
विश्व हिंदी सम्मेलन : परिकल्पना, उद्देश्य और महत्त्व
डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली-7
हिंदी विश्व की प्रमुख भाषा है। इसका एक हज़ार वर्ष का सुदीर्घ इतिहास है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार यह भारत संघ की राजभाषा है। हिंदी भारत की संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा, 10 राज्यों की राज्य भाषा, 60 करोड़ से अधिक भारतियों की मातृभाषा है। अब यह विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। हिंदी को विश्व भाषा का स्थान दिलाने में अन्य कारणों के साथ-साथ विश्व हिंदी सम्मेलनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन सम्मेलनों की परिकल्पना, उद्देश्य और महत्त्व को जाने बिना हिंदी का वैश्विक स्वरूप स्पष्ट नहीं हो सकता।
विश्व में हिंदी का विकास
भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण के इस दौर में संचार और सूचना क्रांति ने वैश्विक परिदृश्य में अभूतपूर्व परिवर्तन किए हैं। पिछली आधी सदी में विश्व में भारतवंशियों और अप्रवासी भारतीयों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति सुदृढ़तर हुई है। लेखन, तकनीकी, सूचना प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में भी भारतीय अपना लोहा मनवाने में सफल रहे हैं। इन सबके साथ आगे बढ़ी है – भारतीय संस्कृति और उसकी वाहक – हिंदी। विश्व में हिंदी के प्रयोक्ताओं की आश्चर्यजनक वृद्धि के कारण स्पेनिश, रूसी और अंग्रेज़ी भाषा को पीछे छोड़ते हुए हिंदी आज दूसरे स्थान पर पहुँच गई है, जबकि कुछ विद्वान इसे प्रथम स्थान पर भी मानते हैं।[1] विश्व भाषा के रूप में हिंदी के विकास के प्रमुख कारण हैं – हिंदी का लचीलापन, तेज़ी से समृद्ध और विशाल होता हिंदी भाषी बाज़ार, हिंदी गीत, संगीत, फिल्में और मीडिया तथा विश्व भर में फैले हिंदी भाषियों की छटपटाहट।
परिकल्पना एवं उद्देश्य
हिंदी को भावनात्मक धरातल से उठाकर एक ठोस एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से और यह रेखांकित करने के उद्देश्य से कि हिंदी केवल साहित्य की भाषा ही नहीं, बल्कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को अंगीकार करके अग्रसर होने में सक्षम भाषा भी है, विश्व हिंदी सम्मेलनों की संकल्पना की गई। इस संकल्पना को 10-12 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में मूर्त रूप दिया गया और इसे चिर स्मरणीय बनाने के उद्देश्य से सन 2006 से प्रतिवर्ष 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा है।
महत्त्व
विश्व भाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करने में विश्व हिंदी सम्मेलनों का विशेष महत्त्व रहा है।[2] इन सम्मेलनों के द्वारा विश्व भर में फैले हिंदी सेवी एक मंच पर एकत्रित होते हैं। वे हिंदी के विश्व-व्यापी विस्तार से संबंधित विभिन्न बिंदुओं पर विचार-विमर्श करते हैं। इस मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपायों पर चर्चा करते हैं। हिंदी के लिए समर्पित भाव से काम करने वाले हिंदी सेवियों को सम्मानित करते हैं और हिंदी के हित में योजनाएँ बनाते हैं। इसके अतिरिक्त इन विश्व हिंदी सम्मेलनों के परिणामस्वरूप मॉरीशस में ‘विश्व हिंदी सचिवालय’ और भारत के वर्धा में ‘महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय’ की स्थापना की जा चुकी है। विश्व हिंदी पुरस्कार/सम्मान और विश्व हिंदी पत्रिका का प्रारंभ भी इन सम्मेलनों की उपलब्धि कही जा सकती है।
इस उद्देश्य से अभी तक ग्यारह विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं तथा बारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन फ़िजी में होगा।
पहला विश्व हिंदी सम्मेलन
पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 10 से 12 जनवरी 1975 को भारत (नागपुर) में हुआ था। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में भारत के कोने-कोने से आए लगभग 3000 प्रतिनिधियों तथा 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम की अध्यक्षता में भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इसका उद्घाटन किया। सम्मेलन की सात विचार गोष्ठियों को निम्नलिखित तीन विषयों के अंतर्गत विभाजित किया गया –
1 हिंदी की अंतरराष्ट्रीय स्थिति
2 विश्व मानव की चेतना, भारत और हिंदी
3 आधुनिक युग और हिंदी – आवश्यकताएँ और उपलब्धियाँ।
इन गोष्ठियों में वैचारिक आदान-प्रदान के पश्चात् इस सम्मेलन में तीन निर्णय लिए गए –
1 संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को भी आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिलाया जाए।
2 वर्धा में विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना हो और
3 विश्व हिंदी सम्मेलनों को स्थायी स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से एक स्थायी हिंदी संस्था का गठन किया जाए और इसके लिए कोई ठोस योजना बनाई जाए।
प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच को महादेवी वर्मा, डॉ शिवमंगल सिंह सुमन, फादर कामिल बुल्के, क्रिस्टोफर ब्रिस्की, डॉ. ओदोनेल स्मेकल और बालकवि बैरागी जैसे मनीषियों ने सुशोभित किया था। इस अवसर पर हिंदी के विदेशी विद्वानों का अभिनंदन भी किया गया।[3]
दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन
दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 28 से 30 अगस्त, 1976 को मॉरीशस में महात्मा गाँधी संस्थान (पोर्ट लुई) में हुआ। इसमें भारत, जापान, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, इटली, इंग्लैंड, अमेरिका, हंगरी आदि लगभग 20 देशों के प्रतिनिधि भाग लेने आए।
सम्मेलन में निम्नलिखित तीन विषयों पर चर्चा हुई –
- हिंदी की अंतरराष्ट्रीय स्थिति, शैली, और स्वरूप
- जनसंचार साधन और हिंदी के प्रचार में स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका
- विश्व में हिंदी के पठन-पाठन की समस्याएँ।
सम्मेलन के अंत में दो सुझाव दिए गए –
- मॉरीशस में एक विश्व हिंदी केंद्र की स्थापना की जाए, जो सारे विश्व में हिंदी की गतिविधियों का समन्वय कर सके।
- एक अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रिका का प्रकाशन किया जाए, जो भाषा के माध्यम से ऐसे समुचित वातावरण का निर्माण कर सके, जिससे मानव विश्व-नागरिक बन सके।
इन सम्मेलनों के परिणामस्वरूप हिंदी के विश्वव्यापी स्वरूप को नई शक्ति प्रदान करते हुए भारत सरकार ने ‘विश्व हिंदी पुरस्कार-1978’ की योजना शुरू की। इसके अंतर्गत 24 जनवरी 1979 को नई दिल्ली के मावलंकर हॉल में तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी के प्रति समर्पित 5 विदेशी विद्वानों – प्रो. ऑदोलेन स्मैकल (चेकोस्लोवाकिया), प्रो. क्योयो दोई (जापान), पं. कमला प्रसाद मिश्र (फिजी), श्री सोमदत्त बखौरी (मॉरीशस ) तथा डॉ. रोनाल्ड स्टुअर्ट मैकग्रेगर (इंग्लैंड) को सम्मानित किया।
2.3 तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन
तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 28 से 30 अक्तूबर, 1983 को भारत (नई दिल्ली) में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में 30 देशों के 260 प्रतिनिधियों सहित लगभग 6500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें हिंदी के विकास को गति देते हुए इसके राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय रूप को पुष्ट करना तथा हिंदी को प्रेम, सेवा और शांति की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना लक्ष्य रखा गया। सम्मेलन में तीन विषयों पर विचार गोष्ठियाँ हुईः-
1- अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के प्रसार की संभावनाएँ और प्रयास,
2- भारत के सांस्कृतिक संबंध और हिंदी,
3- मानव-मूल्यों की स्थापना में हिंदी की भूमिका।
2.4 चौथा विश्व हिंदी सम्मेलन
चौथा विश्व हिंदी सम्मेलन 2 से 4 दिसंबर, 1993 को पुनः मॉरीशस में हुआ। महात्मा गाँधी संस्थान, मोका में आयोजित इस सम्मेलन में विश्व के 25 देशों के लगभग 300 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन का मुख्य विषय था – वसुधैव कुटुंबकं और विश्व में हिंदी। इस सम्मेलन के तीन उद्देश्य थे-
1- विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार को प्रोत्साहित करना।
2- विश्व में हिंदी भाषा और साहित्य की उपलब्धियों और संभावनाओं पर विचार-विमर्श करना।
3- हिंदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति को आज के संदर्भ में देखते हुए संबल प्रदान करना।
इस सम्मेलन में मॉरीशस में एक विश्व हिंदी सचिवालय बनाने का प्रस्ताव भी रखा गया।[4]
2.5 पाँचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
पाँचवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 4 से 8 अप्रैल 1996 तक त्रिनिदाद में हुआ। इसका आयोजन प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पांडेय की देखरेख में त्रिनिदाद एवं टोबेगो की हिंदी निधि तथा वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में किया गया। इस आयोजन का एक विशेष महत्त्व था – वेस्ट इंडीज में भारतीय खेतिहर मजदूरों के आगमन की 150वीं वर्षगाँठ। इसीलिए इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था – अप्रवासी भारतीय और हिंदी।
कोलकाता के जहाज से 30 मई, 1845 को भारतीय मजदूरों का पहला दल त्रिनिदाद पहुँचा था। वर्ष भर मनाए जानेवाले समारोहों में विश्व हिंदी सम्मेलन एक प्रमुख कार्यक्रम था। लगभग पैंतीस देशों में आए प्रतिष्ठित विद्वानों ने हिंदी के विकास की विभिन्न योजनाओं पर गहन चिंतन-मनन किया, हिंदी भाषा, साहित्य, संस्कृति के विभिन्न पक्षों पर गोष्ठियाँ की, हिंदी-सॉफ्टवेयर प्रस्तुत किया। हिंदी को अंतरराष्ट्रीय रूप देने के प्रयासों को इस सम्मेलन से बहुत गति मिली।[5]
