
गणेश चतुर्थी विशेष: जर्मनी में बप्पा : उमंग उत्साह और इतिहास

डॉ शिप्रा शिल्पी सक्सेना
गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख त्योहार है जो भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसे विनायक चतुर्थी या विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी का मुख्य उद्देश्य भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करना है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि का देवता माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने गणेश जी को अपने स्नान की रक्षा के लिए बनाया था। शिव जी ने गलती से गणेश का सिर काट दिया और बाद में हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनः जीवित किया. दस दिन तक चलने वाला यह पर्व हमेशा भक्तों को आध्यात्मिक प्रगति, धैर्य और सकारात्मकता की ओर अग्रसर करता है।
गणेश चतुर्थी का एक महत्वपूर्ण पहलू भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा है। 19वीं शताब्दी के अंत में, तिलक का उद्देश्य ‘स्वराज्य’ या स्वशासन था, जिसका वो ‘केसरी’ और ‘मराठा’ अखबारों के माध्यम से प्रचार कर रहे थे। ब्रिटिश शासन को ये स्वीकार्य नहीं था उन्होंने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही भारतीयों को एक साथ इकट्ठा होने से रोकने के लिए कई प्रतिबंध लगाए थे।
ऐसे में जनसमुदाय तक अपनी बात को कैसे पहुंचाया जाए ये एक बड़ी चुनौती थी इसलिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 ने पुणे में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की। तिलक का उद्देश्य धार्मिक त्योहार के माध्यम से लोगों को एकजुट करना और राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देना था। गणेश पंडाल स्वतंत्रता सेनानियों के लिए गुप्त बैठकों और रणनीति बनाने का केंद्र बन गए। इन पंडालों में देशभक्ति के गीत गाए जाते थे और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भाषण दिए जाते थे। गुप्त रूप से सांकेतिक भाषा में आगे की रणनीति तैयार की जाती थी।




इस तरह, गणेश चतुर्थी ने धार्मिक त्योहार से बढ़कर एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया, जिसने भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
जर्मनी, विशेषकर कोलोन में गणेश चतुर्थी भारत से दूर, जर्मनी में भी गणेश चतुर्थी का उत्साह कम नहीं है। भारतीय समुदाय के लोग यहाँ भी इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। कोलोन में भारतीय समुदाय काफी सक्रिय है और वे मिलकर इस त्योहार का आयोजन करते हैं।
कोलोन में गणेश चतुर्थी का आयोजन अक्सर स्थानीय हिंदू मंदिरों या सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है। लोग अपने घरों में भी भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। गणपति जी की मूर्ति को फूलों, रोशनी और रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है।पूरे दिन भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और आरती का आयोजन होता है। भारतीय मिठाइयां और पारंपरिक व्यंजन, जैसे मोदक, लड्डू आदि बनाए और बांटे जाते हैं। त्योहार के अंतिम दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहते हैं, भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन (immersion) किया जाता है। हालांकि, जर्मनी में नदियों में विसर्जन संभव नहीं है, इसलिए इसे प्रतीकात्मक रूप से किया जाता है।
कोलोन में गणेश चतुर्थी का उत्सव केवल धार्मिक नहीं होता, बल्कि यह भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का एक माध्यम भी है। यह उत्सव जर्मनी में रहने वाले भारतीयों के लिए अपने देश की यादों को ताजा करने और एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशियां मनाने का अवसर होता है। विगत वर्ष 5000 से भी ज्यादा भारतीयों ने मिलकर ड्यूसेलडोर्फ में झांझ , मंजीरा ढोल पर गाते बजाते बप्पा का स्वागत किया था। जर्मनी की राजधानी बर्लिन में ये मराठी समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक भव्य उत्सव है जिसे बर्लिन की प्रसिद्ध इमारत ब्रांडेनबर्ग गेट के सामने मनाया जाता है । जिसमें हजारों की संख्या में भारतीय एकत्र होते है साथ ही भारतीय दूतावास भी अपनी सहभागिता देता है। इसी प्रकार म्यूनिख में महाराष्ट्र मंडल द्वारा पारंपरिक पूजा, आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम व संगीत का आयोजन किया जाता है, आमतौर पर दस दिन तक फ्रैंकफर्ट, हैम्बर्ग आदि जगहों पर लोकल भारतीय समुदाय द्वारा छोटे पैमाने पर कार्यक्रम किए जाते हैं। कुछ जगहों पर बच्चों के लिए इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाने की कार्यशाला भी आयोजित की जाती है। जर्मनी के शहरों में कला, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के साथ भारतीय मूल के लोग अपने प्रियजन के साथ मिलकर यह पर्व मनाते हैं।
गणेश चतुर्थी का त्योहार हमें सिखाता है कि आस्था और एकता मिलकर बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। भारत में हो या जर्मनी में, यह त्योहार हमेशा लोगों को एकजुट करता रहेगा।
