एक ही घर में दो दुनिया, एक गतिमान और दूसरी स्थिर।
व्हील चेयर में धँसी कैमिला की दुनिया में पहिए चलते लेकिन वह स्थिर रहती। हेनरी खुद भी चलता और पत्नी को भी धकियाता। कई बरस पहले जब व्हील चेयर घर में आयी थी तब इस बात का अहसास भी नहीं था कि एक दिन कैमिला इसमें सिमटकर रह जाएगी।
एक दिन जब घुप्प अंधेरे में किसी भारी चीज से टकराकर जोर की ठोकर लगी थी और वह गिर पड़ी थी तब डॉक्टर ने कम से कम दस दिन तक न चलने की सलाह दी थी। हेनरी ने उसकी सुविधा के लिए तुरंत व्हील चेयर खरीद दी थी और बहुत मन से उसे बैठाकर धकेलता था। कहता- “तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकता हूँ कैमि। कल को चलने लगोगी तो मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी। अभी कम से कम मैं तुम्हारे इर्द-गिर्द तो रह सकता हूँ।”
तब हर पल हेनरी के प्यार को महसूसते, उसे अपने आस-पास देखते हुए, परिहास के अंदाज में उसने कहा था- “जी करता है अब इसी व्हील चेयर पर रहूँ। तुम्हारा इतना प्यार जो मिलता है, मेरे कंधों पर तुम्हारे हाथ मुझे असहाय नहीं रहने देते।”
हेनरी ने मुस्कुराते हुए उसके गालों को थपथपाया था।
“सच्ची हेनरी, इतने दिनों में एक बार भी हमारा झगड़ा नहीं हुआ।”
“झगड़ा नहीं, डिबेट कहो। किसी बात पर बहस करना झगड़ा नहीं होता।”
“आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं कहा तुमने। तुम्हारी आँखें उसे झगड़े की तरह ही लेती थीं।”
हेनरी ने इसे बहुत हल्के में लिया था कहा- “आँखें तुम्हें देखकर चकरा जाती होंगी, बस और कुछ नहीं। मगर कैमि, अच्छे पैर हों तो भी तुम बैठी रह सकती हो, व्हील चेयर पर नहीं, इस शानदार सिंहासन जैसी कुर्सी पर। तब भी मैं तुम्हारे पीछे ही रहूँगा।”
मजाक में कही गयी कैमिला की वह बात कुछ-एक सालों में उसकी जिंदगी बन गयी। बर्फ की फिसलन से गिर पड़ी थी। पैर ही नहीं फिसला था बल्कि पूरा शरीर ऐंठ गया था। महीने भर बिस्तर में रहने के बाद, फिजियो के अथक प्रयास से शरीर के बाकी अंग तो सक्रिय हो गए लेकिन पाँवों की हालत न सुधरी। उसके बाद वह दुबारा पैरों पर खड़ी न हो पायी। विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम का कहना था कि कुछ वर्षों बाद पैरों की क्षमता खुद-ब-खुद बढ़ेगी, शायद तब सर्जरी के बाद पैर वापस चलने लायक हो जाएँ।
अगले पाँच सालों के दौरान एक के बाद एक कई चेकअप हुए। सालों इस चेयर में कैद रहने के बाद आखिरकार सर्जरी के लिए हरी झंडी मिल गयी। कल सर्जरी है। इसके बाद हमेशा के लिए इस चेयर से मुक्ति मिल जाएगी।
हेनरी बहुत आशावान था, खुश भी था कि अब कैमि बहुत जल्दी चलने लगेगी। कैमि को इस तरह असहाय देखना उसके लिए बेहद तकलीफदेह था। वे बीते दिन याद आते जब कैमि के पैर एक जगह टिकते नहीं थे। उसकी जीवंत इच्छा शक्ति हेनरी को हैरान कर जाती। घर का काम, नौकरी और मित्र मंडली। कभी मॉल में, कभी पार्क में, हर जगह तमाम काम निपटाते वह दौड़ती रहती। उसे तेजी से, भागमभाग करते हुए एक ही समय में कई काम करने की आदत थी। उसकी भागदौड़ इस कदर रहती मानो एक मिनट की देर भी हुई तो जैसे दुनिया रुक जाएगी।
