
भारतीय आर्ष विचार पश्चिमी संस्कृतियों में घर कर रहे हैं
डा० सुरेन्द्र गंभीर, यूनिवर्सिटि ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया (सेवा-निवृत्त)
वर्ष 2010 में एन्ड्रयू हारवी नामक एक प्रसिद्ध अमरीकी विद्वान लेखक ने लिखा – ‘भारत की आध्यात्मिकता मानव जाति के संरक्षण की एक मात्र आशा है’।
दो विशेष पुस्तकें हैं जो भारतीय चिंतन के बारे में प्रकाशित हुई हैं। पहली पुस्तक 2010 में लिखी गई American Veda है और इसके लेखक हैं प्रतिष्ठित पत्रकार फ़िलिप गोल्डबर्ग। दूसरी पुस्तक 2024 की है The Golden Road जिसके लेखक हैं स्काटलैंड के प्रसिद्ध इतिहासकार और कला समीक्षक विलियम डलरिम्पल। पहली पुस्तक का उपशीर्षक है How Indian Spirituality Changed the World और दूसरी पुस्तक का उपशीर्षक है How Ancient India Transformed the World. ये दोनों पुस्तकें समग्र मानवीय जगत के हितार्थ भारत के ऋषि-चिन्तन की विशद व्याख्या हैं।
मैं अमेरिकी जीवन की बदलती सोच के कुछ और तथ्य यहां जोड़ रहा हूँ। यह सब परिणाम है लगभग 150 वर्षों में दो संस्कृतियों के मिलन का। अमेरिका की सोच में नए विचारों का प्रवेश उन्नीसवीं शताब्दी के समकालीन राल्फ़ वाल्डो एमर्सन, वाल्ट विटमन और हैनरी डेविड थरो से आरंभ हुआ। इन महान कवियों का विशद कविता-साहित्य भगवद्गीता के तात्विक विचारों से प्रभावित है। कालक्रमेण एक सार्वभौमिक चेतना (कास्मिक कांशसनेस) की सार्वत्रिक व्याप्ति अमेरिका के बुद्धिजीवियों में धीरे धीरे घर करने लगी।

उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में स्वामी विवेकानंद का विचारोत्तेजक संक्षिप्त भाषण, बीसवीं शताब्दी में महर्षि महेश के संरक्षण में बीटल्ज़ का भारत आना, और तदनन्तर अमेरिका में हिंदु गुरुओं की अविच्छिन्न परंपरा ने एक क्रांति ला दी। यह क्रान्ति अभी समाज के ऊपरी सतह पर भले दिखाई नहीं देती, परंतु समाज के एक एक व्यक्ति में ज़मीनी स्तर पर अन्तर आ रहा है। अमेरिका में धर्म और दर्शन के ज्ञाता गुरुओं में परमहंस योगानंद, स्वामी राम, भक्तिवेदांत प्रभुपाद, आचार्य रजनीश, नीम करौली बाबा, स्वामी दयानंद सरस्वती, श्रीश्रीरविशंकर, सद्गुरु जग्गी वासुदेव आदि अनेक गुरु हैं जिनके शिष्यों में पढ़े-लिखे वाइट और ब्लैक अमेरिकन शिष्य भी हैं। ऐसे शिष्यों में कुछ अमरीकी शिष्य चमक-दमक त्याग कर सन्यास ले लेते हैं। ऐसे एक शिष्य हैं स्वामी तदात्मानंद, जो धर्म से कैथलिक ईसाई और पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर थे। उन्होंने भारत आ कर संस्कृत और दर्शन का गहन अध्ययन किया।
गुरु की आज्ञा से उन्होंने अपना आश्रम आर्ष बोध सेंटर न्यू जर्सी में वर्ष 2000 में स्थापित किया। वे वहां वेदान्त, संस्कृत के अतिरिक्त बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
अमेरिका के न्यू मैक्सिको प्रदेश में ताउस नाम स्थान पर एक हनुमान मंदिर है जहां आरती से ले कर पूरा प्रबन्धन नीम करौली बाबा के अमरीकी शिष्य ही करते हैं। इन्हीं बाबा के एक शिष्य थे – हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ैसर डा० रिचर्ड एलपर्ट जो बाद में बन गए बाबा रामदास और

उनकी पुस्तकों से भारतीय विचारों को अमरीकी समाज में गहरी पैठ मिली।
ऐप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जाब्ज़ और फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग बाबा के विचारों से प्रभावित हुए, और उन्होंने हिन्दू धर्म की कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएं अपनी जीवन-धारा में उतारीं। इन दोनों विश्व-विख्यात महानुभावों ने उत्तराखंड में बाबा के आश्रम में जा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
अमेरिका में इस समय 23 वेदान्त सोसाइटी या वेदान्त सैंटर हैं। इनका शुभारंभ स्वामी विवेकानंद के कर-कमलों से 1894 में न्यूयार्क सेंटर की स्थापना से हुआ और फिर कालान्तर में विभिन्न स्वामियों ने और सेंटर खोले। सिल्वर स्प्रिंग मैरीलैंड में वाशिंगटन-डीसी ग्रेटर एरिया की शाखा के अध्यक्ष स्वामी आत्मज्ञानानंद हें। ये वाइट अमेरिकन स्वामी पहले डा० स्टुअर्ट एल्कमन थे जिन्होंने यूनिवर्सिटि ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया से भारतीय दर्शन में पीएचडी किया। वे वेदान्त विषयों के प्रकांड विद्वान हैं।

