डॉ. रामदरश मिश्र “शतकोत्सव”-रचनाओं के रंग पर भव्य कार्यक्रम आयोजित

“जहां लोग पहुंचे छलाँगें लगाकर,वहाँ मैं भी पहुंचा मगर धीरे धीरे” -डॉ. रामदरश मिश्र

जीवन के सौ वसंत पार साहित्यकार डॉ.रामदरश मिश्र जी साक्षात सदी पुरुष हैं। वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से साढ़े चार वर्षों से चल रहे प्रत्येक रविवारीय कार्यक्रम के अंतर्गत मिश्र जी की रचनाओं के रंग सहित 6 अक्तूबर,2024 को “शतकोत्सव का दिल्ली में हाइब्रिड रूप से ऐतिहासिक आयोजन हुआ। इसमें देश विदेश से अनेक सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं भाषा प्रेमी सम्मिलित हुए।

इस अवसर पर शतकोत्सव के शलाकापुरुष डॉ.मिश्र जी ने कहा कि गाँव,सादगी,सरलता और इंसान के प्रति प्रेम ने मुझे यहाँ तक पहुंचाया है और थकी उम्र में भी मन को खिलाया है। शहर में रहकर मेरे गाँव के नैन हैं। मैं चुप रहता हूँ लेकिन मन बोलता है। उन्होंने अपनी पाँच रचनाएँ भी सुनाईं। कुछ फूल,कुछ कांटे,हमने आस पास बांटे। जिंदगी गुनगुनाती हुई चलती रही और मैं 100 बरस का हो गया।

विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारीं साहित्यकार सुश्री ममता कालिया जी ने मिश्र जी की दीर्घकालिक साहित्य साधना को नमन किया और कहा कि मिश्र जी को पढ़कर 5 पीढ़ियाँ बड़ी हुई हैं। उन्होंने शब्दों को आयु और ऊर्जा दी है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सचिव डॉ.सच्चिदानंद जोशी ने मिश्र जी के जीवन के 100 वर्षों की साधना को अनुकरणीय,समादरणीय और अभिनंदनीय बताया।

सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर ने मिश्र जी की विद्वता,सरल स्वाभाविकता,उदात्तता,परदुखकातरता,तेजोमयता और शालीनता की ओर ध्यान आकृष्ट किया और गोपाल गांधी,पवन वर्मा और मीरा गौतम के माध्यम से परिचयात्मक तथ्य रखते हुए मिश्र जी की लंबी उम्र और स्वस्थ रहने की कामना की।

गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर आलोक गुप्ता द्वारा “गुजरात में मिश्र जी के 8 वर्ष, के संबंध में रोचक तथ्य रखे गए। उन्होंने बाकी 70 वर्ष की मिश्र जी साहित्यिक यात्रा पर इन 8 वर्षों को भारी बताया। डॉ.गुप्ता जी ने कहा कि मिश्र जी की रचनात्मक ऊर्जा और विद्यार्थियों के बीच लोकप्रियता स्तुत्य है। उनके लिए प्राध्यापक अपना वेतन कटवाने हेतु तत्पर रहते। मिश्र जी की निच्छल उर की प्रीति, स्वाभाविक है।

आदरणीय मिश्र जी की सुपुत्री प्रो.डॉ.स्मिता जी ने अपने पूज्य पिता के आशीष के बहते झरने का जिक्र किया और कहा कि वे दुख–पीड़ा अपने पास ही रखते थे और आर्थिक संकट में भी हम आज्ञाकारी बच्चे उनका स्थितिप्रज्ञ सा सहज सान्निध्य पाते थे। मेरी माँ पूज्य सरस्वती मिश्र पिताजी के लेखन की पहली पाठक होती थीं।

संस्मरण सुनाते हुए वरिष्ठ लेखिका अलका सिन्हा ने अनुभवजन्यता से कहा कि मिश्र जी ने कभी महत्वाकांक्षा नहीं रखी।

कार्यक्रम के आरंभ में संयोजक श्री विनयशील चतुर्वेदी ने प्रस्ताविकी प्रस्तुत की, तदोपरांत वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष और कार्यक्रम प्रणेता श्री अनिल जोशी ने देश विदेश से जुड़े सभी सम्माननीय श्रोताओं का आत्मीयता पूर्वक स्वागत किया और उम्र की शतकीय पारी पूरा करने वाले सदाशयी साहित्यकार मिश्र जी सहित अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति का सादर समादर किया। इसके बाद भारत सरकार के रेल मंत्रालय में राजभाषा के निदेशक डॉ.बरुण कुमार ने संचालन का बखूबी दायित्व संभाला और शालीन एवं रोचक ढंग से निर्वहन किया।

