संजीव कुमार के जीवन का आखिरी दिन

06 नवंबर 1985 को संजीव कुमार की मृत्यु हुई थी।

“उन्होंने मुझसे ‘राही’ की डबिंग कंप्लीट करने को कहा। मैं तैयार नहीं था। लेकिन उन्होंने ज़िद की। उन्होंने जो कहा वो मैंने किया। और दो दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।”, राही फिल्म के डायरेक्टर रमन कुमार ने कहा। राही 29 मई 1987 को रिलीज़ हुई थी। संजीव कुमार जी की मृत्यु के दो साल बाद। आज 40 साल हो गए संजीव कुमार जी को इस दुनिया से गए। संजीव कुमार जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके आखिरी कुछ घंटों की कहानी इस लेख में जानेंगे।

संजीव कुमार के छोटे भाई नकुल कुमार की पत्नी ज्योति जरीवाला ने काफी समय पहले से एक ट्रिप प्लान की हुई थी। उन्हें पहले कलकत्ता अपने रिश्तेदारों के पास जाना था और फिर बनारस। 29 अक्टूबर 1985 को वो अपने बच्चों के साथ निकल गई। हालांकि उनका बेटा उदय नहीं गया। वो और चार दिन घर पर ही रहा। फिर तीन नवंबर को वह भी कलकत्ता के लिए निकल गया। नकुल जरिवाला की मृत्यु की हो चुकी थी। और संजीव कुमार ही भाई नकुल जरीवाला के परिवार का ख्याल रखते थे।

“हम बनारस जाकर संजीव भाई और परिवार के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना चाहते थे। क्योंकि बीते कुछ दिनों से घर में हर किसी को ये फीलिंग आ रही थी कि जैसे कुछ बुरा होने वाला है।” ज्योति जी ने एक इंटरव्यू में कहा।

28 अक्टूबर को संजीव कुमार जी ने अपनी छोटी बहन गायत्री को फोन किया था। और करीब आधे घंटे उन्होंने गायत्री जी से बात की थी। अपने भाई संजीव कुमार संग गायत्री जी की वो आखिरी बात थी। उस दिन को याद करते हुए स्वर्गीय गायत्री पटेल जी ने कहा था,”वो बहुत इमोशनल थे। उन्होंने मुझे सलाह दी थी कि मैं अपनी सेहत का ध्यान रखूं। अपने परिवार का ध्यान रखूं। उन्होंने मुझसे कहा था कि दूसरों पर डिपेंड मत रहना। क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब ऐसा वक्त आ जाए। और इस दुनिया का सामना अकेले ही करना पड़ जाए। उस वक्त मुझे समझ में नहीं आया था कि वो क्या कहना चाहते हैं।”

संजीव कुमार के साथी कलाकार और बहुत अच्छे दोस्त दिनेश हिंगू उन दिनों मस्कट जाने वाले थे। लेकिन पता नहीं कैसे उन्हें ये महसूस हुआ कि जाने से पहले एक दफा हरी भाई से मिल लेना चाहिए। “मैं अमजद खान और कल्याणजी-आनंदजी के साथ मस्कट जाने वाला था। पता नहीं मुझे क्यों लगा कि मुझे हरी भाई से मिलकर जाना चाहिए। मैं उनसे मिला भी। लेकिन मेरे मस्कट पहुंचने के दो दिन बाद खबर आई कि संजीव कुमार नहीं रहे।” दिनेश हिंगू ने एक इंटरव्यू में कहा था।

05 नवंबर 1985. संजीव कुमार जी ने उस दिन जुहू के सुमित डबिंग थिएटर में आर.के.नैयर की फिल्म ‘कत्ल’ की डबिंग निबटाई। फिर वो डायरेक्टर प्रकाश मेहरा से मिले और उनकी फिल्म “इंसान की औलाद” के बारे में चर्चा की। रात के लगभग साढ़े दस बजे डबिंग फिनिश हुई थी। औ जो आखिरी लाइन उन्होंने रिकॉर्ड की थी वो थी “कब्र के सिरहाने घास नहीं उगती बरखुरदार।” डबिंग स्टूडियो से बाहर निकलते वक्त संजीव कुमार ने आर.के.नैयर जी से कहा था,”कल मेरी मां की पुण्यतिथि है। इसलिए कल मैं घर पर ही रहूंगा।”

यूं तो सात नवंबर को संजीव कुमार को लंदन के लिए निकलना था। मगर उससे पहले ही छह नवंबर एक मनहूस दिन बनकर आ गया। संजीव विचारों में खोए हुए थे। वो अपनी मां को याद कर रहे थे। अपने बचपन को याद कर रहे थे। उस दिन वो सुबह सात बजे ही उठ गए थे। मगर उन्हें कुछ खाने का मन उस दिन नहीं हुआ। उनका नौकर, जिसे वो पंडित कहकर पुकारा करते थे, और जो 1968 से उनके यहां काम कर रहा था, उसने हरी भाई से खूब कहा कि कुछ खा लीजिए। भूखा रहना आपके लिए सही नहीं है। पंडित के काफी कहने पर उन्होंने एक प्याला चाय और कुछ बिस्किट लिए।

