
दोराबजी टाटा
रजनीकांत शुक्ला
दोराबजी टाटा का जन्म 27 अगस्त 1859 को मुंबई में हुआ था। वे भारत में स्टील उद्योग की नींव रखने वाले और टाटा समूह के पहले चेयरमैन थे। हम अपने बचपन के दिनों में गांव-देहात में एक कहावत अक्सर सुना करते थे कि जूते में बाटा और स्टील में टाटा का कोई जोड़ नहीं है। तब इस बात को नहीं जानते थे कि टाटा स्टील हमारे देश की ही कंपनी है और इस कंपनी के संस्थापक सर दोराबजी टाटा थे। हमारे देश की तरक्की में उनकी अहम भूमिका रही है।
दोराबजी टाटा ने साल 1907 में टाटा स्टील और 1911 में टाटा पावर की स्थापना की थी। 1919 में भारत की सबसे बड़ी जनरल इंश्योरेंस कंपनी ‘न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी’ बनाई। वहीं उन्होंने जमशेदपुर के रूप में एक आदर्श शहर बसाया। जिसकी आज पूरे देश में अपनी अलग पहचान है।
उन्होंने भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रहते हुए साल 1924 में पेरिस ओलंपिक के लिए भारतीय दल की वित्तीय मदद भी की। उन्होंने बॉम्बे गजट अखबार में दो सालों तक बतौर पत्रकार का काम भी किया था। दुनिया उन्हें स्टीलमैन के नाम से जानती है। 73 साल उम्र में उन्होंने साल 1932 में दुनिया को अलविदा कह दिया।
सर दोराबजी टाटा की कोशिशों के कारण ही साल 1920 में भारत के छह खिलाड़ियों की टीम 1920 के एंटवर्प ओलंपिक में हिस्सा लेने पहुँची थी। ओलंपिक में हिस्सा लेने वाला भारत पहला एशियाई औपनिवेशिक देश था। सर दोराबजी टाटा भारत के प्रमुख स्टील और आयरन कारोबारी जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे थे।
सर रतनजी टाटा (दोराबजी टाटा के 12 साल छोटे भाई) से पहले दोराबजी टाटा ही थे, जिन्होंने अपने पिता जमशेदजी टाटा का सपना पूरा किया। वो ‘टाटा’ कंपनी को स्टील और आयरन के कारोबार में मज़बूत जगह देखना चाहते थे।
ब्रिटिश इंडिया में उनके औद्योगिक योगदान के लिए साल 1910 में दोराबजी टाटा को’ नाइट’ की उपाधि सम्मानित किया गया था।
वरिष्ठ खेल पत्रकार बोरिया मजूमदार और पत्रकार नलिन मेहता की क़िताब ‘ड्रीम ऑफ़ अ बिलियन’ में दोराबजी टाटा के ओलंपिक में योगदान का विस्तार से उल्लेख है।
मुंबई में जन्में दोराबजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मुंबई में पूरी की और इसके बाद गॉनविल एंड कीज़ कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज में दाखिला ले लिया। इंग्लैंड के कॉलेजों में खेलों को मिलती प्राथमिकता से वो प्रभावित हुए। भारत लौटकर मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज में 1882 तक पढ़ाई की।
बोरिया मजूमदार और नलिन मेहता अपनी किताब में बताते हैं कि दोराबजी टाटा ने युवाओं को खेल से जोड़ने के लिए कई स्कूलों और कॉलेजों में एथलेटिक्स एसोसिएशन और एथलेटिक्स स्पोर्ट्स मीट के आयोजनों को प्रोत्साहन दिया और उसके गठन में अहम भूमिका निभाई।
1988 में 14 साल के सचिन तेंदुलकर ने एक इंटर-स्कूल टूर्नामेंट में विनोद कांबली के साथ 664 रन की पार्टनरशिप खेली थी। दुनियाभर के अख़बारों में सचिन और विनोद कांबली के इस अविश्वसनीय प्रदर्शन के बारे में चर्चा हुई। सचिन को ये बड़ी पहचान दिलाने वाले इंटर-स्कूल टूर्नामेंट का नाम हैरिस शील्ड था। इसकी शुरुआत सर दोराब जी टाटा ने साल 1886 में की थी।
धीरे-धीरे ओलंपिक को लेकर जागरुकता बढ़ी। 1920 में ज़्यादातर पैसा टाटा, राजा और सरकार की तरफ़ से आया था, इस बार देश के कई राज्यों से सेना तक ने मदद की।
राज्य स्तर पर हो रहे ‘ओलंपिक ट्रायल्स’ अख़बारों में सुर्ख़ियाँ बटोर रहे थे। 1920 के ओलंपिक के लिए दोराबजी टाटा ने अपने तजुर्बे के आधार पर ही खिलाड़ियों का चयन किया था। लेकिन इस बार कई चरणों की प्रतियोगिताओं के बाद ‘दिल्ली ओलंपिक’ के ज़रिए चयन हो रहे थे। इस व्यवस्थित चयन प्रणाली के कारण ही ऑल इंडिया ओलंपिक एसोसिएशन का गठन हो पाया। आठ खिलाड़ियों को साल 1924 के पेरिस ओलंपिक में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला।
साल 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक में भारत को पहली बार स्वर्ण पदक मिला।
यह मेजर ध्यानचंद और हॉकी के कारण मुमकिन हो पाया। इसके बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने लगातार छह बार स्वर्ण पदक हासिल किए थे।