
तमिल रामायण ‘रामावतारम्’ : एक विवेचन
(-डॉ. दंडिभोट्ला नागेश्वर राव)
भारत में नैतिक मूल्यों की स्थापना में साहित्य का विशेष स्थान है। काव्य-सौंदर्य के प्रतिमानों में सामाजिक एवं सामूहिक हित की साधना को स्थान देना भारतीय साहित्य की विशेषता है। इसीलिए कहा गया कि साहित्य के लक्ष्यों में एक –लोकमंगल की भावना है। भारतीय काव्यशास्त्र के अनुसार ‘शिवेतर क्षतये’ यानी अमंगलकारी-नाशक व मंगलकारी रचना को ही साहित्य माना जाना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाये तो ‘रामायण’ की रचना इसी शिव-भावना से हुई थी जिसका मूल उद्देश्य नैतिक मूल्यों के स्थापन के द्वारा समाज-कल्याण ही है। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में राम ने अपने ‘अयन’ के द्वारा कुछ ऐसे मूल्यों का संदेश दिया जो कि सार्वकालिक एवं सदैव आचरणीय हैं। भारतीय संस्कृति में राम-साहित्य की अपनी एक अलग विशिष्ट परंपरा है। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाये तो राम के अयन (यात्रा) की कथा का अधिकांश नेपथ्य दक्षिण भारत रहा। श्रीराम के वनगमन से लेकर उनकी पत्नी के अपहरण व उसके परवर्ती कई घटनाएँ दक्षिण भारत की भूमि पर ही घटी थीं। अतः दक्षिण भारत के भाषा-साहित्यों में रामायण की एक भव्य परंपरा विद्यमान है। वाल्मीकि कृत रामायण को आधार बनाकर तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में रामायणों की रचना हुई है और लोक साहित्य के धरातल पर भी कई मौखिक रामायण इस प्रदेश में पाये जाते हैं। भारतीय रामायण को एक इकाई के रूप में मानकर चलें तो उसमें दक्षिण भारत के लिखित और मौखिक रामायणों का एक विशाल और अभिन्न अंग भी उपस्थित रहता है। उस परंपरा में लिखित तमिल काव्य ‘रामावतारम्’ अथवा ‘कंब रामायण’ के काव्य सौंदर्य का विवेचन करना प्रस्तुत शोध आलेख का आशय है।
दक्षिण भारत की भव्य-संस्कृति एवं परंपरागत वैशिष्ट्य को बनाये रखने में तमिलनाडु का महत्वपूर्ण योगदान है। तमिलनाडु को द्रविडभूमि कहा जाता है और यह भी सत्य है कि संपूर्ण दक्षिण भारत पर तमिलनाडु का विशेष प्रभाव है। प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक राबर्ट कॉल्डवेल के अनुसार तुलु, कोंकण और खोल सहित तेलुगु, कन्नड, मलयालम आदि समुची दक्षिण भारतीय भाषाओं की जड़ एक ही थी और उसी से इन भाषाओं का क्रमिक विकास भी हुआ था। अधिकांश भाषा वैज्ञानिक इस सिद्धांत से सहमत हैं और उस प्राचीन भाषा को ‘मूल द्रविड भाषा’ (Proto Dravidian Language) नाम देने के पक्ष में है। इस द्रविड भाषा-परिवार की समस्त भाषाओं में तमिल का उद्भव पहले हुआ था और बाद में जन्मी हर द्रविड भाषा पर तमिल का अपार प्रभाव रहा है। भाषा के धरातल पर ही नहीं, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्रों में भी तमिलनाडु का प्रभाव सभी दक्षिण भारतीय भाषी प्रदेशों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
