आज ध्यान के अभ्यास की बात करना भी प्रासंगिक हो जाता है – क्योंकि योग का साधन ध्यान के अभ्यास की ओर ले जाता है जो अंततोगत्वा मोक्ष अथवा कैवल्य ज्ञान अथवा परमात्म तत्व के ज्ञान की सीढ़ी है। प्रायः लोग धर्म और ध्यान में भेद करना भूल जाते हैं अथवा ध्यान को सम्मोहन इत्यादि प्रक्रियाओं के साथ जोड़ देते हैं। प्रस्तुत लेख में इन्हीं समस्त विषयों पर विचार करने का प्रयास है।
मन की वृत्ति होती है पुरानी आदतों की लीक से चिपके रहना और उन अनुभवों के विषय में सोचना जो सम्भवतः भविष्य में कभी न हों। मन वर्तमान में, यहीं और इसी समय में जीना नहीं जानता। ध्यान हमें वर्तमान का अनुभव करना सिखाता है। ध्यान की सहायता से जब मन अन्तःचेतना में केन्द्रित हो जाता है तो वह अपनी आत्मा के गहनतम स्तर में प्रवेश कर जाता है। और तब मन किसी प्रकार का भेद अथवा बाधा उत्पन्न नहीं करता और पूर्ण रूप से चेतना को केन्द्रित करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। और यही ध्यान की पहली शर्त है। वे लोग वास्तव में भाग्यशाली हैं जिन्हें इस सत्य का ज्ञान है और जिन्होंने ध्यान का अभ्यास आरम्भ कर दिया है। उनसे भी अधिक सौभाग्यशाली वे लोग हैं जो नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं। और सबसे अधिक सौभाग्यशाली वे कुछ लोग हैं जिन्होंने ध्यान को अपने जीवन में प्राथमिकता दी है और नियमित रूप से इसका अभ्यास करते हैं।
ध्यान का अभ्यास आरम्भ करने से पहले यह समझना आवश्यक है कि ध्यान वास्तव में है क्या। फिर अपने अनुकूल अभ्यास का चयन करके कुछ समय तक बिना किसी अवकाश के और यदि सम्भव हो तो प्रत्येक दिन एक निश्चित समय पर इसका अभ्यास करने की आवश्यकता है। कुछ लोगों में धैर्य का अभाव होने के कारण वे कुछ समय अभ्यास करके छोड़ देते हैं और यह मान बैठते हैं कि यह पद्धति निरर्थक और अप्रामाणिक है। यह तो ऐसा हुआ कि एक बच्चा ट्यूलिप का पौधा लगाए और सोचने लगे कि सप्ताह भर में उस पर पुष्प आ जाएँगे – जो कि सम्भव ही नहीं है – और ऐसा होते न देखकर निराश हो जाए। यदि आप नियमित अभ्यास करेंगे तो निश्चित रूप से प्रगति होगी। नियमित अभ्यास से सुधार में असफल होने की सम्भावना ही नहीं है। आरम्भ में आप अनुभव करेंगे कि शरीर का तनाव शान्त हो रहा है और भावनाओं में स्थिरता आ रही है। धीरे धीरे और गहन अनुभव होने आरम्भ हो जाएँगे। ध्यान के कुछ विशेष लाभ समय के साथ धीरे धीरे होते हैं – नाटकीय रूप से अथवा सरलता से नहीं हो जाते। ध्यान का अभ्यास नियमित रूप से किया जाएगा तो ध्यान प्रगाढ़ होता जाएगा। आगे हम बताएँगे कि इस बात का निश्चय कैसे किया जाए कि ध्यान में कितनी दृढ़ता आई है और यह भी कि अगले चरण पर कब जाया जाए।
किसी विषय पर मनन करना अथवा सोचना ध्यान नहीं है। चिन्तन, मनन – विशेष रूप से कुछ प्रेरणादायक विषयों जैसे सत्य, शान्ति और प्रेम आदि के विषय में सोचना विचारना अर्थात मनन करना – चिन्तन करना – सहायक हो सकता है, किन्तु यह ध्यान की प्रक्रिया से भिन्न प्रक्रिया है। मनन करने में आप अपने मन को एक विशेष विषय की जानकारी प्राप्त करने में, उसके अर्थ और मूल्य को समझने में लगा देते हैं। ध्यान की प्रक्रिया में चिन्तन और मनन को एक अलग अभ्यास के रूप में जाना जाता है, हाँ कभी किसी स्तर पर यह सहायक हो सकती है। जब आप ध्यान में होते हैं तो मन को किसी विषय पर सोचने का सुझाव नहीं देते हैं, बल्कि इस मानसिक प्रक्रिया से बहुत ऊपर उठ जाते हैं।
ध्यान सम्मोहन अथवा आत्म विमोहन की स्थिति भी नहीं है। सम्मोहन में या तो किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा अथवा स्वयं अपने ही द्वारा मन को एक सुझाव दिया जाता है। यह सुझाव कुछ इस प्रकार का हो एकता है – “आप सो रहे हैं अथवा विश्राम कर रहे हैं।” अर्थात सम्मोहन में मन की धारणाओं को जागृत करके उनमें किसी प्रकार के परिवर्तन अथवा उन्हें नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा मन को इस बात का विश्वास दिलाने का प्रयास किया जाता है कि यह क्रिया उसके लिए लाभदायक है और उसे दिए गए आदेशों एक अनुसार विचार करना चाहिए – सोचना चाहिए। कई बार इस प्रकार के सुझाव वास्तव में बहुत अच्छा प्रभाव छोड़ते हैं – क्योंकि सुझावों में प्रभाव छोड़ने की प्रबल शक्ति होती है। दुर्भाग्य से नकारात्मक सुझाव भी हम पर उतना ही गहरा प्रभाव डालते हैं और निश्चित रूप से वह नकारात्मक ही होता है।
ध्यान की अवस्था ऐसी अवस्था होती है जिसमें न तो आप मस्तिष्क को किसी प्रकार का सुझाव देते हैं और न ही उसे किसी प्रकार नियन्त्रित करने का प्रयास करते हैं। आप केवल मस्तिष्क को देखते रहते हैं और उसे शान्त एवं स्थिर होने देते हैं। अपने मन को अनुमति देते हैं कि वह आपको आपके भीतर ले जाए और आपकी आत्मा के गहनतम स्तर को जानने और अनुभव करने में आपकी सहायता करे। सम्मोहन अथवा आत्मनिर्देश जैसे अभ्यासों से कुछ रोगों के निदान में सहायता मिल सकती है – क्योंकि इनका चिकित्सकीय प्रभाव हो सकता है, किन्तु ध्यान के साथ इन्हें मिलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। हमारे ऋषि मुनियों ने कहा है कि ध्यान की प्रक्रिया सम्मोहन से पूर्ण रूप से भिन्न प्रक्रिया है। ध्यान मन को किसी प्रकार के भ्रम से रहित और पूर्ण रूप से स्पष्ट स्थिति में ले जाता है और किसी भी प्रकार के सुझाव अथवा बाह्य प्रभाव से मुक्ति दिलाता है।
ध्यान कोई ऐसा अपरिचित अभ्यास भी नहीं है जिसके कारण आपको अपनी मान्यताओं और संस्कृति को त्यागना पड़े अथवा धर्म परिवर्तन करना पड़े। बल्कि ध्यान स्वयं को प्रत्येक स्तर पर जानने की एक व्यावहारिक, वैज्ञानिक और क्रमबद्ध पद्धति है। ध्यान का सम्बन्ध संसार की किसी संस्कृति अथवा धर्म से नहीं है, बल्कि यह एक शुद्ध और सरल पद्धति है जीवन को गहराई से जानने की और अन्त में प्रकृतिस्थ हो जाने की।
कई बार साधक चिन्ता में पड़ जाता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ध्यान के अभ्यास से उसके धार्मिक विश्वासों में बाधा उत्पन्न हो जाएगी अथवा किसी अन्य संस्कृति या धर्म को अपनाना पड़ेगा। ऐसा कुछ भी नहीं है।
धर्म जहाँ सिखाता है कि आपकी धारणाएँ और विश्वास क्या होने चाहियें, वहीं ध्यान सीधा स्वयं को अनुभव करना सिखाता है। धर्म और ध्यान इन दोनों प्रक्रियाओं के बीच किसी प्रकार का संघर्ष है ही नहीं। पूजा अर्चना धर्म के अंग हैं, जिनके द्वारा दिव्य शक्ति से सम्पर्क साधने का प्रयास किया जाता है। आप एक साथ दोनों ही हो सकते हैं – पूजा अर्चना करने वाले धार्मिक व्यक्ति भी और ध्यान का अभ्यास करने वाले साधक भी। लेकिन ध्यान के अभ्यास के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं कि आप जिस धर्म का पालन कर रहे हैं उसे छोड़ दें और कोई नया धर्म अपना लें।
आशा बर्मन, कनाडा

