
“प्रवासी कथाकार शृंखला”

राकेश मिश्र
शैलजा सक्सेना जी से मेरा परिचय हिंदी राइटर गिल्ड के मासिक कार्यक्रम में हुआ। उनकी लिखी कहानियों को पढ़ने से पहले मैंने उन्हें सुना है और उनकी विषयों पर अधिकार और भाषा के प्रवाह का प्रशंसक रहा हूँ। जब वे कुछ बोलने के लिए उठती हैं तो गोष्ठी में उपस्थित श्रोता शायद स्थिरता का अनुभव करते हैं, क्योंकि सब ध्यान मग्न हो बस सुन रहे होते हैं। उनकी लघु कथाएँ और कहानियाँ अक्सर ऑनलाइन प्रकाशित होती हैं। मुझे इस बार उनकी कहानियों के संग्रह “प्रवासी कथाकार शृंखला” पढ़ने का अवसर मिला और पाया कि यह एक भावनात्मक यात्रा है, जिसमें 13 कहानियाँ हैं। हर एक कहानी अपने समय, अनुभव और संवेदना की अलग छाया लिए हुए है। इन कहानियों को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे लेखक ने जीवन के अलग-अलग रंगों को बहुत ही आत्मीयता से बुना है। हर कहानी एक नया दरवाज़ा खोलती है, एक नया अनुभव देती है, और फिर अगले अनुभव की ओर सहजता से ले जाती है।
कहानी “आग” से यह यात्रा शुरू होती है। दिल्ली के अग्रवाल परिवार की पृष्ठभूमि में रिश्तों की गर्माहट और उलझनों की एक रोचक झलक मिलती है। दो भाइयों और उनकी पत्नियों के बीच का विवाद, और उसे सुलझाने की कोशिश में लगे वकील साहब की भूमिका, कहानी को जीवंत बनाती है। जैसे ही यह पारिवारिक गुत्थी सुलझती है, हम अगली कहानी “उसका जाना” में प्रवेश करते हैं, जहाँ एक परिवार भारत से कनाडा जाकर बसने की कोशिश करता है। सपनों और हकीकत के बीच की खाई, रिश्तों की खटास, और एक किशोरी जिसका नाम बेला है की मासूम लेकिन साहसी उपस्थिति इस कहानी को बेहद मार्मिक बना देती है। उस बच्ची की दृढ़ता आपको भीतर तक छू जाती है। बेला बेसमेंट अपार्टमेंट में अपने दो छोटे भाइयों और माँ के साथ रहती है। पिता ट्रक पर ड्राइवर के सहायक हैं और कभी-कभी घर आते हैं। एक मामा-मामी हैं जिनके भरोसे पिता जी सबको कनाडा ले आए, लेकिन उनके साथ अपेक्षा के अनुरूप संबंध नहीं हैं। पिता अत्यधिक शराब पीते हैं और माँ को पीटते हैं। वह कई बार घरेलू हिंसा देख चुकी है, जो किसी परिवार में नहीं होनी चाहिए। इसी बीच वह अपनी आयु से अधिक बड़ी हो गई है, अपनी माँ का दाहिना हाथ है, छोटे भाइयों का ध्यान रखती है। दसवीं में पढ़ती है और चुपके से अपनी माँ को “ईएसएल” अंग्रेज़ी की कक्षा में प्रवेश दिला दिया है ताकि माँ स्वावलंबी बन सके। पुस्तक में कई मार्मिक क्षण हैं, जिनमें बेला को गले लगाकर उसे सांत्वना देने का मन करता है। लेकिन बेला तो बहुत बहादुर है और वह खड़ी है अपनी माँ के साथ, उसका संबल बनकर।
इस मार्मिक कहानी के बाद अगली कहानी “एक था जान स्मिथ” हमें एक अलग ही भावभूमि में ले जाती है। यह कहानी महेश और जॉन स्मिथ की दोस्ती की है, जो जॉन की मृत्यु के बाद उसकी अंतिम इच्छा से शुरू होती है। कहानी आत्ममंथन और स्नेह से भरी है, और इतनी मानवीय है कि देश और संस्कृति की सीमाएँ कहीं पीछे छूट जाती हैं।
फिर आती है कहानी “चाह”, जो एक भावनात्मक रहस्य की तरह है। गीता और राज के बीच संवाद में एक गहराई है, एक टीस है जो पूरी तरह फूटती नहीं, बस भीतर ही भीतर रिसती रहती है। यह कहानी पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि शायद कुछ और संदर्भ होते तो समझना आसान होता।
इस भावनात्मक गहराई के बाद अगली कहानी “दाल और पास्टा” एक सुकून भरा विराम देती है। यह कहानी एक प्रवासी महिला की स्मृतियों की यात्रा है, जिसमें सुख, शांति और संतोष की झलक मिलती है। इसे पढ़ते हुए माँ की गोद की गर्माहट महसूस होती है ,यह एक ऐसा अनुभव जिसमें अपना परिवार है, और कुछ अर्जित परिवार के सदस्य हैं और जीवन से भरपूर प्रेम है।
जैसे ही हम इस सुकून से बाहर आते हैं, अगली कहानी “दो बिस्तर अस्पताल में” हमें एक अस्पताल के कमरे में ले जाती है। यहाँ एक स्त्री अपने जीवन की समीक्षा कर रही है, और उसके पास की वृद्धा जीवन से हार चुकी है। यह कहानी बहुत मार्मिक है और स्त्री के प्रवासी संघर्षों को गहराई से दिखाती है। अंत में एक गहरी सहानुभूति और आत्मचिंतन की भावना रह जाती है।