तमिल संस्कृति में राम एक अभिन्न अंग है। उसी प्रकार तमिल-साहित्य में रामायाण भी एक अभिन्न अंग है। तमिल रामायणों की संख्या में मतभेद है और कहा जाता है कि संगम-युग के बाद कम-से-कम तीन रामायणों की रचना हुई थी लेकिन आज वे अनुपलब्ध हैं। तमिल साहित्यिक-आलोचकों के मतानुसार ‘वेनबा रामायण’, ‘आशिरियप्पा रामायण’ के कुछ छंदों का उल्लेख सन् पाँचवी सदी के बाद के तमिल साहित्य में मिलता है। इनके बाद यानी 12 वी शती में कंबन अथवा कंबर द्वारा रचित ‘रामावतारम्’ को ही तमिल-रामायण की प्रतिनिधि रचना माना जाता है जो कंब-रामायण के नाम से विख्यात है। कंबर का जीवनकाल सन् 1180-1250 ई. माना जाता है। कंबर का जन्म तमिलनाडु के वेण्णैनेल्लूर में हुआ था। पिता और माता का उल्लेख कहीं नहीं है। आपको बचपन में एक स्तंभ के पास पाया गया इसलिए उनका नाम ‘कंबन’ रखा गया। तमिलनाडु के नागपट्टिणम् जनपद में स्थित तेरळुंदूर में उनका पालन-पोषण सदैयप्पा वल्लल् ने किया था। तमिल और संस्कृत भाषाओं के प्रकांड पंडित और कवि कंबर को चोल राजा (तृतीय कुलोत्तुंग चोल) ने अपने दरबार में बुलाया और उनकी विद्वत्ता से मुग्ध होकर ‘कवि चक्रवर्ति’ उपाधि से सम्मानित किया। कहा जाता है कि चोल राजा के साथ मतभेद के कारण बाद में – यानी अपने जीवन के अंतिम चरण में कंबर ने उनका दरबार छोड दिया और आंध्र की तरफ आकर काकतीय साम्राज्य के नरेश प्रतापरुद्र के पास जाकर बस गये। पर इसका कोई प्रमाण प्राप्त नहीं है।
कंबर ने वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर 11,000 छंद-बद्ध पद्यों से ‘रामावतारम्’ की रचना की थी जिसमें कुल 6 कांड हैं यथा : बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड एवं युद्ध कांड। उत्तर कांड की कल्पना कंब-रामायण में नहीं है। कंब-रामायण के कुल 11,000 छंद-बंद्ध पद्यों में 45,000 पंक्तियाँ हैं- अर्थात् एक पद्य में चार पंक्तियाँ। कंबर ने ‘वेनबा’ छंद का बहुत कम प्रयोग किया, यद्यपि उनको इस छंद के सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। कंब-रामायण का पहला पाठ श्रीरंगम् के श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में तायार सन्निधि (देवी-मंदिर का सान्निध्य) में एक मंटप में हुआ था। यह मंटप ‘कंबर अरंगेट्र मंटप’ नाम से आज भी उपलब्ध है। कंबर की कवि-सहज प्रतिभा की प्रशंसा अनेक कवि-विद्वानों ने ही नहीं बल्कि सामान्य जनता ने भी की है। यदि मान लें कि आम जनता की जुबान पर जो कवि चढता है, वही अमर है- तो कंबर तमिल की आम जनता की जुबान में मुहावरों व कहावतों के रूप में आज भी जिंदा हैं। तमिल भाषा में ‘कंबर वीट्टु क्कट्टुत्तरियुं कवि पाडुम्’ (कंबर के घर का करघा भी कविता करना जानता है) जैसे असंख्य मुहावरे मौजूद हैं। कोई विषय बहुत गंभीर हो और कोई बहुत ही संक्षेप में उसे कह दें तो उस स्थिति को सामान्य तमिल भाषी ‘कंबर सूत्रम्’ कहता है-जो हिंदी के ‘गागर में सागर’ भरने की क्षमता-सूचक वाक्य से तुलनीय है। ‘कंबन कविये कवि’ (कंबर की कविता ही कविता है) कहकर सामान्य तमिल-भाषी कंबर की काव्य-प्रतिभा को नमन करता है।
