
देवताओं का मौन : एक आध्यात्मिक यात्रा
ध्यातव्य है कि सृजन के क्षणों में मनुष्य मौन और अर्धसमाधि की अवस्था में होता है। कहना न होगा कि पुस्तक लेखन भी सृजन का ही अभिन्न हिस्सा है। ज्ञान के क्षेत्र में पुस्तकें सबसे बड़ी अस्त्र हैं। अच्छी पुस्तकें जीवन निर्माता और भाग्य विधाता भी होती हैं। पहली दिसम्बर की रविवारीय शाम को ऐसी ही एक पुस्तक देवताओं का मौन : एक आध्यात्मिक यात्रा पर लेखक श्री राजीव मुद्गल से सीधा संवाद हुआ एवं जीवन का पौष्टिक अवलेह रूपी निकष आत्मसात हुआ।

सान्निध्य प्रदाता के रूप में वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने स्नेहसिक्त सदाशयी भूमिका निभाई। संवादी की बागडोर कनाडा की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार डॉ॰शैलेजा सक्सेना ने शालीनता से संभाली। आरंभ में रेल मंत्रालय में राजभाषा के निदेशक एवं साहित्यकार डॉ॰ बरुण कुमार ने दार्शनिक पृष्ठभूमि के साथ सबका आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया और जनवरी 2025 में 10 से 12 जनवरी तक नई दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन की जानकारी भी दी। इस अवसर पर देश- विदेश से सैकड़ों विद्वान -विदुषी, शिक्षक-प्रशिक्षक शोधार्थी-विद्यार्थी और भाषा प्रेमी जुड़े थे।

आरंभिक जीवन और लिखने की प्रेरणा के प्रश्न पर विद्वान लेखक श्री राजीव मुद्गल ने बताया कि उनका बचपन मुंबई में घाटकोपर इलाके में विषम परिस्थियों और बीमारी की स्थिति में व्यतीत हुआ। शिक्षकों से संबल और प्रेरणा मिली। हिन्दी के साथ मराठी और गुजराती का ज्ञान हुआ। वेद, पुराण और उपनिषद की ओर झुकाव रहा। साहित्यकार माता चित्रा मुद्गल और पिता अवध नारायण से पालन पोषण और आशीर्वचन मिला। पहले चित्रांकन करता रहा और बाद में लिखना शुरू किया। कालीदास की भी रचनाओं को खूब पढ़ा। खेल में राज्य चैंपियन रहा। कोरोना संकट को खूब झेला और यह रचना प्रस्फुटित हुई।

पुस्तक के संबंध में लेखक ने कहा कि “देवताओं का मौन, दार्शनिक और आध्यात्मिक यात्रा कराती है। यह शरीरी आवास क्या है और उसमें कौन निवास करता है। निवासी अपने अस्तित्व के लिए शब्द, सोच और भावनाओं से रास्ता तय करता है। सत्य अवर्णनीय, अपरिभाष्य और अकथनीय होता है। आधुनिक मानव स्थिति और तनाव से उत्पन्न होने वाली विकृति से निपटने में हमारी अक्षमता दृष्टिगोचर होती है। आध्यात्मिकता के हृदय को अनिष्ट की ताकतों से बचाने के उपाय पुस्तक में निहित हैं। आत्म कथ्यात्मक विवेचन में गूढ प्रश्न उत्तरित हैं।

सनातन के प्रश्न पर लेखक का कहना था कि अब कृत्रिम बुद्धिमता यानी ए आई हावी हो रही है और इसके नियंत्रक, भविष्य के नायक होंगे। उन्होने श्रोताओं द्वारा रखे गए प्रश्नों के भी उत्तर दिये। सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल और डॉ॰बरुण कुमार ने भी विमर्श में भाग लिया। सान्निध्यप्रदाता एवं लेखक श्री अनिल जोशी ने लेखक की दीर्घकालिक साहित्य साधना और आध्यात्मिकता की सराहना की और इस पुस्तक को जीवनोपयोगी बताया।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान,वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख की सशक्त भूमिका का बखूबी निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर द्वारा सक्रिय सेवा भाव से किया गया। भारत से डॉ॰ जयशंकर यादव के कृतज्ञता ज्ञापन और भवेत सुखम की कामना के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह विशेष कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन –डॉ॰ जयशंकर यादव