फिर प्रस्तुतियों का क्रम चल पड़ा। प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं हिन्दी राइटर्स गिल्ड कनाडा की सह संस्थापक तथा वैश्विक हिन्दी डॉट कॉम वेबसाइट की संपादक डॉ. शैलेजा सक्सेना द्वारा मिश्र जी की चर्चित कहानी “विदूषक, के नाट्य रूपांतरित स्वरूप की मनोहारी प्रस्तुति हुई। मँझे हुए दो कलाकारों द्वारा ग्रामीण जीवन के चित्र के परदे से प्रभावोत्पादक प्रस्तुति दी गई। विद्या भूषण धर के साथ संदीप कुमार सिंह ने जोगी राय की सुंदर अभिनय सहित सशक्त संवादात्मक भूमिका निभाई, जिसमें शोषण के खिलाफ सख्त आवाज उठाई गई थी।

सत्कार मूर्ति मिश्र जी की चुनिंदा कविताओं का पंजाबी में अनुवाद कर चुकी डॉ.अमरजीत कौर द्वारा “गाँव के बीच, का “विच पिंड, शीर्षक से पाठ किया गया। उन्होंने कहा कि मिश्र जी की नारी विमर्श के साथ छोटे छोटे जीव जंतुओं पर लिखी रचनाओं का पंजाबी में अनुवाद करना मेरा सौभाग्य है।

उदीयमान अभिनेता संकल्प जोशी द्वारा मिश्र जी की “सन्नाटा, कहानी के अंशों का पाठ कर, बड़े ही उत्साहवर्धक ढंग से आरोह-अवरोह सहित अभिप्रेरक व प्रभावोत्पादक एवं सराहनीय प्रस्तुति दी गई। लोटे का जल लिए माँ का निकालना, जैसे वाक्यों के चित्रण से जीवंतता आ गई। लोग मनोबल से लड़ रहे हैं जैसे वाक्यों से आत्म बाल बढ़ा।

गीतकार डॉ. ओम निश्चल ने मिश्र जी को “गीतों का बादशाह, बताते हुए लय के साथ यह भी दिन बीत गया, प्रेरणास्पद गीत सुनाया। इसके अलावा आध्यात्मिक गीतकार संजय प्रभाकर जी ने साधु वेशभूषा में मिश्र जी की तीन रचनाएं वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तुत कीं,जिनसे श्रोताओं पर अमित छाप पड़ी।

समूचा कार्यक्रम अविस्मरणीय रहा एवं श्रोताओं ने इसका साक्षी बनना सौभाग्य माना। शायद ही किसी साहित्यकार के जीवन के सौ वर्ष पूरा होने पर ऐसा “शतकोत्सव, मनाया गया हो जिसमें स्वयं सदी पुरुष प्रेरणा पुंज के रूप में तीन घंटे तक उपस्थित रहकर शोभायमान हुए हों।

कार्यक्रम में पद्मश्री से सम्मानित आदरणीय प्रो.तोमियो मिजोकामी (जापान), दिव्या माथुर, अरुणा अजितसरिया, शैल अग्रवाल (ब्रिटेन), संध्या सिंह (सिंगापुर), उदमिला खोंखोलोवा (रूस), शैलेजा सक्सेना, विजय विक्रांत (कनाडा), शिखा रस्तोगी (थाइलैंड) आदि एवं भारत से सर्व श्री नारायण कुमार, जय प्रकाश, गोपेश, प्रणय प्रसून, कुमार मंगलम, किरण कुमार, विपुल, नवीन नीरज, मनीष कुमार, निशा, अंजू राजश्री, ऋषि, रश्मि आदि बड़ी संख्या में जुड़े थे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सभागार में हिन्दी साहित्य, संस्कृति और कला की नामचीन हस्तियाँ उपस्थित थीं। 

समूचा कार्यक्रम लेखक,चिंतक एवं कवि श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन में पूरी टीम के श्रम से सिंचित था। सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर द्वारा सक्रियता से कार्यक्रम प्रमुख की भूमिका निभाई गई। डॉ.नवीन नीरज और कृष्ण कुमार तथा डॉ.मनीष कुमार तकनीकीत्रयी ने विविध माध्यमों सहित सबको आद्योपांत जोड़े रखा एवं मंच के साथ हाइब्रिड कार्यक्रम को सफल बनाया। अंत में मॉरीशस की पूर्व दवीतीय सचिव डॉ. सुनीता पाहुजा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कीर्तिमान स्थापित करने वाला यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार,शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट : डॉ जयशंकर यादव

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