योग का अभिनन्दन
देशविदेश में अब हो रहा, योग का प्रचार ।
योगाभ्यास निश्चय ही, संतुलित जीवन का आधार ।।
आज के यांत्रिक जीवन से, सभी हो रहे त्रस्त ।
योग करे मन शांत, तन को भी रखे स्वस्थ ।।
भारत के प्राचीन ज्ञान पर यह आधारित ।
इसके अभ्यास से होता यह जीवन अनुशासित ।।
यौगिक अभ्यास से संभव है आत्मदर्शन ।
तन, मन, आत्मा सभी का होता उन्नयन ।।
स्वयंसेवक सब धन्य, जो योग हमें सिखलाते ।
प्राणायाम-योगासन संबधित ज्ञान बढ़ाते ।।
ऐसे ही निस्स्वार्थ सेवक हैं, हमारे गुरुजन ।
कर्मयोगी हैं, इनका करते हम अभिनन्दन ।।
विनोद पाराशर, दिल्ली

(1)
सभी करो योग, बूढ़े,जवान और बच्चे
सेहत रहेगी ठीक,आदमी बनोगे सच्चे
(2)
रात देर तक जगना,सुबह देर तक सोना
सेहत रहेगी खराब, जीवन भर का रोना
(3)
जो रोज करेगा योग, उससे दूर रहेंगे रोग
बात है एकदम सच्ची, नहीं कोई संयोग
(4)
देर रात तक जगे, सुबह देर तक सोये
देह में आलस रहे, जीवन भर है रोये
विवेक रंजन श्रीवास्तव, मध्य प्रदेश