उनके साथ हुई भेंटवार्ता में मैंने उन्हें अत्यन्त विनीत, प्रसन्न-चित्त पाया। वे वेदांत सैंटर में पिछले 44 वर्षो से कार्य-मग्न हैं।
आज अमेरिका में योग की तीन शाखाएं है – शिक्षा-क्षेत्र से जुड़ा योग, जहां योग के विभिन्न पक्षों का शोधपरक अध्ययन होता है। अंग्रेज़ी में लिखी एक नई शोधपरक कृति है योग और राजनीतिक शक्ति। एक योग-स्टडीज़ ऑनलाइन है जिसका योगदान महत्वपूर्ण है। फ़िलाडेल्फ़िया मे स्थित योग रिसर्च सोसाइटी सक्रिय है। उसके वार्षिक अधिवेशन में योग के विभिन्न पक्षों पर शोधकर्ता अपना शोध प्रस्तुत करते हैं। इस अवसर पर योगाभ्यास और संबंधित पुस्तकों की प्रदर्शनी भी होती है। दूसरा क्षेत्र है मैडिकल योग – जिसके अंतर्गत सर्वांगीण स्वस्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम और मैडीटेशन विषयों का वैज्ञानिक अध्ययन होता है। तीसरा पक्ष है योगाभ्यास। योग सिखाने वाले अमेरिका में लगभग बीस हज़ार केन्द्र हैं। उनमें अधिकांश व्यावसायिक हैं। निश्शुल्क योग सिखाने के लिए भी कुछ केन्द्र हैं। इन सब केन्द्रों में योग सिखाने वाली प्रशिक्षित वाइट अमेरिकन महिलाएं ऐसे कार्यक्रमों का नेतृत्व करती हैं। ये कार्यक्रम प्रायः संस्कृत के मंत्र ओ३म् सहनाववतु सहनौ भुनक्तु … से शुरू होते हैं। यूट्यूब पर भी विभिन्न स्तरों पर योगाभ्यास और ध्यान के सैंकड़ों विडियो हैं। इस चित्र में फ़िलाडेल्फ़िया लाइब्रेरी के एक बड़े कक्ष में योगाभ्यास सिखाने वाली प्रशिक्षित शिक्षिका का चित्र देखिए –
ऑनलाइन कार्यक्रमों में मानवीय शरीर में स्थित ऊर्जाकेन्द्र चक्रों के अध्ययन में भी बहुत रुचि है। इन सब विषयों पर प्रकाशनों की भरमार है। फ़िलाडेल्फ़िया के एक बैंक-कर्मचारी कृष्णवर्णा (ब्लैक) महिला के गले में हार के रूप में सात चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान आदि) के मंत्राक्षर मैंने गुदे (टैटूड) देखे तो उनकी अनुमति से उनके गले का एक छायाचित्र लिया जो यहां संलग्न है।

प्यू रिसर्च सैंटर के अनुसंधान के आधार पर अमेरिका में लगभग 36 प्रतिशत ईसाइ-धर्मी आज आत्मा की देहान्तर-प्राप्ति में विश्वास करने लगे हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 62 प्रतिशत लोग मृत-शरीरों को दफ़नाने की बजाय अग्नि-दाहसंस्कार (क्रिमेशन) करते हैं और यह प्रतिशत अगले 20 वर्षों में 82 की संख्या पार करेगा। हिन्दु धर्म से प्रभावित इस परिवर्तन के कारणों में पर्यावरण ओर कम व्यय के प्रति जागरूकता मुख्य कारण हैं। विज्ञान के निकट होने के कारण ये परिवर्तन लोगों को प्रभावित कर रहे है। अग्निदाह-संस्कार के नामों में ऐलबर्ट आंस्टाइन और वाल्ट डिज़्नी जैसे नाम भी सम्मिलित हैं। इन सब परिवर्तनों के साथ ईसाई धर्म में एक नई अनौपचारिक क्रान्ति की लहर है – न्यू एज मूवमेंट। इस मूवमेंट के सदस्य अपने मतों में भारत-मूलक विचारों का समन्वय करते हैं। वे कर्म-सिद्धान्त, पुनर्जन्म, और चेतन-अचेतन में ब्रह्म-चैतन्य देखते हैं, परधर्मसहिष्णुता के प्रति आस्था रखते हुए ईसाई धर्म के धर्मपरिवर्तन-अभियान को मानवता के लिए श्रेयस्कर नहीं मानते।

अमेरिका में इस समय सैंकड़ों प्रकाशन हैं जिनका मुख्य विषय है आर्ष-चिन्तन। आयुर्वेद का नाम भी बढ़ रहा है। श्रीश्रीरविशंकर का एक आयुर्वैदिक स्वास्थ्य-केन्द्र नार्थ कैरोलाइना के पहाड़ों में एक रम्य-स्थली है जहां हर जाति के लोग उपचार के लिए जाते हैं। ऐसा ही स्थल डा० दीपक चोपड़ा का कैलिफ़ोरनिया में है। बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों में अश्वगंधा, हल्दी के कैपसूल आदि आयुर्वैदिक सप्लीमेंट मिलने लगे हैं।