उसके हाथों और पैरों में ऐसा सामंजस्य था कि दिमाग के सूचना देते ही वे अपनी-अपनी ड्यूटी पर लग जाते। उसकी ऐसी फुर्ती देखकर हेनरी दंग रह जाता। खुद कुछ करने के बजाय कैमि पर ही निर्भर रहता था। कई काम ऐसे होते जो कैमि के लिए लाइन लगाकर खड़े रहते- ये करना, वो करना, इस दौरान सूरज जब अपनी रोशनी देकर वापस विश्राम के लिए चला जाता, तब कैमि को लगता कि आज का दिन समाप्त हुआ और अब उसे भी कल तक के लिए शरीर को बिस्तर पर ले जाना है।
उसकी यह गति हेनरी के लिए परेशानी का सबब भी थी। हेनरी को हर काम आराम से एवं धैर्य से करने की आदत थी। स्टोर में फल-सब्जी-दूध खरीदने जाता तो बहुत ध्यान से एक-एक केले का चयन करता। जब तक वह दूसरे फलों का चुनाव शुरू करता तब तक कैमि अन्य सारी चीजें खरीद कर हाजिर हो जाती।
हेनरी को लगता वह नाकारा है, किसी काम का नहीं। इतनी चुस्ती फुर्ती कहाँ से लाए! वह कहता भी था- “कैमि, भगवान ने तुम्हारे पैरों में पहिए लगाकर भेजा है और मेरे पैरों में धीरे चलने के लिए जंजीरें डाल दी हैं।”
उसकी इस हल्की फुल्की बात से कैमि को उस पर बहुत प्यार आता- “हेनरी, अपने प्यार की जंजीरों में तो तुमने मुझे जकड़ा है। तुम जैसे हो, वैसे ही मुझे अच्छे लगते हो।”
“तो अब मुझे डाँट कम पड़ेगी न?”
एक चुंबन जड़ देती वह। हालाँकि हेनरी की इस धीमी गति से कई बार कैमिला चिड़चिड़ा भी जाती। दोनों में इसे लेकर कई बार झगड़े भी हुए। हेनरी की धीमी गति के कारण कैमिला के कंधों पर काम का बोझ बढ़ जाता जिसे वह गाहे-बगाहे तंज कसकर निकालती रहती। हेनरी के पास चुप रहकर सहने के अलावा कोई चारा नहीं था। इस वजह से घर में ऐसी खामोशी छा जाती जो दोनों को चुभती। एक-दो दिन में सब कुछ फिर से सामान्य हो जाता।
अपनी अच्छी सेहत के चलते कैमिला हर बार गिरकर उठ जाती लेकिन बर्फ में इस तरह गिरना उसके लिए भयावह था जो उसे व्हील चेयर में कैद कर गया। हेनरी रिटायर हो चुका था और कैमिला को कंपलसरी रिटायरमेंट लेना पड़ा।
तब से आज तक हेनरी उसके लिए सिर्फ पति नहीं बल्कि कैमि के पैर बन गया था। उसे जब भी कोई ज़रूरत पड़ती, हेनरी ही आता। कई बार वह याद करके सारी चीजें अपनी मेज पर रखवा लेती ताकि हेनरी को बार-बार परेशान न करना पड़े। लेकिन फिर भी कुछ न कुछ रह ही जाता।
शायद बरसों की उस तेज और धीमी गति का हिसाब बराबर हो रहा था। अब हेनरी ही उसके पैर थे जो चाहे जितना धीरे चलें, कम से कम चल तो रहे थे। कैमि के तेज भागते पैर तो अब दुर्भाग्यवश थम ही गए थे।
जब से वह इस कुर्सी में बँधी है, कई बार उसे ऐसा लगता जैसे उसके पैर कभी चले ही न हों। चलते हुए लोग उसे जादूगर लगते। कभी उनके पैरों को तो कभी अपने पैरों को देखती। तब महसूस होता कि पैरों पर चलते हुए इंसान को कभी नहीं लगता कि वह कितना गतिमान है। गति है तभी तो जीवन है।
एक कुर्सी में कैद जीवन भला कोई जीवन है! कुर्सी में ठहरा उसका जीवन पैरों की चुप्पी को बुरी तरह झेल रहा था। अंगों का सामंजस्य निभाते पैर जैसे हड़ताल पर चले गए हों। इस भागती दुनिया में पैरों की जंगली जिद उसे दिन-ब-दिन खाए जा रही थी। हेनरी को दिखाने के लिए ऊपर-ऊपर से हँसती लेकिन अंदर ही अंदर बहुत रोती थी वह। यह रुदन तिल-तिल करके उसकी जीवटता को लील रहा था।
