
26 जून 2025 को इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली के गुलमोहर हॉल में वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा ‘वाणी प्रवासी अनुभव’ के अंतर्गत ‘यू.के. हिन्दी साहित्य समारोह’ का सफल आयोजन संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के पहले सत्र में प्रवासी कवि आशीष मिश्रा की भारतीय उच्चायोग, लंदन द्वारा पुरस्कृत कृति ‘क्या हारा क्या जीत गया’ का लोकार्पण एवं काव्यपाठ हुआ। दूसरे सत्र में ब्रिटेन के प्रसिद्ध प्रवासी कवि डॉ. पद्मेश गुप्त की नवीनतम कृति ‘पुरवाइयां’ का लोकार्पण और परिचर्चा सम्पन्न हुई, जो उनकी तीन दशक से अधिक की वैश्विक लेखन यात्रा का दस्तावेज़ है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता रंगमंच के विलक्षण द्रष्टा, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक देवेन्द्र राज ‘अंकुर’ जी ने की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने डॉ. गुप्त की दो महत्वपूर्ण कहानियों ‘डेड एंड’ और ‘कशमकश’ पर आधारित नाटक का उल्लेख करते हुए डॉ. गुप्त की लेखनी को रंगमंच के लिए भी उतनी ही प्रभावशाली बताया और कहा कि उन्हें इन कहानियों में कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। ये कहानियां रंगमंच के लिए सर्वथा उपयुक्त थीं।
समारोह के मुख्य अतिथि, प्रख्यात कवि एवं व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. अशोक चक्रधर ने डॉ. गुप्त की बहुआयामी रचनात्मकता की सराहना करते हुए उन्हें प्रवासी साहित्यकारों में सशक्त स्वर बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. गुप्त की रचनाएं समाज की चिंतनशील अभिव्यक्ति हैं, जो समाज को साहित्यिक गंभीरता से समृद्ध करती हैं।
इस अवसर पर एशियन एकेडमी ऑफ़ फ़िल्म एंड टेलीविज़न के निदेशक सुशील भारती द्वारा निर्मित, डॉ. पद्मेश गुप्त के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित डॉक्यूमेंट्री ‘कारवां जारी है’ का भावपूर्ण प्रदर्शन भी हुआ, जिसने दर्शकों को एक प्रेरक साहित्यिक यात्रा की अनुभूति से जोड़ दिया।
वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने डॉ. गुप्त की वैचारिक प्रतिबद्धता एवं सामाजिक सक्रियता का उल्लेख करते हुए दोनों पुस्तकों पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि ‘पुरवाइयां’ पुस्तक में ब्रिटेन से प्रकाशित पत्रिका ‘पुरवाई’ में डॉ. पद्मेश गुप्त के लिखे गए संपादकीय तथा आलेखों को संकलित किया गया है। यह उनके साढ़े तीन दशक की वैश्विक लेखन यात्रा का दस्तावेज़ है जिसे पढ़कर विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन से जुड़े संघर्ष और सफलता का लेखा-जोखा तो मिलता ही है, ‘पुरवाई’ पत्रिका के प्रारंभ से उसकी निरंतरता की रोचक यात्रा की भी जानकारी मिलती है। उन्होंने कहा कि डॉ. गुप्त जैसे लेखक समाज के नैतिक और वैचारिक पथप्रदर्शक होते हैं।
उन्होंने ब्रिटेन के ही युवा प्रवासी कवि आशीष मिश्रा के काव्य-संग्रह ‘क्या हारा क्या जीत गया’ में भारत की छवि के सुंदर दर्शन का उल्लेख करते हुए उनकी रचनात्मकता के प्रति अपनी आश्वस्ति व्यक्त की।
प्रथम सत्र में आशीष मिश्रा के काव्य पाठ ने श्रोताओं को भीतर तक छू लिया। उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया पर संवाद करते हुए बताया कि प्रवासी जीवन के अनुभवों ने उनकी संवेदना को और गहराई दी है। इस अवसर पर उपस्थित उनके पिता तथा कला अकादमी, दिल्ली के अध्यक्ष श्री हरि भारद्वाज ने कहा कि आशीष की कविताओं में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की गूंज स्पष्ट सुनाई देती है। दूसरे सत्र में डॉ. पद्मेश गुप्त ने अपनी रचनात्मक यात्रा के अनुभवों को साझा किया तथा प्रवासी लेखन की ज़रूरत, प्रवासी साहित्य में वैविध्य और इसकी सामाजिक-सांस्कृतिक ज़िम्मेदारियों पर प्रेरक विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन प्रसिद्ध साहित्यकार अलका सिन्हा ने अपने सधे हुए अंदाज में किया तथा श्रोताओं को अंत तक बांधे रखा। वाणी प्रकाशन की ओर से श्री अरुण माहेश्वरी ने सभी का स्वागत किया और सुश्री अदिति माहेश्वरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
यह आयोजन साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ, जिसने प्रवासी लेखन की भूमिका और हिंदी की वैश्विक उपस्थिति को भी रेखांकित किया। ममता कालिया, तेजेंद्र लूथरा, भगवानदास मोरवाल, नारायण कुमार, लक्ष्मीशंकर बाजपेई, राकेश दुबे, बरुण कुमार, मनोज सिन्हा, शिव कुमार निगम, कमलेश भट्ट ‘कमल’, सुनीता पाहूजा, राजेश मांझी, वंदना यादव सहित अनेक लेखकों और साहित्य प्रेमियों की गरिमामय उपस्थिति ने इसे एक अविस्मरणीय साहित्यिक उत्सव में परिवर्तित कर दिया।
रिपोर्ट – अलका सिन्हा