भारत से विश्व तक.. योग की पाँच सहस्राब्दी की अमर यात्रा
योग का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। योग के प्रारंभिक प्रमाण सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता (2700 ईसा पूर्व) में मिलते हैं। पुरातात्विक साक्ष्य, विशेष रूप से योग मुद्राओं वाली मुहरें, इंगित करती हैं कि योग उस समय की संस्कृति का अभिन्न अंग था। हिंदू परंपरा में भगवान शिव को ‘आदि योगी’ माना जाता है, जिन्होंने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान प्रदान किया।
वैदिक काल (1500-500 ईसा पूर्व) में योग का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जहाँ यह आध्यात्मिक एकता और ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ने का साधन था। उपनिषदों में योग को “चित्त की वृत्तियों के निरोध” के रूप में परिभाषित किया गया, जिसका उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और अंततोगत्वा मोक्ष प्राप्त करना था।
योग साधना का शास्त्रीय काल दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। ऋषि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना कर योग को एक व्यवस्थित दर्शन प्रदान किया। उन्होंने अष्टांग योग की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें आठ चरण शामिल थे:
1.यम (सामाजिक अनुशासन)
2. नियम (व्यक्तिगत अनुशासन)
3. आसन (शारीरिक मुद्राएँ)
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
5. प्रत्याहार (इंद्रिय संयम)
6. धारणा (एकाग्रता)
7. ध्यान (मेडिटेशन)
8. समाधि (परम चेतना)
भारतीय दर्शन में योग की प्रमुख शाखाएँ योग प्रकार, मार्ग, प्रतिपादक के आधार पर निर्धारित की गई है।
कर्म योग, निस्वार्थ कर्म की शिक्षा देता है। भक्ति योग भक्ति और समर्पण को और ज्ञान योग बौद्धिक जागृति बताता है। राज योग में ध्यान और मानसिक नियंत्रण पर बल दिया जाता है। मध्यकालीन परिवर्तन हुए जब भक्ति योग से हठयोग तक के साधक हुए।
मध्ययुगीन काल में योग ने विविध आध्यात्मिक परंपराओं के साथ एकीकरण किया। भगवद्गीता (200 ईसा पूर्व) ने कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के मार्ग प्रस्तुत किए, जो व्यक्ति की प्रकृति के अनुरूप मुक्ति के विविध विकल्प प्रदान करते थे।
11वीं शताब्दी में योगी गोरखनाथ के नेतृत्व में नाथ परंपरा का उदय हुआ, जिसने हठयोग को केंद्र में रखा। इस शैली में कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए शारीरिक आसनों और श्वास तकनीकों पर विशेष जोर दिया गया। इसने योग के अभ्यास में एक भौतिक आयाम जोड़ा और आधुनिक योग शैलियों का मार्ग प्रशस्त किया।
आधुनिक पुनर्जागरण से योग समीचीन हुआ। स्वामी विवेकानंद ने योग के वैश्विक प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। औपनिवेशिक काल में स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म संसद में योग का परिचय पश्चिम से करवाया। उन्होंने योग के आध्यात्मिक और दार्शनिक पहलुओं पर जोर दिया, जिससे पश्चिम में पूर्वी रहस्यवाद के प्रति आकर्षण बढ़ा।
20वीं सदी में तिरुमलाई कृष्णमाचार्य और बी.के.एस. आयंगर जैसे योगाचार्यों ने योग को विज्ञान सम्मत रूप प्रदान किया। आयंगर की पुस्तक “लाइट ऑन योग”(1966) ने हठ योग को पुनर्परिभाषित किया और योग को घर-घर तक पहुँचाया। इसी काल में परमहंस योगानंद ने “ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी” के माध्यम से अमेरिका में ध्यान योग को लोकप्रिय बनाया।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा। 11 दिसंबर 2014 को 177 देशों के समर्थन से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया। यह दिन ग्रीष्म संक्रांति (उत्तरी गोलार्ध का सबसे लंबा दिन) के रूप में चुना गया, जो भारतीय परंपरा में विशेष महत्व रखता है।
2025 में पुडुचेरी में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की थीम “योग फॉर वन अर्थ, वन हेल्थ” रखी गई है, जो वैश्विक स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति योग के योगदान को रेखांकित करती है।
समकालीन परिदृश्य में डिजिटल युग में योग का विस्तार और उपयोग सार्वभौम है। आज योग ने पारंपरिक सीमाओं को पार कर डिजिटल मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। ऑनलाइन कक्षाएँ, योग ऐप्स और सोशल मीडिया ने योग को वैश्विक ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाया है। वैश्विक योग बाजार 2023 तक 66 अरब डॉलर से अधिक का हो गया है, जो इसकी व्यापक स्वीकृति को दर्शाता है।
वैश्विक स्तर पर योग के प्रभाव के प्रमुख संकेत सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ में परिलक्षित हो रहे हैं।अनुसंधानों ने पुष्टि की है कि योग तनाव कम करता है, हृदय गति नियंत्रित करता है, शरीर का लचीलापन बढ़ाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
योग सांस्कृतिक आदान-प्रदान का विषय बन गया है। बैंगलोर के अक्षर योग केंद्र जैसे संस्थानों ने 12 गिनीज विश्व रिकॉर्ड स्थापित किए हैं, जिसमें 50 दिव्यांग बच्चों सहित देश-विदेश के हजारों प्रतिभागी शामिल हुए।
शैक्षिक एकीकरण में भी योग की भूमिका दिख रही है। अमेरिका, यूरोप और भारत सहित कई देशों ने योग को शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल किया है।
योग साधना के सैन्य अनुप्रयोग भी हो रहे हैं। भारतीय सेना, सीआरपीएफ और पुलिस बलों में योग को अनिवार्य प्रशिक्षण का हिस्सा बनाया गया है।
योग हमारी सांस्कृतिक विरासत और भविष्य की दिशाएँ निर्धारित कर रहा है।योग भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन गया है। यूनेस्को ने 2016 में योग को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया, जो इसके वैश्विक महत्व को मान्यता देता है। भविष्य में योग अनुकूली प्रौद्योगिकी (वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से) और चिकित्सा विज्ञान (योग चिकित्सा के रूप में) के साथ और अधिक एकीकृत होने की ओर अग्रसर है।
योग की यात्रा सिंधु घाटी की प्राचीन मुहरों से लेकर न्यूयॉर्क के योग स्टूडियो तक फैली चुकी है। यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि “मन, शरीर और आत्मा का मिलन” है, जैसा कि आयुष मंत्रालय ने परिभाषित किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि “योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का रास्ता है”। जैसे-जैसे विश्व तनाव, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक विखंडन की चुनौतियों का सामना करता है, योग की “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” की दृष्टि हमें स्मरण कराती है कि प्राचीन भारतीय ज्ञान आधुनिक वैश्विक समस्याओं के समाधान में कितना प्रासंगिक है।
डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे, नीदरलैंड