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन 14 से 18 सितंबर 1999 को अंग्रेज़ी के गढ़ इंग्लैंड (लंदन) में आयोजित हुआ। इसका आयोजन हिंदी समिति (यू.के.), गीतांजलि (बर्मिंघम), भारतीय भाषा संगम (यार्क) आदि ने मिलकर किया। भारतवर्ष एवं अन्य देशों के लगभग 600 प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया। सम्मेलन के दस उद्देश्यों में से मुख्य थे – इक्कीसवीं सदी में हिंदी की भूमिका, आधुनिक तकनीकी युग में हिंदी, मीडिया के क्षेत्र में हिंदी, हिंदी साहित्य में विदेशी विद्वानों का योगदान, हिंदी और भावी पीढ़ी आदि। पाँच दिन समानांतर चलने वाले तीस शैक्षिक सत्रों में देश-विदेश के विद्वानों ने अपने-अपने क्षेत्र से संबंधित लगभग 200 आलेख प्रस्तुत किए। अंत में, भारत में ‘महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय’ तथा मॉरीशस में ‘विश्व हिंदी सचिवालय’ खोलने पर प्रसन्नता प्रकट की गई। उन्तीस विद्वानों को विश्व हिंदी सम्मान से सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख थे – सुश्री लिंडा हेस (अमेरिका), बिनांत केल्वेर्स (अमेरिका), सुश्री मारिओला आफ्रेदी (इटली), सुश्री मारिया नैदयेशी (हंगरी), प्रो. हैल्मुट नेस्पितल (जर्मनी), सुश्री दानुता स्ताशिक (पोलैंड), प्रो. तोमिओ मिजोकामी (जापान), सुश्री निकोल बलवीर (फ्रांस), डीकस्टग (हॉलैंड), दाविद लाउरांखे (मैक्सिको), डॉ. तेशाबोएन (उज्बेकिस्तान), सुश्री शुचिता रामदीन (मॉरीशस), महातम सिंह (सूरीनाम), विवेकानंद शर्मा, रवि महाराज (त्रिनिदाद) आदि।
छठे विश्व हिंदी सम्मेलन में पारित किए गए मुख्य प्रस्ताव निम्नलिखित हैं –
* हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की एक भाषा के रूप में स्वीकृति प्रदान करने की माँग।
* हिंदी सूचना-तकनीकी के विकास, उनके मानकीकरण, प्रसारण की आवश्यक सुविधा के लिए एक केंद्रीय एजेंसी स्थापित करने की सिफारिश।
* उन सब देशों में, जहाँ प्रवासी भारतवंशी रहते हैं और उन देशों में जहाँ हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है, नई पीढ़ी में हिंदी को लोकप्रिय बनाने, उसका प्रयोग प्रोत्साहित करने और इसके शिक्षण-प्रशिक्षण को आधुनिक साधनों और प्रविधियों से व्यवस्थित करने के लिए आवश्यक पहल की जाए।
भारत सरकार से अनुरोध किया गया कि वह अपने दूतावासों तथा उच्चायोगों को निर्देश दे कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में स्थानीय भारतवंशियों से संपर्क करें, ताकि स्थानीय स्कूलों में एक भाषा के रूप में हिंदी की व्यवस्था प्रारंभ की जा सके।[6]
2.7 सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन भारत की धरती से 17,000 किलोमीटर दूर लातिन अमेरिकी देश सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में 6 से 9 जून, 2003 को आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था – विश्व हिंदी, नई सदी की चुनौतियाँ।
सम्मेलन का उद्घाटन सूरीनाम के राष्ट्रपति रोनाल्डो बेनेत्शियान ने किया। इस अवसर पर उन्होंने ‘गंगनांचल’ के विशेषांक का विमोचन किया। वहाँ के डाक विभाग ने एक ‘कवर’ जारी किया तथा हिंदी विदुषी प्रो. मारिया क्रिस्टो ने ‘विश्व हिंदी स्मारिका’ का विमोचन किया। लगभग 30 देशों के 400 से अधिक प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया।
सम्मेलन के अंतिम दिन आयोजित एक विशेष सत्र में छह प्रस्ताव पारित किए गए, जिनमें मुख्य थे – हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए शिक्षण संस्थाओं के बीच समन्वय स्थापित करना, भारतवंशियों के बीच हिंदी-प्रयोग बढ़ाना, विश्व के हिंदी विद्वानों की एक निदेशिका बनाना आदि। सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन के अवसर पर सूरीनाम के उपराष्ट्रपति के. रहन कुमार अजोध्या ने 25 विद्वानों को सम्मानित किया। विदेशी खंड में सम्मान पाने वाले विद्वानों डॉ. लोठार लुत्से (जर्मनी), प्रो. तोष तनाका (जापान), रामदेव धुरधंर (मॉरीशस), प्रो. सुब्रह्मणी (फिजी), डॉ. जीत नारायण (सूरीनाम), प्रो. आजाद समातोव (उज़्बेकिस्तान), प्रो. एनी मोतो (फ्रांस), प्रो. एच. रजावीव (तज़ाकिस्तान) डॉ. स्वातीस्लाव कोस्तिक (चेक गणराज्य), प्रो. चेन हांगयून (चीन) डॉ. पार्गी (म्यांमा) आदि प्रमुख थे।[7]
आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 13 से 15 जुलाई, 2007 को अमेरिका (न्यूयार्क) में संपन्न हुआ। 13 जुलाई को सम्मेलन का उद्घाटन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में किया गया। उद्घाटन सत्र का विषय था – संयुक्त राष्ट्र में हिंदी। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने अपना संबोधन ‘नमस्ते’ से शुरू करके श्रोताओं का मन मोह लिया। भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपना संदेश भेजकर कहा कि भारत सरकार हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनवाने के लिए जी जान से प्रयास करेगी। हिंदी को विश्वभाषा बनाने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने अपील की कि इंटरनेट की दुनिया में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हिंदी में सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और सक्षम शक्तिशाली सर्च इंजन बनाए जाने चाहिए। उन्होंने हिंदी लेखकों की कृतियों को दुनिया भर के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लागू करवाने के लिए प्रयास करने पर भी ज़ोर दिया।
आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का केंद्रीय विषय था – विश्व मंच पर हिंदी। तीन दिन में कुल नौ सत्रों में दुनिया भर से आए लगभग एक हज़ार प्रतिनिधियों ने विश्व में हिंदी को लोकप्रिय बनाने के उपायों के साथ-साथ इस भाषा की विरासत एवं शिक्षा को विशेषतः ऐसे देशों में पहुँचाने पर चर्चा की, जिन देशों में भारतीय मूल की घनी आबादी है। ‘संयुक्त राष्ट्र में हिंदी’ विषय के अतिरिक्त विभिन्न सत्रों में विदेशों में हिंदी शिक्षण, प्रवासी हिंदी साहित्य, हिंदी के प्रचार-प्रसार में सूचना प्रौद्योगिकी, हिंदी फिल्मों और अनुवाद की भूमिका, वैश्वीकरण, मीडिया और हिंदी, हिंदी युवा पीढ़ी और ज्ञान-विज्ञान आदि विषयों पर चर्चा हुई।
सम्मेलन स्थल पर प्राचीन हिंदी हस्तलिपि, हिंदी पुस्तकें और हिंदी व सूचना प्रौद्योगिकी पर तीन प्रदर्शनियाँ भी आयोजित की गईं। अकादमिक सत्रों के बाद सायं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें काव्य पाठ, नृत्य, संगीत और गायन कार्यक्रम थे। सम्मेलन में 20 भारतीय तथा 20 विदेशी हिंदी विद्वानों को सम्मानित किया गया। भारतीय विद्वानों में प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल, ओम विकास, गिरिराज किशोर, ओम प्रकाश वाल्मीकि आदि तथा विदेशी विद्वानों में डॉ. लुडमिला बी खोखलोवा, डॉ. सुरेंद्र गंभीर (अमेरिका), फ्रेंसिका ओरसिनी, डॉ. पद्मेश गुप्त (ब्रिटेन), प्रो. धुनस्वा सयामी (नेपाल) जोगिंदर सिंह कंवल (फ़िजी), जियांग जिंगकुई (चीन) आदि प्रमुख है। इस अवसर पर केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा एक विशेष पुस्तिका – ‘हिंदी का इतिहास’ प्रकाशित की गई तथा संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका – ‘मीडिया’ के ‘विश्व मंच पर हिंदी’ पर केंद्रित अंक का विमोचन किया गया। आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय द्वारा भारतीय विद्या भवन की न्यूयार्क शाखा के सहयोग से किया गया।[8]
नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
नौवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 22 से 24 सितंबर, 2012 को दक्षिण अफ्रीका (जोहांसबर्ग) में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय था – ‘भाषा की अस्मिता और हिंदी का वैश्विक संदर्भ’। इस सम्मेलन में हिंदी के प्राचीन एवं आधुनिक पहलुओं से संबंधित परंपरागत और समकालीन दोनों प्रकार के विषयों पर चर्चाएँ आयोजित की गई। सम्मेलन के दौरान तीन दिन में कुल 9 शैक्षिक सत्र आयोजित किए गए, उनके विषय इस प्रकार हैं –
1 महात्मा गाँधी की भाषा दृष्टि और वर्तमान संदर्भ
2 हिंदी – फिल्म, रंगमंच और मंच की भाषा
3 सूचना प्रौद्योगिकी देवनागरी लिपि और हिंदी का सामर्थ्य
4 लोकतंत्र और मीडिया की भाषा के रूप में हिंदी
5 विदेश में भारत – भारतीय ग्रंथों की भूमिका
6 ज्ञान-विज्ञान और रोज़गार की भाषा के रूप में हिंदी
7 हिंदी के विकास में विदेशी/प्रवासी लेखकों की भूमिका
8 हिंदी के प्रसार में अनुवाद की भूमिका
9 दक्षिण अफ्रीका में हिंदी शिक्षा – युवाओं का योगदान
नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी विषयक विशद चर्चाओं के साथ-साथ नेशनल बुक ट्रस्ट तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा एक पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई। ‘हिंदी में सूचना प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग’ विषय पर केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा तथा महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा एक वृत्तचित्र प्रदर्शित किया गया तथा गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति द्वारा महात्मा गाँधी के जीवन और साहित्य को भी प्रस्तुत किया गया। प्रतिदिन होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन के विशेष आकर्षण रहे।
दसवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
दसवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन भारत की सांस्कृतिक नगरी, भोपाल में 10 से 12 सितबंर, 2015 को विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित किया गया। इस सम्मेलन को भारत में आयोजित करने का निर्णय सितंबर 2012 में दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग शहर में आयोजित नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन में लिया गया था। 1983 के बाद लगभग 32 वर्षो के अंतराल पर भारत में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया।
मध्य प्रदेश सरकार की सहभागिता से दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन का भव्य आयोजन भोपाल शहर के लाल परेड मैदान में माननीय विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में किया गया। मध्य प्रदेश राज्य सरकार सम्मेलन की स्थानीय आयोजक और माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान सम्मेलन के मुख्य संरक्षक थे। भोपाल स्थित माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय और अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय सम्मेलन की सहभागी संस्थाएँ थीं।