कंबर ने अपने रामायण की रचना में वाल्मीकि कृत रामायण को आधार मानकर अपने समाज के अनुसार उसे तमिल भाषाई-छंदों में ढाला। कंब-रामायण में तमिल समाज के कई रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार तथा त्योहारों का चित्रण है और कंब-रामायण में जिन नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक मूल्यों का उल्लेख है, वे सार्वकालिक एवं सार्वजनिक हैं। अनेक प्रसंगों में निहित इन मूल्यों का विहंगम-वीक्षण करना प्रस्तुत शोध-प्रपत्र का आशय है।
मूल्य और नैतिकता के संबंध में राम एक आदर्श पुरुष हैं और वाल्मीकि ने ‘रामो विग्रहवान धर्मः’ (राम धर्म का साकार रूप है) कहकर राम के धर्माचरण की प्रशंसा की है। कंब- रामायण में भी नारी सम्मान की बात कई बार कही गयी है। हनुमान, सीता के अन्वेषण में दक्षिणी छोर के समुंदर को पार करके लंका में जाते हैं, और अंततोगत्वा उनको उपवन में पाते हैं। तब सीता अपने राम का स्मरण हनुमान के समक्ष करती हैं और पर-स्त्री के संबंध में राम के द्वारा कही गयी बातों का उल्लेख करके विलाप करते हुए कहती हैं कि ऐसे गुणवान राम के सान्निध्य से मैं वंचित रह गयी। –
“वंदु एनैक्करम् पट्रिय वैकल्वाय
इंद इप्पिरविक्कु इरुमातरै
चिंतैयालुम् तोडेन एन्र
तंदवार्तै तिरुच्चेवि चाट्रुवाय।।“
(राम ने सीता से कहा : ‘हे सीते! मैं इस जन्म में अन्य नारियों का स्पर्श मन में भूलकर भी नहीं करूँगा।‘ )
नारियों के संबंध में रामजी का आचरण कितना पवित्र है, यह उपर्युक्त पंक्तियों से सिद्ध होता है।
समाज में सबसे अंतिम इकाई व्यक्ति है तो मध्य की इकाई परिवार है और परिवार की स्वस्थ मानसिकता ही समाज की सुरक्षा की नींव है। नैतिकता का संदेश कंब-रामायण के हर पात्र के आचरण से व्यक्त होता है। राम के प्रिय भाई भरत, राम के वनगमन की घटना के बाद अयोध्य में प्रवेश करता है और अपनी माता की करतूत पर चिंता जताता है। वह कहता है कि मुझे राज्य की कांक्षा कतई नहीं है और यदि मैं अपने भाई राम को वनगमन करवाकर अयोध्या की राजगद्दी पाना चाहूँ तो मुझसे बडा पापी इस संसार में कोई नहीं होगा।
“कन्नियै अळिचेयक्करुदिनोन्, गुरु
पण्णियै नोक्किनोन्; परुकिनोन्दरै;
पोन् इकळ्कळ्विनिल्पोरिंतिनोन्, एन्
इन्नवर् उरुकति एन्नदु आगवे”
(यदि मैं अपने भाई के लिए उद्दिष्ट राजगद्दी की आशा रखता हूँ तो मैं- कन्या का बलात्कार करने वाला, अपनी गुरुपत्नी को बुरी नज़र से देखनेवाला, मधु-पान करने वाला तथा सोने का अपहरण करनेवाला- इन पांचों दुष्टों से गया बीता हूँ।)
इस प्रकार कहकर वह लोभ-मोह आदि मानव-सुलभ कमजोरियों को ठुकराता है और इस प्रसंग में राम के त्याग के साथ भरत का भ्रातृ-स्नेह भी समाज को नैतिकता का पाठ पढाने में सशक्त बनकर खडा होता है।