फिर थोड़ी देर बाद संजीव कुमार के गुरू व मेंटोर पी.डी.शिनॉय आ गए। वो उस दिन कुछ रुपए संजीव कुमार को लौटाने आए थे। उनके आने के बाद संजीव कुमार का मूड कुछ अच्छा हुआ। उनके जाने के बाद सुभाष घई आ गए। सुभाष घई भी कुछ देर तक रहे और उन्होंने संजीव कुमार जी से बढ़िया बातें की। सुभाष घई के जाने के बाद संजीव कुमार अपने नौकर पंडित और सेक्रेटरी जमनादास से अपनी अगले दिन की लंदन ट्रिप के बारे में बात करने लगे। उन्होंने पंडित को देने के लिए दो हज़ार रुपए निकाले। ताकि उनकी गैरमौजूदगी में पंडित को कोई दिक्कत ना हो। क्योंकि उनके लंदन जाने के बाद घर में पंडित के अलावा कोई और नहीं बचता। हालांकि पंडित ने पैसे लेने से मना कर दिया। उसने कहा कि उसके पास पैसे हैं।

पंडित और हरी भाई की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि अचानक हरी भाई की तबियत बिगड़ने लगी। उनका जी मिचलाने लगा। और लगभग साढ़े बारह बजे उन्हें उल्टी आई। बुरी तरह घबराए उनके सेक्रेटरी जमनादास ने जल्दी से डॉक्टर गांधी को फोन लगाया और उन्हें घर आने के लिए कहा। फिर जमनादास खुद ही डॉक्टर गांधी को लेने निकल पड़े। हालांकि इस दौरान संजीव कुमार जी कहते रहे कि वो ठीक हैं। उन्हें कुछ नहीं हुआ है। उन्हें बस नहाना है। क्योंकि कुछ देर बाद सचिन(अभिनेता सचिन पिलगांवकर) आने वाला है। इतना कहकर वो अपने बेडरूम में चले गए। थोड़ी देर बाद ही सचिन और डायरेक्टर सतपाल आ गए।सचिन के आने के कुछ ही देर बाद जमनादास और डॉक्टर गांधी भी आ गए।

सभी लोग संजीव कुमार जी के बाथरूम से आने का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन 45 मिनट गुज़र गए। वो बाहर नहीं आए। सचिन को किसी अनहोनी का शक हुआ। सचिन उन्हें देखने उनके बैडरूम में घुसे। चूंकि डॉक्टर्स ने संजीव कुमार को सलाह दी थी कि वो कभी भी अपने बेडरूम का दरवाज़ा लॉक ना करें तो उन्होंने उस दिन भी दरवाज़ा लॉक नहीं किया था। सचिन ने जैसे ही बाथरूम में झांका तो उनकी चीख निकल पड़ी। संजीव कुमार फर्श पर पड़े थे। सचिन की चीख सुनकर डॉक्टर गांधी व बाकी सब भी दौड़े हुए वहां आए। डॉक्टर गांधी ने उन्हें चैक किया। और फिर वो बोले,”हरी भाई नहीं रहे।”

डॉक्टर गांधी के मुताबिक हार्ट अटैक से संजीव कुमार की मृत्यु हुई थी। और हार्ट अटैक के वक्त उन्होंने खुद को बचाने की जद्दोजहद भी की थी। डॉक्टर के मुताबिक पौने दो से दौ बजे के बीच में उनकी मृत्यु हुई होगी। जिस वक्त संजीव कुमार की मृत्यु हुई थी उस वक्त उनकी उम्र महज़ 47 साल ही थी। तारीख थी 06 नवंबर 1985.

संजीव कुमार के सेक्रेटरी जमनादास ने उनके भाई नकुल की पत्नी ज्योति के भाई को संजीव जी की मौत की खबर दी। ज्योति जी के भाई ने उन्हें सिर्फ इतना ही बताया कि हरी भाई की तबियत खराब हो गई है। और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है। ज्योति जी व उनके बच्चों के लिए मुंबई वापसी की अर्जेंट टिकट व्यवस्था कराई गई। संजीव जी के दूसरे भाई किशोर व उनकी पत्नी प्रफुला को भी खबर दी गई। भाई की मौत की खबर सुनकर किशोर जरीवाला फूट फूटकर रोने लगे। एक्ट्रेस तरला जोशी को ज़िम्मेदारी दी गई कि वो अमेरिका में रह रही हरी भाई की बहन गायत्री को उनकी मौत की खबर दें।

फिल्म इंडस्ट्री में संजीव कुमार के निधन की खबर फैली तो शोक की एक ऐसी लहर उठी कि उस दिन हर किसी ने अपनी शूटिंग कैंसल कर दी। यहां तक कि रिकॉर्डिंग व डबिंग तथा अन्य सभी तरह के पोस्ट-प्रोडक्शन के काम भी रोक दिए गए। हर कोई अपने जानकारों को संजीव कुमार की मौत की खबर दे रहा था। किशोर दा को जब ये खबर मिली तो पहले तो वो इस पर यकीन ना कर सके। और फिर अपने आंसुओं पर काबू ना रख सके। राजेश खन्ना व रवि टंडन नज़राना फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। मगर ये खबर जैसे ही उन्हें मिली, उन्होंने शूटिंग रोक दी। हरी भाई के दोस्त सुधीर दलवी रामसे ब्रदर्स की फिल्म साया की शूटिंग कर रहे थे। जैसे ही उन्हें खबर मिली वो शूटिंग छोड़कर पेरिन विला, संजीव कुमार के घर की तरफ निकल पड़े।

