विस्मया : कुछ अनुत्तरित प्रश्न

फिर भोर में बज उठी वंशी की तान,

फिर चहक उठा चिड़ियों का मधुर गान।

फिर महक उठी ताज़ा फूलों से बगिया,

फिर साँसों में फूँक दिये नव-प्राण।

एक तेरी छुअन से क्या क्या हो जाता है?

होंठ तेरे ,

निगाहें तेरी,

ज़ुल्फ़ तेरी ,

बाँहें तेरी।

कैसे पूरी कायनात सिमट जाती है?

गीता में, कुरान में,

पूजा में, अज़ान में,

बाइबल में, गुरू ग्रंथ में,

हर धर्म में, हर पंथ में।

नींव तो तुम्हारी ही है, फिर इमारतों पर झगड़ा क्यों?

झरनों में, सागर में,

सितारों में, गागर में,

स्वर में, संगीत में,

काव्य में, हर गीत में।

सर्वत्र तुम्हीं तुम हो तो फिर “मैं” कहाँ से बोले?

सुकरात पर लांछन,

कबीर पर लांछन,

सीता पर, अहिल्या के

चीर पर लांछन।

मानव सत्य का स्वागत करना कब सीखेगा?

***

हरप्रीत सिंह पुरी

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