
(जन्म: 18 नवम्बर 1972, तुरा, मेघालय – निधन: 19 सितम्बर 2025, सिंगापुर) असम के सबसे प्रभावशाली और बहुमुखी कलाकारों में से एक थे। उनका असली नाम जिबन बोरठाकुर था। उनका परिवार साहित्य, संगीत और कला से जुड़ा था—पिता मोहिनी मोहन बोरठाकुर (‘कपिल ठाकुर’ के नाम से कवि),माता इलि बोरठाकुर (अभिनेत्री-संगीतकार), और बहन जोंकी बोरठाकुर (गायिका-अभिनेत्री) ।
संगीत का प्रारंभ और असमिया योगदान जुबीन ने 1992 में मात्र 19 वर्ष की आयु में अपना पहला असमिया ऐल्बम ‘‘अनामिका’’ जारी किया, जिसने असम में नई संगीत-धारा की शुरुआत की। उनका संगीत असमिया लोक ध्वनि को आधुनिक शैली में प्रस्तुत करता है। ‘‘उजान पिरिती’’ जैसे बिहू ऐल्बम ने भी अपार लोकप्रियता प्राप्त की।
बॉलीवुड में यात्रा और राष्ट्रीय पहचान 1995 में जुबीन गर्ग मुंबई गए और हिंदी संगीत उद्योग में अपना स्थान बनाया। फिल्म ‘‘गैंगस्टर’’ (2006) के ‘‘या अली’’ गीत ने उन्हें पूरे भारत में लोकप्रिय कर दिया—यह गीत उनकी सांगीतिक शैली का उदाहरण है जिसमें भावनाओं, लोक, रॉक व पॉप का संगम है। जुबीन को इस गीत के लिए ‘‘बेस्ट प्लेबैक सिंगर’’ का ग्लोबल इंडियन फ़िल्म अवॉर्ड मिला ।
बहुभाषी एवं बहुप्रतीभाशाली कलाकार जुबीन ने 40 से अधिक भाषाओं में 38,000 से अधिक गीत गाए हैं वे सालाना औसत रूप से 800 गाने गाए हैं और एक दिन में कुल 36 गाने रेकार्ड करने की किर्तिमान भी स्थापित किए हैं वे असमिया, हिंदी, बंगाली, उड़िया, तमिल, तेलुगु, नेपाली, पंजाबी, मराठी, अंग्रेज़ी कन्नड़ आदि भाषाओं में गीत गाए हैं । वे ड्रम, ढोल, मैंडोलिन, कीबोर्ड सहित बारह वाद्ययंत्र बजा सकते थे। उन्होंने बतौर अभिनेता, निर्देशक, संगीतकार, गीतकार, निर्माता, और सामाजिक कार्यकर्ता भी कम किया ।
सामाजिक योगदान, विचारशीलता एवं साहस जुबीन केवल संगीतकार नहीं थे, बल्कि सामाजिक सरोकार और स्पष्टवादिता के लिए भी प्रसिद्ध रहे। असम में राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मसलों पर अपनी राय मुक्त रूप से रखते थे। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों—जैसे नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA)—का समर्थन/विरोध कर जनता में अपनी विचारशीलता और साहस का परिचय दिया। ग़रीबों और पशुओं की मदद के लिए वे सदैव सक्रिय रहते थे।

असमिया सांस्कृतिक एकता के प्रतीक उनका संगीत और व्यक्तित्व असम की सांस्कृतिक एकता, अस्मिता और युवाओं की उम्मीदों का प्रतीक बन गया। उनकी छवि हर उम्र, हर जाति और विचारधारा के लोगों में लोकप्रिय थी। वे ‘कंचनजंघा’ यानी ऊँचा, निर्बंध, स्वतंत्र कहलाते थे ।
19 सितम्बर 2025 को सिंगापुर में स्कूबा-डाइविंग दुर्घटना में उनका निधन हुआ। असम और देशभर में शोक की लहर दौड़ गई; उनके निधन पर राज्य सम्मान से अंत्येष्टि हुई। जुबीन गर्ग की कला, साहस और सामाजिक संदेश पहुँचना आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा ।