ऐसा भी नहीं था कि हेनरी उसके इस ठहराव से वाकिफ नहीं था। कैमि को इस तरह देखना स्वयं उसके लिए किसी सजा से कम नहीं था जिसे वह ज्यादा से ज्यादा अपनी मदद से कम करना चाहता। उसकी अन्य जरूरतों के अलावा उसके मनोरंजन का भी ध्यान रखता पर लाख चाहने पर भी वह कैमि की बेबसी को कम न कर पाता। घर में दो लोग, दोनों अपने-अपने दायरों में कैद थे। अब दोनों में कभी न बहस होती, न झगड़े होते। हमेशा नाक पर गुस्सा रखने वाला हेनरी अब बेहद शांत हो चला था।
दो रिटायर्ड इंसान, दोनों की सीमित जरूरतें और पेंशन। हल्का-फुल्का खाना और एक-सी दिनचर्या। जब मन करे सो जाओ, जब मन करे उठ जाओ। साठ और बासठ की उम्र बहुत ज्यादा तो होती नहीं! पैर साथ देते तो यहीं से तो एक खुशनुमा सफर की शुरुआत होनी थी।
अब कैमि की एक ही इच्छा शेष रह गयी थी और वह थी- जीवन में एक बार चलने का आनंद लेना। जी भर कर अपने पैरों पर खड़े होकर चलना चाहती थी। उस वक्त का इंतजार करते उसकी आँखें पथरा गयी थीं।
सर्दियों में तो समय कट जाता लेकिन गर्मियों में जब पूरा शहर घर के बाहर दिखाई देता तब वह मन मसोसकर आते-जाते लोगों को देखती रहती। रोज शाम को हेनरी उसे बाहर बैठा देता। उसकी व्हील चेयर बरामदे के आगे वाले सिरे में लगा देता ताकि वह आने-जाने वालों को देखकर अपना समय काटती रहे।
कभी पुस्तक पढ़ती, कभी ठंडी हवा में एकाध झपकी ले लेती। परेशानी यह थी कि कई बार व्हील चेयर का लॉक उसके संतुलन खोने से खुल गया और वह अपनी व्हील चेयर सहित लुढ़कते-लुढ़कते बची। हेनरी ने इसका एक हल यह निकाला कि वहाँ चारों तरफ से टीन के दरवाजे बना दिए ताकि वह जब भी हिले-डुले, संतुलन खोकर लुढ़क न जाए। सुरक्षा के लिए वहाँ एक ताला भी लगा दिया ताकि किसी तरह की कोई दुर्घटना न घटे।
“तुमने मेरे लिए एक पिंजरा बना दिया हेनरी।” सुनने के बाद वह मुस्कुरा दिया था। तब से गर्मियों की हर शाम का साथी वह पिंजरा होता।
आज ताला लगाने के बाद कैमि के कंधों पर हाथ रखकर, हेनरी ने कहा था- “सिर्फ आज की तो बात है। कल इस समय तक तुम्हारी सर्जरी हो जाएगी, फिर कुछ दिनों की रिकवरी और उसके बाद तुम आजाद हो जाओगी, न ये पिंजरा रहेगा, न पहिए वाली कुर्सी।”
कैमिला की आँखों में भी चमक आ गयी थी। कोविड की वजह से अन्य बीमारियों और गैरजरूरी सर्जरी को अस्पताल वाले लगातार आगे के लिए टालते रहे थे। कोरोना की पहली वेव, दूसरी वेव, तीसरी वेव, तारीखें आगे, और आगे बढ़ती रहीं। अंतत: अब जाकर सर्जरी का दिन आया। अस्पताल ले जाने के लिए बैग तैयार था। हेनरी बहुत खुश था। कैमि को बाहर छोड़कर कभी ताले की चाबी जेब में रखकर घूमता रहा। कभी अंदर जाता, कभी बाहर आता।
आज कैमि को बाहर बैठे-बैठे बहुत देर हो गयी थी। नया पज़ल वाला गेम खेलते-खेलते वह थक गयी। गला सूख रहा था। उसने आवाज लगायी “हेनरी, मुझे प्यास लगी है।”
सामान्यत: हेनरी एक आवाज में सुन लेता था। आज कुछ देर हो गयी। कैमि ने सोचा शायद वह बाथरूम गया होगा। इन दिनों उसे कुछ ज्यादा ही देर लगती है बाथरूम में। आजकल हेनरी को सुनने में भी दिक्कत होने लगी है। हियरिंग एड्स बदलवानी पड़ेगी। वह कैसे बुलाए उसे! कई बार कहा कि कम से कम एक मोबाइल ले लेते हैं पर उसका कहना भी सही था कि खर्च क्यों बढ़ाया जाए।
