
श्री राधेश्याम कथावाचक का जन्म 25 नवम्बर, 1890 को संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध में बरेली शहर के बिहारीपुर मोहल्ले में हुआ था। वे एक हिंदी साहित्यकार थे। पारसी रंगमंच शैली के हिंदी नाटककारों में उनका नाम प्रमुख है। उन्होंने लोक-नाट्य-शैली के आधार पर खड़ीबोली में रामायण की कथा को 25 खण्डों में पद्यबद्ध किया। इस कृति ने ‘राधेश्याम रामायण’ के नाम से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की। केवल 17-18 की आयु में ही उन्होंने सहज भाव से इसकी रचना कर ली थी। हिंदी भाषा-भाषी प्रदेशों, विशेषतया उत्तर प्रदेश के ग्रामों में इसका प्रचार हुआ। कथावाचकों ने अपने कथावाचन तथा रामलीला करनेवालों ने रामलीला के अभिनय के लिए इसे अपनाया। इसके कई अंशों के ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड बने। सामान्य जनता में उनकी ख्याति रामकथा के संबंध में उनकी विशिष्ट शैली के कारण फैली। ‘अल्फ़्रेड नाटक कम्पनी’ से जुड़कर उन्होंने ‘वीर अभिमन्यु’, ‘भक्त प्रह्लाद’, ‘श्रीकृष्णावतार’ आदि अनेक नाटक लिखे। अपनी जनप्रिय रचनाओं के द्वारा हिंदी के प्रचार-प्रसार में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
लाहौर विश्व धर्म सम्मेलन का शुभारम्भ उन्हीं के लिखे व गाये मंगलाचरण से हुआ था। उन्होंने ‘महारानी लक्ष्मीबाई’ और ‘कृष्ण-सुदामा’ जैसी फ़िल्मों के लिए गीत भी लिखे। अपनी मृत्यु से पूर्व वे अपनी आत्मकथा ‘मेरा नाटककाल’ नाम से लिख गए थे।
राधेश्याम कथावाचक ने अपने जीवनकाल में विपुल लेखन किया था। लगभग स्वयं की लिखी 57 पुस्तकें तथा 175 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन एवं प्रकाशन करके राधेश्याम पुस्तकालय (प्रेस) को ऊँचाइयों तक पहुँचाया। अपने जीवन के लगभग 45 वर्षों तक कथावाचन एवं नाट्यलेखन-मंचन में वे भारत के सिरमौर बने रहे। उन्होंने कथावाचन की जो शैली विकसित की, उसे राधेश्याम छन्द (तजऱ् राधेश्याम) के रूप में प्रसिद्धि मिली। खड़ी बोली में लिखी रामायण का प्रयोग सफल रहा। ‘राधेश्याम रामायण’ उनके जीवनकाल में ही लगभग सवा करोड़ परिवारों में पहुँच चुकी थी।
उन्होंने रामायण के अतिरिक्त अनेक नाटक भी लिखे। एक समय ऐसा भी था, जब उनके नाटकों ने पेशावर, लाहौर और अमृतसर से लेकर दिल्ली, जोधपुर, बंबई, मद्रास और ढाका तक पूरे हिन्दुस्तान में धूम मचा रखी थी। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘श्रवणकुमार’, ‘परमभक्त प्रह्लाद’, ‘परिवर्तन’, ‘श्रीकृष्ण अवतार’, ‘रुक्मिणी मंगल’, ‘मशरिकी हूर’, ‘महर्षि वाल्मीकि’, ‘देवर्षि नारद’ एवं ‘उद्धार और आज़ादी’।
26 अगस्त, 1963 को उनकी मृत्यु हुई। उनकी पुण्यतिथि पर विश्व हिंदी सचिवालय की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि है।
साभार : विश्व हिंदी सचिवालय