इस सम्मेलन के उद्घाटन तथा समापन सत्रों में देश-विदेश से लगभग 5,000 हिंदी प्रेमियों ने भाग लिया। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन किया। सम्मेलन के मंच से श्री मोदी ने कहा, “मैं अक्सर सोचता हूँ कि यदि मुझे हिंदी नहीं आती, तो मेरा क्या होता?” प्रधानमंत्री का यह वाक्य हिंदी की ताकत को प्रदर्शित करता है। प्रधानमंत्री ने आपने भाषण में हिंदी आंदोलन का अभी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हिंदी आंदोलन को अहिंदी भाषियों ने आगे बढ़ाया है। इस कड़ी में प्रधानमंत्री ने महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस, राज गोपालाचारी, बाल गंगाधर तिलक,आदि अनेक हिंदी प्रेमियों के नाम गिना दिए। उन्होंने हिंदी को सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी और सर्वसमावेशी भाषा बनाने पर ज़ोर दिया।[9]
इस विश्व हिंदी सम्मेलन के महाकुंभ के दसवें पड़ाव को व्यापकता प्रदान करते हुए और इसकी परिधि का विस्तार करते हुए मुख्य विषय ‘हिंदी जगत : विस्तार एवं संभावनाएँ’ के साथ बारह विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन में निर्धारित निम्नलिखित विषयों पर समानांतर सत्र चले –
- विदेश नीति में हिंदी
- प्रशासन में हिंदी
- विज्ञान क्षेत्र में हिंदी
- संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी
- विधि एवं न्याय क्षेत्र में हिंदी और भारतीय भाषाएँ
- बाल साहित्य में हिंदी
- अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिंदी
- हिंदी पत्रकारिता और संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता
- गिरमिटिया देशों में हिंदी
- विदेशों में हिंदी शिक्षण – समस्याएँ और समाधान
- विदेशियों के लिए भारत में हिंदी अध्ययन की सुविधा
- देश और विदेश में प्रकाशन की समस्याएँ एवं समाधान[10]
सम्मेलन के दौरान उपर्युक्त क्षेत्रों में हिंदी के सामान्य प्रयोग, विस्तार और संभावनाओं से संबंधित तौर-तरीकों पर गंभीर चर्चा की गई। इन नए विषयों को सम्मिलित करने के पीछे मूल धारणा युवाओं की अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित करना तथा हिंदी भाषा के प्रयोग को रोजगारमूलक बनाना था। इसी को देखते हुए पहली बार युवाओं तथा विद्यार्थियों के लिए एक अलग श्रेणी बनाते हुए उनकी सम्मेलन में प्रतिभागिता सुनिश्चित की गई। भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों से अधिकाधिक छात्रों को इसमें सम्मिलित होने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
सम्मेलन स्थल पर दो विशेष प्रदर्शनियाँ लगाई गईं। सम्मेलन के मुख्य विषय पर आधारित एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यह प्रदर्शनी निम्नलिखित संस्थाओं की सहभागिता से आयोजित की गई –
1 अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल
2 महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
3 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
4 राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
5 वेबदुनिया, इंदौर
6 भारतकोश
7 माइक्रोसॉफ्ट
8 एप्पल
9 गूगल
10 सीडैक
इस प्रदर्शनी में हिंदी के विस्तार और विकास यात्रा एवं भविष्य की संभावनाओं को डिजिटल माध्यम से प्रदर्शित किया गया। साथ ही संचार एवं प्रौद्योगिकी और विज्ञान में हिंदी के प्रयोग को अधिक बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में विभिन्न संस्थाओं जैसे गूगल, सीडैक, भारतकोश, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल इत्यादि की योजनाओं को प्रदर्शित किया गया।
‘मध्य प्रदेश शब्द वैभव’ शीर्षक से एक अन्य प्रदर्शनी, मध्य प्रदेश प्रशासन द्वारा सोमदत्त बखौरी प्रदर्शनी कक्ष में लगाई गई, जो मध्य प्रदेश के हिंदी परिदृश्य में उसके गौरवशाली इतिहास को दर्शाती थी। हिंदी साहित्य में मध्य प्रदेश के अनुपम योगदान को भी अत्यंत रोचक रूप में दर्शाया गया।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा प्रकाशित की जाने वाली हिंदी पत्रिका ‘गगनांचल’ का एक विशेष अंक निकाला गया, जो सम्मेलन को समर्पित था। इसके अतिरिक्त एक सम्मेलन स्मारिका तथा एक पुस्तक ‘प्रवासी साहित्य : जोहांसबर्ग से आगे’ का भी विशेष रूप से प्रकाशन किया गया, जिसका विमोचन उद्घाटन समारोह में किया गया। इसके अतिरिक्त डाक तार विभाग द्वारा जारी की गई एक विशेष डाक टिकट का लोकार्पण भी किया गया। परंपरा के अनुरूप, सम्मेलन के दौरान, भारत एवं अन्य देशों से हिंदी के विद्वानों को हिंदी के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए “विश्व हिंदी सम्मान” से सम्मानित किया गया।[11]
ग्यारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन का भव्य आयोजन गोस्वामी तुलसीदास नगर (मॉरीशस) में 18 से 20 अगस्त, 2018 को किया गया। विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन मुख्य रूप से भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है, जिसमें इस बार मॉरीशस सरकार स्थानीय आयोजनकर्ता थी। भारत के नागपुर से 10 जनवरी 1975 को शुरू हुई पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की यह यात्रा अपने ग्यारहवें पड़ाव पर 18 अगस्त, 2018 को तीसरी बार मॉरीशस पहुँची। इस सम्मेलन के लिए भारत और मॉरीशस के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी शुभकामनाएँ दी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि मॉरीशस में होने वाला यह सम्मेलन हिंदी भाषा के माध्यम से भारत और मॉरीशस की साझी संस्कृति की सजीव झाँकी प्रस्तुत करेगा तथा दोनों देशों के जन आधारित सदियों पुराने संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बनाने में सहायक सिद्ध होगा। मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने अपने संदेश में कहा कि यह सम्मेलन भारतीय प्रवासी समुदाय को भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से परिभाषित करने, अपनी अस्मिता और भाषा के प्रति आत्मीयता ज्ञापित करने का अवसर प्रदान करेगा।
