ऑनलाइन हिन्दी शिक्षण- नया परिदृश्य

ध्यातव्य है कि शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। परिवर्तन सृष्टि का नियम है अतएव शिक्षण में भी परिवर्तन की प्रविधियाँ स्वाभाविक हैं। इसके मद्देनजर “ऑनलाइन हिन्दी शिक्षण के नए परिदृश्य, पर  वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा रविवारीय कार्यक्रम में गहन चर्चा की गई।

इसकी अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध वयोवृद्ध भाषाशास्त्री प्रो॰वी॰आर॰जंगन्नाथन ने कहा कि नए युगानुरूप, आधुनिक तकनीकी के माध्यम से ऑनलाइन दूरस्थ हिन्दी शिक्षण बहुत प्रभावी होगा। इससे असंख्य शिक्षार्थी सहज रूप में लाभान्वित हो सकते हैं। कम्प्यूटर और कृत्रिम मेधा की नई तकनीकी नई पढ़ी में चलन में है जिसकी नित नई जानकारी प्रशिक्षकों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है ताकि वे मुखामुखी होकर ज्ञानार्जन करा सकें। अब इंटरनेट विस्फोट युग में पत्राचार की अपेक्षा दूरस्थ शिक्षा सभी प्रकार के शिक्षार्थियों हेतु क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। आधुनिक समय में मातृभाषा के माध्यम से ऑनलाइन सामग्री स्वचालित सामग्री और हाइब्रिड व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है।   यू ट्यूब से  भी स्तरीय सामग्री का ही सहारा लेना श्रेयस्कर होगा ताकि स्वस्थ शिक्षित समाज का निर्माण कर हिन्दी को विश्वभाषा के रूप में अग्रसर किया जा सके। इस अवसर पर देश-विदेश से सैकड़ों विद्वान-विदुषी, शिक्षक-प्रशिक्षक शोधार्थी-विद्यार्थी और भाषा प्रेमी जुड़े थे। 

    आरम्भ में स्पेन के मैड्रिड से हिन्दी गुरुकुल की संस्थापक प्राध्यापिका पूजा अनिल द्वारा हिन्दी शिक्षण की अनुभवजन्यता सहित आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। तत्पश्चात चीन के क्वानतोंग विश्वविद्यालय में हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ॰विवेक मणि त्रिपाठी  द्वारा शिक्षण के अनुभव और उद्धरणों सहित संचालन का बखूबी दायित्व निर्वहन किया गया। उन्होने वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सादर आमंत्रित किया।

वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा हाल ही में निःशुल्क हिन्दी शिक्षण प्रकल्प के अंतर्गत ऑनलाइन कक्षाएं शुरू की गई हैं। इसमें संकाय सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो॰ ओम प्रकाश ने कहा कि यह व्यापक फ़लक है जिसके माध्यम से अनेक वैश्विक प्रयास जारी हैं। लिपि से लेकर साहित्य सिखाने तक अनेक स्रोत हैं। बेशक इसमें तकनीकी, मानकीकरण,भाषायी अवरोध, कॉपीराइट और गुणवत्तायुक्त सामग्री आदि संबंधी चुनौतियाँ भी हैं किन्तु शनैः शनैः समाधान भी हो रहा है और असंख्य विदेशी विद्यार्थी भी लाभान्वित हो रहे हैं।

थाईलैंड के बैंकाक में ग्लोबल  इंडियन इंटरनेशनल स्कूल में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ॰ शिखा रस्तोगी ने पंच दिवसीय दीपावली पर्व की शुभ कामनाओं के साथ कहा कि कोरोना रूपी आपदा को अवसर में बदलते हुए हमने 2020 से ऑनलाइन हिन्दी कक्षाएं शुरू कीं। इन कक्षाओं से कोरिया, जापान और यूरोपीय देशों तथा अमेरिका आदि के शिक्षार्थी लाभान्वित हुए। थाईलैंड में अधिकांश नौकरी पेशा वाले लोग हिन्दी शिक्षार्थी हैं जिनको समयानुकूल दृश्य श्रव्य सामग्री के माध्यम से सोदाहरण, सचित्र समझाने में तकनीकी से बहुत मदद मिलती है। थाई लोगों को र अक्षर के उच्चारण में कठिनाई होती है किन्तु हम यहाँ प्रचलित राजा और राजकुमार जैसे शब्दों का सहारा लेते हैं। जीवनोपयोगी वस्तुओं के साथ मामा, मौसी आदि भारतीय पारिवारिक रिश्तों की गहनता, विद्यार्थी जिज्ञासा से सीखते हैं।

      अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ हिन्दी प्रवक्ता अंशुल जैन ने कहा कि उनके यहाँ “लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम” के अंतर्गत वीडियो और क्वीजलेट मूल्यांकन टूल्स आदि की मदद ली जाती है और सभी कक्षाएं पीपीटी के माध्यम से ही स्मार्ट कक्षाओं में होती हैं। छोटी कक्षाओं के लिए व्यक्तिगत सीख पद्धति प्रभावी है। छोटे समूहों में बांटकर सामूहिक भावना के साथ आत्मीयतापूर्वक कक्षाएं चलाना भी कारगर होता है। हमें हिन्दी शिक्षण में तकनीकी का सही ढंग से सदुपयोग करना चाहिए। थाईलैंड से एम॰ए॰ हिन्दी के विद्यार्थी श्री थानापत का कहना था कि मूल भारतीय सभ्यता दुनिया भर में फैली हुई है। हिन्दी, आधुनिक संस्कृत है। थाईलैंड में भी संस्कृत का बहुत प्रभाव है। उन्होने स्वयं अपने नाम का उदाहरण दिया जो धनपत या समृद्धि का द्योतक है। हमें ऑनलाइन शिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए। उज्बेकिस्तान से जुड़ी छात्रा नादिरा का मानना था कि हिन्दी सीखने में आधुनिक तकनीकी और हिन्दी चैनल काफी कारगर हैं। उन्हें भारतीय भाषा और संस्कृति से बचपन से बहुत प्रेम है और भाषा विज्ञान में शोध की इच्छुक हैं। तकनीकी ने समय, स्थान और लागत की दूरियों को बहुत कम किया है।  

   जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित प्रो॰तोमियो मिजोकामि ने आधुनिक हिन्दी शिक्षण तकनीकी की उपादेयता को चमत्कारिक बताया। उन्होने कहा कि जापान में भी र अक्षर के उच्चारण में व्याघात आता है। हमें युगानुरूप आगे बढ़ना चाहिए। रूस से जुड़ीं प्रो॰उदमिला खोखलोवा ने कहा कि भौगोलिक अंतर के कारण उच्चारण आदि में कठिनाई स्वाभाविक है। पहले हिन्दी सीखकर हिन्दी में बात करना जरूरी है। सान्निध्यप्रदाता एवं लेखक श्री अनिल जोशी ने वक्ताओं की सराहना करते हुए कहा कि तकनीकी के माध्यम से दूर दराज के क्षेत्रों में हिन्दी सिखाने की माकूल व्यवस्था होनी चाहिए ताकि जन -जन में हिन्दी ज्योतित हो। ऑनलाइन हिन्दी शिक्षण हेतु आसानी से सामग्री उपलब्धता, अभिज्ञान टूल्स और गुणवत्तायुक्त शिक्षण निहायत जरूरी है। इसके लिए नित नए शोध भी आवश्यक हैं।    

   

    समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान,वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन में आयोजित  हुआ। कार्यक्रम प्रमुख की सशक्त भूमिका का बखूबी निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर द्वारा सक्रिय सेवा भाव से किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो॰ विवेक शर्मा के द्वारा दी गई हिन्दी वेबसाइट व टूल्स की संक्षिप्त जानकारी और कृतज्ञता ज्ञापन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआयह विशेष कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब, पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन –डॉ॰ जयशंकर यादव 

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