हिंदी दिवस: एक दिन के लिए नहीं बल्कि जीवन भर का उत्सव

शैलजा सक्सेना

मित्रो, हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

वर्ष में दो दिन, १४ सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ और १० जनवरी को ’विश्व हिंदी दिवस’ हमें हिंदी के प्रचार-प्रचार के संकल्प की ओर मोड़ते हैं। कुछ नई योजनायें, प्रोजेक्ट शुरू किये जाते हैं और उनमें से कुछ निरंतरता भी पाते हैं। १४ सितंबर का ‘हिंदी दिवस’, हिंदी पखवाड़ा बनकर उत्सव का रूप भी धारण कर लेता है जहाँ एक-एक वक्ता कई कार्यक्रमों में आमंत्रित रहता है और श्रोताओं की स्थिति भी प्राय: यही रहती है। दुनिया भर में इस समय अनेक कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, यह हिंदी की उपस्थिति की आवाज़ है, उसकी धमक है पर यह आवाज़ या धमक क्या नए वक्ता और नए श्रोता, नए हिंदी प्रेमी पैदा कर पा रही है, यह विश्लेषणीय है।

आज के अंग्रेज़ी प्रभाव वाले समय में अपनी भाषा या संस्कृति से जुड़े रहना, जागरूकता और निरंतरता माँगता है, यह हिंदी पट्टी से दूसरी भाषाओं को साथ लेकर चलने और उन्हें आदर देते हुए अपने से जुड़ने के आमंत्रण की माँग करता है। कोई भाषा केवल इसलिए नहीं बची रह सकती कि हम उस भाषा को सुनते हुए बड़े हुए हैं या उसमें पैदा हुए हैं। भाषा उपयोग में आती है ‘बोली’ बनकर, किंतु हर काल में उसके उपयोगी बने रहने के लिए भाषा का शब्दकोश बचाना/ बढ़ाना और उसकी लिपि का प्रयोग करना अनिवार्य है अन्यथा भाषा अपनी समृद्धि और पद खोकर पहले बोली बनती है और फिर खो जाती है। इन हिंदी दिवसों पर हिंदी भाषा के भाषा बने रहने पर गंभीरता से काम प्रारंभ करने की और निरंतर करते रहने पर विचार होना चाहिए और हो रहा है। समय इसके परिणाम बतायेगा पर हमें अपने संकल्प को जहाँ दृढ़ करना है वहीं अनेक दिशाओं में इसको बनाये रखने और आगे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है।

जैसे संगम में कई नदियाँ मिलती हैं, वैसे ही हर भारतीय को अपने भीतर भाषा का यह संगम बनाना होगा। अपनी मातृभाषा के साथ हिंदी की व्यापकता और भारत की मुख्य सम्पर्क भाषा बनने के सामर्थ्य को समझना होगा। हिंदी की लड़ाई भारत की किसी भाषा से नहीं, किसी और भाषा को कम समझने की फ़ितरत भी उसमें नहीं, हिंदी के इधर-उधर खड़े कट्टरपंथियों और राजनीतिज्ञों को समझना होगा कि भाषायें सहकारिता से बनती और बढ़ती हैं, एकांगितायें भाषा को क्षीण करती हैं। लाठी लेकर लड़ना भाषाप्रेमियों का काम नहीं, कलम लेकर अपनी बातों को सामने रखना, चर्चा करके किन्हीं स्वस्थ निर्णयों पर पहुँचना भाषाप्रेमियों का काम है। हमें यही काम करना है। हमें यही हिंदी के विकास की यही तीर्थ यात्रा करनी है।

   यात्रायें मनुष्य ही नहीं, भाषा, समाज, संस्थाओं, संस्कृतियों, सबकी होती हैं। वैश्विक हिंदी परिवार की यात्रा की वर्तमान स्थिति से मैंने अपने पहले संपादकीय का प्रारंभ किया था पर संस्था के वर्तमान पड़ाव तक पहुँचने की यात्रा में अनेक साथी जुड़े, जो लंबे समय तक सक्रिय रहे और अभी भी अपने विचारों और प्रोत्साहन से हमें आगे बढाते हैं। हमारे साथ प्रारंभ से ही ब्रिटेन से पद्मेश गुप्त जी, दिव्या माथुर जी, स्व.जय वर्मा जी, भारत से राहुलदेव जी, राजेश कुमार जी, बालेंदु शर्मा दधीचि जी, आदरणीय जगन्नाथन जी, नारायण कुमार जी,  विनयशील जी, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के श्री श्याम परांडे जी, अमेरिका से अनूप भार्गव जी, सिंगापुर से डॉ. संध्या सिंह जी, आराधना झा श्रीवास्तव जी, मॉरीशस से माधुरी रामधारी जी, जापान से तोमियो मिज़ोकामी जी आदि अनेक साथी जुड़े और हमारे पैरों को गति और इरादों को दृढता दी। 

हमारे ये साथी हमारे साथ जुड़े रहें साथ ही और नये साथी जुड़ें, अपने अनुभवों, लेखन तथा हिंदी प्रेम को हमारे साथ साझा करें। हिंदी का यह कदमताल सबको साथ लेकर और सबके साथ मिलकर चलने वाला है, तभी हिंदी बचेगी तथा आगे बढ़ेगी।

आइये, इस हिंदी दिवस पर हिंदी का उत्सव एक दिन के लिए नहीं अपितु जीवन भर मनाने का संकल्प लें। खूब पढ़ें, खूब सोचें, खूब चर्चा करें और खूब लिखें। अपने को अपनी भाषा में दे देना साधना है और उसे अन्य भाषाओं में अनूदित कर दूर तक पहुँचना, साधना की सिद्धि!

आप सबकी साधनाएँ सफल हो…

हार्दिक शुभकामनाएँ!

सादर

शैलजा

सितंबर 15, 2025

4 thoughts on “हिंदी दिवस: एक दिन के लिए नहीं बल्कि जीवन भर का उत्सव – (संपादकीय-2)”
  1. शैलजा जी, बहुत खूब लिखा….!!!
    निरंतरता और सोच ये महत्त्वपूर्ण चीज़ें हैं। जहाँ अनिवार्य नहीं, हिंदी समझने वाले लोग आस पास हों…हिंदी ही बोलें। विदेश की धरती यद्यपि ऐसे अवसर कम ही देती है। नोफ्रिल या किसी जगह जहाँ हिंदी भाषी मिल जाते, मैं अक्सर हिंदी में बतियाती,एक सुकून और अपनापन मिलता..!!!
    आशा है अगले हिंदी दिवस पर कनाडा में होंगे।
    ज़रूर मिलेंगे..!!!

  2. बहुत सुन्दर संपादकीय । हिन्दी का प्रचार प्रसार करते रहने के साथ साथ हिन्दी को समर्पित रहना भी हमारा दायित्व है ।

  3. नमस्कार शैलजाजी
    बहुत अच्छा संपादकीय। यह सच है कि हिंदी की जीवन भर का उत्सव स्वीकारकर इसे जीना होगा। हार्दिक शुभकामनाएं

  4. शैलजा जी
    अभिनंदन! आप हिंदी भाषा,हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति की संवाहक हैं ।आपकी लेखनी बहुविधा सम्मत है।आपके भाव और वाणी दोनों में परिपक्वता है।शुभ आशीर्वाद💐

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