अर्चना

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मेरी माँ

ममता का सागर,
मेरी प्यारी माँ।
ज्ञान सरस्वती तुल्य है,
सभी ग्रंथ है कंठस्थ,
ज्ञान की खान है,
मेरी प्यारी माँ….
करुणा बुद्ध तुल्य
जन्म जाति से परे
अमीर हो या ग़रीब
सब के दुःख से विचलित
है उसका मन
माँ मेरी प्यारी …..
सेवाभाव साईं तुल्य
भरना चाहे सबके घाव,
मानसिक हो या शारीरिक।
इच्छायें उसकी अपने लिए है तुच्छ
पर बच्चों के लिए अपार।
सब की झोली भरना चाहे,
अपना हो या पराया।
मोहल्ले भर की है चहेती
बच्चे हों या बढे,
लेना चाहे उसका आशीष
ममता का सागर
माँ, मेरी माँ

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One thought on “मेरी माँ – (कविता)”
  1. मां के लिए कुछ भी लिखना सूरज के आगे दीया दिखाने जैसा है बावजूद इसके कवि की कल्पना अत्यंत मर्मस्पर्शी है ।

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