18 अगस्त 2018 को पूर्वाह्न 10 बजे स्वामी विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय सभागार में ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन समारोह प्रारंभ हुआ। अपने उद्घाटन भाषण में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा, “इस सम्मेलन में दो भाव एक साथ उभर रहे हैं। पहला शोक का भाव और दूसरा संतोष का भाव। अटल जी के निधन पर शोक की छाया इस सम्मेलन पर है, किंतु दूसरा संतोष का भाव भी है कि समूचा हिंदी विश्व आज अटल जी को श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र है। इसीलिए उद्घाटन सत्र के बाद श्रद्धांजलि सत्र रखा गया है।”
अपने वक्तव्य में माननीय विदेश मंत्री ने कहा कि दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन की जिम्मेदारी मिलने पर उन्होंने पहले के विश्व हिंदी सम्मेलनों की समीक्षा की, तो पाया कि सभी सम्मेलन साहित्य की विधाओं पर केंद्रित थे। इसलिए उन्होंने भोपाल में संपन्न दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन का मुख्य विषय भाषा को बनाया। विचार यह था कि भाषा और बोली जहाँ बची हुई है, उसे कैसे बढ़ाया जाए और जहाँ लुप्त हो रही है, वहाँ उसे कैसे बचाया जाए। गिरमिटिया देशों में लुप्त हो रही भाषा को बचाने की जिम्मेदारी भारत की है।
‘विश्व हिंदी सम्मेलन में दो प्रस्ताव पारित किए जाते रहे हैं। एक यह कि विश्व हिंदी सचिवालय का मॉरीशस में भवन हो। यह प्रस्ताव मूर्त रूप में लागू हो गया है और इसी वर्ष विश्व हिंदी सचिवालय भवन का उद्घाटन भारत के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी के हाथों संपन्न हो चुका है। दूसरा प्रस्ताव हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाना रहा है। उसमें मुख्य समस्या यह है कि समर्थक देशों को संबंधित व्यय वहन करना होगा, यदि यह व्यय भारत को वहन करना होता, तो 400 करोड़ रुपए देकर भी हम उसे हासिल कर लेते। भारतीय विदेश मंत्री ने यह आशा व्यक्त की कि जब योग दिवस के लिए भारत 177 देशों का समर्थन हासिल कर सकता है, तो संयुक्त राष्ट्र की भाषा के लिए 129 देशों का समर्थन भी वह हासिल कर लेगा। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि संयुक्त राष्ट्र में हर शुक्रवार को हिंदी विश्व समाचार शुरू किए गए हैं। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे इन समाचारों को अधिक से अधिक सुनें, जिससे इसकी लोकप्रियता के आधार पर इसे दैनिक करने की राह आसान हो। श्रीमती स्वराज ने कहा कि भाषा के बाद हमने सोचा कि अगला पड़ाव संस्कृति पर ले जाया जाए। इसीलिए ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन का मुख्य विषय ‘हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति’ रखा गया।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने अपनी बात इस अफसोस के साथ शुरू की कि वे भली-भांति हिंदी नहीं बोल पाते हैं, किंतु उन्होंने अपनी पत्नी से कहा है कि संक्रांति के दिन खिचड़ी ही खाएँगे क्योंकि भारत में भी संक्रांति के दिन खिचड़ी खाई जाती है। अपनी संस्कृति को बचाने की छटपटाहट उनमें दिखाई दी। उद्घाटन सत्र में ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन के “लोगो” पर बनी एनिमेशन फिल्म में दिखाया गया कि मॉरीशस का राष्ट्रीय पक्षी डोडो जब डूबने लगता है, तो भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर आकर उसे बचाता है, फिर दोनों नृत्य करते हैं।
उद्घाटन सत्र के आरंभ में ही भारत के दिवंगत प्रधानमंत्री भारत-रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए 2 मिनट का मौन रखा गया। उसके बाद मॉरीशस और भारत का राष्ट्रगान हुआ। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा मॉरीशस की शिक्षामंत्री लीला देवी दुकन लछुमन ने दीप जलाकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के विदेशी विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना की। उसके बाद महात्मा गाँधी संस्थान, मॉरीशस के विद्यार्थियों ने हिंदी गान प्रस्तुत किया। मॉरीशस की शिक्षा मंत्री ने स्वागत भाषण दिया। मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने विश्व हिंदी सम्मेलन पर दो डाक टिकट जारी किए। उन्होंने सम्मेलन स्मारिका का भी लोकार्पण किया। गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने विश्व हिंदी सम्मेलन पर केंद्रित “गगनांचल” के विशेषांक का, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एवं कवि केसरीनाथ त्रिपाठी ने “दुर्गा” पत्रिका का, भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने “राजभाषा भारती” पत्रिका, मॉरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दुकन लछुमन ने विश्व हिंदी सचिवालय की पत्रिका “हिंदी साहित्य” का, भारत के विदेश राज्यमंत्री एम. जे. अकबर ने अभिमन्यु अनत की पुस्तक “प्रिया” का और भारत के विदेश राज्यमंत्री जनरल वी. के. सिंह ने “भोपाल से मॉरीशस” पुस्तक का लोकार्पण किया। उद्घाटन समारोह का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर कुमुद शर्मा और मॉरीशस की माधुरी रामधारी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन भारत के विदेश राज्यमंत्री जनरल वी. के. सिंह ने किया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात वाजपेयी जी की स्मृति में श्रद्धांजलि सत्र में बोलते हुए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और हिंदी के वरिष्ठ कवि केसरीनाथ त्रिपाठी ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से शब्द निशब्द हो गए हैं। वाणी मूक हो गई है। मॉरीशस के पूर्व प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ ने कहा – “मैं अपने और अपने देश की ओर से अपने करीबी दोस्त और सहयोगी के लिए शोक व्यक्त करता हूँ। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। अटल जी दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को अटल बंधन में बांधने के लिए प्रयत्नशील रहे।” चीन में हिंदी के पुरोधा जियाँग चीग खेइना ने कहा, “मैं चीन में हिंदी का सैनिक हूँ। मैं अटल जी का अनुवादक था। वे भारत और चीन के बीच मधुर संबंध बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे।” गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने अटल जी की महानता के उदाहरण प्रस्तुत किए। तजाकिस्तान के हिंदी सेवी जावेद ने कहा कि हम हिंदी के महायज्ञ में आहुति देने आए हैं। पोर्ट ऑफ स्पेन के रामप्रसाद परशुराम ने कहा कि जो देश-सेवा में जीवन बिताते हैं, वे मरकर भी अमर हो जाते हैं। अमेरिका के प्रोफेसर सुरेंद्र गंभीर ने कहा कि अटल जी की कविता बचपन से गुनगुनाता रहा हूँ। उनकी विनोदपूर्ण प्रतिक्रिया के कई संस्मरण हमारी चेतना में आज भी मौजूद हैं। सांसद के.सी. त्यागी ने कहा कि अटल जी दल के नहीं, दिल के नेता थे। रूस की डॉ अन्ना चेर्नोकोवा ने कहा कि प्रधानमंत्री तो सभी बन सकते हैं, लेकिन कविताएँ केवल अच्छे लोग ही लिखते हैं। दक्षिण कोरिया की डॉ. युंग ली, जापान के प्रोफेसर मचिदा, मॉरीशस की हिंदी सेवी डॉ. विनोद बाला अरुण आदि ने भी अटल जी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। सत्र का संचालन कवि अशोक चक्रधर ने किया तथा अंत में गजेंद्र सोलंकी ने अपनी कविता के माध्यम से अटल जी को काव्यांजलि दी।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ ने श्रद्धांजलि सत्र में घोषणा की कि मॉरीशस के ‘साइबर टावर’ को अब ‘अटल बिहारी वाजपेयी टावर’ के नाम से जाना जाएगा। उन्होंने कहा कि अटल जी के निधन से हिंदी जगत का अनमोल हीरा खो गया है। भारत माता ने एक वीर राजनेता, बुद्धिमान-कर्त्तव्यपूर्ण हिंदी सेवी खो दिया है। उन्होंने वाजपेयी जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके देश ने अपने राष्ट्रीय झंडे और भारत के तिरंगे को आधा झुका दिया है।
दोपहर के भोजन के पश्चात चार समानांतर सत्र अभिमन्यु अनत मुख्य सभागार, गोपालदास नीरज कक्ष, भानुमति नागदान तथा सुरुज प्रसाद मंगर “भगत” जैसे हिंदी सेवियों के नाम पर रखे गए कक्षों में आयोजित किए गए। इन सत्रों के विषय थे – भाषा और लोक संस्कृति के अंतर्संबंध, प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिंदी सहित भारतीय भाषाओं का विकास, हिंदी शिक्षण में भारतीय संस्कृति तथा हिंदी साहित्य में संस्कृति चिंतन। माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन के कारण शाम को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा आयोजित किया जाने वाला सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिया गया।
सम्मेलन के दूसरे दिन रविवार, 19 अगस्त 2018 को भी चार समानांतर सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों के विषय थे – फिल्मों के माध्यम से भारतीय संस्कृति का संरक्षण, संचार माध्यम और भारतीय संस्कृति, प्रवासी संसार, भाषा और संस्कृति, हिंदी बाल साहित्य और भारतीय संस्कृति। दूसरे दिन भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने महात्मा गाँधी संस्थान में मॉरीशस की शिक्षा मंत्री लीला देवी दुकन लछुमन और कला एवं संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह रुपन की उपस्थिति में ‘पाणिनी भाषा प्रयोगशाला’ का उद्घाटन किया। इस प्रयोगशाला की स्थापना विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से की गई है, जिसमें 34 कंप्यूटरों के साथ-साथ भाषा प्रयोगशाला से संबंधित अन्य संसाधन भी प्रदान किए गए हैं।
