
डॉ. आनंद कुमार स्वामी के लिए कला का अर्थ
नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
डॉक्टर आनंद कुमार स्वामी के लिए कला का अर्थ है, उसका जीवन से एकाकार होना और केवल अपने जीवन के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए, मनुष्य की सार्थक यात्रा के लिए तथा यह यात्रा सार्थक तब होती है जब यह विश्वास होता है कि यहां सब कुछ एक दूसरे से गुंथा हुआ है और यह गुंथन आकाश बौर नहीं है, यह लोक के रस से जीवित है। लोक का यही रस समष्टि के प्रति समर्पण है जिसमें निहित संदेश है कि बिना सबका हुए जीवन प्रसाद नहीं बनता।
भारतीय अर्थ में जीवन अखंड होता है। जीवन की यह अखंडता अपने स्वयं के स्वरूप के विमर्श पर आधारित होती है।
वे कहते थे कि भारत की दरिद्रता इस तथ्य में नहीं थी कि वह आर्थिक दृष्टि से विपन्न था बल्कि इस तथ्य में थी कि उसकी मानसिकता दिखावटी प्रगति में अपनी संपन्नता खोजने लगी थी।
डॉक्टर आनंद कुमार स्वामी ने जहां एक ओर भारतीय चित्रांकन परंपरा का गहरा अध्ययन कर उसका शैलीगत विभाजन कर एक पृथक अनुशासन के रूप में उसे स्थापित किया वहीं दूसरी ओर उन्होंने पश्चिम के दार्शनिकों से लेकर वेदों और ब्राम्हण ग्रंथों से लेकर जलालुद्दीन रूमी तक के विचारों को मथा। उन्हें सूत्रबद्ध किया।
उनका निष्कर्ष था कि भारतीयता एक सनातन प्रवाह है।
भारतीय संस्कृति, ऊषा की तरह बार बार जायमान होती है और यही हमारा संस्कार है कि हम कभी पुराने नहीं होते।
यहाँ डॉक्टर आनंदकुमार स्वामी के विभिन्न अवस्थाओं के दुर्लभ अंकन भी प्रस्तुत हैं :