23 सितंबर 2025 को गुवाहाटी में हुए उनके अंतिम संस्कार में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी थी, जिसमें असम की जनता और उनके प्रशंसकों ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें विदाई दी। जुबीन गर्ग का 19 सितंबर 2025 को सिंगापुर में स्कूबा डाइविंग के दौरान डूबने से निधन हुआ था। असम के मुख्यमंत्री ने तय कारण जानने के लिए दो बार पोस्टमार्टम करवाया, लेकिन सिंगापुर में जो रिपोर्ट आई उसमें कारण डूबना बताया गया।
जुबीन गर्ग की विदाई की प्रमुख झलकियाँ जुबीन गर्ग की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुवाहाटी एयरपोर्ट से उनके घर तक सड़कों पर हजारों-लाखों लोग lined up होकर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इकठ्ठा हुए।
अंतिम संस्कार उनकी बहन ने किया और उनकी पत्नी गरिमा सैकिया अपने आंसू नहीं रोक पाईं। असम के सोनापुर में पूरे रीति-रिवाज और सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ।
अंतिम संस्कार के समय उनके प्रसिद्ध गीत “मायाबिनी रातीर बुकुत” को वहां उपस्थित लोग लगातार गा और गुनगुना रहे थे। यह वही गीत है जिसे जुबीन गर्ग अपनी आत्मा की आवाज मानते थे और इच्छा जताई थी कि उनके निधन के बाद यह गीत जरूर बजाया जाए।
जुबीन पशु-प्रेमी थे—उनके चार पालतू कुत्तों ने भी उन्हें विदाई दी। स्थानीय लोग और उनके चाहने वाले उन्हें “जानवरों का सच्चा दोस्त” मानते थे।
उनके अंतिम संस्कार के स्थान पर स्मारक बनाए जाने की योजना है—वही स्थान, जहां 12 साल पहले भी उनकी एक भावुक तस्वीर ली गई थी।
ज़ुबीन मात्र एक गायक या अभिनेता नहीं, बल्कि असम और पूरे नॉर्थ-ईस्ट के लिए एक सांस्कृतिक प्रतीक थे। उन्होंने 40 से अधिक भाषाओं में गाने गाए हैं, जिनमें असमिया, हिंदी, तमिल, तेलुगु आदि शामिल हैं।
बॉलीवुड में भी “या अली” जैसे सुपरहिट गीत दिए, लेकिन स्टारडम के बावजूद मुंबई का माहौल उन्हें पसंद नहीं आया—वह अपनी मातृभूमि असम लौट आए और वहीं रहना पसंद किया।
कोविड महामारी के दौरान उन्होंने अपना घर कोविड केयर सेंटर के तौर पर समर्पित किया था। उग्रवादी धमकियों के बावजूद वे हिंदी में गाते रहे। सामाजिक सेवा के लिए उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, लेकिन 15 बच्चों को गोद लिया और पालित किया।
वे सादगी, समर्पण, साहस और सामाजिक जिम्मेदारी के लिए पहचाने जाते थे। युवाओं को प्रेरित करने, संस्कृति को बचाने व पर्यावरण के लिए अक्सर आंदोलनों में भाग लिया।
उनकी अंतिम यात्रा की तुलना अंतरराष्ट्रीय हस्तियों—माइकल जैक्सन और प्रिंसेस डायना—की अंतिम यात्रा से की गई।
समर्पण, सादगी, संस्कृति-प्रेम, और साहस से जुबीन गर्ग की जीवन-यात्रा हर उम्र के लोगों के लिए प्रेरणादायक मिसाल है। उनका जाना केवल एक कलाकार का जाना नहीं, बल्कि असम और उत्तर-पूर्वी भारत के सांस्कृतिक युग के समाप्ति जैसी घटना है।
अमर सांस्कृतिक प्रवक्ता जुबीन गर्ग की जीवन यात्रा असम के सांस्कृतिक अभ्युदय की कहानी है—परंपरा और आधुनिकता, सामाजिक चेतना और कलात्मकता, विविधता और एकता के संदेश के साथ वे कलाकार, विचारक, और समाजसेवी के रूप में सदा याद किए जाएँगे ।
© डॉ महादेव एस कोलूर