8 सत्रों में 2 दिन तक चली इन परिचर्चाओं के पश्चात आयोजकों की तरफ से सभी प्रतिभागियों को आप्रवासी घाट, महात्मा गाँधी संस्थान और विश्व हिंदी सचिवालय का भ्रमण करवाया गया। आप्रवासी घाट पर 1835 से 1912 के बीच अंग्रेजों द्वारा उत्तर भारत के लाखों मजदूरों को उतारा गया था, जिसे देखकर सभी रोमाँचित हो उठे। वहाँ स्थित संग्रहालय में अत्यंत महत्त्वपूर्ण सामग्री सहेजकर रखी हुई है। इसी प्रकार, महात्मा गाँधी संस्थान में तत्कालीन गिरमिटिया मजदूरों के पूरे रिकॉर्ड रखे गए हैं। वहाँ उनके रहन सहन, पढ़ाई, बर्तनों, वस्त्रों, पुस्तकों आदि को बड़े यत्न के साथ संभाल कर रखा गया है। विश्व हिंदी सचिवालय के नए भवन की भव्यता देखने योग्य थी। वहाँ बनाए गए पुस्तकालय में अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों को संगृहीत किया गया है। वहाँ से सभी प्रतिभागियों को पुनः आयोजन स्थल ‘तुलसीदास नगर’ में लाया गया और भोजन के उपरांत भारत और मॉरीशस के विभिन्न कवियों के द्वारा कविताओं के माध्यम से स्वर्गीय अटल जी को काव्यांजलि दी गई। इसमें डॉ. कुंवर बेचैन, सरिता शर्मा तथा भारत और मॉरीशस के विभिन्न कवियों का काव्यपाठ हुआ, जिसका संचालन हिंदी के ओजस्वी कवि गजेंद्र सोलंकी ने किया।
ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन का एक अन्य आकर्षण थी – प्रवेश द्वार के दोनों ओर लगी विभिन्न प्रदर्शनियाँ। यहाँ मॉरीशस और भारत में हिंदी के प्रचार-प्रसार और उसे समृद्ध बनाने की दिशा में संलग्न प्रमुख सरकारी संगठनों और हिंदी के प्रमुख प्रकाशकों की प्रवासी साहित्य और मॉरीशस से संबंधित पुस्तकें हिंदी की अनुपम छटा प्रदर्शित कर रही थी। विश्व हिंदी सम्मेलन, महात्मा गाँधी संस्थान, सीडैक, विकिपीडिया, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, साहित्य अकादमी, हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय आदि द्वारा लगाई गई 30 से अधिक प्रदर्शनियाँ जनसमूह के आकर्षण का केंद्र बनी रही।
ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन में इस बार संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के निमंत्रण पर भारत से गए चार चित्रकारों ने निरंतर 3 दिनों तक “हिंदी और भारतीय संस्कृति” विषय पर 16 फुट लंबी अनूठी कलाकृति का निर्माण किया। 4 कलाकारों डॉ. स्नेह सुधा नवल, सुनील दत्त ममगाई, रूपचंद और हर्षवर्धन आर्य ने मिलकर इस कलाकृति में भारतीय संस्कृति, हिंदी भाषा का गौरव, विविधता में एकता और भारत मॉरीशस संबंधों को रंगों के माध्यम से उकेरा।
सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन आठों सत्रों के संयोजकों के द्वारा प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया, जिसमें सत्रों में प्राप्त अनुशंसाएँ भी शामिल की गई। तत्पश्चात पूरे विश्व में हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे हिंदी सेवियों को ‘विश्व हिंदी सम्मान’ से अलंकृत किया गया। 20 अगस्त को सम्मेलन के अंतिम चरण में विश्व भर से पहुँचे हिंदी प्रेमी एक दूसरे को नम आँखों से विदा दे रहे थे और अगले सम्मेलन में पुन: मिलने की आशा जगा रहे थे।[12]
बारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
बारहवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन फ़िजी (नादी) में 15 से 17 फ़रवरी, 2023 को आयोजित किया गया।
समग्रतः कहा जा सकता है कि ये विश्व हिंदी सम्मेलन अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल हुए हैं और इनका महत्त्व भी सर्वविदित है। इन विश्व हिंदी सम्मेलनों ने विश्वभर में फैले हिंदी प्रेमियों को एकजुट करने, हिंदी संबंधी सकारात्मक सूचनाओं के आदान प्रदान से हिंदी के पक्ष में वातावरण बनाने, विश्व में समर्पित रूप से हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगे हिंदी प्रेमियों को सम्मानित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। इनके सम्मिलित प्रयासों से हिंदी तमाम बाधाओं को लाँघते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, स्पेनिश और अरबी (अरबी 18 दिसंबर, 1973 को शामिल की गई) के बाद सातवीं आधिकारिक भाषा अवश्य बन जाएगी।
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[1] डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल, शोध रिपोर्ट 2015, पृष्ठ 2
[2] डॉ. रवि शर्मा, ग्लोकल हिंदी, पृष्ठ 226-230
[3] भाषा, विश्व हिंदी सम्मेलन अंक, 1975
[4] गगनांचल, विश्व हिंदी अंक, वर्ष 16, अंक 4, अक्टूबर-दिसंबर, 1993
[5] गगनांचल, विश्व हिंदी अंक, वर्ष 19, अंक 1, अक्टूबर-दिसंबर, 1996
[6] इंद्रप्रस्थ भारती, वर्ष 12, अंक 1 जनवरी-मार्च, 2000
[7] इस्पात भाषा भारती, जुलाई-सितंबर, 2004
[8] विश्व मंच पर हिंदी, मीडिया, अंक 3, जुलाई-सितंबर,2007
[9] विनोदकुमार विश्वकर्मा ’विमल’, 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन-एक विहंगम दृष्टि, हिमगंगा स्मारिका, नेपाल, अगस्त, 2018
[10] स्मारिका, विश्व हिंदी सम्मेलन, 2018
[11] भोपाल से मॉरीशस, संपा. अशोक चक्रधर, 2018
[12] डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’, 11वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन-एक विहंगावलोकन, पुस्तकालय भारती, नई दिल्ली, अक्टूबर-दिसंबर, 2018
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डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’
एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग
श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली-7
निवासः सुर-सदन, डब्ल्यू- जेड- 1987,
रानी बाग, दिल्ली-110034
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