
बनीठनी: प्रेमकला से चित्रकला
नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
देखना और है, लेकिन देखते रह जाना कुछ और। बनीठनी या बणीठणी की तस्वीर जब सबसे पहले देखी तो उसे देखा नहीं, बल्कि उसे देखता ही रह गया। तब लिखा था कि यह एक निष्पाप कैशोर्य की सुंदरता का अंकन है, कला के आकाश से टपकी ऐसी स्वाति बूँद है जो किशनगढ़ शैली की सीप में समाकर कला का अनमोल मोती बन गई। राधा के रूप और लावण्य को अपने चरम में छूने वाला यह एकमात्र अप्रतिम और अतुलनीय चित्र है। इसे देखकर लगता है कि जैसे क्षितिज के फलक पर अनायास ही ऊषा के रंगों ने अंगड़ाई ली हो और वे जाग गए हों।
उसे बनीठनी कहते ही इसलिए हैं, क्योंकि उसे ब्रह्मा ने ही ऊपर से सजाकर, संवारकर भेजा था। उसके अंग प्रत्यंग ही उसके मोहक परिधान थे और उसके हावभाव ही उसके अलंकरण। वह अप्सरा नहीं थी, लेकिन विधाता ने शायद इन्द्र का अभिमान तोड़ने के लिए उसे गढ़ दिया था। वह विधाता की रची हुई बणीठणी थी, जिसे महान चितेरे निहालचंद ने रंगों और रेखाओं के माध्यम से धरती पर उतार दिया था।




कैसी है यह बणीठणी! माथे पर गोल बेंदा, जो मोतियों की लड़ी से कुछ इस तरह सजा हुआ, जैसे एक छोटे से सूरज की सफेद किरणें सुबह सुबह फूट रही हों, संवारे हुए ऐसे केश जो फूलों से भरपूर चूनर से आधे ढँके हैं लेकिन गर्दन तक आते आते सघन हो गए और फिर कान के पास से उनकी एक लट छिटककर कुछ इस तरह अलग हो गई, जैसे यमुना की क्षीण धारा अपने स्रोत से एक पतली रेखा के रूप में फूटी हो और आगे जाकर फिर इसकी एक और पतली रेखा अलग प्रवाहित हो गई हो और मूल लहराती धारा अपने पूरे वेग के साथ प्रयागराज में बहती गंगा में विलीन हो गई हो।
झुमकों से सज्जित कान, नाक में नथ और भौंह ऐसी सर्पिल जैसे सांवली पद्मा नागिन भाल पर अठखेलियाँ कर रही हो। कटार सी तीखी लेकिन सपनों से भरपूर ऐसी आँखें जिनमें नेह का नीर और विरह की पीर है। उसकी आंखों की पुतलियाँ, पुतलियाँ नहीं, दुल्हन हैं, जिन्हें पलकों के आँचल ने ढांक लिया है।
लम्बी और उन्नत तथा सुती हुई नाक है जिसके नीचे गहरे लाल ओठों की रेखा ऐसी है जैसे खिलते हुए कमल की पांखुरियों ने एक कतार संवार दी हो। गोल चिबुक, लम्बी कमलिनी की नाल सी भव्य हार से अलंकृत गर्दन और हल्के गाढ़े रंगों के बीच से उभरती हुई इस जादुई राधा के सौंदर्य में मुझे लगा कि जैसे सौंदर्य की ममता झाँकती हो और फिर इस नतीजे पर पहुँचा कि यह अंकन राधा के सौंदर्य का चित्रांकन नहीं सौन्दर्य का राधांकन है.
बृज संस्कृति शोध संस्थान वृन्दावन से प्रकाशित मेरी कृति “बनीठनी:प्रेमकला से चित्रकला” तक का अंश तथा अनुक्रमांक १ पर प्रस्तुत बनीठनी के व्यक्तिचित्र तथा निहालचंद के द्वारा निर्मित उसके कुछ अन्य लघुचित्रों की छवियाँ