इसके बाद की कहानी “निर्णय” एक नई दिशा देती है। यह कहानी मित्रता, विवाह, तलाक और फिर से विवाह की यात्रा है। इसमें प्रेम, क्षमा, क्रोध और आत्मस्वीकृति के सभी रंग हैं। पूरी कहानी में उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होगा, और अंत में एक व्यवस्थित सा संतोष मिलता है।
अगली कहानी है “नीला की डायरी” यह एक प्रवासी महिला के 15 वर्षों के अनुभवों की डायरी है। 9/11 के बाद की अनिश्चितता, नौकरी की चिंता, बच्चों की जिम्मेदारी , सब कुछ बहुत सच्चाई से लिखा गया है। इसे पढ़ते हुए मुझे अपने अमेरिका प्रवास के दिन याद आ गए। ऐसा लगा जैसे नीला की डायरी में मेरे अनुभव भी दर्ज हैं।
इसके बाद अगली कहानी “पहचान: एक शाम की” एक स्त्री की छोटी-छोटी इच्छाओं और उनके त्याग की कहानी है। जया के मन का द्वंद्व बहुत सजीव है। वह एक शाम को अपने मन का कुछ करना चाहती है, लेकिन उसमें भी असमंजस और अपराधबोध है। कहानी का अंत हल्की सी आश्वस्ति देता है, जैसे किसी ने धीरे से कंधे पर हाथ रखकर कहा हो “तुम भी मायने रखती हो।”
और फिर आती है लेबनान की वो रात, जो मेरे दिल को सबसे ज़्यादा छू गई। एक माँ की अपने बेटे की यादों में डूबी रात ,भय और प्रेम के बीच की कहानी। यह कहानी लंबे समय तक मन में बनी रहती है। स्त्रियाँ कैसे संबंधों को गूँथ लेती हैं, यह उसका उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कहानी में एक मुस्लिम लड़की यास्मीन है, जो अपना नाम आलुष्का बताती है ताकि आधी रात को उसे एक यहूदी परिवार में शरण मिल सके, क्योंकि बेरुत में माहौल ख़राब हो चुका है और उसे सुरक्षा चाहिए। रात के अँधेरे में जब जूली को पता चल जाता है कि यह मुस्लिम लड़की है, वह पहले तो आशंकित हो जाती है, लेकिन बाद में यास्मीन से अपने बेटे के विषय में जानकर जो कि ब्रिटिश सेना में जबरदस्ती भर्ती किया गया है और उसे तीन साल हो चुके हैं गए हुए वह नर्म हो जाती है। और उस लड़की को कहती है कि वह अपना परिचय यहूदी नाम आलुष्का से ही दे और कहे कि वह उसके बेटे की मंगेतर है। कहानी में अनिश्चितता है, भय है, बहुत सी आशंकाएँ हैं, लेकिन कोमल सह-अस्तित्व भी है l जूली जो यहूदी माँ है और यास्मीन जो एक मुस्लिम किशोरी है, जो अकेली है और सुरक्षा चाहती है बाहर हो रही हिंसा से , दोनों एक दूसरे का ढाँढस हैं l
इस सुंदर और मार्मिक कहानी के बाद अगली कहानी “वह तैयार है” यह एक वृद्ध महिला ईवान की कहानी है, जो वर्षों से एक कार्यालय में कार्यरत रही है और अब छँटनी के दौर में उसे हटाया जा रहा है। उसका आत्म-सम्मान, दुख और अंत में मानसिक तैयारी बहुत संतुलित रूप से सामने आता है। ईवान की चिंताएँ हैं, लेकिन वह विचलित नहीं होती, बल्कि एक नई शुरुआत के लिए खुद को तैयार करती है।
“शात्र” हमें एक अफ्रीकी महिला की कहानी सुनाती है, जो नौकरी के साक्षात्कार के लिए आई है। बातचीत में जीवन की प्राथमिकताएँ और समझ बहुत सुंदर ढंग से उभरती हैं। यह कहानी शांति और सहजता से भरपूर है, बिना किसी नाटकीयता के, लेकिन गहराई से भरी हुई।
और अंत में “अदर मदर” टोरंटो की पृष्ठभूमि में दो सहेलियों की कहानी है। मृत माँ की चिट्ठी, धार्मिक मान्यताएँ, और गंगा में दीप प्रवाहित करने की इच्छा ,सब कुछ बहुत भावुक है। यह कहानी पढ़कर अपने करीबी मित्र और परिवार की याद आ जाती है। यह कहानी संग्रह का एक सुंदर समापन है, जैसे किसी पुराने दोस्त से विदा लेते हुए उसकी बातों को दिल में संजो लेना।
हर कहानी का शिल्प और विषय अलग है, लेकिन ज़्यादातर कहानियों में स्त्रियाँ केंद्र में हैं। फिर भी, “आग”, “निर्णय”, “पहचान”, और “लेबनान की वो रात” जैसी कहानियाँ इस दायरे से बाहर भी जाती हैं। कहानियों के अंत में एक उम्मीद है, एक संकल्प है बेहतर होने का। भाषा सहज और आम बोलचाल की है, मुख्य पात्र जीवंत हैं और अपने आस-पास के लोग ही लगते हैं, जिससे पाठक का जुड़ाव सहज ही हो जाता है और कहानी में जो घट रहा है उससे जुड़ा रहता है।
पुस्तक: प्रवासी कथाकार शृंखला – शैलजा सक्सेना (कहानी संकलन)
लेखक: डॉ. शैलजा सक्सेना
प्रकाशक: प्रलेक प्रकाशन प्रा. लि.
पृष्ठ संख्या: 176
ISBN-10 : 9390500206
ISBN-13 : 978-9390500208
मूल्य: ₹299.00 (हार्डकवर) / ₹198.00 (पेपरबैक)
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