योग
अध्यात्म, तन और मन का
मेल, मिलाप, संयोग
ही कहलाता योग
कर्म, भक्ति ज्ञान और बुद्धि
क्रिया, ऊर्जा का करते हम
जहाँ उपयोग, वहीं है योग
प्रथम योग गुरु ऋषि पतंजलि ने
यम-नियम, आसन-प्राणायाम
प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि
यही आठ सूत्रों में समाहित किया योग
चित्त की वृत्तियों को किया योग निरोध।
स्वास्थ्य में सुधार कर,
तनाव से देता राहत,
सुखद निंद्रा दे,पाचन शक्ति
को बढ़ा, मनुष्य जीवन की आकुलता
कलुषता, पीड़ा, चिंता मिटाता है योग
नैतिक मूल्यों के सदगुणों को विकसित कर
इंद्रियों को संयम कर, सुविचार को
बढ़ा कर बालकों को अनुशासित
नेक, सदाचारी, चरित्रवान बनाता है योग
निःशुल्क चिकित्सा का दीर्घायु
होने का यह वैज्ञानिक राज,
आज समस्त विश्व ने माना है
न भूलें हम कभी इसको
सनातन संस्कृति ने विश्व को
दिया यह अनमोल ख़ज़ाना है।
लीला तिवानी, नई दिल्ली

1. हम योग-दीवाने हैं
हम योग-दीवाने हैं, दुनिया को दिखा देंगे
हम योग की महिमा को, सारे जग को सिखा देंगे-
संजीवनी बूटी बन, तन-मन को योग जोड़े
हर रोग हटे इससे, हम सबको बता देंगे-
कुदरत से हमने सीखा, हर ओर योग छाया
हैं पेड़ नमन करते, हम सबको सिखा देंगे-
फूलों ने सिखाया है, हर हाल में मुस्काओ
मरने से पहले जीना, हम कैसे भुला देंगे-
चाहे ध्यान या आसन हो, हमें चुस्ती-फुर्ती देता
है योग में मौज बड़ी, हम सबको बता देंगे-
योग करे आयु में योग, स्वास्थ्य में योग,
योग करे साँसों में योग, हम सबको बता देंगे-
योग करे जिजीविषा में योग, करे सोच में योग,
योग करे बुद्धि में योग, हम सबको बता देंगे-
2. योग की महिमा ख़ास
मुरझाएं नहीं फूलों के सम हम सब महकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS
मुरझाएं नहीं फूलों के सम हम सब महकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS
- रोग निवारण करने वाला योग ही हैSSS
जीवन सबल बनाने वाला योग ही हैSSS
योग दिवस हम मिलके मनाएं और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - कटिचक्रासन कमर-कूल्हों को लचीला बनाएSSS
हस्त पाद मेरुदण्ड लीवर स्वस्थ बनाएSSS
सूर्य नमन से स्वस्थ बनें हम और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - चक्रासन से पेट-पीठ को स्वस्थ बनाएंSSS
ताड़ासन से पैरों को मज़बूत बनाएंSSS
त्रिकोणासन से चर्बी हटाएं और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - पवनमुक्तासन गैस से मुक्ति दिलाएSSS
मयूरासन कफ़-मुक्ति का शुभ सुमन खिलाएSSS
शव आसन से तन-मन शांत करें हम और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - सर्वांगासन कफ से हमें छुटकारा दिलाएSSS
पद्मासन तनाव को दूर हटाएSSS
मानसिक रोगों से मुक्ति पाकर हम लहकेंSSS-
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - हलासन से बवासीर और शुगर हटेंगेSSS
वक्रासन से मेरुदंड को स्वस्थ करेंगेSSS
वज्रासन से रक्त-संचरित कर लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - कर्ण-पीड़ आसन से बहSराSपन जाएSSS
शशांकासन मधुमेह से मुक्ति दिलाएSSS
मत्स्यासन से पेट-पीठ सुदृढ़ करें हम और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - भुजंगासन से रीढ़-अस्थि मज़बूत बनेSSS
शलभासन से स्नायु हमारे रहें तनेSSS
धनुरासन से लचीले बनें हम और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - योग करोगे मौज हमेशा बनी रहेगीSSS
कितने सुंदर कितने स्वस्थ हो दुनिया कहेगीSSS
गोमुखासन से दमा-मुक्त हो हम लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS - योग के हर आसन की महिमा है न्यारीSSS
हर अभ्यास से लाभ मिले हमको भारीSSS
योग से हम लाभान्वित होवें और लहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS
मुरझाएं नहीं फूलों के सम हम सब महकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS
योग की महिमा ख़ास योग से हम सब चहकेंSSS
3. आई योग दिवस की बेला
आई योग दिवस की बेला, क्यों न लगाएं आसन मेला
क्यों न लगाएं आसन मेला, आया समय बड़ा अलबेला-
आई योग दिवस——
- रोग निवारण करने वाला योग ही हैSSS
जीवन सबल बनाने वाला योग ही हैSSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—- - चक्रासन से पेट-पीठ को स्वस्थ करेंSSS
ताड़ासन से पैरों को मज़बूत करेंSSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—- - पवनमुक्तासन गैस से मुक्ति दिलाता हैSSS
मयूरासन कफ़-मुक्ति सुमन खिलाता हैSSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—- - हलासन से बवासीर और शुगर हटेंSSS
वक्रासन से मेरुदंड को स्वस्थ करेंSSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—- - योग करोगे मौज हमेशा बनी रहेSSS
कितने सुंदर कितने स्वस्थ हो दुनिया कहेSSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—- - हर आसन की महिमा बहुत ही है न्यारीSS,
इनसे सजाएं तन-मन की हम फुलवारीSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—- - रोग निवारण करने वाले उपकारीSS
तन-मन सबल बनाते हैं ये हितकारीSS
आया समय बड़ा अलबेला, क्यों न लगाएं आसन मेला-
आई योग दिवस—-
अंजू घरभरन, मॉरीशस

