आइना नम्बु नुंग्शी… – मैं बोला जब वह मिली थी गली में…
मणिपुरी में मुझसे “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” सुनकर शर्माकर भाग गई…
स्वभावतः वह घबराई। मणिपुर से मध्य-भारतीय ग्वालियर पढ़ने आई थी और अचानक सुदूर युक्रैन से वहीं पढ़ने आए एक विदेशी से दिल लगा बैठी थी… कभी-कभार मिलना, फ़ोन पर बातें करना, लोगों से छुपाना…
विश्वविद्यालय में पूर्वोत्तरीय छात्र काफ़ी थे, युक्रैन का मैं अकेला था, मेरी अच्छी जमी थी उनसे। अब मणिपुरी लड़की से दिल की बात भी कह डाली थी…
वह डर के मारे बात को नकारने लगी। कंपस के पास मिली…
कुछ नहीं हो सकता, – बोली. – तुम उतने दूर से हो, मेरा परिवार कभी नहीं मानेगा…
तो हमें कोशिश भी नहीं करनी चाहिए?
नहीं… – उसकी आँखें धरती पर टिकी…
प्यार करती हो मुझसे ?
नहीं करती हूँ… – आँखें वहीं, नीचे…
यह आँखें छुपाके नहीं बोलते!
उसने झटके से आँखें उठाईं… पर मिलाने नहीं, दूसरी ओर कहीं दूर देखने के लिए…
कई दिन निराशा में बीते… फिर मान गई…
उस दिन मुझे पता था क्या बोलोगी, – मैंने कहा – बस यह देखना था कैसे बोलोगी… कुछ नहीं छुपा सकती हो मुझसे…
उतना जान गए!.. – वह चौंकी मानो कोई राज़ खुल गया हो…
फिर वही छुपकर मिलना, फ़ोन करना… अब इसमें आशा की झलक भी थी…
एक दिलचस्प बात उसने यह बताई कि जिस दिन मुझसे “प्यार नहीं करती” बोलकर जा रही थी तो अचानक एक कौवे ने उसपर हमला करके सिर पर चोंच मारी थी! गहरी चोट लगी थी, रक्त निकला था… सुनकर मुझे बुरा लगा, अपनी प्रियतमा की हर पीड़ा बुरी लगती है… पर साथ में “झूठ बोलो कौवा काटे” कहावत का उतना जीवंत उदाहरण पाकर हैरान रह गया… कभी-कभी वह फिर घबराकर पीछे हटने लगती तो हँसकर बोलता :
और बोलो, कौवा आ रहा है!
आशा व्यर्थ निकली… यह स्पष्ट हुआ कि उसका परिवार नहीं मानेगा… मेरे जाने का भी समय आया था… रोए दोनों…
दिल में संजोई यादों के बीच कभी कभी उस कौवे की भी याद आती है। चिढ़ होती है उससे। पहले से ही कोई आशा नहीं थी तो क्यों मारा था बेचारी को? किस बात का दंड था वह सच में, झूठ बोलने का या फिर एक विदेशी से दिल लगाने का? कौन था वह कौवा? झूठ पकड़नेवाला शुभचिंतक या फिर जातीय कट्टरता का रक्षक? यह बात मैं आज तक नहीं समझ पाया हूँ…