अपने पास पड़ी लकड़ी से ठोक-ठोककर कैमि ने आवाजें कीं, पास पड़े अखबार को जोर-जोर से कुर्सी पर पीटा। हलो, हाय जैसी तरह-तरह की आवाजें मुँह से निकालीं, लेकिन हेनरी नहीं आया।
सामने सड़क पर एक दंपति टहलते हुए जा रहे थे। कैमि ने उन्हें आने का इशारा किया। पहले तो वे आने से डरे लेकिन जब समस्या समझ में आयी तो सहर्ष दरवाजे पर खड़े होकर घंटी बजायी, कुंडी खटखटायी।
कैमि उत्सुक नजरों से हेनरी की प्रतीक्षा करती रही लेकिन उसके आने के कोई आसार नजर नहीं आए।
वह मददगार दंपति से बोली- “प्लीज़ आप पीछे के दरवाजे से अंदर जाओ, कम्प्यूटर के पास चाबी रखी होगी, लेकर आओ।”
वे अंदर नहीं जा पाए। दरवाजा अंदर से बंद था। वे खटखटाते रहे, दरवाजा नहीं खुला। आते-जाते कुछ लोग एकत्रित हो गए। आधे घंटे की मशक्कत के बाद कैमिला से पूछकर पुलिस को बुलाना उचित समझा गया।
कैमि हैरान थी। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि हेनरी को आखिरकार हुआ क्या है। उसे लगा शायद रात में ठीक से सोया न हो और झपकी लग गयी हो। कई बार रात में सो नहीं पाता वह। मगर अब तो बहुत देर हो गयी। ऐसे घोड़े बेचकर वह सो रहा है तो पुलिस भी कैसे उठाएगी।
पुलिस आयी। कुछ कोशिशों के बाद ताला तोड़ा गया तो देखा, वह सामने कुर्सी पर बैठा था।
“मिस्टर हेनरी!” कोई जवाब नहीं मिला।
ऑफिसर ने जैसे ही हेनरी के करीब जाकर उसके कंधों पर हाथ रखा, वह लुढ़क गया। मानों किसी स्पर्श की प्रतीक्षा कर रहा हो। कुछ पलों तक उसकी साँसों की आहट लेने के बाद ऑफिसर का सिर हिलाना और एंबुलेस को बुलाना इतना तुरत-फुरत हुआ कि सामने खड़े दंपति अवाक् रह गए थे। सबके हिलते हुए सिर कुछ कह रहे थे। बाहर जाकर कैसे बताएँगे कैमिला से!
पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया- “मिस कैमिला आपसे कुछ कहना है!”
कैमिला की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। वह उसी दिशा में सड़क की ओर देख रही थी।
“सॉरी, आपके पति हेनरी…।”
कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। लोगों को लगा था कि वह चीखेगी पर वहाँ सिर्फ़ खामोशी थी। शायद एक उम्र के बाद मन तैयार हो जाता है। एक न एक दिन तो यह सुनना ही था। इस भगदड़ और एंबुलेंस की पींपीं सुनकर भी उसकी चुप्पी आश्चर्य में डाल रही थी। उसे उस पिंजरे से निकालने की कोशिश की पुलिस ने तो कंधों पर हाथ पड़ते ही वह भी ठीक उसी तरह लुढ़क गयी।
गनीमत यह थी कि उसकी साँसें चल रही थीं। उसे तुरंत अस्पताल पहुँचाया गया। घर से दो एंबुलेंस गाड़ियाँ निकलीं। एक में हेनरी का शव था और दूसरी कैमिला को इमरजेंसी विभाग में पहुँचा रही थी।
कुछ ही घंटों में कैमिला खतरे से बाहर थी, हालाँकि अब भी वह बेहोशी की हालत में ही थी। सात दिनों तक उसकी बेहोशी नहीं टूटी तो सारे नियम-कानूनों का पालन करते हुए हेनरी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनके पड़ोसियों को सूचित कर दिया गया था। फोन की डायरी से नंबर लेकर शायद दूर के इक्का-दुक्का रिश्तेदार भी सूचित किए गए थे। कुछ आए, कुछ ने शोक जताकर धन्यवाद कह दिया था।