मॉरीशस में योग
दीपक सुखासन में बैठ गीता व मानस से जुड़ता है। ज़ीनत की नमाज़ वज्र आसन में अदा होती है। फिलिप और लिन घुटनों पर झुककर चर्च में लामेस का निर्वाह करते हैं।
बहुभाषी, अनेक धर्म, विभिन्न पन्तों को एक साथ लेकर मॉरीशस देश हिंद महासागर में सितारे की तरह चमकता है। उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में मज़दूर के रूप में लाये गए थे जिनके साथ भारतीय संस्कृति अपनी अनेक पहलुओं सहित यहाँ पहुँची। वह समय उनके लिए कष्टदायी था पर उनके होंसले बुलंद होने के कारण ही वह अपने बच्चों को योग, शिक्षा, आयुर्वेद, घरेलू नुस्खे, अपनी संस्कृति आदि से जोड़ने में सफल रहे। परिणाम स्वरूप आज मॉरीशस में अनेक योग शिक्षण संस्थाएं हैं। सरकार की ओर से तथा सामाजिक-सांस्कृतिक केंद्रों में योग गुरु अभ्यास करवाते हैं। वर्ष 2014 में जब 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया तब तो प्राचीन भारतीय जीवन शैली विश्व में एक नई लहर के साथ एक दूजे को सही अर्थों में जोड़ने लगी। इस लहर ने इस देश में भी नई ऊर्जा का काम किया।
मॉरीशस में भारतीय उच्चायोग के तत्वावधान में इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र भी योग की नियमित कक्षाएं चलाता है। वर्ष भर के अभ्यास के सार रूप में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर अनेक गतिविधियां व आयोजन जैसे समुद्र तट, वैलनेस पार्क, विद्यालय आदि में बड़े स्तर पर योगाभ्यास किया जाता है। इसमें हज़ारों लोग भाग लेते हैं। इस दिन भारतीय उच्चायोग द्वारा टीशर्ट, टोपी, मैट आदि का निःशुल्क वितरण किया जाता है। अच्छे आयोजन के लिए पुरस्कार के ऐलान सहित प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है।
कुछ विद्यालय योग शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं ताकि छोटी उम्र से ही आज के तनावपूर्ण जीवन से युवा शारिरिक फिटनेस के साथ मानसिक संतुलन पर ध्यान दे पायें। आज की व्यस्तता और आपाधापी भरा जीवन सकारात्मक दिशा की ऒर बढ़ पाए। बहुत से मॉरीशसवासी व्यायाम, प्राणायाम, तनाव प्रबंधन , मानसिक शांति का भी पर्याय योग को ही मानते हुए जीवन शैली के रूप में इसे अपना रहे हैं। कोरोना महामारी के समय से और नये लाइफ स्टाइल में ऑनलाइन योग कक्षाएं भी बहुत देखने को मिलती हैं। इसने तो देश विदेश की सीमाओं को पार कर वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को साकार कर दिया है।
मन की गति श्वासों की ओर मोड़ते हुए अपने शारीरिक तंत्र को हम सब संभाल लें, प्रेम से जीवन जियें और एक दूजे के दुख में दुखी और सुख में सुखी होने लगेंगे, तब हम योग की ओर बढ़ पाएंगे। अपने विचारों में भी स्वतंत्रता ला पाएँगे। एक दूजे के कदम से कदम मिलाकर एक साथ प्रगति की ओर बढ़ पाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 की थीम “एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य के लिये योग” सफलता के साथ सुनहरा भविष्य लाएगी। योगाभ्यास के साथ सभी का जीवन सरल, स्वस्थ और सकारात्मक बने।
योग दिवस की मंगलकामनाएं!!!
आनन्द नारायण, दिल्ली

उठो और आगे बढ़ो
उठो और आगे बढ़ो लो, भोर फिर से आ गई।
योग प्रण उपवास तप नव,ज्योति फिर से आ गई।
1.
तन निरोगी मन निरोगी, आत्मा कहने लगी।
रोग दारुण दुःख कटेंगे, भावना कहने लगी।
पेट खाली भोर में सब, योग आसन कर रहे।
चलने को लाले पड़े वो, आज उल्टे चल रहे।
बेजान बेदम थे पड़े अब जान फिर से आ गई।
उठो और आगे बढ़ो लो, भोर फिर से आ गई।
2.
योग से आयाम तप का, यज्ञ सब करने लगे।
अब तलक माँदे पड़े थे, फिर से वो चलने लगे।
स्वस्थ मन, तन हो निरोगी, सत्य का पालन करो
स्वाभिमानी, स्वावलंबी, राष्ट्र को पावन करो।
कामनाओं के शहर से, भीड़ उठकर आ गई।
उठो और आगे बढ़ो लो, भोर फिर से आ गई।
रीना दुग्गल, दिल्ली

करो योग,रहो निरोग
हराना है अगर उम्र को तो,
दोस्ती कर लो योग से।
चाहे हो उम्र का कोई भी पड़ाव,
रहोगे दूर हर रोग से।
आज की दौड़ भरी जिंदगी में,
पैसे की दौड़ बड़ी है।
अगर सेहत ना देगी साथ,
तो यह दौलत कहां ले जाओगे।
पैसे से बड़ा कोई रोग नहीं,
तय है उसका टूटना जिसके जीवन में योग नहीं।
योग से मिलती है ऊर्जा,
खिल जाता है शरीर का पुर्ज़ा–पुर्ज़ा।
करने से योग मिलती है शांति,
आती है रोगी देह में क्रांति।
योग को बना लो जीवन का हिस्सा,
खत्म हो जाएगा बीमारियों का किस्सा।
आराम भरी दुनिया में अब,
जहां सब कुछ है बनावटी,
खाने से लेकर हवा की खराब हो रही क्वालिटी।
उम्र से पहले शरीर हो रहे फेल,
ऐसे हालात में योग से बेहतर कोई नहीं है खेल।
जहां हो रही खराब हवा है,
योग ही एकमात्र दवा है।
अब कर लो खुद ही अपने जीवन का नव संचार,
जो योग से ही मुकम्मल होगा।
बना लो योग को जीवन का एक अहम हिस्सा,
और हो जाओ निहाल।
इस योग दिवस पर कर लो खुद से यह प्रण,
योग है तो सब कुछ है,
योग नहीं तो जीवन है निष्फल।
स्वरांगी साने, महाराष्ट्र