बाली-वध का प्रसंग कंब-रामायण में बहुत विरले ढंग से चित्रित किया गया। इसमें बाली राम से प्रार्थना करता है कि उसके छोटे भाई सुग्रीव ने राम से भाई का वध कराकर पाप तो किया है लेकिन वह मेरे लिए अत्यंत प्रिय है। इसलिए उसे लोक-निंदा से बचाए। कंब रामायण में बाली कहता है :
“एम्पिरै उम्पि मार्गळ तम्मुनै कोल्वित्तान् एन्रु
इकलवरेळ तडुत्ति”
(अर्थात्- मेरे छोटे भाई सुग्रीव को लोकनिंदा से अवश्य बचाइए। उसने अपने सगे भाई की हत्या करवायी।)
संसार के सभी मनुष्यों को समदृष्टि से देखनेवाले स्नेहशील राजा के रूप में कंबर ने राम का चित्रण किया। अरण्यकांड में जब गुह के साथ राम का मिलाप हुआ, तब राम गुह से भोग के रूप में प्रदत्त पदार्थों को प्रेम से ग्रहण करते हैं। वे कहते हैं –
“परिविनिंदळी इय एन्निन्
पवित्तिरं; एम्मनोर्कुम्
उरियन; इनितिन्नामुम्
उंडनेम् अन्रो? एन्रान’
(अर्थ यह हुआ कि : “भाई गुह! प्यार से जो भी हमें अर्पण करते हैं, उसे स्वीकार करना चाहिए। यदि वह मांस या मछली हो, तो भी मुझे स्वीकार्य है और यह लेने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है। इन सबसे परे जो प्यार इन पदार्थों में निहित है, वह मुझे वशीभूत कर देने वाला है।“)
कंबर ने राम का चित्रण किस प्रकार किया, यह समझने के लिए निम्नलिखित पद्य काफी है। युद्धकांड में रावण से भगाये गये विभीषण, भगवान राम के पास शरण के लिए आते हैं और उनको देखकर वानर की सेना भयभीत होती है। विभीषण को जब सब लोग संदेह की नजर से देख रहे थे तब राम उनके सिर पर हाथ रखते हैं और उनको अपनी शरण में लेते हैं। इस संदर्भ में वे विभीषण को अपना भाई मान लेते हैं और कहते हैं-
“गुगनोडुंऐवरानोम् मुन्बु पिन्न कुन्रु चूलवान्
मगनोडुम् अरुवरानों एम्मुळै अन्बिन्वंद
अकमनर्कादल अय्य! निन्नोडुम् एळ्वरानोम्
पुगलरुन्गोनंतंतुपुतल्वराल्प्लिंदान् उंदै”
(अर्थात्, “हे विभीषण! पहले राजा दशरथ के सिर्फ हम चार पुत्र थे। बाद में गुह के साथ हम पाँच हुए। (यानी गुह भी मेरा भाई बन गया।) बाद में सूर्य-पुत्र सुग्रीव के साथ हम छः हुए। और पूर्ण प्रेम के साथ युक्त आप (विभीषण)को मिलाकर कुल हम सात-पुत्र हुए। इस प्रकार हम सातों को पुत्रों के रूप में प्राप्त करके पिता दशरथ धन्य हुए। कवि ने राम के चरित्र के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि कोई हमारे मित्र बन जायें या हमारी शरण में आये- उनको हमारे परिवार के सदस्य मानना चाहिए।)
महाकवि कंबर ने वाल्मीकि रामायण से प्रेरणा पाकर अपने समाज के लिए उपयुक्त ढंग से तमिल-रामायण की रचना की। इसमें दो राय नहीं कि कंब-रामायण अथवा ‘रामावतारम्’ तमिल भाषा में लिखित अत्यंत सुंदर काव्य है और उसमें निहित कई विषय आज के युग में भी प्रासंगिक और अनुसरणीय हैं।
@डॉ. दंडिभोट्ला नागेश्वर राव,
सहायक आचार्य, श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती (मानित) विश्वविद्यालय,
कांचीपुरम्, तमिलनाडु।
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