कैमिला को पूरी तरह होश में आते-आते, सर्जरी के काबिल होते, एक महीना बीत गया था। अंततः जिस अस्पताल में ऑपरेशन होना था, उसे वहाँ भेज दिया गया। हेनरी कहाँ है, वह क्यों नहीं आया, उसने इस बारे में कुछ नहीं पूछा। शायद वह जान चुकी थी।
डॉक्टरों की प्राथमिकता भी इस समय सर्जरी करना थी। अंतत: सर्जरी हुई। पाँच दिनों बाद उसे घर भेजते समय जब हेनरी के बारे में बताया गया तो वह तटस्थता से बोली, “मुझे पता है” और फिर से खामोश हो गयी।
अस्पताल से एक नर्स उसके साथ आयी थी। कैमि कुछ सैकंड के लिए खड़ी होती, फिर बैठ जाती। कुछ ही दिनों में नर्स और फिजियो के अनवरत प्रयासों के बाद पैरों ने शरीर का भार सहना स्वीकार कर लिया।
धीरे-धीरे अपने पैरों पर घर के हर कमरे में वह अच्छी तरह घूमने लगी। एक कोने में पड़ी व्हील चेयर को ध्यान से देखा तो उसके पीछे हेनरी खड़ा नजर आया। वह उस पर बैठ गयी ताकि हेनरी के हाथों का स्पर्श महसूस कर सके।
कई बार जब देर हो जाती तो वह गुस्सा करती थी। वह सॉरी कहते हुए जल्दी करने की कोशिश करता तो और देर हो जाती। वह सॉरी-सॉरी कहता, सिर हिलाता और मुस्कुरा देता। वही व्हील चेयर थी, जिसे हेनरी धकेलता और वह पीछे से उसकी उपस्थिति का अहसास करती। व्हील चेयर पर बैठी वह कभी अपने पैरों को देखती तो कभी हेनरी के हाथों को महसूसती।
उसे मेज पर एक ब्राउन लिफाफा दिखा। यह हेनरी का पत्र था। पत्र क्या था, जैसे वसीयत थी। एक लाइन बड़े-बड़े अक्षरों में लिखकर दोहराई गयी थी- “अगर दे सको तो मेरी पत्नी को मेरे पैर दे देना।” एक-एक अक्षर उसकी आँखों में समंदर की मानिंद थपेड़े ला रहे थे।
“हेनरी, काश तुमने मुझसे पूछा होता, विकल्प दिया होता तो मैं व्हील चेयर को ही चुनती।”
वह अपने पैरों को देख रही थी, उस पिंजरे को भी जिसमें इतने दिनों तक कैद होकर रही थी।
घर के कोने- कोने को देख रही थी जिसमें चलने के लिए उसके पैर तरसते थे। अब वह गतिमान थी और हेनरी स्थिर।
“हेनरी के पैर मेरे थे, अब मैं उसके पैर बनूँगी।”
उसने तुरंत हेनरी का फोटो उठाकर व्हील चेयर पर रख दिया, और उसकी स्थिरता को गति देने लगी। सालों का कर्ज था, मरते दम तक चुकाएगी तो भी उऋण नहीं हो पाएगी। अभी-अभी की तो बात थी जब हेनरी उसकी सेवा करता था। जब कैमिला का मौका आया तो खामोश हो गया।
व्हील चेयर पर रखे उस फोटो में हेनरी का चेहरा देखना पीड़ादायी था। अगर सचमुच हेनरी व्हील चेयर पर होता तो कैसा लगता! शायद वह सच कैमि को बहुत कचोटता।
यह खयाल आते ही पहली बार कैमिला को इस बात का अहसास हुआ कि इतने बरस उसका भार तो पहिए ढोते थे पर हेनरी का मन न जाने कितने मन भार रोज ढो रहा था। कैमिला के पास पहिए तो थे, परंतु हेनरी के पास न पैर थे, न पहिए। अपने पैर वह पहले दिन से ही कैमि को दे चुका था।
“ओ हेनरी!”
हाहाकारी मौन के बीच उसके होंठ बुदबुदा उठे। उसने तेजी से तस्वीर को व्हील चेयर से उठा लिया।
कैमि के पैरों में जैसे पहिए लग गए थे, इतने दिनों तक का पैरों का ठहराव अब पुनः एक बार रफ्तार पा चुका था।
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–हंसा दीप