योग से योगा क्लासेज़ शुरू होने तक का वह दौर…और अब यह दौर
बचपन से हर कोई किसी न किसी रूप में योग से जुड़ा होता है। योग के प्रकार कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, हठ योग और राज योग माने जाते हैं। विद्यालयीन जीवन की शुरुआत होने के साथ ही कर्म योग जुड़ जाता है। विद्यालय की पढ़ाई के कर्म के साथ ज्ञान योग तो आता ही है। गुरु के प्रति भक्ति का भाव भी बचपन में अधिक होने से भक्ति योग भी बाल्यकाल में अधिक मासूम होता है। हठ योग और बचपना तो एक-दूसरे के पर्याय ही हैं। और रही बात राज योग की, तो राजा हो या रंक, हर बच्चा अपने घर का राजकुमार/राजकुमारी ही होता है। इस प्राचीन भारतीय परंपरा को वर्ष 2014 में वैश्विक मान्यता मिली, जब 21 जून को विश्व योग दिवस मनाना प्रारंभ हुआ। भारतीय जनमानस में तो यह पहले से ही था।
तीन-चार दशक पहले जिम वे ही जाते थे जिन्हें दंड पेलने होते या पहलवान बनना होता। आम घरों में व्यायाम का अर्थ पैदल चलना, सैर पर जाना या फिर योग करना ही होता था। सूर्य नमस्कार करते बुजुर्ग कई घरों में देखे जा सकते थे और उनकी देखा-देखी बच्चे भी सूर्य नमस्कार करते। सूर्य के 12 अलग-अलग नामों के मंत्र के उच्चारण के साथ कम से कम 12 सूर्य नमस्कार लगाना ही, यह परिपाटी होती थी। मैं जिस स्कूल में पढ़ती थी, वहाँ भी पहला कालखंड शारीरिक गतिविधि का ही होता था, जिसे बाद में पीटी पीरियड के नाम से जाना जाने लगा। उसे टालने के लिए जो देर से पहुँचता, उसे स्कूल के मैदान के दस चक्कर दौड़कर लगाने पड़ते। मतलब एक तरफ कुआँ, दूसरी तरफ खाई…तो बच्चे कुएँ में गिरना ही पसंद करते और पहले कालखंड में समय पर उपस्थित रहते। जो अच्छा योगाभ्यास करते, उन्हें मंच पर बुलाया जाता। एक तरह से वे दूसरों का नेतृत्व करते। योगाभ्यास की कमान संभालते। वे हमारी नज़रों में हीरो होते थे।
घर पर बाकी दिन तो पिता के योगाभ्यास के समय हम स्कूल में होते। रविवार को हम पिताजी को योगाभ्यास करते देखते। उन्होंने कभी अट्टहास नहीं किया कि हमें रविवार को उनके साथ योग करना ही है पर सहज कौतूहल में हम सुबह उठकर छत पर चले जाते, जहाँ पिताजी योगाभ्यास कर रहे होते। माँ तो हर दिन अलसुबह प्राणायाम, भ्रामरी आदि करती थी पर इतनी सुबह हम कभी न उठ पाएँ। हालाँकि उन दिनों रविवार को भी देर तक सोने का अर्थ अधिकतम सुबह आठ बजे तक सोना ही होता था। रविवार को भी सुबह सात बजे से हमें उठाने की कवायद शुरू हो जाती कि चलो उठो सात बज गए, चलो साढ़े सात बज गए….उठो-उठो आठ बज गए। मतलब सुबह आठ बजे तक जो सोता उसके लिए मान लिया जाता कि यह आज देर तक सोया है या देर से उठा है।
खैर, तो हम छत पर जाते, वहाँ पिताजी योग कर रहे होते। हमें देखते तो हमें भी योग करने के लिए प्रेरित करते। हर आसन का नाम बताते। यह धनुरासन, यह चक्रासन, यह उष्ट्रासन, यह ताड़ासन…। स्कूल से निकलकर कॉलेज जाने लगे तब तक योग फैशन बनने लगा था। योग को योगा कहा जाने लगा था और योगा क्लासेज़ होती थीं। कुछ फैशन में, कुछ करके देखते हैं के कौतूहल में उस क्लास को कई लोग जॉइन करते। वहाँ प्रणालीगत तरीके से योग सिखाया जाता। हर आसन को करने की विधि, अब धीरे-धीरे साँस लेंगे, अब धीरे-धीरे छोड़ेंगे की कॉमेंट्री के साथ क्लास होती। क्लास के अंत में शवासन होता। शवासन में योग ट्रेनर कहते -कल्पना कीजिए कि आप पहाड़ की ऊँची चोटी पर हैं…
मतलब इस तरह से जो योग हमारे घरों में ऐसे ही सहज साधना की तरह हो जाता था, वह व्यावसायिक या कहें तो प्रोफेशनल लुक लेने लगा था। यह नब्बे का दौर था। आर्थिक उदारीकरण के साथ वैश्विक बाजार के दरवाजे खुल रहे थे। योगा क्लासेज़ की फीस देकर योगा सीखने-सिखाने का दौर चल पड़ा था। प्राचीन परंपरा में हमारे घरों से हमें पता चला था कि योग के आदि गुरु तो भगवान् शिव हैं, जिन्हें आदि योगी कहा जाता है या महर्षि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है। अष्टांग योग का नाम बचपन में न भी पता हो तब भी हमें पाठ पढ़ाया जा रहा था कि हमें यम-नियम का पालन करना है। यम मतलब सामाजिक नैतिक सिद्धांत जैसे अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तो नियम मतलब शौच, संतोष, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान। योग के आसन मतलब शारीरिक मुद्राएँ तो सीख ही रहे थे जिससे शरीर स्वस्थ और लचीला रहे पर प्राणायाम जैसी श्वास नियंत्रण तकनीक भी जान रहे थे। प्रत्याहार मतलब इंद्रियों को वश में करने का पाठ हम बड़े-बूढ़ों की देखा-देखी मतलब उनके आचरण से सीख रहे थे। धारणा या एकाग्रता, ध्यान, समाधि की ओर भी हम अनजाने ही बढ़ रहे थे।
योग आज भी यह प्रासंगिक है लेकिन केवल किसी एक दिन के लिए हमें इसे रोज़ अपनाते हुए अपनी जीवन शैली का अंग बनाना होगा जैसे हमसे बड़ों ने बनाया था और हम तक पहुँचाया था। अब हमें इसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाना है।
डॉ. सुनीता श्रीवास्तव, मध्य प्रदेश