एक इंटरव्यू में ए.के.हंगल साहब ने कहा था,”मैं अपने परिवार के सदस्यों की मौत पर भी नहीं रोया था। लेकिन हरी की मौत की खबर मिली तो मैं अपने आंसुओं को नहीं रोक सका। मैं खाना खाने बैठा था जब मुझे हरी की मौत की खबर मिली। फिर भला मैं कैसे खा पाता?”

अमजद खान दिनेश हिंगू के साथ उस वक्त मस्कट में थे। संजीव कुमार की मौत की खबर जब उन्हें मिली तो उन्हें यकीन नहीं हुआ। उन्हें लगा कि ये कोई अफवाह उड़ाई गई है। उन्होंने अपने घर फोन किया और अपनी पत्नी शहला से कहा कि ज़रा हरी भाई के घर जाकर देखो तो सब ठीक है कि नहीं? शहला खान जी ने एक इंटरव्यू में कहा था,”मुझे तो पता भी नहीं था कि क्या हुआ है। मगर उनके कहने पर मैं हरी भाई के घर पेरिन विला गई। जब मैंने वहां बेतहाशा भीड़ देखी तो मैं समझ गई कि ये कोई अफवाह नहीं है। हरी भाई सच में चले गए थे। मैं जल्दी से वापस घर गई और मस्कट में उन्हें फोन लगाकर बताया कि हरी भाई नहीं रहे।”

दिनेश हिंगू उस दिन को याद करते हुए एक इंटरव्यू में कहते हैं,”अमजद खान जब अपनी पत्नी शहला से बात कर रहे थे तब मैं उनके बराबर में ही खड़ा था। जैसे ही शहला ने अमजद को बताया कि हरी भाई सच मे नहीं रहे तो अमजद किसी बच्चे की तरह फूट-फूटकर रोने लगे। हमें उस दिन एक नाटक करना था। मगर हरी भाई की मौत की खबर के बाद हमारे लिए नाटक परफॉर्म करना मुमकिन ही नहीं था।”

संजीव कुमार की मौत पर दिलीप कुमार ने कहा था,”संजीव बहुत शानदार एक्टर और बहुत बेहतरीन इंसान था। वो जीवन में बहुत कुछ हासिल करता। लेकिन अफसोस, किस्मत को ये मंज़ूर नहीं था। वो कभी नहीं बदला। मैं उसे तब से जानता था जब वो स्ट्रगल कर रहा था। उसने मेरे साथ भी काम किया था। वो एक सफल एक्टर बना। बहुत सफल। कमज़ोर लोग सफलता हजम नहीं कर पाते। मगर संजीव कमज़ोर नहीं था। उसने सफलता को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने दिया।”

चूंकि संजीव कुमार जी की बहन गायत्री अमेरिका में रहती थी। तो फैसला लिया गया कि उनका अंतिम संस्कार 8 नवंबर को किया जाएगा। ताकि गायत्री व उनका परिवार भी अंतिम संस्कार में शामिल हो सके। उनके शव को दो दिनों तक शीशे के एक कोफिन में रखा गया। और शत्रुघ्न सिन्हा दो दिनों तक संजीव कुमार के शव के पास खड़े रहे। शत्रुघ्न सिन्हा जी ने कहा था,”मैं जानता हूं कई लोग अब उनके बारे में बहुत कुछ बोलेंगे। क्योंकि वो अब जवाब देने के लिए नहीं हैं। मैं ये नहीं कहूंगा कि वो कितने शानदार एक्टर थे। या उनके जाने से फिल्म इंडस्ट्री का कितना नुकसान हुआ है। क्योंकि ये सब जानते हैं। उनका जाना मेरे लिए बहुत बड़ा नुकसान है। वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। मैंने अपना दोस्त खो दिया। जब भी मैं कभी मुसीबत में पड़ता था और मुझे उनकी ज़रूरत होती थी, वो हमेशा मेरे साथ खड़े रहते थे। मुझे गर्व है कि वो मेरे दोस्त थे। मैं जब कभी उनसे पूछता था कि आपकी आखिरी ख्वाहिश क्या होगी तो वो कहते थे ‘मैं मरना नहीं चाहता।’ अपने छोटे भाई नकुल की मौत के बाद उन पर बहुत ज़िम्मेदारियां आ गई थी। नकुल के तीनों बच्चों को वही पाल रहे थे। वो बच्चे उनका सबकुछ थे। और वो उन्हीं के लिए जीना चाहते थे।”

उनकी स्मृति को नमन…

(साभार – KISSA TV फेसबुक पेज से)

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