योग दिवस
साँसों की लय, मन का ध्यान,
शरीर बने निर्मल पहचान।
योग हमें सिखलाए रीति,
स्वस्थ जीवन की यह है प्रीति।
सूर्य नमस्कार की हो शुरुआत,
तन-मन हो जाएं प्रभात।
ध्यान से मिलती शक्ति महान,
भीतर जागे दिव्य ज्ञान।
आसन, प्राणायाम का संग,
बने जीवन संगीत का रंग।
रोग भागें, चिंता जाए,
सद्भाव का दीप जलाए।
विश्व ने माना भारत का योग,
हर दिल में इसका है संजोग।
चलो मनाएं योग दिवस,
स्वस्थ बने हर दिवस l
तन को दे बल, मन को शांति,
योग है सबसे सुंदर क्रांति।
आसन, ध्यान और अनुशासन,
योग सिखाए सहज साधन।
बीमारी भागे, ऊर्जा आए,
हर दिन को सुंदर बनाए।
योग दिवस है ज्ञान का द्वार,
आओ करें योग, करें सत्कार।
सूर्य की पहली किरण से
सूर्य की पहली किरण से,
शुरुआत करें योगा प्रण से।
मन हो शांत, दृष्टि हो स्वच्छ,
हर भाव में बहे प्रेम सच।
जीवन को यह राह दिखाए,
अंधकार में दीप जलाए।
विश्व योग दिवस का नारा,
स्वस्थ रहे हर जन हमारा।
आकांक्षा पाहूजा, दिल्ली

योग
बने जो योग जीवन का आधार
तन, मन आत्मा हों जाएं एकसार
तन बनेगा निरोगी और मन निर्विकार
आत्मा का परमात्मा तक हो विस्तार।
सांसों को कर लें जब नियंत्रित
शांत हो जाता है मन-मस्तिष्क
ध्यान में लगाएं जब अपना चित्त
हर चिंता के प्रति हों जाएं निश्चिंत
रोज़-रोज़ यदि करें अभ्यास
मिट जाएं सब दुख और त्रास
कहीं न रहेगी कोई भी भ्रांति
बढ़ेगा तेज़ और मिलेगी शांति
समय से भोजन, जल्दी सोना
सूर्योदय से पहले पहले जगना
आसन-श्वसन नियम से करना
चुस्ती-स्फूर्ति व ऊर्जा से भरना।
योग ने सिखाया हमें आज में रहना
बाहर-भीतर हरदम खुशी से जीना
कम तनाव कर, सुंदर संसार बनाना
फिटनेस संग इसे जीवन शैली बनाना
सूर्य नमस्कार या शवासन लगाना
मन में शांति का अहसास जगाना
कसरत नहीं, ये तो मन की साधना
सबसे हो प्रेम, यही सच्ची अराधना ।
श्रीनिवासन, आंध्रप्रदेश

योग
शारीरिक रूप होता आकर्षित
मानसिक शक्ति होती निश्चित
उत्साह से मिलती ताकत
कार्य करने की आती प्रेरणा
ये सब योग से है मिलता।
योग करना है कला
आलसीपन को खोना है भला
योग स्वास्थ्य के लिए है निर्मला
योग कुभावनाएं को हटाता चले
योग जीवन को बदलता चले।
जिसको उत्साह से कार्य है करना
शारीरिक आकर्षण बढ़ाना
मानसिक दुख को घटाना
बुद्धि लब्धी स्थिर करना
उसको योग अवश्य होगा करना।
निर्मल हृदय को पाओ
एकाग्रता शक्ति को बढ़ाओ
दुख, बाधाओं को हटाओ
निरुस्ताह को भगाओ
योगा से मन शांत कराओ।
हर दिन जो योगाभ्यास करता
उसका हर रोग दूर होता
योग से क्रोध नियंत्रण होता
योगी का संकल्प दृढ़ होता
योगी संपूर्ण मनुष्य होता।
डॉ. महादेव एस कोलूर, कर्नाटक

‘योगः कर्मसु कौशलम्’ — योग में हर कर्म को सुंदर और सफल बनाने की कला है
आज का युग भागदौड़ और तनाव का युग है। हर व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की आकांक्षा रखता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए दो प्रमुख विकल्प सामने आते हैं योगासन और जिम में व्यायाम:
दोनों ही मार्ग स्वास्थ्य की ओर ले जाते हैं, लेकिन इन दोनों में मौलिक अंतर हैं जो हमें यह सोचने पर विवश करते हैं कि आखिर कौन-सा पथ अधिक श्रेष्ठ, सुरक्षित और दीर्घकालिक है।
जिम में व्यायाम: शरीर की बाहरी काया पर केंद्रित जिम की अवधारणा पश्चिमी सभ्यता से आई है, जहां मशीनों के माध्यम से शरीर की बाहरी मांसपेशियों को बलवान बनाने पर ज़ोर दिया जाता है। भारी वजन उठाना, कार्डियो करना, मसल्स बनाना— ये सब शरीर को आकर्षक तो बना सकते हैं, लेकिन अक्सर यह कार्य शरीर की आंतरिक शांति को नजरअंदाज कर देता है। जिम में व्यायाम मुख्यतः शारीरिक ऊर्जा को जलाता है। भारी व्यायाम से शरीर थकता है, और कभी-कभी जोड़ों या मांसपेशियों में चोट की संभावना रहती है। मशीनों और उपकरणों पर निर्भरता समय के साथ व्यसन का रूप ले सकती है।
योगासन: तन, मन और आत्मा की समरसता योग, भारत की प्राचीन धरोहर है, जिसे ऋषि- मुनियों ने आत्मानुशासन, आंतरिक शांति और दीर्घायु जीवन के लिए विकसित किया था। योग केवल शरीर को लचीला और सक्रिय ही नहीं बनाता, बल्कि मन को शांत करता है और आत्मा को ऊर्जावान करता है।
योग में श्वास, ध्यान और मुद्राओं का समन्वय होता है। यह केवल व्यायाम नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुशासन है। नियमित योगाभ्यास से तनाव, चिंता, उच्च रक्तचाप, नींद की कमी जैसे मानसिक रोग भी समाप्त होते हैं। योग शरीर को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ बनाता है, किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं होती।
क्यों योगासन ही श्रेष्ठ और सुरक्षित है?
चोट की संभावना न्यूनतम:
योग में शरीर को धीरे-धीरे, सहज रूप से आगे बढ़ाया जाता है। इसमें कोई झटका, खिंचाव या भारी दबाव नहीं होता, जिससे चोट लगने का खतरा बहुत कम होता है।
हर उम्र के लिए उपयुक्त:
योगासन बच्चों, वृद्धों, गर्भवती महिलाओं, बीमार व्यक्तियों—सभी के लिए किसी न किसी रूप में लाभकारी होता है, जबकि जिम एक सीमित उम्र और शारीरिक क्षमता तक ही कारगर रहता है।
मनोवैज्ञानिक लाभ:
योग का अभ्यास ध्यान और आत्म-साक्षात्कार को बढ़ावा देता है, जिससे अहंकार, द्वेष, चिंता जैसी मानसिक विषमताएँ दूर होती हैं। जिम इन मानसिक स्तरों पर नहीं पहुँच सकता।
जीवन के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन:
योग केवल शरीर को स्वस्थ नहीं बनाता, यह मनुष्य को संयमित, सहनशील, करुणामय और आत्म-जागरूक भी बनाता है। यही परिवर्तन व्यक्ति के जीवन को सच्चे अर्थों में सफल बनाते हैं।
एक मार्मिक निष्कर्ष
आज की दुनिया में जहाँ हर कोई शीघ्र परिणाम चाहता है, वहाँ जिम तात्कालिक आकर्षण बन सकता है। लेकिन योगासन वह दीपक है जो धीरे-धीरे जलता है, पर अंततः जीवन के हर कोने को प्रकाशित कर देता है। योग केवल शरीर नहीं, आत्मा की चिकित्सा है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, प्रकृति से जोड़ता है, और अंततः ईश्वर से जोड़ता है।
योगासनों का अभ्यास करने से ताकत और लचीलापन विकसित होता है, साथ ही आपकी नसों को आराम मिलता है और आपका मन शांत होता है। आसन मांसपेशियों, जोड़ों और त्वचा, और पूरे शरीर – ग्रंथियों, नसों, आंतरिक अंगों, हड्डियों, श्वसन और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। योग के भौतिक निर्माण खंड आसन और सांस हैं।
इसलिए, जब विकल्पों के चौराहे पर खड़े हों, तो याद रखें—जिम शरीर को सजाता है, योग जीवन को संवारता है।
ज्योत्स्ना पाहूजा, दिल्ली

योग की यात्रा
योग की यात्रा, आत्मा की खोज
मन की शांति, शरीर की ऊर्जा
विविध आसन , प्राणायाम की गहराई
योग है साधना, जीवन की सार्थकता
वृक्षासन की स्थिरता, जीवन का संतुलन
धनुरासन की शक्ति, शरीर का लचीलापन
सूर्य नमस्कार की ऊर्जा, प्रातःकाल की शान
योग क्रियाएं, आत्मा की जागरूकता
योग की धारा, बढ़ाए क्षमता
आत्मा की शांति, मन की एकाग्रता
योग की साधना, जीवन की सार्थकता
आत्म-साक्षात्कार, जीवन की पूर्णता
जब मन डगमगाए, आंखें मूंद लें
गहरे ध्यान में खुद को खोज लें,
देता है सुख, सुकून और शांति
योग है भारत की अनुपम थाती।
डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, उत्तर प्रदेश

योग (मनहरण घनाक्षरी)
सूर्य नमस्कार नित्य,
जब निकलें आदित्य,
श्रद्धा भाव नित्य दिन,
शीश को नवाइये।
अनुलोम व विलोम,
प्राणायाम नित्य योम,
भस्त्रिका कपालभाति,
योग अपनाइये।
सामंजस्य और शांति,
लाये मुख पर कांति,
जीवन सुफल करें,
योग सुख पाइये।
तन और मन स्वच्छ,
योग करे सब अच्छ,
शांति भावना से नित्य,
जीवन सजाइये।
